मन्नू की वह एक रात - 13

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यह सोचते-सोचते मुझे हर तरफ से ज़िंदगी में अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह चुड़ैल मुझ पर हंस रही है कि देख तेरा आदमी मेरे तलवे चाट रहा है, छीन लिया मैंने उसे तुझसे, तू मूर्ख है, हारी हुई बेवकूफ औरत है। मैं बेड पर एक कोने में बैठी घुटने में सिर दिए यह सोचते-सोचते रोने लगी। भावनाओं में डूबती-उतराती मेरे रोने की आवाज़़ कब तेज होकर ऊपर चीनू तक पहुँचने लगी मैं जान नहीं पाई। पता मुझे तब चला जब वह आकर आगे खड़ा हो गया और चुप कराते हुए बोला,