दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 18

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 18-शैली "मम्मा ! हमें भी एक डॉगी पालना है ---" सामने वाले सूद साहब के यहाँ एल्सेशियन को देखकर सोना अपनी माँ से हर रोज़ एक बार तो कहती ही | "बेटा ! इतना आसान है क्या --मालूम है, कितना काम होता है इसका ?" "सूद आँटी के घर भी तो है, देखो न ---" सोना यानि सोनाली अक्सर ठुमक जाती | प्रज्ञा के कान पर जूँ न रेंगती, भली प्रकार जानती थी कि ले आएँगे पर करेगा कौन ? सूद साहब बड़े व्यापारी ! उनके घर पर कर्मचारियों की आवाजावी लगी रहती