अर्पण--भाग (५)

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देवनन्दिनी की बात सुनकर राजहंसिनी बोली____ नहीं दीदी! परिचित नहीं हैं,बस एक बार मुलाकात हुई थी।। अच्छा तो अब मुझे समझ आया,उस दिन आप हाँस्टल से भाग रहीं थीं और बातों ही बातों में मैनें इन्हें बताया कि मुझे नौकरी की जुरूरत है तो इन्होंने मुझे मिल का पता देते हुए कहा कि यहाँ चले जाइएगा नौकरी मिल जाएगी,बस मैं दूसरे दिन मिल पहुँच गया और आपने मुझे नौकरी पर रख लिया, श्रीधर बोला।। जी,मेरे हाँस्टल से भागने का तो आपको दीदी ने बता ही दिया होगा,राजहंसिनी बोली।। तो क्या करूँ?बताना पड़ता है,तूने मेरी नाक में दम जो कर रखा