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अर्पण--भाग (५)

देवनन्दिनी की बात सुनकर राजहंसिनी बोली____
नहीं दीदी! परिचित नहीं हैं,बस एक बार मुलाकात हुई थी।।
अच्छा तो अब मुझे समझ आया,उस दिन आप हाँस्टल से भाग रहीं थीं और बातों ही बातों में मैनें इन्हें बताया कि मुझे नौकरी की जुरूरत है तो इन्होंने मुझे मिल का पता देते हुए कहा कि यहाँ चले जाइएगा नौकरी मिल जाएगी,बस मैं दूसरे दिन मिल पहुँच गया और आपने मुझे नौकरी पर रख लिया, श्रीधर बोला।।
जी,मेरे हाँस्टल से भागने का तो आपको दीदी ने बता ही दिया होगा,राजहंसिनी बोली।।
तो क्या करूँ?बताना पड़ता है,तूने मेरी नाक में दम जो कर रखा है,देवनन्दिनी बोली।।
दीदी!वो हाँस्टल नहीं कैद़खाना है....कै़द़खाना,राजहंसिनी बोली।।
अच्छा...ठीक है...ठीक है,ये बता यहाँ आने का कष्ट क्यों किया मेरी प्यारी बहना ने,देवनन्दिनी ने पूछा।।
वो क्या है ना दीदी! किशोर बाबू शाँपिग पर जा रहे हैं मुझे लेकर,अगर मुझे भी कुछ पसंद आ गया तो,राजहंसिनी बोली।।
अच्छा...अच्छा...रूपए चाहिए,चलो मेरे केबिन में,पर्स तो वहीं रखा है,देवनन्दिनी बोली।।
अच्छा तो शह़जादे! मैं अब चलती हूँ,देर हो रही है,किशोर बाबू बाहर मोटर में मेरा इन्तज़ार कर रहे होगें,राजहंसिनी बोली।।
अच्छा...अच्छा...मैं भी अपने काम में लगता हूँ,जी नमस्ते! श्रीधर बोला।।
जी नमस्ते! और इतना कहकर राज ,नन्दिनी के संग उसके केबिन में आई,रूपए लिए और किशोर के संग शाँपिग पर चली गई।।

शाम को राज,किशोर के संग शाँपिग से लौटी,रामू से चाय बनाने को कहा,किशोर बोला___
तो मैं भी अब चलता हूँ!!
ऐसे कैसे किशोर बाबू ! आज तो बगीचें में लिट्टी चोखें की दावत है,अभी कुछ देर में दीदी भी मिल से आईं जातीं हैं,ऐसा कीजिए आप डाक्टर बाबू को भी टेलीफोन करके बुला लीजिए,आज तो बहुत मज़ा आने वाला हैं,राज बोली।।
लिट्टी चोखा! ये क्या होता है भाई? मैं भी तो सुनूँ ये क्या बला है? किशोर ने पूछा।।
तब तो आप दुनिया के सबसे बेहतरीन स्वाद से महरूम हैं,आपने तो जन्नत का सबसे बड़ा सुख जाना ही नहीं,अगर आपने आज तक लिट्टी चोखा नहीं खाया तो,आप को इन्सान किसने बनाया? लानत है आपकी इन्सानियत पर जो आपने आज तक लिट्टी चोखे की शक्ल नहीं देखी,राजहंसिनी बोली।।
ये क्या हो रहा है? किस बेचारे की शामत़ आई है जो उसे इतनी बातें सुनाई जा रहीं हैं,देवनन्दिनी ने राजहंसिनी की बातें दरवाज़े से सुनते ही पूछा।।
जी! वो गरीब,लाचार,निहायत बदकिस्मत मैं हूँ नन्दिनी देवी! किशोर चिढ़ते हुए बोला।।
अरे,किशोर! इसकी बात का बुरा मानते हो,भला इसे कोई सहूर है बात करने का,देवनन्दिनी बोली।।
जी! लेकिन क्या मैं इतना गया गुजरा हूँ,जो मुझे इतना सुनाया जाएं,किशोर ने पूछा।।
जी! किशोर बाबू ! आप इसी लायक हैं,आप कितने भी विलायत रिटर्न क्यों ना हों,वहाँ के बटर ब्रेड के स्वाद से तो आप बखूबी वाक़िफ़ होगें लेकिन मालूम होता है कि आपको यहाँ के खाने में कोई दिलचस्पी नहीं है,तभी आप ऐसी बातें किया करते हैं,राजहंसिनी बोली।।
वैसे राज जी! आप को नहीं लग रहा कि जरा सी बात पर मुझे आप कुछ ज्यादा ही सुना रहीं हैं,किशोर बोला।।
गुस्ताखी माफ़ ! किशोर बाबू! लेकिन आप इसी लायक हैं,राज बोली।।
तो फिर मैं घर जाता हूँ,आप ही भाईसाहब को टेलीफोन करके बुला लीजिए,किशोर बोला।।
किशोर...ठहरो..ये तो पागल है,मैं तो कह रही हूँ रूकने के लिए और मैं ही डाक्टर साहब को भी टेलीफोन किए देती हूँ,वो आ जाएंगें,देवनन्दिनी बोली।।
जी! आप कहती हैं इसलिए रूक रहा हूँ,किशोर बोला।।
अच्छा,तुम दोनों बगीचें में पहुँचों,मैं भी आती हूँ,देवनन्दिनी बोली।।
जी बहुत अच्छा और किशोर बगीचे में राज के साथ पहुँचा,अब अँधेरा भी हो आया था इसलिए बगीचें में लगें सभी लैम्पपोस्ट को जला दिया गया था ताकि ठीक से उजाला रहें,रधिया के कमरें के पास ही अच्छा सा अलाव लगाया गया था लिट्टी सेंकने के लिए,दिनभर रधिया इसी तैयारी में ही लगी थीं,उसने अपने कमरें में सिलबट्टे पर दो तीन तरह की चटनी पीसी थी,तीखी हरी चटनी,सरसों के दानों की चटनी और लहसुन वाली चटनी___
रधिया और रामू अपने अपने काम में लगें हुए थे,रधिया चोखा तैयार कर चुकी थी और लिट्टी में सत्तू का मसाला भर भर के लिट्टियाँ आग पर डालती जा रही थी और रामू उन्हें सेंक रहा था,राज ने ये देखा तो वो भी काम पर लग गई,कुछ देर में देवनन्दिनी और डाक्टर बाबू भी बगीचें में पहुँच गए और सब मिलकर लिट्टी चोखें का आनंद उठाने लगें।।
लेकिन किशोर बाबू को लिट्टी चोखा हाथों से खानें में थोड़ी परेशानी हो रही थी,वैसे उन्हें भी लिट्टी चोखा भा गया था,उन्होंने कहा कि अगली बार जल्द ही इसका दोबारा कार्यक्रम रखा जाएं।।
अब राजहंसिनी को बहुत आसानी हो गई थी,वो घर से ही अब काँलेज जाने लगी थी अपनी साइकिल में,
एक दिन वो काँलेज के लिए निकली थी कि रास्ते में किसी ताँगें का घोड़ा बिदक गया और उसने अपना रास्ता छोड़ दिया,ताँगें वाले ने बहुत मशक्कत की लेकिन घोड़ा काबू में ना आया,सामने से राजहंसिनी अपनी साइकिल पर आ रही थी,ताँगें की टक्कर लगी, सड़क के कच्चे रास्ते पर ताँगा उतर गया और राजहंसिनी सड़क पर ही साइकिल सहित गिर पड़ी।।
घोड़ा अब रूक चुका था और उस ताँगें में श्रीधर मिल जाने को निकला था,उसने राजहंसिनी को सड़क पर गिरे देखा तो भागकर उसकी मदद के लिए आया,पास आकर देखा तो राजहंसिनी के पैर में काफ़ी चोट आई थी,सिर से भी खून निकल रहा था,वो बेहोश़ थी।।
ये देखकर एक मोटर वाले ने मदद की ,उसने श्रीधर और राज को अस्पताल पहुँचा दिया,राज का इलाज डाक्टरों ने शुरू भी कर दिया,श्रीधर ने मिल में टेलीफोन करके देवनन्दिनी को सबकुछ बता दिया,ख़बर सुनकर देवनन्दिनी फौरन अस्पताल आ पहुँची।।
कुछ देर के इलाज के बाद डाक्टर ने आकर कहा कि___
घबराने की जुरूरत नहीं है,खतरें वाली बात नहीं,सिर में चोट लगी है कुछ टाँके आएं हैं और पैर में हल्का सा फ्रैक्चर है,प्लास्टर कर दिया है लेकिन कम से कम दो हफ्ते तक अस्पताल में रहना होगा।।
जी,ठीक है और तो कोई खतरें वाली बात नहीं है,श्रीधर ने पूछा।।
जी ,नहीं! बस उनका कुछ ख़ास ख्याल रखना होगा,जल्द ही वो अच्छी हो जाएंगीं,डाँक्टर साहब बोले।।
जी,बहुत अच्छा! बहुत बहुत शुक्रिया डाक्टर साहब! देवनन्दिनी बोली।।
जी!शुक्रिया किस बात का ये तो मेरा फ़र्ज़ था,शुक्रिया तो आप इन साहब का कीजिए जो ये समय पर मरीज को ले आएं,अगर सिर से खून ज्यादा बह जाता तो मुश्किल खड़ी हो सकती थीँ,डाक्टर साहब बोले।।
जी,ये तो मेरा फर्ज था,वो मेरी जान पहचान की ना भी होती तो तब भी मैं ऐसा ही करता,श्रीधर बोला।।
जी,अब मैं जाता हूँ,उनकी देखभाल के लिए नर्स है उनके पास ,जब उन्हें होश आ जाए तो मुझे ख़बर कर दीजिएगा,डाक्टर साहब बोले।।
जी अच्छा,देवनन्दिनी बोली।।
और डाक्टर साहब चले गए।।
मैने इसलिए कहा था कि हाँस्टल में रहो,हाँस्टल से काँलेज जाने में कोई खतरा नहीं है,आज कहीं कुछ हो जाता तो मैं किसी को मुँह दिखाने के काबिल ना रहती,लोंग कहते कि देखो छोटी बहन का ख्याल तक ना रख सकीं,अब मैं घर सम्भालूँ,मिल सम्भालूँ या कि इसे सम्भालूँ,ये है कि कुछ समझने को तैयार ही नहीं है,वहाँ मिल में जरूरी काम छोड़कर भागती चली आई हूँ,देवनन्दिनी ये कहते कहते रो पड़ी।।
श्रीधर ने देवनन्दिनी को इतना परेशान देखा तो बोला____
देवी जी! इतना परेशान होने की जुरूरत नहीं है,व़ो अब ठीक हैं ,आप नाहक ही तनाव ले रहीं हैं,अगर आपको मिल में जुरूरी काम है तो आप वापस जा सकतीं हैं,मैं यहाँ रूकता हूँ,वो जैसे ही होश में आ जाएंगी तो मैं आपको टेलीफोन कर दूँगा।।
जी!अच्छा नहीं लगेगा,वो होश में आई और मैं उसके पास ना हूँगी तो ना जाने मन में क्या सोंच बैठे,मेरे सिवा उसका और उसके सिवा मेरा दुनिया में और कोई नहीं है,देवनन्दिनी बोली।।
तो ठीक है,हम दोनों ही उनके होश़ में आने इन्तज़ार करते हैं,आप उस कुर्सी पर बैठ जाइए,मैं जरा बाहर जाकर आपके लिए पानी लेकर आता हूँ,श्रीधर बोला।।
और इतना कहकर श्रीधर बाहर चला गया।।
श्रीधर का ऐसा स्वभाव देखकर देवनन्दिनी को श्रीधर के प्रति मन में थोड़ा अपनापन सा महसूस हुआ,कुछ देर में श्रीधर पानी लेकर आ पहुँचा और बोला____
लीजिए,आप थोड़ा पानी पीजिए और ज्यादा मत सोचिए,सब ठीक हो जाएगा।।
जी,आपको बहुत तकलीफ़ हुई,अगर आज आप वहाँ ना होते तो ना जाने क्या हो जाता,देवनन्दिनी बोली।।
जी! देवी जी! कुछ नहीं होता,मैं नहीं होता तो कोई और होता,श्रीधर बोला।।
ये तो आपका बड़प्पन है,देवनन्दिनी बोली।।
आप खामखां में मुझे शर्मिंदा कर रहीं हैं,श्रीधर बोला।।
दोनों ऐसे बातें ही कर रहें थे कि नर्स ने राज के कमरे से बाहर आकर कहा___
जी,जल्दी से डाक्टर साहब को बुलाइए,उन्हें होश़ आ रहा है।।
क्या कहा होश आ गया राज को,मैं भी उसे देखना चाहती हूँ,देवनन्दिनी बोली।।
जी आप उनके पास जाइए,मैं डाक्टर साहब को बुलाकर लाता हूँ,श्रीधर बोला।।
देवनन्दिनी,राज के पास पहुँची और उसके सिर पर हा फेरा,हाथ फेरते ही राज ने आँखें खोलीं और नन्दिनी को देखते ही बोली।।
दीदी!तुम आ गईं।।
हाँ,राज! अब कैसीं है तू,नन्दिनी बोली।।
ठीक हूँ,राज बोली।।
झूठ बोलती है पगली,मुझे पता है तू बिल्कुल भी ठीक नहीं है,नन्दिनी बोली।।
नहीं दीदी! ठीक हूँ,बस थोड़ी कमजोरी लग रही है,राज बोली।।
कमजोरी तो होगी ही,इतनी गहरी चोट जो आई है तुझे,नन्दिनी बोली।।
दीदी! मुझे कुछ पता ही नहीं चला,वो ताँगा कैसे मेरे सामने आया और मैं गिर पड़ी,इसके बाद मुझे कुछ भी याद नहींं,राज बोली।।
बस,अब तू आराम कर ज्यादा मत बोल,तकलीफ़ होगी,नन्दिनी बोली।
तभी श्रीधर ,डाक्टर साहब के साथ राज के पास आ पहुँचा,श्रीधर को देखते ही राज बोली____
अरे,शह़जादे साहब! आप यहाँ कैसे?
जी,देवी जी! जिस ताँगें से आपकी टक्कर हुई थी,उसमें मैं ही बैठा था,ताँगा भी सड़क से उतर गया गया था लेकिन वहाँ उसे भागने की जगह नहीं मिली क्योंकि वहाँ गड्ढा था,इसलिए मुझे चोट नहीं आई,लेकिन जब मैनें देखा कि आप बेहोश होकर गिर पड़ी हैं तो मैं भागकर आपके पास आया और एक मोटर वाले की मदद से आपको अस्पताल ले आया,श्रीधर ने कहा।।
आप लोंग बातें बाद में कर लीजिएगा,पहले मैं मरीज की जाँच कर लूँ,डाक्टर साहब बोले।।
जी..जरूर,श्रीधर बोला।।
और डाक्टर साहब ने राज की जाँच करके कहा कि अभी तो मरीज घर जाने के काबिल नहीं है,अभी कुछ दिन तो इन्हें अस्पताल में ही रहना होगा,जो दवाइयाँ मैने लिखीं,उन्हें दीजिए और खाने पीने पर सख्त परहेज़ रहेगा और इतना कहकर डाक्टर साहब चले गए।।
राज दुखी होकर बोली___
लो एक कैद़खाने से बड़ी मुश्किल में रिहाई मिली थी,अब दूसरे कैद़खाने में कैद़ हो गई।।
और भाग हाँस्टल से,ना तू हाँस्टल से आती और ना ये एक्सीडेंट होता,नन्दिनी बोली।।
दीदी!कुछ तो रहम करों मुझ पर,राज बोली।।
तू इसी लायक है,नन्दिनी बोली।।
अरे,रहने दीजिए देवी जी!, वैसे भी वो विपदा की मारी हैं,आप और मत सुनाइए,श्रीधर ने नन्दिनी से कहा।।
चलो कोई तो हमदर्द मिला,वरना सब तो यहाँ मेरी जान के दुश्मन बने फिरते हैं,राज बोली।।
देखिए ना श्रीधर बाबू!रस्सी जल गई लेकिन बल ना गया,देखो तो कैसी बातें करती है?जैसे मैं इसकी दुश्मन हूँ,जो करती हूँ इसके भले के लिए ही करती हूँ और ये ऐसी बातें करती है,नन्दिनी बोली।।
जी,अब आप मिल जा सकतीं हैं,मैं इनके पास रहता हूँ,श्रीधर ने नन्दिनी से कहा।।
हाँ,दीदी! तुम जाओ और जब दोबारा आना तो खाने के कुछ अच्छा सा लेते आना,राज बोली।।
बेटा! अब कुछ दिनों के लिए अपनी इस चटोरी जीभ़ पर लगाम लगा ले,अभी डाक्टर साहब ने क्या कहा सुना नहीं तूने,नन्दिनी बोली।।
हाय राम! अब मेरा क्या होगा?हे ऊपरवाले! ये कहाँ का न्याय है? सबकुछ छीन लेता लेकिन मेरा खाना.....,राजहंसिनी दुखी होकर बोली।।
ओ नौटंकी,अब बस कर ,कितना कोसेगी भगवान को,ये सब तो तेरा किया कराया है,अब मैं मिल जाती हूँ,श्रीधर बाबू को ज्यादा मत परेशान करना,शाम को आऊँगी,फल लेकर और इतना कहकर देवनन्दिनी चली गई।।
लो हो गया कबाड़ा,ना जाने कब तक इस अस्पताल मेँ रहना होगा,राज बोली।।
जब तक आप बिल्कुल से ठीक नहीं हो जातीं,श्रीधर बोला।।
ठीक है शहजादे,अब इसके सिवा और कोई चारा भी तो नहीं है,राज बोली।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा.....