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अर्पण - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Love Stories
रूको...राजहंसिनी!अपने कमरे में जाने से पहले ये बताओ कि कहाँ से आ रही हो?हाँस्टल की वार्डन ने राजहंसिनी से पूछा।।
जी,मैं जरा घूमने चली गई थी,राजहंसिनी बोली।।
इतने रात गए तक घूमना शरीफ़ घर की लड़कियों का काम नहीं है,तुम्हें पता हैं तुम्हारी बड़ी बहन देवनन्दिनी को कुछ पता चल गया था,तो कितना कष्ट होगा उनको,हाँस्टल की वार्डन बोलीं।।
जी,लेकिन अभी तो कोई रात नहीं हुई केवल सात ही बजे हैं,जी पता है कि उनको कष्ट होगा,राजहंसिनी बोली।
तब भी समझ में नहीं आता तुम्हें! तुम्हारे स्वर्गवासी पिता जी सेठ हरिश्चन्द्र अग्रवाल इस शहर के नामीगिरामी बिजमैन थे,तुम्हारे ऐसे करने से उनकी आत्मा को कितना कष्ट पहुँचता होगा,वार्डन बोली।।
रूको...राजहंसिनी!अपने कमरे में जाने से पहले ये बताओ कि कहाँ से आ रही हो?हाँस्टल की वार्डन ने राजहंसिनी से पूछा।। जी,मैं जरा घूमने चली गई थी,राजहंसिनी बोली।। इतने रात गए तक घूमना शरीफ़ घर की लड़कियों का काम नहीं ...Read Moreपता हैं तुम्हारी बड़ी बहन देवनन्दिनी को कुछ पता चल गया था,तो कितना कष्ट होगा उनको,हाँस्टल की वार्डन बोलीं।। जी,लेकिन अभी तो कोई रात नहीं हुई केवल सात ही बजे हैं,जी पता है कि उनको कष्ट होगा,राजहंसिनी बोली। तब भी समझ में नहीं आता तुम्हें! तुम्हारे स्वर्गवासी पिता जी सेठ हरिश्चन्द्र अग्रवाल इस शहर के नामीगिरामी बिजमैन थे,तुम्हारे ऐसे करने
दूसरे दिन___ श्रीधर ने सुबह सुबह तैयार होकर सुलक्षणा को आवाज़ दी___ जीजी..! तो मैं चलता हूँ!! कहाँ जा रहा है रे! सुबह सुबह,चल पहले कुछ खा ले,फिर चले जइओ,सुलक्षणा बोली।। जीजी! कल किसी ने एक पता देते हुए ...Read Moreथा कि यहाँ चले जाना,नौकरी मिल जाएंगी,सो वहीं जा रहा था,श्रीधर बोला।। अच्छा,ठीक है! ये ले पोहे बनाएं हैं,थोड़ा खा ले,मुझे मालूम है तू दिनभर ऐसे ही बिना कुछ खाएं रह जाएगा और यहाँ मेरा जी जलता रहेगा,सुलक्षणा बोली।। क्यों? मेरी इतनी चिन्ता करती हो,दीदी! सिलाई करके तुम्हें दो चार रूपए मिलते हैं,वो भी तुम इस घर और इस निठल्ले
श्रीधर और देवनन्दिनी मिल के भीतर पहुँचे,मिल में काम जारी था,सभी कर्मचारी अपने अपने काम पर लगे हुए थे,देवनन्दिनी ने सभी कर्मचारियों से श्रीधर का परिचय करवाते हुए कहा कि___ आज से ये भी आप ...Read Moreके साथ काम करेंगें,ये कपड़ो और साड़ियों पर चित्रकारी करेंगें और अब मैं कैशियर के पद से मुक्त होना चाहती हूँ इसलिए ये जिम्मेदारी भी मैं इन्हें सौंपना चाहती हूँ।। सभी कर्मचारी बहुत खुश हुए श्रीधर से मिलकर और दिल से श्रीधर का स्वागत किया,श्रीधर को काम समझाकर देवन्दिनी अपने आँफिस में चली गई,श्रीधर भी अपना काम समझने में लग गया।।
राजहंसिनी ने देवनन्दिनी से बात करने के इरादे से डरते हुए हिम्मत करके कहा__ दीदी! आज शहर की सड़कें कुछ ज्यादा ही साफ सुथरी लग रहीं हैं,है ना! हाँ...हाँ..क्यों ना होगीं साफ सुथरी? नगरपालिका वालों को मालूम था ना ...Read Moreइन सड़को से राजकुमारी राजहंसिनी पधारने वालीं हैं इसलिए तो सड़कों को जीभ से चाट चाटकर साफ किया गया है,देवनन्दिनी गुस्से से बोली। अच्छा! मैं ना कहती थी दीदी! एक ना एक दिन सारे शहर को पता चल जाएगा कि राजहंसिनी किसी राजकुमारी से कम नहीं हैं,चलो शहर के लोगों को इतना तो पता चल गया और एक तुम हो
देवनन्दिनी की बात सुनकर राजहंसिनी बोली____ नहीं दीदी! परिचित नहीं हैं,बस एक बार मुलाकात हुई थी।। अच्छा तो अब मुझे समझ आया,उस दिन आप हाँस्टल से भाग रहीं थीं और बातों ही बातों में मैनें इन्हें बताया कि मुझे ...Read Moreकी जुरूरत है तो इन्होंने मुझे मिल का पता देते हुए कहा कि यहाँ चले जाइएगा नौकरी मिल जाएगी,बस मैं दूसरे दिन मिल पहुँच गया और आपने मुझे नौकरी पर रख लिया, श्रीधर बोला।। जी,मेरे हाँस्टल से भागने का तो आपको दीदी ने बता ही दिया होगा,राजहंसिनी बोली।। तो क्या करूँ?बताना पड़ता है,तूने मेरी नाक में दम जो कर रखा