उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार स्नेही मित्रो पता ही नहीं चला जीवन कब इस कगार पर आकर खड़ा हो गया और न जाने कितने-कितने प्रश्न पूछने लगा ; "बताओ, क्या किया, ताउम्र ? पूरी उम्र ऐसे ही भटकते रहे ? खोजते रहे किसी न किसी को, कभी ईश्वर को, अल्ला को ? कौन मिला ? हाँ, बस खुद को नहीं देखा, न ही जाना-पहचाना ? एक ऐसी डगर पर चलते रहे जिसका पता ही नहीं था कि किधर जाती है ? मुड़ती भी है या सीधे नाक की सीध में चलना होता है ! बस, घूमते रहे वृत्त में, यादों के दरीचों में --याद