उजाले की ओर –संस्मरण

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मित्रों! स्नेहिल नमस्कार   जीवन की गति न्यारी न्यारी जितनी सुलझाओ, वह उलझे न सुलझाओ, चलत कटारी ---- माँ ने लिखा था, मैंने पढ़ा था लेकिन बस पढ़ा था, समझा नहीं था | बच्चे को इतनी गहन बात समझ में नहीं आ सकती थी बेशक सरल शब्द थे, छोटी सी बात थी लेकिन गहन थी | बड़े होने पर कुछ समझ में आया कि जीवन किसी भी दिशा में,कभी भी बहक जाता है | अब मन बहक जाता है तो जीवन, बहक ही तो जाएगा । बहकना मन का स्वभाव है जीवन की गति का भी ! माँ लिखती रहतीं