ढीठ मुस्कुराहटें...

(13)
  • 6.3k
  • 7
  • 2.1k

ढीठ मुस्कुराहटें... ज़किया ज़ुबैरी (1) “अरे भई रानी मेरी एड़ी को गुदगुदा क्यों रही हो... क्या करती हो भई... ये क्या हो रहा है... यह गीला गीला क्या है... अरे अब तो जलन भी हो रही है... उठो जागो भी, देखो क्या हो गया है..!” रानी ने अंगड़ाई लेते हुए करवट बदली और फिर से मुंह ढँक कर सो गई। सरजी बोलते रहे, बड़बड़ाते रहे... कराहते भी रहे... रानी ख़िदमत कर कर के तंग आ चुकी थी। छोटी सी बीमारी को पहाड़ बना दिया करते थे सरजी। मगर आज शायद सचमुच तकलीफ़ में थे। एक बार फिर ज़ोर से आवाज़

Full Novel

1

ढीठ मुस्कुराहटें... - 1

ढीठ मुस्कुराहटें... ज़किया ज़ुबैरी (1) “अरे भई रानी मेरी एड़ी को गुदगुदा क्यों रही हो... क्या करती हो भई... क्या हो रहा है... यह गीला गीला क्या है... अरे अब तो जलन भी हो रही है... उठो जागो भी, देखो क्या हो गया है..!” रानी ने अंगड़ाई लेते हुए करवट बदली और फिर से मुंह ढँक कर सो गई। सरजी बोलते रहे, बड़बड़ाते रहे... कराहते भी रहे... रानी ख़िदमत कर कर के तंग आ चुकी थी। छोटी सी बीमारी को पहाड़ बना दिया करते थे सरजी। मगर आज शायद सचमुच तकलीफ़ में थे। एक बार फिर ज़ोर से आवाज़ ...Read More

2

ढीठ मुस्कुराहटें... - 2 - अंतिम भाग

ढीठ मुस्कुराहटें... ज़किया ज़ुबैरी (2) “अरे भाभी जी, आप!.. नमस्ते।” रानी को बैठक की ओर आते हुए देख कर खड़ा हो गया। “अच्छा सर जी मैं चला; रिपोर्ट देता रहूंगा।” रानी ने चेहरे पर मुस्कुराहट लाए बिना नमस्ते का एक सपाट सा जवाब दिया और सर जी के हाथ में घर का फ़ोन थमाते हुए कहा, “लीजिये, आपके मैनेजर का फ़ोन है। ” पति देव ने फ़ोन हाथ में लेते हुए अपना आदेश भी सुना दिया, “रानी, नाश्ता लगवा दो आज बैंक जल्दी जाना है। ” “आपको तो रोज़ ही जल्दी जाना होता है और देर से वापिस आना ...Read More