Dhith Muskurahate - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

ढीठ मुस्कुराहटें... - 1

ढीठ मुस्कुराहटें...

ज़किया ज़ुबैरी

(1)

“अरे भई रानी मेरी एड़ी को गुदगुदा क्यों रही हो... क्या करती हो भई... ये क्या हो रहा है... यह गीला गीला क्या है... अरे अब तो जलन भी हो रही है... उठो जागो भी, देखो क्या हो गया है..!”

रानी ने अंगड़ाई लेते हुए करवट बदली और फिर से मुंह ढँक कर सो गई।

सरजी बोलते रहे, बड़बड़ाते रहे... कराहते भी रहे... रानी ख़िदमत कर कर के तंग आ चुकी थी। छोटी सी बीमारी को पहाड़ बना दिया करते थे सरजी। मगर आज शायद सचमुच तकलीफ़ में थे। एक बार फिर ज़ोर से आवाज़ लगाई “रानी सुन नहीं रही हो?... मैं तड़प रहा हूँ,... दर्द और जलन से जान निकल रही है।”

रानी एक झटके से उठी और एड़ी से चादर उठाई तो देखा खून रिस रहा था और एकाएक वहां से एक चूहा कूद कर भागा। रानी चीख पड़ी... घिघी बंध गई उसकी। “सरजी चूहा... चूहा... सरजी ...वो भागा चूहा... वो... भा....गा... लगता है उसी ने काटी है आपकी एड़ी... ”

यह सुनते ही सरजी ठन्डे पड़ गए... बदहवासी में कुछ भी अनाप शनाप बकने लगे... “रानी डॉक्टर को बुलाओ... नौकरों को आवाज़ दो... और हाँ हर तरफ झपट लगवा दो एक चूहा भी नज़र न आए हमारे घर के आस पास... ज़रा मेरी एड़ी को भी तो देखो... कुछ करो जल्दी से... चूहे का काटा तो खतरनाक होता है... ज़हर फैल जाता है !”

डॉकटर के इंजेक्शन के बाद जब तूफ़ान थोड़ा थमा, तब कहीं जा कर रानी को कुछ सोचने का अवसर मिला। उसने अपने पति की ओर देखा... दोबारा गहरी नींद सो गए थे... वे विवाह के पहले दिन से ही उसके लिये ‘सर जी’ बन गए थे जो कि वक़्त के साथ चलते चलते ‘सरजी’ में परिवर्तित हो गया था। रानी को बहुत शौक़ था कि उसका पति उसका मित्र बन जाए, किन्तु दोनों की आयु में दस वर्ष का अन्तर आड़े आ गया।

अचानक रानी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभर आई। उसके ज़हन में खुरच खुरच कर यादें अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाने लगीं। उसकी बददुआ पर सरजी कैसी खलनायकी हंसी हंसे थे। रानी के दिल-ओ-दिमाग़ पर यह बात कहीं बैठ गई थी कि चूहे का सरजी के जीवन में अवश्य ही कोई ना कोई विशेष स्थान बनेगा। सलोनी उसके दिमाग़ को मथने लगी थी....

उस दिन घर में उसे कुछ ऐसी आवाज़ें सुनाई दी थीं...

“साली !... हरामख़ोर !... ”

“मैं तो कहता हूं... क्या कहा...?... आवाज़ नहीं आ रही?... ठहरो मैं ज़रा खिड़की के पास जाता हूं... ये साले मोबाइल भी मनमानी करते हैं।... हां... अब बोलो... आवाज़ साफ़ हो गई है… वोह मोटी भैंस हो गई है... बकती है... धंधा ख़ूब चल रहा है ... मुहल्ले भर के लोग उसी की परचून की दुकान से सौदा सुलुफ़ ख़रीदते हैं.... नहीं यार ऐसा नहीं... उसका बेटा उल्लू का पट्ठा है... काहिल-ए-आज़म... मां को इस्तेमाल कर रहा है।.... नहीं भाई कितनी बार बताया कि कर्ज़ा लेने दोनो साथ आए थे।... वो मक्कार तक़रीबन पांव पकड़ने ही वाली थी... वो तो मैनें ही पांव हटा लिए... मेरे तो जूते ही गंदे हो जाते।... अरे तुम फ़ोन पर हो या फिर कट गया?...ये साले फ़ोन भी... ”

“सर यह बताइए कि अब करना क्या है? ”

“करना क्या है... पकड़ो साली को। अरे भाई अढ़ाई लाख का मामला है।... नहीं देती तो पुलिस को डालो बीच में। पुलिस अढ़ाई के पांच निकलवा लेगी। तब होश आएंगे ठिकाने... हरामज़ादी के। नहीं नहीं वहां की पुलिस नहीं... यहां का इन्सपेक्टर मेरा जानने वाला है... हां, मैं उस से बात करता हूं। बड़ा ज़ालिम और रिश्वतखोर है।... तुम फ़ोन बन्द करो...”

“इंस्पेक्टर साहब, यार तुमको इससे क्या मतलब कि कितना बड़ा बैंक है? तुम अपना हिस्सा उसी से हासिल कर लेना। हां! मेरी तरफ़ से खुली छूट है।”

“फिर तो मैं सर, अगले हफ़्ते ही आपके पैसे निकलवा लूंगा।”

“अब मियां, इतनी भी डींग ना मारो! हमने पूरी कोशिश करके देख ली है। तुमको कोई सख़्त क़दम उठाना होगा। आसानी से मानने वाली नहीं है।”

“...अरे क्या बात करते हो। चूड़ियां पहन रखी हैं क्या तुमने?”

“नहीं सर, हम तो सीधे उसके घर पहुंच गये थे। बाहर निकाला उसे... डराया, धमकाया। मगर वो तो पैर ही पकड़ने लगी। कहती है कि कर्ज़ा ये कह कर लिया था कि साल भर बाद उतारना शुरू करेंगे। अभी तो छः हफ़्ते ही ऊपर हुए हैं और बड़े साहब पीछे पड़ गये हैं। मैनेजर को रोज़ रोज़ भेज देते हैं। ऐसा लगता है जैसे उसके पास और कोई काम ही नहीं। रोज़ मेरे घर आकर बैठ जाता है। मैं तो उसके आने से ही डर जाती हूं। उसकी नज़र अच्छी नहीं है इन्सपेक्टर साहब।”

“ओए सुन ज़नानी। मेरी तरफ़ देख... मेरी नज़र कैसी है? मैं तो तुझे ऐसा पेलूंगा कि तू ज़िन्दगी भर देखती ही रह जाएगी।”

इंस्पेक्टर ने वापिस आ कर साहिबजी को पूरी रिपोर्ट दी अपनी पहली मुलाक़ात की। जनरल मैनेजर साहब को प्रभावित करने के लिये एक एक डॉयलॉग को कई कई बार दोहराया।

इंस्पेक्टर साहब पहली ही मुलाक़ात में आने वाले कल का प्रोग्राम बना बैठे थे। सलोनी की टख़ने तक चढ़ी गुलाबी शलवार में से मोटी मोटी गोल पिंडलियां झांक रहीं थीं - वो भी गुलाबी गुलाबी। पैर मोटे मोटे गद्देदार डबल रोटी जैसे; मगर खुरदरे खुरदरे। मोटे मोटे नाख़ून; गहरी लाल नेल पॉलिश – शायद साल भर पहले लगाई थी। अब दीवार के चूने कि तरह जगह जगह से उखड़ी हुई थी। लगता था कि इन पैरों को जीवन में कभी भी झांवें से नहीं रगड़ा गया हो। टेढ़े मेढ़े नोकीले मैल भरे मोटे मोटे नाख़ून।

इंस्पेक्टर ने बहुत बारीक़ी से ‘सर जी’ का काम किया था। उसको ख़ूब अच्छी तरह से निहार लिया था। इंस्पेक्टर जब चलने लगा तो सलोनी ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, “इंस्पेक्टर जी दया करो। हम ग़रीब लोग हैं। ग़रीबी से तंग आकर कर्ज़ा लेना पड़ गया। मैनेजर साहब ने तो ख़ुद ही कहा था कि बैंक से पैसे लेकर कोई धंधा शुरू कर लो। बड़े साहब से भी उन्होंने ही मिलाया था। अब सब भूल गए कि मैने धंधां चल जाने पर पैसा वापिस करने का वादा किया था।”

“अरी, धंधे की औलाद, अगर वो धंधा नहीं चलता तो कोई और धंधा कर ले!”

“साबजी, थक गई हूं।”

“अभी से थक गई है... ? अभी तो तुमने मुझे देखा ही नहीं।”

“देख तो रही हूं, इन्सपेक्टर साब; बिनती भी कर रही हूं। और क्या करूं? ”

“बेटा कहां है तेरा? ”

“अन्दर घर में बैठा है। बुरी तरह से डरा हुआ है।”

“घर में क्यों बैठा है? काम पर क्यों नहीं जाता? ”

“मां, यह इंस्पेक्टर जी क्यों आए हुए हैं?...” इतने में बेटे ने बाहर से आते हुए पूछा।

“अरे यह तो बाहर से आ रहा है। तू तो कह रही थी कि घर के भीतर बैठा है।”

“साबजी ज़माना ही ऐसा है। बेटों को घर में ना बैठाएं तो हमको तो गिद्ध नोच डालें।”

“तो तूं झूठ बोल रही थी... ! मुझसे झूठ? जानती नहीं है, पुलिस का इंस्पेक्टर हूं... कमरे में बन्द करके सब उगलवा लूंगा... समझी के ना...! ”

“सरजी, आप समझे नहीं... अपनी इज्ज़त बचाने के लिए बेटे का झूठ बोलना पड़ता है।”

“तूं क्या समझती है बेटे से मैं डर जाऊंगा? उस पर कोई भी इल्ज़ाम लगा कर चार दिन के लिए हवालात की हवा खाने भेज दूंगा?। अच्छा अब बता सरजी के साढ़े तीन लाख कब दे रही है? ”

“इन्सपेक्टर जी, साढ़े तीन नहीं अढ़ाई लाख...। ”

“तो फिर मेरा हिस्सा कहां गया“?... कम से कम एक लाख तो मेरा भी बनता है ना। चल अब जल्दी जल्दी बता कि कब उतार रही है कर्ज़ा... या फिर उतारूं तेरी गुलाबी शलवार?”

“हाय हाय, इन्सपेक्टर जी, कैसी बातें करते हो? भला शलवार उतारने से क्या पैसे मिल जाएंगे? ”

“बहुत ज़बान चलाती है। ज़बान काट कर गुलाबी शलवार में डाल दूंगा।”

“इन्सपेक्टर जी मेरी गुलाबी शलवार के पीछे क्यों पड़ गये हो? मैं कह तो रही हूं थोड़ा टैम दे दो। मैं एक एक पैसा उतार दूंगी।”

“चल मैं अब चलता हूं... दो दिन का और टैम दिया... बेटे को काम पर भेजना ना भूलना।...”

----

“सर जी बड़ी दबंग ज़नानी है। बराबर से ज़बान चलाती है। मैनें बहुत कोशिश की रुपयों की बात करने की पर घुमा फिरा कर चक्कर देने की कोशिश करती रही।”

“इन्सपेक्टर अगर तुमको चक्कर देने की कोशिश करती है तो इसका मतलब हुआ मैनेजर सच ही बोल रहा था कि काम की बात पर आने ही नहीं देती।”

“सरजी वो मोटी भैंस अपना नाम सलोनी बताती है।”

“अरे भाई कभी जवानी में रही होगी सलोनी... वैसे अब क्या उम्र होगी उसकी? ”

“यही कोई तीस पैंतीस सर जी... ”

“ये कैसे हो सकता है... बीस का तो बेटा ही है उसका।”

“चलिये चालीस समझ लीजिये सर जी।... मगर क्या गदराई हुई है सर जी! ”

“तुम्हारा दिमाग़ चकरा गया लगता है इंस्पेक्टर जो मुझसे ऐसी बातें कर रहे हो। कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई मुझ से इस तरह बात करने की।”

“सरजी आप ही तो उसकी उम्र पूछ रहे थे। मैनें तो बस थोड़ी डिटेल में बता दी।”

“काम की बात करो इंस्पेक्टर – पैसों का क्या हुआ।”

“सरजी समय मांग रही है, यानि कि वकत मांग रही है। मैनें दो दिन का कह दिया है।”

“क्या पूरे पैसे उतार देगी?... तुमने मांगे कितने हैं? ”

“वही जो आपने कहे थे।”

“अपना हिस्सा मुझसे मत मांगना। बैंक ऐसे वैसे काम नहीं करता।”

“सरजी बैंक तो आप ख़ुद ही हो। यहां कौन बैठा है जो आपसे पूछ-गछ कर सके।”

“ध्यान से बोला करो इन्सेपक्टर... जो मुंह में आता है बोल देते हो। तुम जैसे लोगों के मुंह पर भी तो प्लास्टर लगाना होता है ना... वो काम हमारा बैंक नहीं करता। हमें आप ही फ़ैसला करना होता है कि किसको क्या देना है... भई काम तो निकालना होता है ना।”

“सरजी मेरा हिस्सा तो आप ही को देना होगा। उस कमीनी से तो आप ही के पैसे निकलवाने मुश्किल लग रहे हैं।”

“अरे भाई तुमने मांगे तो होते।”

“सरजी, रोने पीटने लगी। मेरे भी पांव पकड़ने लगी। मैनें तो एक ठुड्डा भी मारा। गिर पड़ी। मोटी मोटी पिंडलियां केले के तने की तरह, चिकनी चिकनी गोल गोल, गुलाबी शलवार के बाहर झांकने लगीं।”

“इन्सपेक्टर, तुम मज़े लूट कर आए हो।”

“नहीं नहीं, सरजी भगवान कसम, नहीं।”

......…

******