उदासियों का वसंत

(13)
  • 15.1k
  • 9
  • 4.5k

उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ (1) वे चले जा रहे थे। श्लथ पाँव। छोटी-सी मूठवाली काले रंग की छड़ी के सहारे। यह छड़ी कुछ ही दिनों पहले, ......कल ही, उनकी ज़िन्दगी में जबरन शामिल हुई थी, .....बिन्नी की ज़िद पर। वे छड़ी ख़रीदने के पक्ष में नहीं थे। किसी के सहारे, चाहे वह कोई निर्जीव वस्तु ही क्यों न हो, चलना उन्हें प्रिय नहीं। पर भला बिन्नी कहाँ माननेवाली! ज़िद पर अड़ जाती है तो एक नही सुनती। तमाम तर्क, .....‘‘आपको अभी ज़रूरत है। ......छड़ी लेकर चलने से कोई बूढ़ा थोडे़ ही हो जाता है, ......अभी आपको चलते हुए सतर्क

Full Novel

1

उदासियों का वसंत - 1

उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ (1) वे चले जा रहे थे। श्लथ पाँव। छोटी-सी मूठवाली काले रंग की के सहारे। यह छड़ी कुछ ही दिनों पहले, ......कल ही, उनकी ज़िन्दगी में जबरन शामिल हुई थी, .....बिन्नी की ज़िद पर। वे छड़ी ख़रीदने के पक्ष में नहीं थे। किसी के सहारे, चाहे वह कोई निर्जीव वस्तु ही क्यों न हो, चलना उन्हें प्रिय नहीं। पर भला बिन्नी कहाँ माननेवाली! ज़िद पर अड़ जाती है तो एक नही सुनती। तमाम तर्क, .....‘‘आपको अभी ज़रूरत है। ......छड़ी लेकर चलने से कोई बूढ़ा थोडे़ ही हो जाता है, ......अभी आपको चलते हुए सतर्क ...Read More

2

उदासियों का वसंत - 2

उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ (2) .......पाँच बरस बीत गए टुशी को देखे। गई, तब से एक बार भी लौटी। अब तो इस साल बाईसवाँ लगेगा उसका। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के सांता बारबरा कैम्पस से उसने पिछले साल अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और इस साल शोध के लिए चुन ली गई है। पाँच साल पहले जब राधिका का बुलावा आया, टुशी दुविधा में थी, पर उन्होंने उसे दुविधा मुक्त कर दिया था। वह पापा को छोड़कर जाना नहीं चाहती थी। वे नहीं चाहते थे कि बाहर जाकर पढ़ने की अपनी सहज इच्छा को दबा कर टुशी यहाँ रहे। ...Read More

3

उदासियों का वसंत - 3 - अंतिम भाग

उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ (3) दिन सिमट रहा था। अब साँझ का झिटपुटा घिरने लगा था। रोज़ तीसरे बरसने वाले बादल आज जाने कहाँ आवारगी करते रहे! अपनी तिपहरी कहीं और बिताकर अब पहुँचने लगे थे। उनके आने की आहट से साँझ का अहसास तेजी से घना हो रहा था। देखते-देखते धुआँ-धुआँ बादलों से पूरी घाटी भर गई। कुछ वृक्षों के शिखर पर जा बैठे, ......कुछ घाटी में तैरने लगे। एक मेघ-समूह कॉटेज के बरामदे में घुसकर जाने क्या तलाश रहा था! उनके होठों पर मुस्कान तिर गई। उन्होंने बिन्नी की ओर देखा और अपनी आँखों से बादलों ...Read More