यह उपन्यास एक काल्पनिक कथा पर आधारित है जिसका किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सीधा संबंध नहीं है, अगर कोई संबंध पाया जाता है तो वह केवल एक संयोग मात्र है। यह उपन्यास एक ऐसी गूंगी लड़की की कहानी है जो अनाथ न होकर भी अनाथ जैसा जीवन गुज़ारती है और जीवन में अनेक कष्ट और यातनाओं को सहती हुई भी अपनी हिम्मत नहीं हारती है । इसके अलग - अलग पार्ट में आपको अलग कहानियाँ मिलेगी पर अंत में सब ऐसे मिल जाएगी जैसे अलग - अलग पहाड़ो और पर्वतों से निकलती हुई नदियाँ किसी स्थान आकर पर मिल जाती है। उपन्यास के अंत में एक ऐसा मोड़ आयेगा जो न केवल इस उपन्यास के केवल एक पात्र वरन् समूचे समाज पर एक तमाचा है। आशा है यह उपन्यास आपको मेरे हृदय से बाँधे रखेगा। और आपका प्रेम सदा ही मुझ पर बरसता रहेगा। व्यक्ति गलतियों का पुतला होता है और यह मेरा पहला उपन्यास है अतः मुझ जैसे व्यक्ति से कुछ गलतियाँ अथवा त्रुटियाँ होना लाजिमी है आशा है जिसके लिए आप मुझे क्षमा कर मेरी गलतियों को किनारे रखकर मेरे हृदय से निकलने वाले भाव से एकाकार होंगे। मैं हर संभव कोशिश करूँगा की हर हफ़्ते में इसका एक पार्ट आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ चूंकि अभी मेरा अध्ययन और विद्यालय दोनों चल रहे है अतः समयाभाव के कारण कभी - कभी विलंब होने पर भी आप मुझे क्षमा करेंगे। आपके प्रेम और आपकी अमूल्य समीक्षा को आतुर आपके हृदय के किसी एक कोने में स्थान की चाह रखने वाला - नन्दलाल सुथार 'राही'।

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तमाचा - भाग 1 (नवदम्पति)

उपन्यास के बारे में संक्षिप्त परिचय- यह उपन्यास एक काल्पनिक कथा पर आधारित है जिसका किसी जीवित अथवा मृत से कोई सीधा संबंध नहीं है, अगर कोई संबंध पाया जाता है तो वह केवल एक संयोग मात्र है। यह उपन्यास एक ऐसी गूंगी लड़की की कहानी है जो अनाथ न होकर भी अनाथ जैसा जीवन गुज़ारती है और जीवन में अनेक कष्ट और यातनाओं को सहती हुई भी अपनी हिम्मत नहीं हारती है । इसके अलग - अलग पार्ट में आपको अलग कहानियाँ मिलेगी पर अंत में सब ऐसे मिल जाएगी जैसे अलग - अलग पहाड़ो और पर्वतों से ...Read More

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तमाचा - भाग 2 (मिडिल क्लास फैमिली)

4 वर्ष पहलेअलार्म को करीब पाँच बार स्नूज करने के बाद राकेश को बिस्तर को अकेला छोड़ना पड़ा। आज उसकी ज़िन्दगी में बहुत परिवर्तन आने वाला था। उठते ही हमेशा की तरह पहले चिल्लाया "मम्मी , मेरी चाय" । राकेश की मम्मी 'रेखा' एक साधारण परिवार की साधारण औरत थी। ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, बस हर मिडिल क्लास फैमिली की औरत की तरह घर के काम और पति की सेवा तथा बच्चों की अच्छी परवरिश को ही अपना कर्तव्य समझती थी। उसने एक मिक्स कलर की साड़ी पहनी हुई थी जो उसकी सबसे नई ड्रेस थी और करीब ...Read More

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तमाचा - भाग 3 (अप्सरा)

(आपके स्नेह और प्रेम के लिए आभार । प्रस्तुत है भाग- 3 -अप्सरा)सूर्य अपने तेज के साथ सूर्यनगरी जोधपुर किले को प्रातः का प्रणाम कर रहा था। लोग अपने -अपने घरों से अपने कार्यस्थलों की ओर प्रस्थान कर रहे थे। चाय और नाश्ते की दुकानों में भीड़ धीरे-धीरे बढ़ रही थी, जिसमें अधिकतर विद्यार्थी थे ,जो रोजगार पाने के लिए कोचिंगों में जाने की तैयारी में थे।जालोरी गेट के पास नाश्ते की एक दुकान में एक युवती अपने पति साथ प्रवेश करती है और दुकान के अंदर के सभी मर्दो को अपनी और आकृष्ट कर लेती है। उसने एक ...Read More

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तमाचा - भाग 4 (कली)

संध्या का समय। आकाश में कुछ हल्के श्वेत बादल अपनी आनंदमयी गति के साथ चल रहे थे। हवा भी द्वारा अपनी सुहावनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। जैसलमेर के रेलवे स्टेशन के पास एक हॉटेल में विक्रम नाम का एक अधेड़ आदमी सैलानियों को उनके कमरे में ले जा रहा था। "यहाँ के रूम और यहाँ का खाना , दोनों जैसलमेर के बेस्ट है, अभी आप आराम फरमाइए और फिर खाने के लिए मिलते है।""अच्छा! वैसे यहाँ खाने में क्या-क्या फेमस है?" सैलानियों के उस दल में से एक मोटा आदमी जिसका पेट अपनी कमीज से बाहर निकल रहा ...Read More

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तमाचा - 5 (सपनों की दुनियाँ)

एक अच्छे पढ़े - लिखे, सुशिक्षित व्यक्ति का जीवन में जो सबसे बेहतरीन टाइम पीरियड होता है उसमें से है ,कॉलेज लाइफ। आज अधिकतर व्यक्ति यही मानते है कि कॉलेज लाइफ बेस्ट लाइफ होती है और काश वो किसी तरफ वापस आ जाए। राकेश पापा के स्कूटर पर आने से बचने के लिए उनसे मिले बिना ही बस के द्वारा अपनी कॉलेज पहुँच गया। नई दुनियाँ , नए लोग, नई खुशियाँ, नई समस्याएँ ; राकेश घर से निकलते ही अपनी कॉलेज लाइफ के बारे में सोच रहा था। मेरा पहला दिन कैसा होगा, मेरे दोस्त कौन बनेंगे, मेरी गर्ल ...Read More

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तमाचा - 6 (सरप्राइज)

बेतरतीब गलियों के शहर जैसलमेर में एक पतली सी गली के मध्य स्थित, एक घर में एक लड़की 'बिंदु' की तैयारी कर रही थी। तभी उसके पापा जो अभी ही घर आये थे और दरवाजा खुला देखकर बिंदु.....बिंदु कहके उसे बुला रहे थे। "हाँ जी पापा !" बिंदु रसोई में से ही बोली । "कहाँ हो तुम? और ये दरवाजा खुला कैसे है?" विक्रम चिंता और क्रोध के मिलेजुले स्वर में बोले। "रसोई में ही हूँ पापा। और अभी सारिका आंटी आई थी उन्होंने ही खुला रख दिया होगा। ""तो तुम्हें देखना चाहिए था न!""अभी ही तो गई है ...Read More

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तमाचा - 7 (चाय पे चर्चा)

कॉलेज के केंटीन में राकेश और मनोज चाय आर्डर करते है। "और सुना भाई कैसी रही तेरी पहली क्लास?" ने राकेश को उत्सुकतावश पूछा। "क्या बताए यार! एक दिव्य लड़की दिव्या मेरी पास बैठी थी । पता है वो विधायक श्यामचरण वर्मा की बेटी थी पर खड़ूस टीचर ने तो मेरी शुरुआत ही खड़ूस कर दी।""क्यों! क्या हुआ?""कोई नहीं यार छोड़ उसको पर वो लड़की वास्तव में कमाल की थी।" राकेश ने अपनी आँखों को उसकी सूरत याद दिलवाकर बोला। "क्या यार! तू अभी तक सुधरा नहीं । और उसके पीछे तो देखना ही मत ! वरना विधायक को ...Read More

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तमाचा - 8 (दुविधा)

सूरज की किरण धीरे-धीरे धरा की तरफ अपने कदम बढ़ा रही थी । विक्रम अपनी बेटी को आँख खुलते जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के लिये उसके कमरे में जा रहा था तभी उसके फ़ोन की घंटी बजती है। "हेलो , विक्रम जी गुड मॉर्निंग। " "गुड मॉर्निंग , मालिक आज जल्दी कैसे कॉल किया।" कॉल विक्रम के मालिक सुनील का था । विक्रम पहले से ही तनाव में था ऊपर से मालिक का कॉल जो तनाव को और बढ़ाने वाला था। " मैं ये बोल रहा था कि आज आप जल्दी से आ जाओ । गुजरात वाली पार्टी को ...Read More

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तमाचा - 9 (पागलपन)

"दिव्या भाभी! कमीने अभी तुम्हें ठिकाने लगाती हूँ।" दिव्या ने गुस्से भरे स्वर में राकेश को बोला। राकेश ने उम्मीद नहीं थी कि दिव्या उसकी सारी बाते सुन लेगी। उसकी सांस अधर में ही अटक गई। उसके शब्द गले से बाहर उतर ही नहीं पा रहे थे। परिस्थिति को देखते हुए मनोज बोला " सॉरी, सॉरी , सॉरी प्लीज इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूं।"पर दिव्या का पूरा ध्यान राकेश पर ही था और उसने मनोज की बात को जैसे सुना ही नहीं। "मैं अभी कॉल करती हूं पापा को और तुम्हारी खबर लेती हूँ।" दिव्या ने पर्स ...Read More

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तमाचा - 10 (यार)

"बेटा कैसा रहा तुम्हारा कॉलेज का पहला दिन?" रेखा ने अपने बेटे राकेश को पूछा और उसे पानी का पकड़ाया। राकेश जो कुर्सी पर बैठा अपने नए-नए शूज़ की डोरी खोल रहा था। उसने शूज छोड़कर पहले गिलास लिया और पानी पीते-पीते बीच में बोला"अच्छा रहा मम्मी।" राकेश के उदासीन जवाब से रेखा समझ गयी कि अब यह स्कूल वाला राकेश नहीं रहा जो मम्मी को आश्चर्य जनक ढंग से अपनी बातें सुनाए। अब उसकी अपनी अलग दुनियां है और उस दुनियां में माता-पिता का स्थान कुछ नीचे हो जाता है साथ ही वह अपनी स्वच्छंदता में माता-पिता की ...Read More

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तमाचा - 11 (सफ़र)

"अरे ! अरे! जरा पल भर रुक तो सही।" विक्रम ने अपनी बेटी के उतावलेपन को शांत करने के से बोला। " और जन्म दिवस की बहुत - बहुत बधाई हो मेरी बिटिया रानी, तुम हमेशा खुश रहो। तुम्हें कभी कोई मुसीबत न आये।" विक्रम ने अपनी बेटी को जन्मदिन की शुभकामनाएं तो दी पर उसके मुख पर वह प्रसन्नता नहीं दिखाई दी । वह अभी तक इसी दुविधा में था कि क्या बोलूँ इसको। "थैंक यू , पापा। अब बताओ कहाँ चल रहे हो और आज खाना बाहर ही खाएँगे।" बिंदु ने अपने उत्साह को चरम स्थिति पर ...Read More

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तमाचा - 12 (व्यस्तता)

संध्या का समय विदा होकर रात्रि के आने की सूचना दे रहा था। सड़क पर गाड़ियों की कतारें ध्वनि का अपना काम पूरी निष्ठा से कर रही थी। लोग अपने घरों की ओर जा रहे थे और चाट व रेस्टोरेंट वाले अपने ग्राहकों की भीड़ को निपटाने का प्रयास कर रहे थे। सड़क के किनारे बनी एक कोठी और उसके चारों और बनी लंबी चारदीवारी जिसके मुख्य गेट से एक गाड़ी अंदर प्रवेश करती है जिसके आगे विधायक नाम की पट्टी लगी है। गाड़ी मुख्य भवन के आगे रुकती है और उनका पीए सुरेश गाड़ी का दरवाजा खोलता है ...Read More

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तमाचा - 13 (मौका)

"अरे यार ! तुझे मरने का शौक है क्या? आज कॉलेज ही क्यों आया तू? तुझे पता है न तेरे को धमकी मिली थी और फिर भी तू आ गया।" मनोज ने राकेश को कॉलेज में देखते ही बोला। अभी तक दोनों कॉलेज पहुँचे ही थे कि दोनों की मुलाकात हो गयी। "हाँ यार और करता भी क्या? अब जो होगा देखा जायेगा।" राकेश ने अपने डर को भीतर ही दबाकर बोला। दोनों कुछ देर बातें करते है और अपनी-अपनी क्लास की ओर अग्रसर हो जाते है। प्रोफेसर विजय सिन्हा क्लास में भारत का संवैधानिक इतिहास शुरु करते है ...Read More

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तमाचा - 14 (मुकाम)

दूर-दूर तक बिछी रेत की चादर और उनके बीच कहीं-कहीं उगे खींप के पौधे ऐसे लग रहे थे, जैसे के बीच कोई कढ़ाई का कार्य किया गया हो। उन धोरो के बीच गिरे हुए चिप्स और खाली बोतलों के पैकेट उन निर्जन रेगिस्तान में मानव की उपस्थिति को प्रमाणित कर रहे थे। सूर्य की किरणें रेत पर पड़कर उसकी चमक को बढ़ा रही थी। पर इस चमक ने भी सिर झुका लिया जब बिंदु ने अपने कोमल पाँव उन मखमली धोरो पर रखे। पहली बार घूमने आई बिंदु का उत्साह उसके रूप लावण्य को और आकर्षित कर रहा था। ...Read More

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तमाचा - 15 (पुरानी यारी)

लंबे अंतराल के पश्चात मोहनचंद आज अपने हृदय के भीतरी कोने से मुस्कुराएँ थे। उनके स्कूल का दोस्त घनश्याम उसे अचानक मिल गया। उसे अपने घर लाये और बातें करने लगे अपने जमाने की। अपने जमाने को याद करते हुए उन्होंने चाय और बिस्किट को भी गुजरे हुए जमाने का बना दिया। घनश्याम अपनी बेटी प्रिया को जयपुर कुछ शॉपिंग कराने आया था जो अभी उनके पास बैठी कुछ बोर सी हो रही थी और शर्म से अपनी नजरें नीचे झुकाएँ अपने मुख पर गंभीरता लिए हुए बैठी थी। "क्या करती हो तुम बेटा?" मोहनचंद ने प्रिया को स्नेहपूर्वक ...Read More

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तमाचा - 16 (टर्निंग प्वाइंट)

सूर्य एक-एक करके अपनी किरणों का पिटारा खोल रहा था । वह स्वर्णिम किरणें विधायक श्यामचरण की कोठी की पर अपना प्रकाश बिखेरती है जहाँ विधायक साहेब डेक चेयर पर बैठे प्रातः की चाय का आनंद ले रहे थे। पास में एक मेज पर गोल डण्ठल सा बंधा हुआ अखबार पड़ा था जो अभी खुलने की प्रतीक्षा में था। मंद हवा पास में पड़े फूलदान के फूल को हल्का सा छेड़े जा रही थी। तभी दिव्या अपनी आँखों को मलकर अपने आलस को मरोड़ती हुई आती है और अपने पापा के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ जाती है। "कम ...Read More

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तमाचा - 17 (आजादी)

"पापा , आज तो मजा आ गया। थैंक यू वेरी मच। आज आपने मुझे सबसे अच्छा गिफ्ट दिया है।" लौटने के पश्चात बिंदु अपना पूरा प्यार अपने पिता के प्रति उड़ेलते हुए कहती है और चाय बनाने के लिए रसोई की तरफ जाने लगती है। आज उसके अन्तस् की खुशी उसके मुख से साफ़ झलक रही थी । जिसे देखकर विक्रम का हृदय भी पुलकित हो उठा । विक्रम अपने मालिक का कॉल आने के बाद होटेल चला गया और बिंदु घर के कार्यो को निपटाकर पलंग पर जाकर लेट गयी। उसकी देह तो अभी घर आ गयी थी ...Read More

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तमाचा - 18 (शोर)

हाथ में पेंपलेट लिए हुए कॉलेज के कुछ विद्यार्थी कॉलेज के मुख्य गेट पर खड़े थे और सभी आने विद्यार्थियों को पेम्पलेट बाँट रहे थे और साथ ही दिव्या को जिताने का आग्रह कर रहे थे। कॉलेज में चुनावों का माहौल तीव्र गति के साथ आगे बढ़ रहा था। थोड़ी देर में दिव्या की गाड़ी कॉलेज में प्रवेश करती है। दिव्या को आज पहली बार ऐसे भीड़ के सामने भाषण देना था । जिसके लिए वह बिलकुल भी तैयार नहीं थी। सिर्फ अपने पापा की इच्छा पूर्ति के लिए आज उसे उस चुनाव के दलदल में पैर रखना पड़ेगा। ...Read More

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तमाचा - 19 ( गलतफहमी )

अपनी प्लेट को बीच में ही छोड़कर बिंदु सीधे अपने घर आ गयी। आज जो उसने देखा था उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पापा ऐसा कर सकते है।कभी सोचती कितने गंदे है उनके पापा, जो ऐसा काम करते है। इसीलिए मुझे बाहर नहीं जाने देते ताकि उनकी पोल न खुल जाए। कभी सोचती; हो सकता है मम्मी के जाने के बाद बहुत अकेले हो गए हो और अपना एकाकीपन मिटाने के लिए ऐसा कर रहे हो। लेकिन फिर सोचती कि फिर मुझे भला क्यों कैदी जैसे रखते है। कभी बाहर नहीं निकलने देते। मेरा तो ...Read More

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तमाचा - 20 (इलेक्शन)

दिव्या जब अपने पार्टी ऑफिस पहुँचती है, तो देखती है कि कॉलेज में जो विद्यार्थी उसका भाषण सुनकर उस तालियां बजा रहे थे। उनमें से अधिकतर अभी सामने विपक्षी पार्टी के कार्यालय में बैठे थे। दिव्या का अभी राजनीति में पहला - पहला कदम था और वह राजनीतिक दांवपेंचो से अनभिज्ञ थी। वो यह दृश्य देखकर अचंभित रह गयी। "क्या बात है दिव्या जी? बड़ी परेशान नज़र आ रही हो? अचानक राकेश कुछ व्यक्तियों के बीच में से उसके पास आकर बोलता है। "अरे ! आओ। नहीं तो बस ऐसे ही । सोच रही थी कि ये जो सामने ...Read More

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तमाचा - 21 (पीड़ा)

"आ जाओ बेटा , आज बड़ी देर कर दी आने में?" राकेश के अंदर आने पर उसकी माँ ने जो एक थाली में दाल में से कंकर अलग कर रही थी। "घर पर टाइम से आ जाया करो बेटा, पता है तुम्हारी माँ कितनी टेंशन लेती है।" मोहनचंद अपने चश्मे की टूटी हुई डंडी को फेवीक्विक से चिपकाने का प्रयास करते हुए बोला। "अब मैं कोई बच्चा तो हूँ नहीं , जो खो जाऊँगा। और मम्मी को कितनी बार बोला हुआ है कि मेरी फिक्र करना अब छोड़ दे, फिर क्यों भला मेरे पड़े रहते हो।" राकेश ने झल्लाते ...Read More

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तमाचा - 22 (कैद)

अब बिंदु का अपने पिता के प्रति व्यवहार कुछ बदल सा गया। वह सिर्फ अपने काम से काम रखती पिता से केवल इतनी ही बात करती जितनी अतिआवश्यक हो या केवल पिता द्वारा कुछ पूछने पर उसका जवाब ही देती। वह अब दिन भर खोई- खोई सी रहने लगी। उसे वह बात अंदर ही अंदर खाये जा रही थी । न तो उसकी कोई सहेली थी, जिससे वह मन बात कर सके और न ही अपने पिता पर अपने अंदर का क्रोध निकाल सकने के उसमे साहस था। विक्रम भी कुछ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसकी ...Read More

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तमाचा - 23 (धमकी )

"क्...कौन हो तुम ? और ये सब क्या है? " अचानक हुए इस प्रहार से मोहनचंद कुछ समझ नहीं उसकी पत्नी रेखा यह आवाज सुनकर अपनी दाल को वहीं रखकर तुरंत बाहर की ओर भागती है। "अरे ! भाई साहब क्या बात है ! इनको नहीं पहचाना। ये है, हमारी कॉलेज के आन-बान-शान, इनके नाम से बड़े-बड़े है डरते, इनको तेजसिंह है कहते।" तेजसिंह का परिचय देते हुए दीपक जोश के साथ बोला। "कौन है ये? और आपका चश्मा कैसे गिरा ?" रेखा टूटे हुए चश्मे को देखकर और कुछ डर के साथ बोली। "अरे वाह! नमस्ते माताजी, आओ ...Read More

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तमाचा - 24 (जिज्ञासा)

"देख लो अपने लाडले की करतूत । हम है जो इसे पढ़ाने के लिए दिन-रात एक किये जा रहे और ये लाटसाहब है ,इनको तो कुछ और ही पड़ी है। क्यों भला हमारे सब्र की परीक्षा ले रहे हो? तुम्हें पढ़ाई करनी है तो करो वरना मैं जिस दुकान में काम करता हूँ, मालिक से बोलकर तुम्हें भी उसमें लगा देता हूँ।" आज मोहनचंद ने अपने सब्र का बांध तोड़ते हुए कहा। राकेश अभी तक अपनी नजरें झुकाए हुए था। उसके पिता ने उसे क्या कहा, उसे कुछ ध्यान में नहीं पड़ा। वह अभी तक उसी क्षण में खोया ...Read More

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तमाचा - 25 (चिंता)

"बिंदु...ये ले इसको प्लेट में लेकर बाहर आजा ,आज साथ में खाते है।" विक्रम ने फास्टफूड का पैकेट बिंदु थमाते हुए कहा और स्वयं हाथ धोने चला गया। बिंदु रसोई जाकर प्लेट ले के आती है और जब विक्रम आकर वहाँ बैठता है तो वह प्लेट और फास्टफूड का पैकेट डाइनिंग टेबल पर रखकर वहाँ से जाने लगती है। "क्या हुआ बेटी? कहाँ जा रही हो? आ जाओ पहले नाश्ता कर लो।" "नहीं पापा, मुझे अभी बिलकुल भूख नहीं है। आप खा लो मैं बाद में खा लूँगी।" बिंदु ने उदासी भरे स्वर में कहा। "फिर मैं भी बाद ...Read More

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तमाचा - 26 (हीरोपंती)

कुछ दिनों तक राकेश दिव्या के करीब नहीं गया। कॉलेज इलेक्शन की तैयारियां जोरों पर थी। एक दिन बाद नामांकन दाखिल करने की तारीख़ थी। दिव्या इलेक्शन में उलझी हुई थी। फिर भी उसके मन में बार-बार राकेश की याद आ जाती । वह सोचती आखिर क्या बात हो गई? वह आखिर कहाँ गायब हो गया? फिर किसी तरह उसके मोबाइल नंबर लेकर उसे कॉल करती है। "हेलो" "हेल्लो, हाँ कौन?" "अरे वाह! तुम तो बड़े जल्दी भूल गए।" "दिव्या मैडम!" राकेश ने दिव्या की आवाज को पहचान कर आश्चर्य के साथ बोला। "कहाँ गायब हो गए तुम आज ...Read More

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तमाचा - 27 (पहलवाल )

रात भर करवटे बदलते - बदलते राकेश सोने का निर्रथक प्रयास ही कर रहा था। पर नींद तो उससे दूर थी। सुबह किसी तरह अपने आप को थोड़ा हौसला देकर वह अपने आवश्यक डॉक्यूमेंट लेकर दिव्या के पास उनके पार्टी ऑफिस पहुँच गया जहाँ से बाद में उन्हें कॉलेज जाना था।आज पार्टी ऑफिस में काफ़ी भीड़ जमा थी। तेजसिंह भी अपने साथियों के साथ अभी तक वहाँ मौजूद था। लेकिन उसके मन में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी। उसने अंदर ही अंदर एक बड़ा प्लान बना लिया और भीड़ में उपस्थित अधिकतर विद्यार्थियों को गुपचुप तरीक़े से ...Read More

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तमाचा - 28 (पहली नज़र का पहला असर)

ब्लू कलर का गाउन पहने आज बिंदु कई दिनों के बाद इस तरह सजी थी। उसने अपने मन को तरह पापा के साथ जाने को मना लिया। हालाँकि वह नख से शीश तक जँच रही थी; पर एक सबसे सुंदर और प्यारी चीज की उस पर कमी लग रही थी। वह थी उसकी मुस्कुराहट। उसका चेहरा अभी तक अपने मन की उदासी को झेल रहा था। लेकिन उसने तय कर लिया कि अब उसे अपने मन की करनी है। पापा जब ऐसा काम कर सकते है तो वह भी कुछ भी कर सकती है। उसका तेवर आंतरिक तौर से ...Read More

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तमाचा - 29 (असमंजस )

रायमल सिंह अपना भाषण दे रहे थे ।तभी कुछ पहलवान हॉल में प्रवेश करते है। वह रायमल सिंह के में कुछ देर फुसफुसाहट करते है, उसके बाद रायमल सिंह सभी विद्यार्थियों के समक्ष पुनः कुछ उदबोधन शुरू करते। " भाइयों एक बहुत ही खुशी का समाचार मिला है कि हम सबके प्रिय विधायक साहेब हमारे भाई तेज सिंह को कुछ विशिष्ट पद देना चाहते है। तेजसिंह अब केवल कॉलेज के ही नहीं; हमारी पूरी विधानसभा के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति बन जाएंगे। उन्हें विधायक साहेब ने तत्काल याद किया है। अतः उन्हें अभी यहाँ से जाना होगा। आप सबकी की ...Read More

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तमाचा - 30 (शंका )

दिव्या ने एक ही रात में ऐसा राजनीतिक दांवपेंच खेला कि तेजसिंह चारों खाने चित हो गया। उसकी सारी धरी की धरी रह गयी। तेजसिंह अध्यक्ष पद की टिकट न मिलने पर पहले पार्टी में फूट डालने वाला था और उसके बाद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ा होना चाहता था। पर दिव्या को भी राजनीतिक बुद्धि विरासत में मिली थी । जिसका उसने सही समय पर सही तरीके से उपयोग किया। तेजसिंह के प्लान की जानकारी मिलते ही उसने रात ही रात में एक योजना बना दी और दिन होते ही उसे साकार रूप भी दे दिया। विधायक ...Read More

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तमाचा - 31 (अनुभव)

"जब देंखूं बन्ना री लाल-पीली अँखियाँ...." एक माँगलियार लोक कलाकार जैसलमेर में सुनहरे पत्थरों से बनी पटवों की हवेली पास यह गीत गा रहा था। जिसके आसपास खड़े कुछ टूरिस्ट राजस्थानी लोक गीत-संगीत का आनंद ले रहे थे। विक्रम मिस्टर गिल एवं मिसेज गिल को इस गीत के लिरिक्स का अर्थ बता रहा था। सोनम ,जगजीत और बिंदु पास में ही दुकान से कुछ कलात्मक वस्तुओं को देखने में लगे थे। सोनम कालबेलियाई शैली में बना एक लहंगा देखने में मशगूल हो गयी । पास में ही जगजीत अपने दोनों हाथ अपनी जींस के आगे की जेबों में रखकर ...Read More

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तमाचा - 32 (श्रेय )

"दोस्तों , इस चुनाव को कोई साधारण चुनाव न समझना । कॉलेज में केवल प्रवेश लेना ही पर्याप्त नहीं कॉलेज के माध्यम से हमारा और हमारे माध्यम से कॉलेज का सर्वांगीण विकास करना हमारा कॉलेज में रहते हुए परम् ध्येय होना चाहिए। कॉलेज में किस व्यवस्था की कमी है और विद्यार्थियों को क्या समस्याएं है? इन सबका निवारण ही हमारा लक्ष्य है। अब इस कॉलेज की और साथ में आपके सुनहरे भविष्य की , चाबी आपके हाथ में है। आप हमारे चुनाव चिन्ह ताले पर अपना अमूल्य वोट देकर हमें विजयी बनाये। और हम आपका भविष्य।"बिंदु ने भीड़ के ...Read More

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तमाचा - 33 (रिश्तेदारी )

"आओ , घनश्याम बैठो। और सुनाओ कैसे हो? आज कैसे आना हुआ?" मोहनचंद ने अपने मित्र घनश्याम को एक प्रश्नों की झड़ी लगाते हुए पूछा। घनश्याम आज किसी काम से जयपुर आये थे। सोचा कि अपने मित्र से मिलते चले। "बस , अच्छे है। आज थोड़ा काम था तो आ गया। तुम सुनाओ कैसे हो?" घनश्याम ने एक आह भरकर शांत चित्त से कहा। "मैं भी बढ़िया हूँ। और हमारी प्रिया बिटिया कैसी है?" मोहनचंद ने जग में से पानी ,गिलास में डालकर घनश्याम को देते हुए कहा। "वो भी ठीक है। तुम्हारा लाल दिखाई नहीं दे रहा है। ...Read More

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तमाचा - 34 (स्टार )

"प्रिय विद्यार्थियों आपने कॉलेज इलेक्शन में जो फैसले लिए है। वह बेहतरीन है। हालांकि दिव्या मेरी बेटी है और इलेक्शन में आपके सामने प्रत्याशी थी। पर वह चुनाव मेरी मदद से नहीं जीती। अपने बल पर और आपके अतुलनीय सहयोग से। वह चाहे मेरी बेटी ही क्यों न है? पर अगर वह भी आपके हित में काम न करे तो आप बेझिझक मेरे पास आना। मैं आपको ,दिव्या और उसकी पार्टी के सभी विजयी सदस्यों को बधाई देता हूँ और साथ ही उनको जोर देकर कहना चाहूँगा कि अब आपका कर्तव्य है सब विद्यार्थियों और कॉलेज के हितों का ...Read More

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तमाचा - 35 (चिंगारी)

रात अपने प्रिय अस्त्र चाँदनी के साथ शीतलता बरसा रही थी। जिससे कोमल भावनाओं वाले प्रेमी उसके समक्ष आत्मसमर्पण जाते है। बिंदु अपने कमरे में पलंग पर अपने वक्ष स्थल के नीचे तकिया रखकर उलटी लेटी हुई दिवास्वप्न में मग्न थी। उसके रेशमी केश पलंग पर बिखरे हुए थे। मन में कभी जगजीत से हो चुकी बात को पुनः मन में दोहराती तो कभी मन ही मन उस बातचीत को आगे बढ़ा देती। मानव मन या तो भविष्य में गोते लगाता है अथवा भूत में डूबा रहता है। वह वर्तमान में कभी रहता ही नहीं। अगर कोई वर्तमान में ...Read More

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तमाचा - 36 ( द्वंद्व )

"अभी तक मैं इक्कीस साल का भी नहीं हुआ। अभी मेरा अध्ययन चल रहा है। ना तो आपने मेरे पूछा । फिर कैसे भला मेरा रिश्ता आपने तय कर लिया।" राकेश ने अपनी माँ पर झल्लाते हुए कहा। "बेटा , तो अभी तेरी शादी थोड़ी कर रहे है। सिर्फ बात की है उनसे। प्रिया बहुत अच्छी लड़की है। फिर क्या पता वैसी लड़की मिले या नहीं?" माँ ने राकेश को प्यार से समझाते हुए कहा। राकेश के पिता अभी बाज़ार गए हुए थे। पीछे रेखा ने आख़िर अपने बेटे से शादी की बात कर ही ली। "मुझे नहीं पता? ...Read More

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तमाचा - 37 (शरद )

"आओ आओ विक्रम जी। आज हमारी कैसे याद आ गयी।" विक्रम के पड़ोसी शर्मा जी ने उनका स्वागत करते कहा। "अब क्या बताये आपको शर्मा जी?" कहकर विक्रम की आँखों में आँसू निकल आए। उसके जीने का एकमात्र सहारा बिंदु ही थी। पर अब उसका व्यवहार भी इस तरह का हो जायेगा ऐसा उसने कभी सोचा ही नहीं था।"अरे ! ये क्या बात हुई। संभालो अपने आप को। ऐसे क्या रोते हो? बताओ तो सही क्या बात है?....अरे ...सुनती हो इधर आना तो...ज़रा एक गिलास पानी भरना।" शर्मा जी ने विक्रम के दोनों कंधे पकड़कर उसे संभालते हुए तथा ...Read More

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तमाचा - 38 (मीटिंग )

"तू कहाँ चला गया था रे? देख तेरी माँ को क्या हो गया?" मोहनचंद ने व्याकुलता की दशा में राकेश को कहा। "क्या हुआ मम्मी को?" राकेश अपने माता के पास जाता है जो पलंग पर सो रही थी। मोहनचंद ने उस पर एक महीन कंबल डाल दी थी और सिर पर बाम लगाकर एक कपड़े से बांध दिया था। "क्या हुआ मम्मी? बुखार है क्या? चलो डॉक्टर के पास चलते है।" राकेश ने कुछ चिंतित स्वर में बोला। "नहीं बेटा , मैं ठीक हूँ। हल्का सा बुखार है शायद! अभी खाना खाकर गोली ले लूंगी । ठीक हो ...Read More

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तमाचा - 39 - (गुल )

"नमस्ते आंटी जी।" बिंदु ने घर का मुख्य दरवाज़ा खोलते हुए कहा। जहाँ सारिका खड़ी थी।"नमस्ते ,कैसी हो बिटिया?""अच्छी आप कैसे हो?""मैं भी ठीक हूँ। अब अंदर आऊँ या यहीं से सब बातचीत करे।" सारिका ने हास्य भाव के साथ बोला।"आइए ना! आप आजकल ऐसे कम ही आती हो ना घर पर। तो मैंने सोचा कोई काम है।" बिंदु ने सारिका को अंदर बुलाते हुए कहा। "नहीं , आज तो मैं घर पर बैठी बोर हो रही थी। तब सोचा तुम्हारे पास आ जाऊँ कुछ गपशप लगाने।" सारिका ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा। "यह तो अच्छा किया ना ...Read More

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तमाचा - 40 (बॉर्डर)

प्रातः की स्वर्णिम वेला में सूर्य ने अपनी किरणों के हस्ताक्षर द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। दूसरी चंद्रमा अपनी ड्यूटी पूरी कर अपने विश्राम स्थल की ओर जाता प्रतीत हो रहा था। बिंदु का हृदय आज कुछ तेजी सी ही धड़क रहा था। वह बार-बार दरवाजे पर आकर सारिका के घर की ओर देखती और वापस अपने कमरे की ओर आ जाती । सारिका ने उसे बताया था कि आज शरद आने वाला है। इसलिए उसकी उत्कंठा बढ़ गयी थी। विक्रम भी आज बहुत समय पश्चात प्रसन्न दिखाई दे रहा था। सारिका ने उसे बताया कि उसने ...Read More

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तमाचा - 41 (टूअर टू जैसलमेर)

चारों तरफ उगी हरी-हरी दूब जिसमें कम पानी की वजह से हल्का पीलापन आया हुआ था । कई सारे और लड़कियां अपनी-अपनी संगति के दोस्तों के साथ बैठे हुए अपनी गपशप में व्यस्त थे। एक लड़का उनके पास आकर बोलता है,"प्रोफेसर अजय हिंदी साहित्य की क्लास ले रहे है। जिसके भी हिंदी साहित्य है उनको बुला रहे है।"प्रोफेसर अजय केवल इंतजार ही करते रहे आख़िर वह बिना क्लास लिए जाने लगे। तभी कुछ विद्यार्थी उनके पास आते है और क्लास लेने का बोलते है। लेकिन वो बेचारे जो आये उनको जो नहीं आये उनकी डांट सुननी पड़ी।"तुम लोग यहाँ ...Read More

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तमाचा - 42 (मिलन)

"अगर तुम नहीं आओगी तो कोई नहीं जाएगा।" "तुम समझा करो मेरे बहुत जरूरी काम आ गया है। पापा स्पष्ट बोला है कि मुझे किसी भी हालत में यहाँ रुकना होगा।" "पर तुम्हारे बिना ये यात्रा किस काम की।" "तुम जाओ ना प्लीज ! अब ऐसा ना कहो । सब तैयारियां हो गयी है। सभी स्टूडेंट्स भी आ गए है। अब अगर प्लान कैंसिल करते है तो यह गलत होगा। मैं भी एकदम तैयार थी पर अचानक से पापा ने बोल दिया कि हमें इस समारोह में जाना अत्यंत आवश्यक है। तुम जाओ आराम से और सभी को अच्छे ...Read More

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तमाचा - 43 (दस्तक)

दूर दूर तक सिर्फ रेत ही रेत। रेत के बड़े-बड़े पहाड़ जिस पर कहीं कहीं खेजड़ी और फोग की । आदमी और उसकी प्रजाति का दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं। सभी विद्यार्थी इस आश्चर्यजनक वातावरण को देख अचंम्भित हो रहे थे। लेकिन दूसरी तरफ़ राकेश का ध्यान अब अपनी यात्रा और बाहर के नजारों से पूर्णतया हट गया था। अब उसकी नजरें बार-बार एक जगह पर आकर अटक जाती। तनोट पहुँचने से पहले बस एक बड़े रेत के धोरे के पास रुक गयी। सभी विद्यार्थी बाहर आये और और उस रेत के समुद्र में जैसे तैरने का लुफ्त ...Read More