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तमाचा - भाग 4 (कली)

संध्या का समय। आकाश में कुछ हल्के श्वेत बादल अपनी आनंदमयी गति के साथ चल रहे थे। हवा भी शीतलता द्वारा अपनी सुहावनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। जैसलमेर के रेलवे स्टेशन के पास एक हॉटेल में विक्रम नाम का एक अधेड़ आदमी सैलानियों को उनके कमरे में ले जा रहा था।
"यहाँ के रूम और यहाँ का खाना , दोनों जैसलमेर के बेस्ट है, अभी आप आराम फरमाइए और फिर खाने के लिए मिलते है।"
"अच्छा! वैसे यहाँ खाने में क्या-क्या फेमस है?" सैलानियों के उस दल में से एक मोटा आदमी जिसका पेट अपनी कमीज से बाहर निकल रहा था, बोला।
"दाल- बाटी- चूरमा , कैर, सांगरी और भी बहुत कुछ, जब आप खाओगे तो फिर बाद में सब उसके आगे फीका लगेगा।" विक्रम ने उनके रूम का दरवाजा खोलकर, अपने दोनों हाथों से उनको रूम में प्रवेश करने इशारा करते हुए बोला।
सैलानियों का वह दल गुजरात से आया था ; जिनमें दो भाइयों के परिवार थे। एक मोटा मयंक उसकी पत्नी रेश्मा उनके दो बच्चें नीता और सुनील और साथ में मयंक का भाई गणेश और उसकी नई-नवैली दुल्हन आर्या। शादी के बाद वह अपने भाई व परिवार के साथ घूमने को आया था। जयपुर, जोधपुर और फिर जैसलमेर और बाद में उदयपुर होके वापस गुजरात जाने का प्लान था। सफर से थके होने के कारण उन्होंने आज आराम करने का निश्चय किया।
विक्रम उनको रूम में छोड़ कर हॉटेल के मालिक के पास जाने लगा तभी उसको एक कॉल आया।
"हैलो पापा! आप घर कब आ रहे हो ?"
"बेटा, में बस मालिक से मिलकर आधे घंटे में आ रहा हूँ ।"
"ठीक है पापा, जल्दी आ जाओ।"
" आ रहा हूँ बेटा, थोड़ी देर में । " कहते हुए विक्रम ने कॉल कट किया और हॉटेल के मालिक के पास जाकर बोले "मालिक क्या मुझे कल छुट्टी मिल सकती है? कल मेरी बेटी का जन्मदिवस है।"
उसका मालिक सुनील एक होनहार , नोजवान था जिसने छोटी उम्र में ही अपनी मेहनत और लगन के द्वारा हॉटेल का व्यवसाय सम्पूर्ण जैसलमेर में टॉप पर पहुंचा दिया। हालांकि हॉटेल उसको विरासत में मिली थी लेकिन अपने कर्म द्वारा उसने इस विरासत को न केवल संभाला अपितु उसको बहुत ऊंचाई तक ले गया।
सुनील अपना फ़ोन चेक करते हुए बोला"क्या विक्रम जी !फिर इस गुजरात वाली पार्टी को कौन संभालेगा, वैसे भी दिन भर क्या करोगे घर पर, शाम को जल्दी चले जाना और जन्मदिन मना लेना।"
"बात तो आपकी सही है मालिक पर कल मैने उसको वादा किया था कि मैं उसको घुमाने ले जाऊंगा। अब अगर उसको मना कर दिया तो फिर उसका दिल टूट जाएगा।"
" तो आपको सोचना चाहिए था न कि अभी सीजन चल रहा है। ठीक है आप जा सकते हो, लेकिन पहले आप की जगह कोई दूसरा उस पार्टी के साथ सेट करना होगा।"
सुनील भले ही मालिक था लेकिन हॉटेल में काम करने वाले अपने से बड़े सभी लोगों का सम्मान और छोटों पर उचित स्नेह रखता था। लेकिन जब सीजन का टाइम हो तब वह किसी को भी ज्यादा छूट नहीं देता था , और कहता कि सीजन टाइम में किसी का कोई बहाना नहीं चलेगा।
" लेकिन मालिक अभी तो सभी बिजी है , लेकिन अगर रोहित कल दिन में इनको संभाल ले तो नाईट वाली शिफ्ट उसकी जगह में कर लूंगा।" विक्रम लाचार होकर बोला।
"फिर रोहित से ही बात करो, तुम जानो और रोहित लेकिन कल एक आदमी इनके साथ होना चाहिए।" सुनील यह कहकर वहाँ से चल दिया । और विक्रम रोहित को कॉल करने लगा क्योंकि वो हमेशा नाईट शिफ्ट में यहाँ रुकता था और अभी तक हॉटेल आया नहीं था।
"हेलो! रोहित!"
"हा, विक्रम बोलो।"
"यार मुझे तेरी एक हेल्प चाहिए ।"
"हाँ ,बोलो , मैं क्या कर सकता हूँ ?"
"क्या कल तू मेरी जगह दिन में आ सकता है? मैं नाईट में आ जाऊंगा, कल मेरी बेटी का जन्मदिन है और मैंने उससे वादा किया है कल उसे घुमाने ले जाऊंगा।"विक्रम ने फ़ोन में अपनी दयनीयता का प्रदर्शन करते हुए बोला।
" अरे यार ! आई एम सॉरी! कल तो मुझे अपनी बीवी को डॉक्टर के पास ले जाना है, बहुत मुश्किल से अपॉइंटमेंट फिक्स हुई है।"
"अच्छा"
"हा यार , वरना थोड़ी मना करता , तू देख न कोई और जुगाड़ हो जाए तो"
"कहाँ है ! तुम्हें पता है अभी सीजन में सब बिजी है और वैसे भी स्टाफ की दिक्कत है।"
"ओके फिर , देखता हूँ क्या होता है।"
"ओके"
विक्रम कॉल कट करने के बाद अपने घर जाने लगा। और दुविधा में फंस गया कि अपनी बेटी को क्या जवाब देगा। उसकी बेटी ही एकमात्र उसके जीने का सहारा थी। पत्नी पहले ही साथ छोड़कर हमेशा के लिए इस रंगमंचीय दुनियाँ से विदा ले चुकी थी। और वह अपनी बेटी के साथ ही रहता था ,जो अभी एक नए खिले हुए कुसुम की तरह थी। विक्रम को यह डर भी था कि कहीं इस कली पर किसी भौंरे की नजर न लग जाए। अपने काम की वजह से उसे अकेला छोड़ना उसे किसी हरियाली से भरे हुए खेत को जानवरों के बीच बिना किसी बाड़ के रखने जैसा था। कभी भी कोई बैल आकर खेत में उगी उस ताजा-ताजा फसल को चट कर सकता था। इसी डर से उसने अपने बेटी को ज्यादा पढ़ाया भी नहीं ताकि उसके कोई दोस्त न बन जाये। और सोचता था कि कब इसकी शादी किसी अच्छे लड़के से हो जाए फिर वो चैन से रह सकेंगे।
अपने मन में उलझन लिए विक्रम अपने घर पहुंचा तो देखा कि मकान का दरवाजा तो खुला ही था। वो अंदर गया और भयभीत मन से अपनी बेटी को आवाज लगाई "बिंदु..... बिंदु कहाँ हो तुम?"


क्रमशः ...