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तमाचा - भाग 2 (मिडिल क्लास फैमिली)

4 वर्ष पहले
अलार्म को करीब पाँच बार स्नूज करने के बाद राकेश को बिस्तर को अकेला छोड़ना पड़ा। आज से उसकी ज़िन्दगी में बहुत परिवर्तन आने वाला था। उठते ही हमेशा की तरह पहले चिल्लाया "मम्मी , मेरी चाय" ।
राकेश की मम्मी 'रेखा' एक साधारण परिवार की साधारण औरत थी। ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, बस हर मिडिल क्लास फैमिली की औरत की तरह घर के काम और पति की सेवा तथा बच्चों की अच्छी परवरिश को ही अपना कर्तव्य समझती थी। उसने एक मिक्स कलर की साड़ी पहनी हुई थी जो उसकी सबसे नई ड्रेस थी और करीब दो वर्ष पहले ली थी। वह एक हाथ में पानी तथा एक हाथ में चाय का कप लाती हुई बोली "बेटा कम से कम आज तो टाइम पर उठ जाता। अब लो जल्दी से चाय पी लो और तैयार हो जाओ।"
राकेश ने चाय लेते हुए बोला "पापा कहाँ है? "
"वह अपना स्कूटर साफ कर रहे है, बोलते है कि आज तो तुम्हें खुद छोड़ के आएँगे। " राकेश की माँ वापस रसोई में जाते हुए बोली।
"अब मैं बच्चा थोड़ी हूँ और उस खटारा स्कूटर पर मैं नहीं जाऊंगा।" राकेश ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बोला।
"अभी इतने पैसे थोड़ी है कि हम मोटरसाइकिल ले सके बेटा, तुम्हें तो पता है हमारे घर की हालत कैसी है"। राकेश की मम्मी रसोई में से ही बर्तन साफ करते हुए बोली।
"फिर मैं बस से चला जाऊँगा, पापा को बोल दो अपना टाइम खराब नहीं करें।" राकेश बाथरूम में घुसते हुए बोला।

मानसरोवर, जयपुर के वरुण पथ में एक पार्क के पास एक साधारण घर के आगे एक अधेड़ व्यक्ति 'मोहन चंद' अपने जीवन का पहला और शायद आखिरी स्कूटर साफ कर रहा था। उसके सर के बाल भी उसकी आमदनी की तरह अल्प ही रह गए थे। उसका अपनी जिंदगी में सिर्फ एक ही उद्देश्य रह गया था, अपने बेटे राकेश को एक सफल आदमी बनाना। जिसके लिए वह दिन -रात एक कर रहे थे। अपनी जरूरतों को भुलाकर सिर्फ राकेश की जरूरत का ही ध्यान रह गया था। जब राकेश और उसकी माँ की बात उसने सुनी तो सोचा कि अब बेटा बड़ा हो गया है, मेरे साथ शायद उसको शर्म आती हो और वैसे भी इस उम्र में जब लगभग सभी के पास मोटरसाइकिल होती है और मैं इसको दिला नहीं पाया।
एक आम आदमी की ज़िंदगी ऐसी ही होती है कि कोई भी नई चीज लेने से पहले उसको हजार बार सोचना पड़ता है। और एक पिता जो चाहता तो है कि वह अपनी संतान को हर वो वस्तु दिलाये जो वह पाना चाहता है,पर अपनी परिस्थितियों के आगे बेबस हो जाता है। दूसरी और बच्चों की सोच तब तक उतनी परिपक्व नहीं होती जब तक उसके कंधों पर ज़िम्मेदारी न आ जाये।
मोहन चंद अपने स्कूटर की सफाई करना छोड़ बाहर जाने लगे लेकिन फिर सोचा कि कम से कम आज उसे आशीर्वाद तो देना चाहिए ; फिर वापस घर के अंदर की तरफ जाने लगे।

राकेश नहा के बाहर आया और अपनी नई ड्रेस पहनने लगा। गहरी नीली जींस और हल्का नीला शर्ट जिस पर काले कलर की लाइने बनी हुई थी। नीचे एडिडास के शूज जिसके पैसे दुकानदार के पास अभी भी मोहनचंद के नाम से अपने उधार खाते में लिखे हुए थे।
मोहनचंद अपने कमरे में कुछ पैसे लेने के लिए गया, ताकि राकेश को दे सके। और रेखा अपने बेटे के लिए दही शक्कर लाने की तैयारी कर रही थी। लेकिन तभी राकेश वहाँ से खिसक गया। उसने सोचा कहीं उसको पापा रोक न ले और स्कूटर पर जाने के लिए बाध्य न करें।
मोहनचंद अपने हाथ में पैसे और उसकी पत्नी हाथ में दही की कटोरी लेकर घर के दरवाजे पर आए लेकिन दोनों ने एक -दुसरे को अकथनीय दर्द से निगाहों से देखा और राकेश अपने गंतव्य स्थान की और प्रस्थान कर चुका था।
आखिर राकेश को कहाँ जाना था जिसके लिए पूरा घर उसकी तैयारी में लगा हुआ था।

क्रमशः...