दहलीज़ के पार

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उस दिन गरिमा अपने विद्यालय से लौटकर घर पहुँची, तो उसकी माँ एक पड़ोसिन महिला के साथ दरवाजे पर खड़ी हुई बाते कर रही थी। गरिमा जानती थी कि वह महिला, जो उसकी माँ के साथ बाते कर रही थी, कभी किसी पड़ोसी के घर आती—जाती नही है। प्रायः सभी पड़ोसी इस बात को जानते थे कि उस महिला के पति को अपने घर मे किसी महिला या पुरुष का व्यर्थ मे आना—जाना पसन्द नही है। अतः कभी किसी प्रकार की आवश्यकता पड़ने पर भी लोग उस घर मे जाने से बचते थे। गरिमा को कभी यह नही समझाया गया था कि उस महिला के घर जाना वर्जित है, परन्तु वह कभी उनके घर जाने का साहस नही जुटा पायी थी।

Full Novel

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दहलीज़ के पार - 1

उस दिन गरिमा अपने विद्यालय से लौटकर घर पहुँची, तो उसकी माँ एक पड़ोसिन महिला के साथ दरवाजे पर हुई बाते कर रही थी। गरिमा जानती थी कि वह महिला, जो उसकी माँ के साथ बाते कर रही थी, कभी किसी पड़ोसी के घर आती—जाती नही है। प्रायः सभी पड़ोसी इस बात को जानते थे कि उस महिला के पति को अपने घर मे किसी महिला या पुरुष का व्यर्थ मे आना—जाना पसन्द नही है। अतः कभी किसी प्रकार की आवश्यकता पड़ने पर भी लोग उस घर मे जाने से बचते थे। गरिमा को कभी यह नही समझाया गया था कि उस महिला के घर जाना वर्जित है, परन्तु वह कभी उनके घर जाने का साहस नही जुटा पायी थी। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 2

पुष्पा दलित जाति की लड़की थी। गरिमा की समवयस्क होते हुए भी वह कक्षा एक मे पढ़ती थी, जबकि कक्षा तीन मे पढ़ती थी। उसकी पढ़ाई के पीछे भी एक रोचक कहानी थी, जो गरिमा ने रची थी। लगभग डेढ़—दो वर्ष पूर्व सयोगवश पुष्पा की मित्रता गरिमा साथ हुई थी। पूजा की माँ गरिमा के घर पर अनाज आदि साफ करने के लिए तथा घर की अन्य सफाई करने के लिए आया करती थी। एक दिन वह भी अपनी माँ के साथ गरिमा के घर आ गयी। जिस समय पुष्पा वहाँ आयी थी, उस समय गरिमा अपने विद्यालय से मिला हुआ गृहकार्य कर रही थी। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 3

गरिमा ने माँ से ऐसे किसी भी विषय पर प्रश्न पूछना लगभग—लगभग बन्द सा कर दिया था, जिस पर चाहती थी कि गरिमा उन बातो से दूर रहे। अब वह धैर्य धारण करके बड़ी होने की प्रतीक्षा करने लगी थी। किन्तु मन है, वह मानता नही है। न चाहते हुए भी अपने परिवेश मे घटने वाली सवेदनशील घटनाओ से हृदय प्रभावित होता है और जब हृदय मे सवेदना जाग्रत होती है, तो अपनी प्रकृति के अनुरूप मस्तिष्क कुछ न—कुछ सोचता भी अवश्य है। गरिमा भी अपने परिवेश मे घटने वाली प्रायः सभी घटनाओ से प्रभावित होती थी और उसका मनोमस्तिष्क उन घटनाओ के प्रति क्रियाशील होता था। ऐसी अनेक घटनाओ मे से एक घटना उसकी बड़ी बहन प्रिया से सम्बन्धित थी। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 4

गरिमा बारहवी कक्षा उत्तीर्ण कर चुकी थी और स्नातक मे प्रवेश लेने की तैयारी कर रही थी। जिन दिनो बहन प्रिया की हत्या हुई थी, वह नौवी कक्षा मे पढ़ती थी। तब समाज के कई वरिष्ठ लोगो ने उसके पिता से उसका स्कूल छुड़वाने का परामर्श दिया था। उसका अपना भाई भी यही चाहता था कि वह स्कूल न जाए, किन्तु गरिमा के पिता ने अपना निर्णय नही बदला। गरिमा के पिता ने अपने परिवार और समाज को स्पष्ट शब्दो मे कह दिया था कि वे न तो समाज की टिप्पणियो से डरने वाले है, और न ही प्रिया के अविवेकपूर्ण कार्य—व्यवहारो का दड अपनी छोटी बेटी गरिमा को देने वाले है। वे अपनी बेटी को उन्नति के अवसर देने मे अपनी सामर्थ्यानुसार कोई कमी नही छोड़ेगे। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 5

जब गरिमा की चेतना लौटी, तब उसने स्वय को अस्पताल मे बिस्तर पर पाया। उस समय उसके चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ स्पष्ट दिखायी दे रही थी और उसका मन अनेको सकल्प—विकल्पो से जूझ रहा था। उसने देखा कि उसके बिस्तर के आस—पास उसके परिवार के साथ उसके कॉलिज के अनेक छात्र—छात्राएँ खड़े है। उन सभी को देखकर वह स्वय को सतुलित करने का प्रयास करने लगी। कुछ ही समय पश्चात्‌ डॉक्टर ने आकर बताया कि गरिमा अब स्वस्थ है, इसलिए परिवार वाले अब उसे घर ले जा सकते है। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 6

अपनी मौसी के साथ रहते हुए गरिमा को तीन महीने का समय बीत चुका था। उस दिन उसके पिता मिलने के लिए वहाँ पर आये थे। वही पर उसने अपने पिता को मौसी से बात करते हुए सुना था कि वे गरिमा के लिए एक लड़का देखने के लिए गये थे, वही से लौट कर आ रहे है। वे कह रहे थे कि प्रत्यक्षतः तो लड़का ठीक ही है। अब उसकी छानबीन करना शेष है। यदि वे सभी जानकारियाँ, जो उन्होने दी है, सही मिली, तो तुरन्त गरिमा का विवाह कर देगे। दो महीने मे बिटिया का घर बस जायेगा, यदि सब कुछ हमारे विचारो के अनुरूप होता रहा और ऊपर वाले की कृपा हम सब पर बनी रही। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 7

दो—तीन महीने तक गरिमा के पिता सुयोग्य वर की तलाश मे भटकते रहे। अन्त मे पर्याप्त भाग—दौड़ करने के ऐसा वर मिल ही गया, जो सुशिक्षित होने के साथ—साथ सम्पन्न घराने का रोजगाररत भी था। लड़का सरकारी नौकर है और गाँव मे इतनी जमीन—जायदाद भी इतनी है कि आज भी उसके दादा—परदादा की नम्बरदारी का डका बजता है। एक लड़की को सुखी रहने के लिए और क्या चाहिए ! गरिमा के पिता ने प्रफुल्लित मुद्रा मे विजयी मुस्कान बिखेरते हुए कहा, परन्तु गरिमा की माँ की भाव—भगिमा कह रही थी कि वे किसी गम्भीर चिन्ता मे डूबी हुई है। अपनी सूचना की अनुकूल प्रतिक्रिया न पाकर गरिमा के पिता ने पुनः कहा— कहाँ भटक रहा है आज तेरा ध्यान ? मै कब से बोले जा रहा हूँ, और एक तू है कि...! ...Read More

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दहलीज़ के पार - 8

अपने बचपन से ही गरिमा की प्रकृति कृत्रिमता के विरुद्ध थी। अपने सौन्दर्य मे वृद्धि करने के लिए आभूषणो कृत्रिम सौन्दर्य—प्रसाधनो की आवश्यकता का अनुभव उसने कभी नही किया। वह बहुत छोटी थी, जब उसके पिता ने उसे समझाया था कि हाथो मे चूड़ी और पैरो मे पायल लड़कियो मानसिक विकास की स्वतन्त्र गति को उसी प्रकार अवरुद्ध कर देती है, जिस प्रकार हाथो मे हथकड़ी और पैरो मे पड़ी बेड़िया शरीर की स्वतन्त्र गति मे बाधा उत्पन्न कर देती है। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 9

सास की मृदु वाणी मे प्रभा के परिवार का इतिहास सुनकर गरिमा की जिज्ञासा और अधिक बढ़ गयी थी। प्रभा के परिवार क इतिहास विस्तार से सुनना चाहती थी ताकि अपने समाज की विकृत व्यवस्था को समझ सके। अतः आशुतोष के घर लौटने पर उसने प्रभा का प्रसग आरम्भ किया। गरिमा से प्रभा के परिवार के विषय मे गरिमा की जिज्ञासा से आशुतोष हत्‌चेतन—सा हो गया था, परन्तु शीघ्र ही उसने स्वय को सम्हाल लिया। उसने प्रभा के परिवार का इतिहास बताने के लिए गरिमा के आग्रह को टालने का अनेक बार प्रयास किया। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 10

आशुतोष की अनुमति मिलने के पश्चात्‌ गरिमा निश्चिन्त हो गयी थी। उसने अगले ही दिन प्रभा को बुलाने के प्रयास करना आरम्भ कर दिया। सयोगवश एक दिन पश्चात्‌ ही पुष्पा उससे मिलने आ पहुँची। पुष्पा के माध्यम से गरिमा ने प्रभा को सदेश भिजवाया कि वे उससे मिलना चाहती है और आग्रह किया कि वे मिलने के लिए शीघ्र ही आ जाए। पुष्पा का सदेश पाकर प्रभा तुरन्त नही आ सकी, गरिमा को तीन—चार दिन तक उसके आने की प्रतीक्षा करनी पड़ी किन्तु तीन—चार दिन पश्चात्‌ जब प्रभा आयी, तो गरिमा के लिए अनेक सकारात्मक सभावनाएँ अपने साथ लेकर आयी। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 11

‘पुरुषार्थी प्राणी की सहायता स्वय ईश्वर करता है' और ‘वह कभी किसी का पारिश्रमिक नही रखता है, देर—सबेर सबके का फल देता है' यह उक्ति गरिमा के ऊपर पूर्णतया चरितार्थ हो रही थी। उसने अपनी अधूरी शिक्षा को पुनः आरम्भ करने का निश्चय किया, तो सभी रास्ते स्वतः खुलते चले गये। प्रभा ने अपने वादे के अनुसार अगले दिन ही पुस्तके लाकर दे दी थी और आने वाले शनिवार को जब आशुतोष घर लौटकर आया, तब वह भी बी. ए. प्रथम वर्ष के पाठ्‌यक्रमानुसार पर्याप्त अध्ययन सामग्री ले आया। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 12

गरिमा का परीक्षा—फॉर्म भरा जा चुका था। उसने परीक्षा मे अच्छे अक प्राप्त करने के लिए अध्ययन आरम्भ कर था। गरिमा चाहती थी कि श्रुति के अध्ययन मे भी वह उसकी यथासम्भव सहायता करे, परन्तु, श्रुति को गरिमा की सहायता स्वीकार्य नही थी। वह अपनी पढ़ाई पुनः आरम्भ करने के विषय मे उससे किसी प्रकार की कोई बातचीत नही करना चाहती थी। न ही वह इस रहस्य को खोलना चाहती थी कि माँ का नकारात्मक उत्तर पाने के बाद भी उसने प्रभा के भाई अथर्व की सहायता से विद्यालय मे नामाकन कराया था और अब वह परीक्षा की तैयारी कर रही है। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 13

दो दिन कान्ता मौसी के घर रहकर गरिमा अपने पिता के घर वापिस लौट आयी । जब वह घर कर आयी, आशुतोष उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। आशुतोष का कहना था कि उसकी माँ ने वह समय, जब गरिमा की परीक्षाएँ चल रही थी, अपनी बहू तथा पोते की याद मे तड़पते हुए व्यतीत किया था। इसलिए अब एक दिन भी व्यर्थ गँवाये बिना गरिमा को तुरन्त अपनी सास के घर पहुँच जाना चाहिए। आशुतोष के आग्रह से गरिमा अगले ही दिन ससुराल पहुँच गयी। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 14

प्रातः आठ बजे थे। अक्षय अपने ऑफिस जाने के लिए तैयार हो चुके थे और नाश्ते की प्लेट को खाली करने का प्रयास कर रहे थे। अचानक उनकी दृष्टि कमरे के अन्दर से निकलते हुए अपने बेटे अश पर पड़ी, जो मुँह से सीटी बजाते हुए किसी फिल्मी गीत की धुन गा रहा था। उस धुन को सुनते ही अक्षय का पारा चढ़ गया, क्योकि उस गीत से, गीत की धुन से और धुन को गाते समय अश के रग—ढग आदि से ऐसा प्रतीत होता था कि उसमे के व्यक्तित्व मे गम्भीरता नाम मात्र भी विद्यमान नही है। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 15

प्रभा की एम. ए. की शिक्षा सम्पन्न हो चुकी थी, किन्तु सिविल सर्विस की परीक्षा मे वह अभी तक सफलता प्राप्त नही कर पायी थी। यद्यपि वह लिखित परीक्षा मे दो बार उत्तीर्ण होकर साक्षात्कार के चरण तक पहुँच चुकी थी, परन्तु दोनो बार साक्षात्कार मे अनुत्तीर्ण हो गयी। दो बार साक्षात्कार मे अनुत्तीर्ण होकर भी प्रभा की लगन तथा साहस मे कमी नही आयी थी। अपनी असफलता को वह सफलता तक पहुँचने की सीढ़ी बताती थी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयास कर रही थी। उसके प्रयास मे सहयोग और प्रोत्साहन देने के लिए उसका परिवार प्रतिक्षण उसके मनोबल को बढ़ाता था। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 16

गाँव के कुछ लोग, जो स्त्रियो की शिक्षा तथा उनके अधिकारो के प्रति नकारात्मक सोच रखते थे, श्रुति उनकी की किरकिरी बन चुकी थी। इसीलिए वे कई बार श्रुति के कार्य—व्यवहारो की शिकायत उसके पिता तथा भाइयो से कर चुके थे कि वह गाँव—समाज का वातावरण बिगाड़ रही है, उसे देख—देखकर गाँव की अन्य लड़कियाँ भी नियत्रणहीन होकर स्वेच्छाचारी होती जा रही है। परन्तु, श्रुति को निरन्तर उसकी माँ का समर्थन आर्शीवाद के रूप मे प्राप्त हो रहा था, इसलिए उसके भाई निशान्त और प्रशान्त उसके किसी भी कार्य—व्यवहार पर प्रतिबन्ध नही लगा सके थे, जबकि बड़ा भाई आशुतोष तटस्थ था। वह न तो श्रुति की शिक्षा के विरुद्ध अपने भाईयो की दमनकारी नीतियो का समर्थन करता था, न ही किसी भी स्त्री की स्वेच्छाचारिता के पक्ष मे था। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 17

अपनी माँ से आशीर्वाद लेकर श्रुति अपनी सखी प्रभा और उसके भाई अथर्व के साथ गाँव छोड़कर शहर के चल पड़ी। भाई से डरकर रहना अब उसकी प्रकृति नही रह गयी थी। अपने रूढ़िवादी समाज की स्त्रियो मे चेतना जाग्रत करने के उसके सकल्प के लिए भी उसका भयमुक्त रहना आवश्यक था। अपने सकल्प का स्मरण करते हुए उसने निर्भयतापूर्वक गरिमा तथा अपनी माँ से कहा था— ...Read More

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दहलीज़ के पार - 18

घर का काम पूरा करके पुष्पा समाचार—पत्र लेकर बैठ गयी। आज जब से वह सोकर उठी थी, उसका मन था। उसको अकेले समय काटना भारी पड़ रहा था। एक बार उसने सोचा, पड़ोसिन के पास जा बैठे, लेकिन फिर मन मे दूसरा विचार आया — जीवन तो अकेले ही जीना है ! रोज—रोज किसी के घर जाकर बैठना ठीक नही है ! सोचती हूँ कल गाँव हो आऊँ ! गरिमा से मिलूँगी, तो मन की उदासी कुछ कम हो जायेगी ! एक वही तो है, जो मेरे दुख—दर्द को समझती है ! ...Read More

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दहलीज़ के पार - 19

अथर्व के मोबाइल पर सम्पर्क करके श्रुति से बाते करने के पश्चात्‌ गरिमा ने अपनी सास को उसकी कुश्लता जानकारी दी। चूँकि उसको श्रुति के द्वारा प्रभा की माँ के स्वर्गवास का पता चल चुका था, इसलिए अपनी सास को प्रभा की माँ के देहान्त की सूचना देते हुए गरिमा ने उनके समक्ष प्रभा और अथर्व के घर जाकर सवेदना प्रकट करने की अपनी इच्छा भी व्यक्त की। गरिमा का निवेदन उसकी सास ने सहज स्वीकार कर लिया और उसको प्रभा के घर जाने की आज्ञा प्रदान कर दी। गरिमा की सास भी चाहती थी कि जो परिवार उनकी बेटी को यथा—आवश्यक प्रेम और सहारा देता रहा है, उस परिवार को वे अपनी सामर्थ्यानुसार कुछ सहारा दे सके। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 20

चिकी जिस गाँव मे रहती थी, वह गाँव वैसे तो दक्षिणी दिल्ली की सीमा के अन्दर आता था, किन्तु की दृष्टि से वह स्थान अभी तक गाँव से थोड़ा ही बेहतर कहा जा सकता था। चूँकि पुष्पा वहाँ पर पहले भी जा चुकी थी, इसलिए ‘ महिला जागरूकता अभियान ' की टीम को चिकी का घर ढूँढने के लिए अधिक कष्ट नही झेलना पड़ा। जिस समय टीम वहाँ पर पहुँची थी, दरवाजे के बाहर चिकी की ननद कुछ महिलाओ से बाते कर रही थी। उसने पुष्पा को देखते ही पहचान लिया और औपचारिक अभिवादन करके स्वागत—स्वरूप पुष्पा की टीम को घर मे आने का सकेत किया। सकेत पाकर पूरी उसके पीछे—पीछे तुरन्त ही घर के अन्दर पहुँच गयी। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 21

अक्टूबर के प्रथम सप्ताह मे ‘दहलीज के पार' साप्ताहिक—पत्र प्रकाशित हो गया। पत्र की कुछ प्रतियाँ डाक के द्वारा के पास पहुँचायी गयी और गाँव साक्षर स्त्रियो को निःशुल्क उपलब्ध कराने का दायित्व भी गरिमा को सौपा गया। पत्र मे ‘नारी जागरण स्वर' शीर्षक से श्रुति द्वारा रचित ओजपूर्ण लम्बी कविता थी, जो इतनी लोकप्रिय हो गयी कि हर ग्रामीण स्त्री, चाहे वह निरक्षर थी या साक्षर, उस कविता को गाकर आनन्द लेने लगी। गरिमा की लिखी हुई ‘अनकही' नामक प्रेरणादायी कहानी मनोरजक थी और प्रभा के विचार—प्रधान लेख नारी—मन को आन्दोलित करने की सामर्थ्य से परिपूर्ण थे। ...Read More

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दहलीज़ के पार - 22

अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ‘महिला जागरूकता अभियान की टीम ने जिस क्षेत्र मे ‘महिला स्वाभिमान केद्र' किया था, उस क्षेत्र मे टीम की आशानुरूप महिलाएँ अपनी भागीदारी दर्ज कराने लगी थी। दो वर्ष तक निरन्तर कठोर परिश्रम करने के बाद गरिमा की टीम ने अपने लक्ष्य तक पहुँचने मे अशतः सफलता प्राप्त कर ली। उस क्षेत्र की स्त्रियाँ अपनी शक्तियो का सदुपयोग करती हुई समाज के रूढ़ प्रतिबन्धो को तोड़कर अब उन्नति के पथ पर अग्रसर होने लगी थी। ...Read More