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अखबार वाला लड़का

अखबार वाला लड़का

दिसम्बर महीने के दूसरे सप्ताह में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी, ऐसी कम्प्कपाती सर्दी में नीरज सुबह सुबह निकल जाता था, पूरे मोहल्ले के अखबार लेता और साइकल से गलियों के चक्कर लगाते हुए ही सबके अखबार उनके घरों में फेंकता।

एक पाँच मंज़िले घर के सामने नीरज ने साइकल रोककर अखबार निकालकर लपेटा और उस पर रबर का छल्ला चढ़ा कर फेंक दिया पाँचवी मंजिल की बाल्कनी में, अखबार जाकर सीधा उसी जगह पर गिरा जहां पर बाल्कनी खाली थी।

शीना सुबह सुबह स्कूल जाते हुए यह सब देख रही थी और उसके मुंह से अचानक ही निकल गया, “क्या सटीक निशाना है।”

नीरज ने सुना तो उसने शीना को शुक्रिया बोल दिया तभी शीना बोली, “क्या तुम्हें सर्दी नहीं लगती, इतनी सुबह सुबह कैसे निकलते हो रज़ाई से?”

“आप भी तो इतनी सर्दी में सुबह सुबह स्कूल जा रही हैं क्या आपको ठंड नहीं लगती?” नीरज ने प्र्त्युतर में पूछ लिया।

“तू स्कूल नहीं जाता क्या?” शीना ने पूछा

“हाँ जाता हूँ, लेकिन मैं शाम की पाली में जाता हूँ, तुम्हारे स्कूल में ही तो पढ़ता हूँ।” नीरज ने बताया।

“अच्छा मैंने तो कभी नहीं देखा” शीना ने सवालिया अंदाज में कहा, तब नीरज ने कहा, “लेकिन मैं तो तुम्हें रोज़ देखता हूँ, सुबह यहाँ गली में और दोपहर में स्कूल के बाहर जब छुट्टी के समय तुम सब लड़कियां स्कूल से बाहर निकलती हो और हम स्कूल के बाहर खड़े रहकर स्कूल खाली होने की प्रतीक्षा करते हैं।”

“प्रतीक्षा किसकी? लड़कियों की? हाँ तुम सब लड़के यही तो करते हो तभी तो पढ़ाई नहीं कर पाते।” शीना ने यह बात थोड़े मज़ाकिया अंदाज़ में कही।

तब तक नीरज ने अपने सिर से मफ़लर और नाक मुंह पर से मास्क हटा लिया, नीरज का बाल सुलभ चेहरा शीना के सामने था, शीना ने देखा और मुस्कुरा कर स्कूल की तरफ चली गयी।

सर्दी से बचने के लिए नीरज सुबह उठकर पूरे शरीर पर पर्याप्त कपड़े पहन लेता और सिर पर मफ़लर लपेट कर, नाक मुंह पर मास्क लगा लेता जिससे उसका चेहरा तो दिखता ही नहीं था।

अखबार बांटने के बाद नीरज ने थोड़ी देर माँ की सहायता की, नीरज के पिता के गुजर जाने के बाद नीरज की माँ पटरी पर सब्जी की दुकान लगाती थी जिसमे थोड़ी देर के लिए नीरज भी सहायता कर देता था।

गोबिन्द पुरी में एक छोटे से घर में दोनों माँ बेटे रह रहे थे, जब सरकार ने प्रगति मैदान के पास वाली झुग्गियाँ तोड़ी तो उन लोगों को 25-25 गज का प्लॉट गोबिन्द पुरी में दे दिया था, एक झुग्गी नीरज के पिता की भी थी अतः नीरज के पिता को भी 25 गज का एक प्लॉट मिल गया था, उसमे ही नीरज के पिता ने आखिरी सांस ली थी, नीरज की माँ के लिए तो वह छोटा सा मकान ही पूरी दुनिया थी उसमे ही उन दोनों की अच्छी बुरी सभी यादें जुड़ी थीं।

नीरज का जन्म भी इसी मकान में हुआ था, देखते देखते नीरज इतना बड़ा हो गया कि आज दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था।

माँ की सब्जी की दुकान लगवा कर नीरज घर पर आ गया और स्कूल जाने की तैयारी करने लगा। माँ खाना बना कर रख गयी थी, नीरज को कह दिया था, “बेटा! आज तेरी पसंद के बेसन के गट्टे बनाए हैं, खाना जरूर खा लेना, भूखे पेट ही स्कूल मत चले जाना।”

आज नीरज का मन ना तो पढ़ाई में था और ना ही कुछ खाने में, बस उसको तो जल्दी थी स्कूल पहुँचने की। वह बार बार घड़ी देखता और सोचता, “बारह कब बजेंगे?” लेकिन आज तो समय जैसे बहुत ही धीमी गति से चल रहा था।

नीरज ने अपनी स्कूल ड्रेस सही से प्रैस की और पहन कर बार बार खुद को आईने में निहारता, बाल संवारता और फिर घड़ी की तरफ देखता। पौने बारह बजे ही नीरज ने अपना बैग उठाया, घर बंद करके चाबी माँ को दे आया और जाकर स्कूल के बाहर खड़ा हो गया।

छुट्टी होने पर सभी लड़कियां स्कूल से बाहर आने लगी, काफी देर तक देखा लेकिन शीना बाहर नहीं आई, सभी लड़के स्कूल के अंदर जाने लगे लेकिन नीरज बाहर ही खड़ा रहा। नीरज को चिंता हो रही थी, ‘शीना क्यों नहीं आई या हो सकता है वह लड़कियों के झुंड में निकल गयी और मैं देख ही नहीं पाया।’

नीरज के मन में इस तरह के कई सवाल उठ रहे थे जिससे मायूसी उसके चेहरे पर साफ झलकने लगी, तभी शीना अकेले अपना बैग उठाए स्कूल से बाहर आती दिखी। आज शीना जान बूझकर लड़कियों के साथ स्कूल से नहीं निकली थी, यही सोच कर कि भीड़ में एक दूसरे को नहीं देख पाये तो?

शीना को देखते ही नीरज का चेहरा गुलाब की तरह खिल गया और उसके होठों पर एक विजयी मुस्कान फैल गयी तभी शीना उसके ठीक बराबर से मुसकुराती हुई निकली, शीना ने हाय कहा तो नीरज ने हाय में जवाब दिया और फिर घर की तरफ दौड़ गयी। नीरज भी स्कूल में अंदर चला गया, आज वह बहुत खुश था।

शीना और नीरज का यह पहला प्यार था, अब उन दोनों को यह एहसास होने लगा कि प्यार क्या होता है, क्यों होता है और कब होता है। जब तक एक दूसरे को एक झलक देख ना लें तब तक चैन नहीं आता था, हर समय एक दूसरे की यादों में खोये रहना और जब मिलते तो कुछ ना कहना बस देखते रहना।

परीक्षा हुई तो दोनों ने प्रथम श्रेणी में दसवीं बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण की और ऐसे पढ़ते हुए एक दिन दोनों ने पी एच डी भी कर ली। नीरज ने भूगोल में व शीना ने समाज कार्य में पी एच डी की तो दोनों को वहीं विश्वविद्यालय में लेक्चेरर रख लिया।

शीना व नीरज का प्यार जग जाहिर था अतः सभी साथियों ने अब उन दोनों को विवाह करके घर बसाने की सलाह दी और साथियों की यह सलाह उन्होने मान भी ली।

दोनों ने अपने अपने घर में बात की, नीरज की माँ तो सहमत हो गयी लेकिन शीना के घर वाले तो इस बात को सुनते ही आग बबूला हो गए।

शीना के पिता कहने लगे, “मैं कभी भी एक काफिर से तेरी शादी नहीं होने दूंगा।” इस बात को लेकर शीना व उसके पिता में अच्छी ख़ासी बहस हो गयी।

शीना – वो काफिर कैसे हुआ?

पिता – जो इस्लाम को नहीं मानता वह काफिर है।

शीना – लेकिन यह तो जबर्दस्ती है, कोई भी अपने अच्छे भले हिन्दू धर्म को छोड़ कर इस्लाम क्यों मानेगा?

पिता – कुछ भी समझ लो, मैं बुतपरस्ती करने वालों के यहाँ अपनी बेटी नहीं ब्याहुंगा।

शीना तभी अंदर जाकर अपने दादा दादी का एक संयुक्त फोटो उठा लायी और अपने पिता से कहा है, “पिताजी! आप इस फोटो पर थूकिए।”

पिता – नहीं यह मेरे माँ बाप का फोटो है, मैं इस पर कैसे थूक सकता हूँ?

शीना – यह फोटो ही तो है, इस पर थूकने में क्या आपत्ति है?

पिता – मैं अपने माँ बाप से प्यार करता हूँ, और उनका सम्मान करता हूँ।

शीना – यही बात तो बुत में भी है, यह उन लोगों का प्यार, सम्मान और आस्था ही है जो एक पत्थर को भी भगवान बना देता है।

पिता – कुछ भी हो, इस्लाम इस बात की इजाजत नहीं देता की हम काफिरों से किसी तरह का रिश्ता रखें। बल्कि इस्लाम कहता है, “काफिर जहां भी मिले उसे मार डालो तुम्हें शबाब मिलेगा।”

शीना – अगर इस्लाम इस तरह का मज़हब है तो मैं इस धर्म को छोड़ कर हिन्दू धर्म अपना लूँगी।

अगले दिन शीना नीरज को सारी बात बताती है और मंदिर चलने के लिए कहती है। नीरज शीना को लेकर मंदिर जाता है और पुजारी जी को सारी बात बताता है। पुजारी शीना को मुसलमान से हिन्दू बनाने के लिए मना कर देता है तब शीना की पुजारी से बहस हो जाती है।

पुजारी – नहीं, मैं एक मुसलिम लड़की को हिन्दू नहीं बना सकता, कैसे बनाऊँ हिन्दू धर्म में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है।

शीना – पुजारी जी, हिंदुओं में तो स्त्री का धर्म और जाति वहीं मानी जाती है जो उसके पति की हो फिर आप मुझे हिन्दू क्यो नहीं बना सकते।

पुजारी – तो तुम दोनों पति पत्नी कहाँ हो?

शीना – तभी तो मैं विनती कर रही हूँ कि हमारी शादी करवा दीजिये।

शीना के पिता कुछ कट्टर पंथी मौलवियों, मीडिया और पुलिस के साथ मंदिर पहुँच जाते हैं और नीरज को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर देते हैं। सारी मीडिया नीरज से चीख चीख कर पूछती है, क्या तुम धर्मांतरण जैसे घिनौने कार्य करते हो? तुम्हें किसने उकसाया था इस मासूम को धरम बदलने के लिए तैयार करने को?

शीना को कट्टर पंथी मौलवी पकड़ कर अपने साथ ले गए, एक कमरे में बंद कर दिया किसी से भी मिलने नहीं दिया, वह चीखती चिल्लाती रही लेकिन उसकी आवाज मस्जिद की चारदीवारी में दब कर रह गयी।

धर्मांतरण के नाम पर नीरज को मोहरा बना कर हिंदुओं और हिंदुवादी संघटनों को बदनाम किया जाने लगा, टी वी पर शोर मचा, जुलूस निकले, धरने प्रदर्शन हुए, डिबेट हुई और सब में हिंदुओं को काफिर कह कर बुरी तरह कोसा गया। किसी तरह नीरज की जमानत हुई, सुप्रीम कोर्ट में केस डाला और लड़की को उपस्थित करने के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिये।

शीना को बुरी तरह डराया धमकाया गया था, सभी कठमुल्ले उसे घेर कर सुप्रीम कोर्ट ले गए लेकिन मौका मिलते ही शीना ने जज साहब और पूरी बेंच के सामने कह दिया, “मी लॉर्ड, मैं इस्लाम छोड़ कर हिन्दू बनना चाहती हूँ और नीरज के साथ शादी करके अपना घर बसाना चाहती हूँ। इसके लिए मुझ पर कोई दबाव नहीं है, मैं यह सब अपनी मर्जी से कर रही हूँ, मैं एक बालिग पढ़ी-लिखी लड़की हूँ, अपना भला बुरा स्वयं जानती हूँ, कोई भी मुझ पर दबाव डाल कर मेरा फैसला नहीं बदलवा सकता, अतः मुझे मेरा धर्म बदलने और नीरज के साथ मुझे हिन्दू रीति रिवाज से शादी करने की अनुमति दी जाए। शीना ने यह भी कहा कि मुझे और नीरज को जान का खतरा भी है अतः दिल्ली पुलिस को आदेश दें कि वे हमारी जान माल की रक्षा भी करे।

सारी बातें सुनने के बाद पूरी बेंच ने एकमत होकर नीरज और शीना के हक में फैसला सुनाया एवं शीना के घर वालों को सख्त हिदायत दे कर छोड़ा, दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि इन दो प्रेम करने वालों की जान माल की रक्षा करने में जरा भी लापरवाही न हो।