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मास्को का सच

मास्को का सच

“ललिता! सो गयी क्या?” “नहीं तो, बस ऐसे ही आपकी प्रतीक्षा में बैठे बैठे आँख लग गयी थी।”

“हाँ, रात भी काफी हो गयी है, बच्चे भी थक कर सो गए हैं।”

“आज आप कहाँ रह गए थे, कभी भी इतनी देर से नहीं आते?”

“ललिता, मैं आज मास्को में फंस गया था, वो मुझे यहाँ आने ही नहीं दे रहे थे।”

“हाँ मैंने भी सुना था कि तुमने किसी ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये हैं जो हमारे देश के विरुद्ध है........

क्या ऐसा समझौता करते समय आपको उन सैनिकों की याद नहीं आई जो अपनी छाती पर बम बांध कर टैंक के नीचे लेट गए थे क्योंकि पाकिस्तान के पैटन टैंक को तोड़ने के लिए उनके पास कोई और चारा नहीं था........

उन सैनिकों के बलिदान के कारण ही हमारी सेना पाकिस्तान के अजेय पैटन टैंकों को तोड़ कर जीत पायी थी........

हमारे सैनिकों ने लाहौर तक कब्जा कर लिया था, फिर आपने वह सारी जमीन क्यों छोड़ दी, क्यों किया ऐसा समझौता........

देखिये आज पूरा देश आपसे नाराज है, अब आप क्या जवाब देंगे अपने देश को........

इस देश को, इस देश के जवानों को, इस देश के किसानों को, और सबको आप गर्व था, फिर भी आपने उन सबका विश्वास तोड़ दिया........

आपने क्यों किया ऐसा, क्यों तोड़ा पूरे देश का विश्वास........

अब सब यही कह रहे हैं कि इस तरह के समझौते पर हस्ताक्षर करके आपने देश के साथ, सैनिकों के साथ, युद्ध मे खुशी खुशी अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के साथ विश्वासघात किया है।”

“नहीं ललिता नहीं! मैंने किसी के साथ भी विश्वासघात नहीं किया है, और क्या तुम्हें लगता है कि मैं अपने देश के साथ विश्वासघात कर सकता हूँ। मैं यही बात पूरे देश को बताना चाहता था लेकिन वे लोग मुझे मास्को से आने ही नहीं दे रहे थे........

मैं बड़ी मुश्किल से छुप कर वहाँ से भाग निकला और तुम्हारे पास आया हूँ जिससे तुम्हें पूरी सच्चाई बता सकूँ........

तुम तो इस पर विश्वास करोगी ना?”

“हाँ, मुझे तो हमेशा आप पर भरोसा रहा है अभी भी है लेकिन लोग न जाने क्या क्या बातें कर रहे हैं।”

“मैं इसीलिए आया हूँ कि मैं तुमको मास्को का पूरा सच बता सकूँ........

हमारी सेना ने बड़ी बहादुरी से यह जंग लड़ी थी, पाकिस्तान के पास अमेरिका के दिये हुए पैटन टैंक थे, अमेरिका को पैटन टैंक पर पूरा घमंड था कि इसको कोई तोड़ नहीं सकेगा और न ही परास्त कर सकेगा, इस भरोसे पर ही पाकिस्तान भी अपने घमंड में चूर था और उसने सोचा था कि उसके पैटन टैंक भारत भूमि को रौंदते हुए दिल्ली तक पहुँच जाएंगे, लेकिन धन्य है हमारी सेना, धन्य हैं हैं वो सैनिक जिन्होने अपने प्राणी की आहुति दे दी लेकिन अपने देश पर जरा भी खरोंच नहीं आने दी।

हमारी सेना, हमारे सैनिकों ने पाकिस्तान और अमेरिका दोनों का घमंड चूर चूर कर दिया और उस पैटन टैंक के पर्खच्चे इस तरह उड़ा दिये जैसे वो कोई खिलौना हो........

मेरे ऊपर दबाव बनाया गया कि मैं अपनी सेना वापस बुला लूँ लेकिन मैंने साफ कह दिया कि पाकिस्तान को भी अपनी सेना कश्मीर से वापस बुलानी होगी........

लेकिन कोई भी पाकिस्तान पर दबाव नहीं बना रहा था सिर्फ मुझसे सेना पीछे हटाने के लिए कह रहे थे……..

जब मैंने ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तो सबने मेरे से अलग होकर न जाने क्या मंत्रणा की........

फिर उन्होने मुझे बड़ी शांति से समझौते पर रात भर विचार करने को कहा और मैं वहाँ से अपने कमरे में चला आया........

मैंने तो कोई और विचार करना ही नहीं था, मेरा तो पक्का निर्णय था कि पाकिस्तान हमारे कश्मीर को छोड़े तो हम उसका लाहौर छोड़ देंगे।

मैंने किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए मैं तो बहुत कोशिशों के बावजूद भी अपने बिस्तर से उठ ही नहीं पा रहा था अतः दूसरे दिन बैठक में पहुँच ही नहीं सका........”

“लेकिन सम्झौता तो उसी दिन हो गया था, यहाँ पर समाचार में भी उसी दिन समझौते के बारे में प्रसारित किया गया था, पूरा देश आपके द्वारा किए गए इस समझौते से हतप्रभ था........

आपने फोन पर बात भी की थी और मुझे फोन पर कहा था कि मैंने देश के साथ विश्वासघात कर दिया उसके बाद समाचार आया था कि आप इस विश्वासघात के दुख को सहन नहीं कर पाये और हृदयघात होने से आपका निधन हो गया।”

“ललिता मुझ पर विश्वास करो, मैंने ऐसे किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए और न ही मैंने तुमसे या किसी और से फोन पर बात की, मैं तो गहरी नींद में सो गया था........अगर ऐसा हुआ है तो किसी ने समझौते पर मेरे जाली हस्ताक्षर कर दिये और मेरी आवाज मे किसी और ने ही तुमसे फोन पर बात की है........लेकिन जिसने भी मेरे और मेरे देश के साथ ऐसा विश्वासघात किया है वह एक चांडाल ही हो सकता है और देखना........भगवान भोलेनाथ उस चांडाल को सजा अवश्य देंगे।”

इतना कहकर लाल बहादुर शास्त्री जाने लगे तो ललिता शास्त्री जी उनको रोकने के लिए उठीं और आवाज लगाने लगी, “रुक जाओ, मत जाओ, आज तो आपने खाना भी नहीं खाया है, बच्चे भी आपको याद करते करते सो गए हैं।”

ललिता शास्त्री जी की नींद खुल गयी थी फिर भी वह आवाज लगाए जा रहीं थीं और ऐसे खड़ी थीं जैसे किसी को रोक रही हो।

तभी सुनील भी जाग गया और माँ को ऐसे बड़बड़ाते देखकर पूछने लगा, “क्या हुआ माँ?” और एक गिलास पानी लाकर माँ को दिया।

ललिता ने पानी पिया, बैठ कर एक गहरी सांस ली और फिर सारी बात सुनील को बताई.......

“सुनील मुझे लगता है कि तुम्हारे पिताजी के साथ कोई गहरा षड्यंत्र हुआ है।”

“हाँ माँ, लगता तो मुझे भी ऐसा ही है लेकिन हम अब क्या कर सकते हैं, पिताजी का तो पोस्ट मार्टम भी नहीं हुआ जो सच्चाई का पता लग सकता, अब तक तो षड्यंत्रकारियों ने सारे सबूत भी मिटा दिये होंगे, अगर हम इसकी जांच की मांग करते हैं तो हो सकता है षड्यंत्रकारी सरकार में ही बैठे हों जो निष्पक्ष जांच ही ना होने दें।”

कुछ दिन बाद मास्को में लगातार कई भयंकर भूकंप आए जिसके बारे में कहा गया था कि शास्त्री जी की आत्मा ने मास्को में भयंकर तबाही मचाई थी। रूस की सरकार ने भारत से पंडितों को बुलाकर शास्त्री जी की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करवाए थे तब कहीं जाकर मास्को की तबाही रुक पायी थी।

एक कहावत है कि “अकाल मृत्यु वह मरे जो काम करे चांडाल का” और संजय गांधी, इन्दिरा गांधी व राजीव गांधी भी अकाल मृत्यु को ही प्राप्त हुए।

शास्त्री जी हमारे देश के ऐसे प्रधान मंत्री हुए जो अमेरिका की धमकियों से डरे नहीं बल्कि पूरे दृड़ विश्वास के साथ अड़े रहे। पूरा देश जिस व्यक्ति पर गर्व करता था वह शास्त्री जी ही थे........

अगर शास्त्री जी ने लोगों से एक दिन का व्रत करने को कहा तो पूरा देश सोमवार का व्रत करने लगा.......

देश को पूरा विश्वास था कि अगर शास्त्री जी कुछ दिन इस देश के प्रधान मंत्री रहे तो शायद देश को महाशक्ति बना देंगे और यह बात हमारे ही देश के कुछ नेताओं को हजम नहो हो रही थी........

देश के उन महत्वाकांक्षी नेताओं ने यह नही सोचा था कि वह अपनी महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए देश का भविष्य दांव पर लगा रहे हैं।

यही हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है और हो सकता है यही मास्को का वह सच था जो देश से हमेशा छुपाया गया।