Harassed by advertising books and stories free download online pdf in Hindi

विज्ञापन से प्रताड़ित

“विज्ञापन से प्रताड़ित”

आर 0 के 0 लाल

संजीव अपनी पत्नी के साथ हर्ष के घर मिलने गए थे। उन्हें आश्चर्य हुआ जब हर्ष की टी वी ऑफ मिली। उन्होंने पूंछा – “अभी हाल में ही तो अपने यह बड़ी इंच की टी वी ली थी। क्या हो गया इसे?” हर्ष ने कहा – “अरे कुछ तो नहीं हुआ। अच्छा खासा तो चल रहा है।“

संजीव ने कहा - "फिर क्यों बंद है। हमने तो सभी घरों में देखा है कि टी वी कभी ऑफ ही नहीं की जाती। लोग तो बाहर भी जाते हैं तो उसे चला कर जाते हैं ताकि चोर समझे कि घर में कोई है।" यह सुनकर सब हंसने लगे।

हर्ष बोले - "अरे भाई हम तो बहुत कम टीवी चलाते हैं। पहले हमने केबल लगवा रखा था। ढाई सौ रुपए हर महीने देता था। फिर डिश टी वी कनेक्शन लगवा लिया। डिश टीवी पर डायरेक्ट-टू-होम (डीटीएच), पे पर वियू आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं जो डिजिटल संपीड़न तकनीक की मदद से उपग्रह के द्वारा अपनी सेवाएं संचारित करती है। वर्तमान में डिश टीवी के पास सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चैनल्स हैं| मैंने चौबीस सौ रुपए में फैमिली पैक एक साल के लिए लिया है। सोचा था कि उसके माध्यम से खूब सीरियल और फिल्म देखेंगे, पुराने गानों का आनंद लेंगे, मगर विभिन्न टेलीविजन चैनल अपने कार्यक्रमों के ब्रेक स्लॉट में विज्ञापन दिखाते हैं। उसमें इतने विज्ञापन आते हैं कि मुझे तो लगता है कि मुझे माइग्रेन हो गया है।"

हर्ष की पत्नी शालू ने कहा- " दिन भर इतना काम रहता है कि टी वी देखने की फुरसत ही नहीं मिलती। केवल शाम को एक दो सीरियल देखती हूं। पर उनकी कोई कहानी बढ़ती ही नहीं। पहले दिखाते हैं कि अब तक क्या हुआ, जब कि हमने उसे देखा होता है, फिर 7 या 8 मिनट कहानी आती है। उसके बाद ब्रेक आता है, स्क्रीन पर दिखाया जाता है 'आगे देखिए' । इसके बाद छ: मिनट तक विज्ञापन देखिए। एक बार नहीं बार बार देखो। हम तो मनाते रहते हैं कि जल्दी विज्ञापन खत्म हो। फिर तीन मिनट सीरियल की कहानी और पुन: वही क्रम। अंत में दो मिनट का सीरियल। इस प्रकार कुल तेरह या चौदह मिनट सीरियल आता है उसमें भी कहानी बारह मिनट । विज्ञापन इतना उबाऊ रहता है और इतनी बार आता है कि अगला सीरियल देखने की हिम्मत ही नहीं होती। मैंने तो पढ़ा था कि विज्ञापन द्वारा उत्पादक एवं उपभोक्ताओं के मघ्य सम्बध स्थापित किया जाता है। विज्ञापन के द्वारा आम जनता को यह पता चलता है कि कौन-सी वस्तु बाजार में नई आयी है। मगर यह जानकारी जबरदस्ती क्यों दी जाती है समझ में नहीं आता।"

संजीव ने कहा- " लेकिन आधुनिक युग में विज्ञापन मानव जीवन के लिए अनिवार्य हो चुका है। इससे उत्पादक उपभोक्ताओं से सम्पर्क स्थापित करते हैं तथा उपभोक्ता सुविधानुसार अपनी आवश्यकताओं की वस्तुएं क्रय करते हैं। अब रेडियो, चलचित्र और दूरदर्शन हमारी दैनिक आवश्यकताओं के विज्ञापन के साधन बन गए हैं।"

संजीव की पत्नी राधा ने कहा- " मैं बहन शालू का समर्थन करती हूं। मैंने एक दिन साढ़े छ: बजे टी वी ऑन किया तथा एक मूवीज़ चैनल लगाया। उस पर एक फिल्म पहले से चल रही थी। तीन मिनट देखने के बाद ही ब्रेक हो गया। फिर विज्ञापन और फिल्म लगभग चौदह मिनट तक आयी। 6.47 बजे से फिर विज्ञापन आने लगा। मुझे याद है कि ब्रिटानिया, एक्सो, नेटवेडस. काम, मैक्सएक्स, विदिशा डिटर्जेंट पाउडर, क्रिस्प, गो डैडी, डेस्टिनी , हीरो, निहार शांति आंवला हेयर ऑयल, हर घूंट रस भरा, डेटॉल, कोलगेट, मोनिका, सेंटर फ्रेश, कमप्लान, व्हिस्पर, एंटी डैंड्रफ शैंपू आदि के विज्ञापन सात मिनट तक चलता रहे। मैंने सोचा शायद विज्ञापन खत्म ही नहीं होगा। इसलिए एक मिनट बाद एक न्यूज़ चैनल लगा दिया। उस पर भी विज्ञापन ही आ रहा था। बोरोलीन, अमेज़न, कार, सिग्नेचर ग्लोबल, ओसवाल, आइस कूल, राजश्री, लीफार्ड और न जाने क्या क्या। 6.58 बजे हेडलाइन की बड़ी खबरे। मैंने नोट किया कि बारह ‌तेरह मिनट तक समाचार फिर उसके बाद 7 .18 बजे तक विज्ञापन। मैंने बदलकर दूसरा चैनल लगा दिया। उस पर भी फॉर्चून, अमेंजन,क्लब महिंद्रा आदि का विज्ञापन ही चल रहा था। इतना सब देख कर ही मै थक गई । मैंने टी वी ही बंद कर दिया। एक एक विज्ञापन इतनी बार दिखाया जाता है जैसे मैं अपने पप्पू को ए बी सी डी रटाती हूं । चैनल वालों को समझ में नहीं आता कि इस प्रकार के विज्ञापन कभी-कभी जनसाधरण की उन्नति में बाधा उत्पन्न करता है।"

"यार मुझे समझ में नहीं आता कि यह टीवी चैनल वाले इतना विज्ञापन क्यों दिखाते हैं? प्रोग्राम का सारा मजा किरकिरा कर देते हैं। हम लोगों को इतने विज्ञापन की क्या जरूरत है? हमने पैसे देकर चैनल खरीदे हैं और उसके प्रोग्राम देखना चाहते हैं तो फिर मेरे पैसे को क्यों इस तरह से बर्बाद करते हैं? पैसा हमसे लेंगे,विज्ञापनकर्ता से भी लेंगे और फिर हमें जबरदस्ती दिखाएंगे।" हर्ष ने कहा।

सबने मना कि जहां तक सरकारी सुविधाओं एवं अन्य सामाजिक कार्यों से संबंधित विज्ञापन है, वह तो ठीक है। वे हमें जानकारी देते हैं। उन्हें दिन में एक दफे भी अगर हम देख लें तो हमारे दिमाग में उसकी याद बनी रहती है। मगर एक ही विज्ञापन पचासों चैनलों पर देखते देखते तो ऊब जाते हैं। कन्फ्यूज़न अलग से होता है ।

हर्ष के बेटे ने कहा - "मुझे याद है कि पहले टेलीफोन के मोबाइल पर बहुत ढेर सारे विज्ञापन आते थे और हम लोग “डी एन डी” यानी डू नॉट डिस्टर्ब लगाकर उनसे बच जाते थे। इसी तरह की व्यवस्था इन टीवी चैनलों के लिए क्यों नहीं हो सकती, यह समझ में नहीं आता। हमने सुना था अब दिन में केवल सीमित समय का विज्ञापन होगा। पता नहीं इस बारे में क्या हुआ।"

संजीव का विचार था कि टीवी में विज्ञापन के लिए एक अलग ही चैनल शुरू किया जाए जिसमें सब तरह के विज्ञापन हों। जिस व्यक्ति को कोई विज्ञापन देखना हो वह उस चैनल को चला कर किसी उत्पाद एवं सेवा के बारे में पूरी जानकारी ले सके।"

राधा ने अपने मन कि बात रखी कि तमाम विज्ञापन ऐसे होते हैं जिन्हें हम बच्चों के सामने देखना पसंद नहीं करते लेकिन हम मजबूर होते हैं क्योंकि वह फिल्म एवं सीरियल के बीच में ही आते रहते हैं, इसलिए विज्ञापनों का प्रकाशन उपभोक्ता के हित में ही किया जाना चाहिए। फिल्म अभिनेताओं और सुन्दर अभिनेत्रियों को लेकर बनाये गए विज्ञापन से हमारे बच्चे मोहित हो कर अनेकों तरह के फास्ट फूड खाते हैं और अपना स्वास्थ्य बिगाड़ लेते हैं। स्टंट वाले विज्ञापन की नक़ल करने से कुछ युवाओं की मृत्यु भी हो चुकी है। इतना ही नहीं लड़कियों के छोटे छोटे अंडरवेअर्स, ब्रा,पैंटी आदि के विज्ञापन छोटे बच्चो की मानसिकता पर उत्तेजना का विपरीत असर डालते हैं। वे अक्सर उसी उत्पाद को खरीदने की जिद करने लगते है जिनको उन्होंने विज्ञापन में देखा होता है भले ही उससे अच्छा समान बाज़ार में मौजूद हैं | इस तरह की बातें मानसिक रूप से हमें प्रताड़ित करती हैं।"

सबने कहा कि हम लोगों की भावना को ध्यान में रखकर सभी टीवी चैनलों मे विज्ञापन के समय संबंधी नियमों को सुधारना चाहिए। अच्छा हो यदि हर घंटे में विज्ञापन दिखाने की अधिकतम सीमा मात्र बारह से पंद्रह मिनट ही हो।

*********"******************************