Jini ka rahashymay janm - krodh 4 books and stories free download online pdf in Hindi

जीनी का रहस्यमय जन्म - 4

दोपहर की तिलमिलाती धुप मे एक चौदह पंद्रह वर्ष का बच्चा बेसूद भागे जा रहा हैँ,
उसका बदन पसीने मे लतपत होकर उसको रुकने को कह रहा हैँ किन्तु किसी बात का भय उसपर अपनी मजबूत जकड़ बना कर उसको निरंतर भागने पर मजबूर कर रहा हैँ उस बच्चे का खौफ उसके चहेरे पर साफ तोर पर विराजमान हैँ, उसकी धड़कन उसकी रफ़्तार से भी अधिक तेज चल रही थी उसके होंटो पर खुश्की से पपड़ी बन गई थी
कुछ दूर भागने के बाद उसकी साँसे उखड़ने लगी, अब उसमे भागने की और क्षमता ना थी कड़कती धुप के प्रकोप से उसकी नाक मे से खून निकल आया, और एक लम्बी साँस खींच कर धड़ाम से रेगिस्तान की तपती हुई नर्म रेत पर जा गिरा, उसका अंग अंग उससे ना उठने की बगावत करने लगा, और परिणाम स्वरूप वो अपने अंतिम प्रयास मे भरपूर जोर लगा देने के बाद भी दोबारा खड़ा ना हो सका, और वही बेहोश हो गया,

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ये बच्चा और कोई नहीं उस अंतिम शेष बचे डाकू की संतान हैँ, जिसने लोभ वश जीनी द्वारा अपने साथियो का वध करवा दिया था,
अपने साथियो की मृत्यु पश्चात् अद्धभुत रूप से उसमे प्राश्चित के त्रीव भाव उत्पन्न होने लगे थे

जिसके कारण उसने एक कठोर निर्णय लिया, उसने संसार की सम्पूर्ण मोह माया को त्याग कर सन्यास लेने की ठान ली थी,
परन्तु उसके आगे सन्यास लेने से पहले कुछ अर्चने थी जिनको पूरा करना उसका प्रथम धर्म और कर्तव्य था,

पहली समस्या उस चिराग के प्रति कुछ ऐसा करने की थी जिससे भविष्य मे कभी भी ये चिराग किसी अन्य दुष्ट मनुष्य के हाथो ना लगे, दूसरी समस्या अपने परिवार के प्रति अपना कर्तव्य,

इन दो समस्याओ को उसने अपनी शेष बची दोनों इच्छाओ से हल किया,

पहली इच्छा मे उसने जिन द्वारा चिराग को तब तक अदृश्य करवा दिया जब तक कोई निष्कपट, निर्दोष, व्यक्ति उस अद्धभुत गुफा मे प्रस्थान नहीं करता,

दूसरी इच्छा मे उसने बोला जब तक मेरा कुल मेरा वंश इस धरती पर जीवित रहे तब तक इस गुफा का शब्दों द्वारा खुलना संभव रहे जिस दिन मेरे कुल का सर्वनाश हो जाये उस दिन इस गुफा का भी तिलिस्म ख़त्म हो जाये और केवल उस निष्कपट व्यक्ति के ही आगमन से इसके द्वार खुले अन्यथा ऐसा करना असंभव हो,

अपने इस कर्तव्य को पूरा कर डाकू अपने परिवार के अंतिम दर्शन के लिए निकल पड़ा किन्तु अपने घर की सीमा मे आते ही उसकी अंतर आत्मा ने उसको सचेत किया,
वो मन ही मन विचार ने लगा, कही मेरी पत्नी का विलाप और पुत्र का मोह मेरे लिए घातक सिद्ध ना हो जाये,
यदि ऐसा हुआ तो एक बार फिर मैं इस भोग विलास से भरे संसार का हिस्सा बन जाऊंगा,
नहीं... नहीं..... मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे अपने परिवार की सहायता के लिए कोई और तरीका अपनाना होगा........

बस इसी प्रकार की कश्माकश मे पड़ कर उस डाकू ने एक मूर्खता से भरा निर्णय ले लिया,
उसने अपनी पत्नी के पास ना जाकर अपने पुत्र के बहार आने की प्रतीक्षा की और जब वो आया तो उसको गोद मे उठा कर पास की मिठाई की दूकान पर ले गया,
डाकू ने और दिंनो से भिन्न आज पुत्र पर प्रेम की वर्षा सी करदी, डाकू अपने पुत्र को खूब निहारता खूब दुलार करता और मन ही मन ये सोच कर फुट फुट कर रोता के मैं इस मासूम से बच्चे के साथ कितना बड़ा अन्याय कर रहा हुँ,

कुछ देर बाद डाकू अपना जी केडा कर अपने पुत्र को दुनिया दारी की कई बाते बताता हैँ जो बच्चे के सर के उप्पर से निकल जाती हैँ,
फिर डाकू अपनी गुफा के गुप्त शब्द और उसका स्थान बता कर उसको अत्यंत कठिन समय मे वहाँ जाने का आदेश देता हैँ, अंत मे उसको बहूत सी खाने पिने की चीजे दिला कर उससे विदा ले कर चला जाता हैँ,

बच्चा घर पहुंचने तक लगभग सारी बाते भूल गया असल मे उसपर पिता के प्रेम और स्नेह का भरपूर नशा चढ़ा था जिसके आनंद ने उसका मन गदगद कर रखा था, अपनी माँ के पास जा कर वो बालक प्रसन्ता से पिता का उल्लेख करता हैँ, बालक ना समझ था उसको तो केवल पिता का प्रेम दिखा, किन्तु माँ इन सभी बातो का आशय समझ गई, उसका पति उसको छोड़ कर चला गया,


एक अबला असहाय स्त्री को जीवन मे अनेको दुखो का सामना करना पड़ता हैँ किन्तु सबसे कठिन और भयंकर समस्या उसके समक्ष खुद की आबरू बचाना होती हैँ,

और दुर्भाग्य से इस विचित्र संसार मे कई ऐसे कपटी धृत पुरुष भरे पड़े हैँ | जो अपनी नीचता भरी आँखों से घात लगाए सदैव तत्पर रहते हैँ, उन अत्याचारियों के लिए एक अकेली बिना मर्द की महिला उस भेड़ के बच्चे समान होती हैँ! जो अपने झुण्ड से बिछड़ कर आसान शिकार बन गई,

डाकू के भाग जाने के बाद उसकी पत्नी की अवस्था बेहद ही बुरी हो गई थी, वो दिन भर लोगों के घरों का काम करती और रात को अपने और अपनी संतान के लिए थकी हारी आ कर खाना बनाने मे लग जाती,

मगर उसको एक बात सोच कर अपने भीतर गर्व का अनुभव होता के ऐसी कठोर स्थिति मे भी उसने अपने आत्मासम्मान को कभी भी बिखरने नहीं दिया,

और ये सोच कर उसका मन सुखद आशाओ के सागर मे गोते लगता के जब उसका पति वापस आएगा और उसकी निष्ठां को जाने गा तो कितना प्रसन्न होगा,

किन्तु नियति ने उस अभागिन के भाग्य मे कुछ और ही रच रखा था,
एक दिन घर पर प्रातकाल के समय वो अकेली खाना पका रही थी, और उसका बेटा बहार समान लाने गया था, उसी समय एक दुराचारी नीच व्यक्ति उसके घर मे दुष्कर्म के उदेश्य से घुस आया और भूखे भेड़िये की तरहा उसपर तूट पड़ा वो शक्ति हीन महिला उस पापी की मजबूत पंजो के सामने कमजोर थी उस स्त्री का उस दुष्ट को रोक पाना अपनी शक्ति से बहार जान पड़ा तो उस साहसी महिला ने अपने ही हाथो से खुद की जान ले ली,
और इस आत्माहत्या ने उस पापी के होश उड़ा दिये, जब तक वो नीच खुद को उस घर से निकाल पाता तब तक डाकू का बेटा भी वहाँ आ पंहुचा और अपनी माँ की लाश के आगे उस पापी को खड़ा देख समझा के इसने ही मेरी माँ की जान ली हैँ,
और उसी चाकू को जो उसकी माँ के प्राणो का भक्षक बना सामने खड़े पापी का अंतिम काल बना दिया,
और उसके प्राण हर लिए !

थोड़ी देर बाद आस पास हत्या करदी हत्या करदी का शोर मच गया जिसे सुन वो बालक भयभीत हो कर वहाँ से भाग निकला और तब तक भागता रहा जबतक वो गिर कर बेहोश नहीं हो गया,

बेहोश होते ही उसने स्वप्न देखा जिसमे उसको अपने पिता द्वारा बताई सारी बाते याद दिलाई गई,
अबतक बालक भी पंद्रह बरस का हो चूका था और उम्र के साथ उसकी बुद्धि का भी विकास हो चूका था,

इसलिए इस बार स्वप्न होने पर भी उसके एक एक बात अच्छे से याद हो गई, और जागते ही उस चमत्कारि गुफा की खोज मे वो निकल पड़ा,

थोड़ी मेहनत से खोज बिन करने के बाद शाम तक वो गुफा को खोज निकल लेने मे सफल हो गया,



किसी प्रकार वो भूँक प्यास से व्याकुल निर्बल अवस्था में वहाँ पहुँचा। तो उस गुफा के भीतरी आकर्षण ने अधभूत रूप से उसमे एक नई शक्ति का जन्म कर दिया

गुफा के एक छोर पर उसको भोजन व्यवस्था की उपयुग सामग्री और स्वादिष्ट रसदार फल अर्थात पीने का स्वच्छ पानी मिला

भूँक प्यास की तृप्ति कर थोड़ी देर के लिए सो गया किंतु जिस बालक को माँ की मत्यु का आघात लगा हो उसके लिए आनंद की नींद आना कैसे सम्भव होता,

माँ की ममता से मिली तृप्ति की तुलना में अमृत भी बेस्वाद लगेगा

जो आनंद माँ के स्नेह से मिलता है वो संसार के किसी भी कार्य में कहाँ

जो नींद माँ के प्रेम आँचल से मिले वो मख़मालि और रेशमी बिस्तर भी नहीं दे सकता।

बस अपनी माता के शोक ने उसको फिर दुखी कर दिया


पता नहीं क्यों उसको ये विचार बार बार आता की वो अपनी माँ को कोई सुख ना दे सका बस इसी विचार के चलते उसने निर्णय लिया के गुफा से प्राप्त धन अपनी माँ के नाम से लोक कल्याण में समर्पित कर दे ताकि लोगों द्वारा प्राप्त आशीर्वाद और दान पुण्य से उसकी माँ की आत्मा को शांति और सुख मिले इस विचार से वो नगर पहुँच गया किंतु जाने से पूर्व हत्या आरोप और दंड के भय के कारण भेस बदल लिया था

मगर जब वो नगर पहुँचा तो उसके कानो में हृदय घातक कटु वचन पड़े जैसे दहकता ज्वाला

असल में लोगों के बीच उसकी माँ की घोर निन्दा हो रही थी

सत्य से अज्ञात मूर्ख लोग उसकी माँ को कुलटा विलसनी व्यभिचारणी जैसे अपमानित करने वाले शब्दों संग उसकी आलोचना कर रहे थे

इस घटना ने लोगों के प्रति बालक की सद्विचर भावना को दुर्विचर भावना में परिवर्तित कर दिया और वो वापिस उस गुफा में आ गया