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सांकल - 2

सांकल

ज़किया ज़ुबैरी

(2)

नख़रे तो सभी उठवाते थे क्योंकी उसका कुसूर था पति का कहना मानना और हर तेहरवें महीने एक नया सा प्यारा सा मॉडल पैदा कर देना। बेटे की बारी में भी सीमा को मेनेजर के साथ ही भेजा था, पहले चैक-अप के लिए। उसको कितनी शर्म आ रही थी की डॉक्टर समझेगी की मेनेजर ही आने वाले बच्चे का बाप है। हुआ वही जिसका डर था... अपने पति को भी अन्दर बुला लो। डॉक्टर ने कहा था। हालाँकि मैनेजर उसके पति से अधिक जवान और ख़ुशमिजाज़ था पर सीमा को ये रिमार्क अच्छा नहीं लगा। वो उसी समय बहुत कुछ सोचने पर मजबूर सी हो गई। शर्मिंदा तो मैनेजर भी था। वो कब चाहता था कि उससे बड़ी उम्र की महिला को उसकी पत्नी समझा जाये।

मैनेजर ने सीमा से पहले ही साहब को जाकर ख़ुशख़बरी दे दी थी कि बेटा है तो सुना कि वो खुश हुए थे। उतने ही ख़ुश वो आज भी थे बेटे से...!

बच्चा पैदा करने सीमा बड़ी बहन के पास भेज दी गई थी।

वहां भी घर में अकेले ही समय काटना होता क्योंकी बहन डॉक्टर थीं। फिर भी वो खुश थी कि जब बेटा लेकर जाएगी तो सब कितने खुश होंगे और शायद बेटे से खेलने के लिए पति भी जल्दी घर आ जाया करेंगे।

बेटा हुआ तो सीमा की टेल-बोन उखाड़कर आया। 6 महीने तो बिस्तर ही में पड़े पड़े बेटे की देख भाल की। सारी रात रोता था। सीमा अकेले जाग जागकर साथ साथ आप भी रोने लगती थी। कितना अच्छा होता था पुराने ज़माने में कि परिवार का हर बच्चा सबका बच्चा समझा जाता था। सभी मिलजुलकर पाल लिया करते थे। अब तो सभी कुछ बिखर गया था।

आज उस नील की जलन उस हड्डी के दर्द से कहीं अधिक महसूस हो रही है जो समीर के पैदा होने पर उखड़ी थी। दूसरे कमरे में खटपट की आवाज़ होती तो सीमा को आशा बंधती कि शायद अब बस समीर आकर अपनी मज़बूत वार्ज़िशी बाँहों में माँ को संभालेगा और शर्मिन्दगी के आंसू बहायेगा... माँ के आंसुओं के साथ। और उसका दर्द उसकी जलन सब ठीक हो जायेगा।

मगर वो तो बैठा उस जवान लडकी की दिलजोई कर रहा था और एक्सप्लेन कर रहा था कि आज जो कुछ भी हुआ वो माँ की उम्र ज़यादा हो जाने और काम बढ़ जाने के साथ ही अधिकतर अनुचित व्यवहार की आदत पड़ जाने के कारण हुआ है। वो आइन्दा ख्याल रखेगा कि घर का माहौल ठीक रहे। नीरा धीरे धीरे मद्धम सुरों में उसके कान में रस घोलती जाती और वो और अधिक माँ के जहालत भरे व्यवहार से शर्मिंदा होता जाता।

आज सीमा को जिल की बहुत याद आई। कितनी सुशील और कितनी घरेलू नीली आंखों वाली अंग्रेज़ लड़की थी वो। लगता ही नहीं था कि इस देश कि पैदाइश हो। समीर से कितना प्यार करती और सीमा से अक्सर कहती '' सीमा, युअर सन इज़ सो हैण्डसम। इट वाज़ लव ऐट फ़र्स्ट साइट।'' सीमा उसकी चुटकी लेने को कहती ''ऐसा तो कोई हैण्डसम नहीं, तुम्हारी नज़र ही कमज़ोर होगी....!' वो सीमा से लिपट जाती, आप कितनी शैतान हैं...!!'' सास बहू के ये मज़ाक चलते रहते। सीमा ख़ूब जी भरकर प्यार से अपने बेटे को देखा करती कि सच ही तो कहती है जिल, है तो सुन्दर मेरा बेटा। जिल को समीर कि गहरी आवाज़ और सही अंग्रेज़ी बोलने का अन्दाज़ भी बहुत अच्छे लगते। वो इस बारे में भी सीमा से बेधड़क बात करती।

सीमा सोचती मैंने कितना अच्छा किया जो पति के विरोध के बावजूद भी शादी होने दी इन दोनों बच्चों की। उसने पति के सामने पहली बार जीवन में मुंह खोला था कि समीर को वही करने दिया जाए जो वह चाहता है क्योंकि अब तो वो नौकरी कर रहा था। एक फ़्लैट भी ख़रीद लिया था शहर के बीचो बीच, टेम्स के किनारे। किराए पर दे रखा था। सीमा को कितना गर्व होता अपने सुंदर बेटे पर कि वो केवल सुंदर ही नहीं है समझदार भी है। कैसे पिटा करता था बेचारा... ! एक दम से सीमा उदास हो जाया करती और दुआ करती कि हे भगवान अब मेरे बच्चे को कभी भी ऐसे दुःख ना देखने पड़ें... जो झेलना था उसने बचपन में झेल लिया है।

कभी कभी तो वो भगवान को चुनौती भी देने लगती कि ख़बरदार !... अब मेरे प्यारे बेटे को अपनी शरण में ही रखना वरना...! आप ही मुस्कुरा देती। हे! प्रभू यह औलाद भी क्या बला होती है।? क्यों इतना प्रेम होता है इनसे...! ये जवाब में तो कुछ भी नहीं देते फिर भी बुरा नहीं लगता। इनके दुर्व्यवहार भी भुला दिए जाते हैं।

पर पति की चोट तो हमेशा ज़िन्दा रहती है। मैं क्यों ना याद रखूँ मेरी औलाद थोड़ी है मेरा पति। उनकी माँ तो सब भुला देती थीं। उसके यहाँ तो पूरा परिवार साथ ही रहता था। कैसे कैसे चिल्लाते थे उसके पति अपनी माँ पर। वोह भी खूब चिल्लाती थीं। ऐसा लगता था जैसे पक्के गाने का अभ्यास हो रहा हो। दोनों में से पहले जो तीव्र ध और तीव्र नी वाले अन्तरे में जाता वही अपनी जीत समझ लेता और सामने वाले को सर पकड़कर बैठ जाना होता। जैसे घोर बरसात के बाद परनाला मद्धम सुरों में बह रहा हो। अम्मां की आँखों से ऐसे ही आंसू बह रहे होते। सीमा उनके पास जाकर बैठ जाती और आहिस्ता से पति की ओर से माफ़ी मांगने लगती। पति ने तो कभी भी माँ से माफ़ी नहीं मांगी थी। वो तो पैसे वाले बेटे थे। माँ ने तो उनको केवल जन्म दिया था। मेहनत तो उन्होंने आप ही की थी बड़ा आदमी बनने के लिए।

बन तो गए थे बड़े आदमी पर संस्कारों का ज़िक्र तो उनके शब्दकोश में था ही नहीं। मामूली बात थोड़ी थी कि माँ को महीने के पैसे देते थे... तो क्या हिसाब मांगना उनका हक़ नहीं बनता था ! बेचारी अम्मां... ! पढ़ी लिखी तो थीं नहीं। हिसाब याद कैसे रख पातीं ?

सीमा ने कभी सोचा भी नहीं था कि कभी उसका बेटा बाप के पदचिन्हों पर चलेगा... उन्ही को ठीक और सही ठहराएगा। जिल ये भी तो बड़े गर्व से कहा करती थी, “सीमा मैं कितनी लकी हूँ कि मेरा समीर अपने बाप से बिलकुल अलग है। हर तरह से, सुंदर तो है ही पर खुले विचारों का भी है। उज्जवल है अपने विचारों में। साफ़ सुथरा। ”

आज सीमा का जी अपने से अधिक जिल को याद कर कर के रो रहा था। समीर का अस्थिर मन ना जाने क्या क्या सोचा करता। कानों में शूं शूं कि ध्वनि गूंजने लगी। डॉक्टरों ने टिनिटस बता दिया। ''ये बीमारी तो अक्सर लोगों को हो जाती है। बहुत आम है आजकल। अक्सर परेशानियों से होती है।'' जिल ने समीर को तसल्ली देने के लिए कहा और सवेरे जल्दी उठने के ख़्याल से जल्दी ही सो गई। वो भी अपनी कंपनी में ऊंचे पद पर काम करती थी औए सवेरे उठ कर समीर का नाश्ता भी बनाती, घर को साफ़ सुथरा करने के बाद ही घर से निकलती। सीमा को जिल की सारी आदतें बेहद पसंद थीं। इसी लिए सास बहु में गाढ़ी छनती थी। दोनों जैसे सहेलियां बन गई थीं। अँगरेज़ तो वैसे भी कभी एक दूसरे से उम्र नहीं पूछते... और ना ही उनका पता, उनका पेशा या कौन कौन सी कार चलाता है या कैसे आता जाता है। किसी को किसी की कोइ खोज नहीं रहती आपस में। केवल दोस्ती का रिश्ता होता है या नहीं भी होता.... तो भी दुश्मनी नहीं होती।

समीर जिल से नाराज़ रहने लगा था। वो सीमा से कहती ना जाने समीर को क्या हो गया है... देर में घर आता है। पूछने पर कुछ भी नहीं बताता। कभी कभी खाना भी नहीं खाता। मैं ऑफिस से आकर पका कर रखती हूँ। सीमा मैं भी तुम्हारी तरह ही ताज़ा खाना खिलाती हूँ समीर को। फ्रिज में रखे खाने में तो सारे तत्त्व मर जाते हैं। पर समीर गरम गरम खाना देखकर भी नहीं खाता। ''एक दिन मुझे अपने घर इन्वाइट करो समीर के सामने ही, मैं आ जाउंगी और सब कुछ आप ही देखकर फिर समीर से बात करूंगी।” परेशान सीमा ने अपनी गंभीर आवाज़ में कहा।

“ अम्मा, उसको मेरा कोइ ख़्याल नहीं। टिनिटस हो गया है। रातों को नींद नहीं आती। सारी रात पंखा चला कर सोता हूँ। तब कहीं जाकर चैन मिलता है जब पंखे की आवाज़ कान की शूं शूं की आवाज़ से ताल मिला लेती है। ”

''तो इसमें जिल का क्या कुसूर''? सीमा ने समीर से हैरान होते हुए पूछा।

“पत्नी है मेरी मेरा ख्याल रखना उसका फ़र्ज़ है।”

“क्या खाना नहीं बनाती या घर गन्दा रखती है या बराबर से कमाकर नहीं लाती?” एक ही सांस में सीमा ने प्रश्नों की बौछार कर दी। वो इस समय एक औरत बनकर दूसरी औरत की ओर से एक मर्द से सवाल कर रही थी। अपने बेटे से नहीं।

''फिर भी, जब मैं रातों को जगता हूँ तो इसको भी जागना चाहिए। ये तो कानों में म्यूजिक सुनने का प्लग लगाकर सो जाती है, गाने सुनते सुनते।'' समीर ने अपनी कड़वाहट एक ही सांस में उगल दी। सीमा सन्नाटे में रह गई। हे राम ! बिलकुल बाप, पूरा बाप।! ये क्या हो गया कब हो गया.. क्यों हो गया...! मैं तो खुश थी की अच्छी संस्कारी लड़की से शादी करेगा तो इंसान बना रहेगा। ये तो जानवर का जानवर ही रह गया। बिलकुल ख़ामोश हो गई सीमा।

डॉक्लैण्ड के अपार्ट्मेण्ट के साथ ही टेम्स नदी में खड़ी तमाम किश्तियाँ जैसे डूबने लगी हों। उन किश्तियों में रहने वाले जैसे मदद को चिल्ला रहे हों। उसको जिल की आवाज़ भी कहीं दूर से सुनाई दे रही थी। सहायता के लिए चिल्लाते हुए। अपने पति की मोहिनी सूरत को आँखें फाड़ फाड़कर एक टक देखते हुए। जैसे आज वो उसके चेहरे के आकार को अपने मन में बैठा लेना चाहती हो। हमेशा के लिए…

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