Saankal - 3 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

सांकल - 3 - अंतिम भाग

सांकल

ज़किया ज़ुबैरी

(3)

“माँ, मैं उसको दो फ़्लैट्स, आपके दिए तमाम जेवर और पांच हज़ार पाउण्ड कैश भी दे रहा हूँ। ज़ेवर देने में आपको समस्या तो नहीं होगी क्योंकी आप औरतों को जेवर से बहुत प्यार होता है'?”

कितना कड़वा बोलता है, ये मेरा बेटा तो लगता ही नहीं, जैसे बाप कहीं और से ले आया हो...! 'मेरा तो जी चाह रहा है मैं उसको अपने ज़ेवर ही नहीं बल्कि अपने हिस्से की जो कुछ भी खुशियां रह गयी हैं वो भी दे दूं। ''क्यों ऐसा जी क्यों चाह रहा है। मुझ से रक्तसंबंध है या उससे?'' खून का रिश्ता क्या होता है। उसका क्या महत्व होता है, उसकी क्या अहमियत होती है और दिलों के रिश्ते की क्या, ये बातें तुम नहीं समझोगे।

समीर दफ्तर ही में था तो जिल सीमा के पास आ गई। सीमा से उसके कंधे पर सर रखकर रोने की बाक़ायदा इजाज़त माँगी और सीमा के आँख उठाकर देखने से पहले ही उससे लिपट कर उसके कंधे भीगा दिए। अपने दुःख जैसे उसके कन्धों पर डाल दिए हों। ख़ामोश बैग उठाया और जाने लगी तो सीमा ने कुछ कहना चाहा, पर वो चली गई।

आज ना जाने उसको जिल क्यों इतनी याद आ रही है।? शायद वो होती तो समीर को समझा लेती पर ये नीरा ना जाने कहाँ से उठा लाया है। मैं इस तरह इसको अपने घर में नहीं रहने दूंगी।

“ अगर आप ये समझ रही हैं कि मैं इसके साथ कोई ग़लत रिश्ता रखता हूँ तो माँ ये बीमार मानसिकता की पहचान है। ये केवल एक दोस्त है। जैसे एक लड़का दोस्त हो। ये परेशान है इसलिए कुछ दिनों के लिए यहाँ ले आया हूं। ”

“ तो आजकल बेला कहाँ गयी? ”

“ वो फ्रांस गई हुई है अपने घर वालों के पास। ”

“ कब तक आएगी? ”

“ मुझे नहीं मालूम। वहीं बैठकर अपनी थीसिस भी लिखेगी। ”

“ क्या अब आएगी ही नहीं। सीमा ने डरते डरते पूछा। ”

सीमा को ऐसे तो पसंद वो भी नहीं थी। पर कम बुरी थी। जिल उसको बहुत याद आती थी पर कभी भी उसका ज़िक्र नहीं करती। सोचती समीर को दुःख होगा कि माँ मेरी मदद नहीं करना चाहती मेरे लिए दूसरी पत्नी की तलाश में।

समीर अगर परिपक्व दिमाग़ का होता तो सीमा विवाह के लिये लड़कियों की लाइन लगा दे। पर उसको बेटे पर भरोसा ही नहीं था। कहीं सीमा कि पसंद की लडकी आ गई तो समीर उसके साथ ना जाने क्या व्यवहार करेगा। लव मैरिज का जनाज़ा तो उठ चुका था।

“माँ आपसे कितनी बार बताया है की बेला ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. कर रही है आप बार बार ग़लत सवाल क्यों पूछती हैं। वो अपने माँ बाप के पास गई है। अब ख़ाली थोड़ी बैठेगी, जब तक वहां है थीसिस लिखती रहेगी।” अच्छी भली डांट पड़ गई थी सीमा को। हर समय इतनी पढ़ी लिखी और एक्ज़ेक्यूटिव पोज़ीशन की माँ को कैसा उल्लू समझा करता था।

सिर्फ़ उल्लू समझता तो भी शायद इतना बुरा ना लगता क्योंकी उल्लू कि फ़ोटो तो निशानी होती है अकल्मंदी की। गधा भी समझे तो भी सीमा बुरा नहीं मानेगी क्योंकि वो भी एक मेहनती जानवर होता है और अपनी ताक़त से बढ़ कर काम करता है। समीर उसको एक जढ़ मूड़ नकारा औरत समझता है। जब बचपन में पिटा करता था तो गोदी में घुस घुसकर कहता था अगर आप ना होतीं तो ये पिताजी तो मुझे मार ही डालते। माँ आप भी तो बड़ी पोज़ीशन पर हैं फिर आप क्यों नहीं थकतीं? आज उसे अपनी माँ में कोई अच्छे गुण दिखाई ही नहीं देते। कैसे सब कुछ बदल जाता है। मेरे अपने ही बेटे में अपने ननिहाल का एक भी गुण नहीं आया... पूरा असर अपने पिता के ख़ून का दिखाई देता है।

सीमा ने सोचा अब स्वयं ही जाकर बरफ़ निकाले और सेंक करे। शायद कुछ आराम आ जाए। कैंसर के बाद से बाईं ब्रेस्ट के पास का हिस्सा कुछ ज़यादा ही सेंसिटिव हो गया है। बग़ल से सात लिंफ़-नोड्स निकाल दिये गये थे। इसलिए उधर के हिस्से में चोट का असर दुगना होता था। आज तो चोट उधर ही लगी थी केवल जिस्म पर ही नहीं उसके अहम् को कितनी बड़ी ठेस लगी थी ये केवल वही जानती थी।

सोचा पहले जाकर कपड़े बदल ले। अब तक तो सब सो गए होंगे। उसको मनाने कोइ नहीं आएगा। कपड़े बदलने गई तो बाज़ुओं को देख कर आँखें मूँद लीं। दोनों बाज़ुओं पर जैसे काले रंग के बाज़ूबंद बाँध दिए गए हों। कैंसर वाली तरफ़ का नील लगभग काला हो चला था। वहीं तो जलन हुए जा रही थी।

वह शर्म से गड़ी जा रही थी कि आज यह नौबत आ गई है कि समीर उस नीरा के कारण उस पर हाथ उठा दे...। अपनी पूरी ताक़त उसपर निकाल दी। कैसे दरवाज़े के ऊपर रखकर दोनों बाज़ू भींच दिए थे कि अब रहिये यहीं। बाहर ना निकलिएगा। अगर आपने नीरा की बेईज्ज़ती की तो मुझसे बुरा कोई ना होगा।

सीमा अपने को छुड़वाने के लिये दुहाई देती रही पर ऐसा लगता था जैसे समीर बाप का बदला उससे ले रहा हो। बाप ही की तरह वहशी बन गया था, चेहरा वैसा ही भयानक हो गया था....हाँ वही चेहरा जिसे वह सुन्दर कहती रही है.... सांस रोके गुर्रा रहा था माँ पर की आपने नीरा को घर से जाने को कहकर उसकी बेज्ज़ती की है। उसके बदले में वो माँ की इज्ज़त का जनाज़ा निकाल रहा था।

बेटी को जब मालूम हुआ कि माँ कॉन्फ़्रेंस से जल्दी आ गई है तो वो भी मिलने चली आई और नीचे किचन में बच्चों को खिलाने पिलाने में व्यस्त हो गई। अगर वह इस समय ऊपर होती तो सीमा तो शर्म से गड़ ही जाती।

वह अभी अपने दुःख को ठीक से महसूस भी नहीं कर पाई थी कि दरवाज़े पर घण्टी बजी। दरवाज़ा सीमा की बेटी ने ही खोला। सीमा भूल ही गई थी कि बेटी और नाती अभी घर में ही हैं। बाहर पुलिस खड़ी थी। बेटी ने पुलिस को फ़ोन करके बुलवा लिया था। यानि वह सब सुन रही थी। वह यहीं की पली बढ़ी है। इस देश के हक़ और कानून से पूरी तरह वाक़िफ़ है।... मगर उनके ख़ानदान में पहली बार पुलिस घर में आई थी। सीमा को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह पुलिस को क्या कहे। बेटी ने आगे बढ़ कर सारी बात पुलिस को समझा दी।

पुलिस की आवाज़ सुन कर समीर और नीरा भी नीचे आ गए... समीर घबरा गया... नीरा के जैसे होश ही उड़ गये थे... पुलिस ने सीमा से सीधे एक ही सवाल किया था, “क्या आप अपने बेटे को अभी घर से निकालना चाहती हैं ?”

समीर के चेहरे पर बदहवासी देख कर सीमा को ठीक वही महसूस हुआ जैसे वह बचपन में अपने पिता के हाथों पिट रहा हो। उसके भीतर की मां जैसे टूट रही थी। पुलिस देख कर शायद वह भी बुरी तरह से घबरा गई थी।

उस घबराहट में भी सीमा ने पुत्र को अकेला नहीं छोड़ा, “नहीं ऑफ़ीसर, मेरे बेटे का इस घर पर पूरा हक़ है। मगर मैं इस आवारा लड़की को इस घर में नहीं रहने दूंगी।”

पुलिस ने समीर को आदेश दिया कि लड़की को उसी वक़्त घर से बाहर करे।... नीरा के साथ ही शायद पुत्र और मां का रिश्ता भी घर से बाहर चला गया था। मां वही थी... वहीं खड़ी थी।

नीरा को कहीं छोड़ कर समीर घर वापिस आ गया है... घर के ऐशो आराम से दूर रह पाना शायद उसके लिये संभव भी नहीं था।... उसकी नज़रों में मां के प्रति बस एक ही भाव था... सीमा तय नहीं कर पा रही कि वो भाव क्या हैं... शत्रुता.... नफ़रत... या फिर .... ! !

कभी कहता है आप कॉन्फ़्रेस में ज़रूर जाएँ और कभी दोस्तों के साथ बाहर खाना खाने की सलाह देता है.... “मां जब पापा आपको नहीं ले जाते तो आप ख़ुद जाना शुरू कीजिये...” और आज जब माँ ने उसके नीरा के साथ कमरे में अँधेरे में बंद देखकर समझाना चाहा तो जो मुंह में आया बकता चला गया.... बाज़ारू ज़बान..! बिल्कुल बाज़ारू... !

भला कौन अपनी माँ को छिनाल कह सकता है... अपने यारों के साथ घूमती हैं.... क्या फ़र्क रह गया पति और बेटे में... वो भी तो अपनी कमज़ोरियाँ छुपाने के लिए यही इल्ज़ाम लगाता रहा है... समीर की ज़बान की कटुता की चोट जितनी गहरी लगी थी उतना तो बाजुओं पर पड़े नील के निशान का दर्द भी नहीं चुभ रहा था.... अपनी जवानी का एक एक क्षण.. एक एक क़तरा... इकलौते बेटे के नाम लिख दिया था... सोचती थी कि बाप के वक़्त की भरपाई भी वह ही करेगी। आज इस उम्र में.... माँ पर इतना बड़ा आरोप..!

बेटी रात को घर में ही रह गई है। वह और उसका पति अपने पिता के कमरे में आराम से सो रहे हैं... सीमा शरीर के दर्द से लड़ रही है.... आत्मा के घाव सहला रही है.... मुंह में धनिये के बीजों का स्वाद है मगर दिल में एक डर भी है... कहीं अपने ग़ुस्से में समीर उसकी हत्या तो नहीं कर देगा ? ... नहीं .. नहीं... यह नहीं हो सकता... आख़िर पुत्र है। भला ऐसा कैसे कर सकता है। मगर दिल का डर उसे सोने नहीं दे रहा। बिस्तर पर करवटें बदल रही है...

एकाएक बिस्तर से उठती है सीमा और भीतर से कमरे की सांकल चढ़ा देती है।

******