Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 25 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 25

भाग 23 :जीवन सूत्र 25 आगे बढ़ें तो होंगे सारे विकल्प उपलब्ध

अर्जुन श्रीकृष्ण की इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि अगर वे युद्ध से हटते हैं तो उन्हें "अर्जुन कायरता के कारण युद्ध से हट गया" ऐसे निंदा और अपमानजनक वचन भी सुनने को मिलेंगे। एक योद्धा के लिए इससे दुखद और क्या हो सकता है?

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने आगे कहा है-

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।(2.37)।

शूरवीरोंके साथ युद्ध करने पर या तो तू युद्धमें मारा जाकर स्वर्गको प्राप्त होगा अथवा संग्राममें जीतकर पृथ्वीका राज्य भोगेगा।इस कारण हे अर्जुन ! तू युद्धके लिए कृतसंकल्प होकर खडा हो जा ।

इस श्लोक में से हम युद्ध के लिए कृत संकल्प शब्द को लेते हैं। यहां पर युद्ध मानव जीवन में पग-पग पर उपस्थित होने वाले गतिरोध,अंतर्विरोध,अड़चनें और तनाव के रूप में है।मनुष्य सफलता के लिए खतरे नहीं उठाना चाहता है और अपना थोड़ा भी नुकसान न हो,हार न हो इस आशंका में कोई भी काम शुरू करने से घबराता है। वास्तव में कोई कार्य शुरू करने पर सफलता और असफलता यही दो परिणाम सामने आते हैं। मनुष्य को पूरे मनोयोगपूर्वक किए गए कार्य के बाद भी कभी-कभी असफलता हाथ लग सकती है।ऐसे में एक द्वार बंद होने पर अगर मन में संकल्प शक्ति हो तो अनेक नये द्वार खुलते हैं। अनेक संभावनाएं प्रकट होती हैं। कभी-कभी तो असफलता भी पीछे छूट चुकी सफलता से कहीं बड़ी सफलता के द्वार खोल देती है।

असफलता मनुष्य को तोड़ कर रख देती है। विशेष रूप से जब किसी अभीष्ट प्रयास में सफलता का मिलना सर्वाधिक वांछित था।तब भी मनुष्य कभी-कभी असफल हो जाता है।सपने टूटते हैं। एक साधारण मनुष्य और साहसी मनुष्य में यही अंतर है कि साधारण व्यक्ति बार-बार असफलता मिलने पर थक हारकर बैठ जाता है, लेकिन साहसी इसे भी एक अवसर के रूप में लेता है।अपनी गलतियों से सीखता है और फिर उसे जीत की संभावना में बदल देता है।वास्तव में जीवन पथ पर हमेशा शुभ सोचना चाहिए ।नवीन दृष्टिकोण से युक्त होकर,समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सदैव आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

साहिर लुधियानवी के शब्दों में:-

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें

वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं।

(श्रीमद्भागवतगीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है,जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों,जिज्ञासाओं,दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय