Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra book and story is written by Dr Yogendra Kumar Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra is also popular in Motivational Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - Novels
by Dr Yogendra Kumar Pandey
in
Hindi Motivational Stories
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2/2।।
इसका अर्थ है,"हे अर्जुन! इस विषम समय पर तुम्हें यह मोह कहाँ से प्राप्त हुआ।न यह श्रेष्ठ पुरुषों के लिए उचित हैन स्वर्ग को देने वाला है, और न ही यह कीर्ति प्रदान करने वाला है।
प्रायः हम रोजमर्रा के जीवन में मोह के शिकार हो जाते हैं। कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन का मोहग्रस्त होना प्रथम दृष्टया तार्किक था। युद्ध क्षेत्र में अपने बंधु बांधवों को स्वयं के खेमे में और विरोधी खेमे में देखकर उनका मन विचलित हो गया और अपनी इस इस दुविधा की स्थिति को उन्होंने अपने आराध्य, मार्गदर्शक और मित्र भगवान श्री कृष्ण के सम्मुख प्रकट किया। अर्जुन का यह मोह संभावित भारी विनाश और अपने ही स्वजनों की हानि को लेकर था। इस तरह की दुविधा वाली परिस्थिति हम साधारण मनुष्यों के जीवन में भी दिखाई देती है, जब मनुष्य मोह और दुविधा का शिकार हो जाता है।उसे यह समझ में नहीं आता कि अब वह कौन सा कदम उठाए।ऐसे में वह कोई स्पष्ट और उचित निर्णय नहीं ले पाता है।
इस लेखमाला में मैंने गीता के श्लोकों व उनके अर्थों को केवल एक प्रेरणा के रूप में लिया है।यह न तो उनकी व्याख्या है न विवेचना क्योंकि मुझमें मेरे आराध्य भगवान कृष्ण की वाणी पर टीका की सामर्थ्य बिल्कुल ...Read Moreहै।मैं बस उन्हें आज के संदर्भों से जोड़ने व स्वयं अपने उपयोग के लिए जीवन सूत्र ढूंढने व उनसे सीखने का एक मौलिक प्रयत्न मात्र कर रहा हूं।वही मातृभारती के आप सुधि पाठकों के समक्ष भी प्रस्तुत कर रहा हूं।आज प्रस्तुत है पहला जीवन सूत्र:
संघर्ष का नाम ही जिंदगी है।जीवन पथ पर वही आगे बढ़ते हैं जिनमें चलने का साहस हो।विजयश्री उन्हीं को वरण करती है,जिन्होंने किसी कार्य का निश्चय किया हो और उसकी ओर पहला कदम बढ़ाया हो।बस साथ होना चाहिए मनोबल
जीवन सूत्र 3 भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम "शोक करना उचित नहीं है", इस वाक्यांश को आज तीसरे सूत्र के रूप में लेते हैं।कहा गया है कि ईंधन से जिस तरह अग्नि बढ़ती है,वैसे ही सोचने ...Read Moreचिंता बढ़ती है। न सोचने से चिंता उसी तरह नष्ट हो जाती है, जैसे ईंधन के बिना अग्नि।
जीवन सूत्र 4 आप और हम सब हर युग में रहेंगे भारतवर्ष का भावी इतिहास तय करने वाले निर्णायक युद्ध के पूर्व ही अर्जुन को चिंता से ग्रस्त देखकर भगवान श्री कृष्ण ने समझाया कि मनुष्य का स्वभाव चिंता ...Read Moreवाला नहीं होना चाहिए।आगे इसे स्पष्ट करते हुए श्री कृष्ण वीर अर्जुन से कहते हैं कि किन लोगों के लिए चिंता करना और किन लोगों को खो देने का भय? न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः। न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2/12।। इसका अर्थ है,हे अर्जुन!(तू किनके लिए शोक करता है?)वास्तव में न तो ऐसा ही है
जीवन सूत्र 5: शरीर की अवस्था में बदलाव स्वीकार करें विवेक को बचपन से ही आध्यात्मिक ग्रंथों के अध्ययन में रुचि है। आवासीय विद्यालय के आचार्य सत्यव्रत आधुनिक पद्धति की शिक्षा देने के साथ-साथ प्राचीन जीवन मूल्यों और परंपरागत ...Read Moreशिक्षा के उपदेशों को भी शामिल करते रहते हैं।वे बार-बार बच्चों से कहते हैं कि विद्या का उद्देश्य जीवन में धन,पद, यश,प्रतिष्ठा प्राप्त करना नहीं है।जीवन का व्यावहारिक ज्ञान पाने,श्रेष्ठ नागरिक गुणों का विकास और समाज उन्मुखी श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए शिक्षा आवश्यक है।सच्चा ज्ञान केवल किताबी कीड़ा नहीं बनाता बल्कि संकटकालीन परिस्थितियों में निर्णय लेने के लिए आवश्यक