Kataasraj.. The Silent Witness - 34 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 34

भाग 34

पुरवा समझ गई कि नाज़ को लगा कि वो सिर्फ उससे मिलने आई है। अब उसे सच जान कर तकलीफ हो रही है। बेकार में ही सब कुछ बताने लगी। जाते वक्त धीरे से सलमा मौसी से पूछ लिया होता। नाहक ही सब कुछ बता कर नाज़ को दुखी कर दिया। बात को सम्हालते हुए पुरवा बोली,

"ना… नाजो…! हमको तुमसे मिलना था तभी तो आए। वरना बाऊ जी कह रहे थे कि किसी से संदेशा कहलवा देते है। वो तो हमको तुमसे मिलना था इसी कारण आए।"

फिर पुरवा उसका ध्यान भटकाने के लिए बिलकुल नाज़ से सट कर बैठ गई और आंखो में झांकते हुए बोली,

"अच्छा.. नाज़..! तू बता रही थी कि आरिफ भाई तेरे साथ कमरे में ही खाते हैं। क्या उन्हें अपने घर वालों के सामने संकोच नहीं लगता.! क्या उनकी अम्मी उनको भला बुरा नही कहती।"

नवविवाहिता के लिए सबसे रोचक विषय होता है उसके और उसके पति के बारे में बातें करना। अपने मनपसंद विषय की बातें सुन कर नाज़ की नाराजगी दूर हो गई। अब नाज़ फिर से पहले वाले रौ में आ गई। आरिफ का नाम सुनते ही चेहरे पर लाली छा गई। वो ओढ़नी को अपनी उंगली पर लपेटते हुए मुस्कुरा कर बोली,

"सच बताती हूं पुरवा..! उन्हें मेरे आगे किसी का खयाल नहीं। अम्मी जान क्या सोचेंगी..? अब्बू जान नाराज होंगे। उन्हें तो किसी बात की परवाह ही नही है। उन्हें तो बस मेरे साथ वक्त गुजारना है अब चाहे घर वाले जो कुछ भी सोचना हो सोचें। रोज मेरे लिए मोगरे का गजरा और मीठा बीड़ा ले कर आते हैं। सब घर वालों से छुप छुपा कर। साथ में केसर रबड़ी भी।"

नाज़ चहकते हुए बोली।

वो गर्वांवित हो रही थी अपने नए नवेले शौहर और उसके प्यार के बारे में बताते हुए। इसके बाद कुछ फुसफुसा कर पुरवा के कान में कहा और पुरवा की आंखे आश्चर्य से फैल गई। वो हैरानी से आंखे बड़ी करते हुए बोली,

"सच में…?"

फिर दोनो खिलखिला पड़ीं। तभी कमरे का परदा हिला और हाथ में चाय नाश्ता की ट्रे लिए कल्लन मियां कमरे में घुसे। टेबल पर सब कुछ सजा दिया और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। बोले,

"छोटी बेगम ..! कुछ और भी लाऊं…?"

एक सरसरी निगाह से नाज़ ने टेबल पर लगी चीजों पर डाल मुआयना किया। मीठा, नमकीन, फल, मेवा सब कुछ ही तो था और फिर सब कुछ दुरुस्त देख कर बोली,

"नही कुछ नही चाहिए… आप जाइए। कुछ देर बाद बादाम का शरबत ले आएगा।"

हाथ बांधे जी बहू रानी कह कर कल्लन मियां कमरे से बाहर चले गए।

पुरवा और नाज़ दोनो बतियाते हुए खाने लगीं। पूरा कमरा उनकी दबी हुई हंसी से गमक उठा।

इधर साजिद दोपहर खाना खाने के बाद कमरे में आराम कर रहे थे। चकवाल में थे तो बड़ी ही मुश्किल से दोपहर में खाने का ही वक्त मिलता था। आराम करना तो दूर की बात थी। जब से इस्माइलपुर आए थे तब से रोज ही दोपहर में खाना खाने के बाद आराम करते थे। आज भी वो लेटे तो आराम करने थे। पर जल्दी ही आंखे बंद हो गईं और नाक की घुरघुराहट कमरे में गूंजने लगी। अब शायद ये यहां के भारी खाने का असर था जो उन्हें सुला देता था या यहां के सुकून भरे माहौल का असर था।

सलमा साजिद के पास कमरे में गई। जैसे ही घुसी देखा साजिद सो रहे हैं। सोते हुए निश्चिंत साजिद को देख सलमा का जी अजीब सा हो गया। उसे सुकून महसूस हो रहा था कि उसके शौहर को जिंदगी के भाग दौड़ से कुछ दिनों के लिए ही सही राहत तो मिली है। ये आगे बढ़ने, और बड़ा .. ,और बड़ा बनने की चाह इंसान को इतना जकड़ लेती है कि वो इंसान से मशीन बन जाता है। मजे की बात ये कि उसे खुद भी अपने अंदर हुए इस परिवर्तन का पता नही चल पाता।

सलमा आकार बिस्तर पर करीब में बैठ गई। जगाने का दिल नहीं किया। पर क्या करती जगाना मजबूरी थी। वरना पुरवा को क्या तारीख बताती जाने का। अब ये फैसला तो साजिद को ही करना था। अभी कम से कम दो घंटे तो पुरवा रुकेगी ही। इस लिए जगाने की बजाय वही बैठ कर साजिद के जागने का फैसला किया।

कुछ देर बाद साजिद ने करवट बदला। इस बीच में जरा सी आंख खुली तो देखा सलमा उसे निहारती बैठी हुई है। अब फिर उसने आंखें बंद की पर हाथ बढ़ा कर सलमा का हाथ पकड़ा और उसे अपने करीब खींच लिया। सलमा तो ये सोच रही थी कि साजिद मियां सो रहे हैं। इस तरह अचानक खींचने से वो खुद को संभाल नही पाई और साजिद के सीने पर गिर पड़ी। साजिद फुसफुसाते हुए उसके कान में बोले,

"क्या बात है भाई..? आज तो इस गरीब के नसीब ही जाग गए। बेगम साहिबा बड़े मूड में हैं जो इतने प्यार से निहार रही हैं।"

सलमा दरवाजे की ओर देखते हुए खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी। और बोली,

"क्या हरकत है ये…? दरवाजा खुला है कोई आ गया तो…!"

साजिद उसी स्थिति में बोले,

"भाई कोई आ भी गया तो अपनी बेगम के साथ हूं किसी गैर के साथ थोड़ी ना हूं जो डरूंगा। इस उम्र में भी नखरे कोई आपसे सीखे। मानना पड़ेगा आपको। खुद बैठी मुझे इन नशीली आंखों से निहार रही थीं। और अब जब मैं करीब आने की कोशिश कर रहा हूं तो नखरे कर रहीं है आप।"

सलमा ने खुद को साजिद की बाहों से आजाद किया और बोली,

"मुझे आपसे कुछ बात करनी थी इस लिए मैं बैठी थी यहां। आपको जगा कर नींद नही खराब करना चाहती थी। और आप हैं कि जाने क्या क्या सोच लेते हैं।"

साजिद उठ कर तकिए का टेक लगा कर बैठ गए और बोले,

"बोलो… सलमा …! क्या बात है…?"

सलमा मुस्कुराते हुए बोली,

"वो… उर्मिला ने हमारे साथ जाने के लिए हामी भर दी है। उसने अपनी बेटी पुरवा को जाने की तारीख पूछने भेजा है जिससे वो भी अपनी तैयारी कर सकें।"

साजिद ने पूछा,

"कहां है वो…? बड़ी ही प्यारी बच्ची है।"

सलमा बोली,

"हां..! वो तो है। वो नाज़ के कमरे में बैठी उससे ही बातें कर रही है।"

साजिद ने कुछ देर सोचा और सलमा की ओर देख कर पूछा,

"अब तो कोई शिकायत नहीं है ना। रह ली हो..! जी भर गया हो तो तुम ही बताओ कब चले..? वरना वहां पहुंच कर फिर से शिकायत करोगी कि मैं ही ले कर चला आया तुम्हें। अब तो आया ही हूं यहां। जैसे इतने दिन चमन ने बिजनेस संभाला हुआ है, कुछ दिन और संभाल लेगा। अब जब तुम कहोगी तभी चलेंगे यहां से। फैसला तुमको ही करना है।"

सलमा बोली,

"नही नही अब नही कहूंगी कुछ आपको। काफी दिन रह ली। सब से मिलना जुलना भी हो गया। तकलीफ तो कभी भी जाऊंगी तो होगी ही। घर, बिजनेस सब से कितने दूर रहा जा सकता है। आखिर मेरी जिम्मेदारी भी तो बनती है कुछ। ऐसा करते हैं आज से तीसरे दिन चलते हैं। इतना काफी रह लिया।"

साजिद बोले,

"चलो पहले शमशाद और कलमा आपा को तो बता दें।"

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