Kataasraj.. The Silent Witness - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 7

भाग 7

बब्बन की अम्मी को उसके लिए ऐसी ही किसी लड़की की तलाश थी जैसी अशोक ने बताई। ऊपर से वो अशोक की पत्नी उर्मिला की सखी भी थी। वो उसे अच्छे से जानती थी। अब जब जानी समझी, मन मुताबिक लड़की का पता चला तो फिर पैगाम ले कर जाने में भला क्या अड़चन आती…..!  बब्बन की अम्मी अशोक की बात पर तुरंत ही राजी हो गई पैगाम ले कर जाने को।

अब बब्बन को चैन पड़ गया था। जिस लड़की को रात दिन जगाते सोते अपने ख्यालों में देख रहा था । कुछ समय भले लगेगा पर उसकी मुराद पूरी हो जायेगी।

जल्दी ही बब्बन की अम्मी अपनी बेटी दामाद को साथ ले कर नईमा के घर बब्बन का रिश्ता ले कर गई।

बब्बन के घर में भी अच्छी खासी खेती बारी होती थी। इस लिए बिना किसी शुबहा के खुशी खुशी नईमा के घर वालों ने बब्बन का रिश्ता कुबूल कर लिया।

फिर जल्दी ही नईमा अपनी सखी के गांव में ब्याह कर आ गई।

ब्याह में शामिल होने उर्मिला भी अपने मायके गई थी। उसने भी अपनी तरफ से कोई कमी नही रक्खी नईमा के निकाह में। उसे खूब सजाया संवारा। हर मौके पर मौजूद रही। अब तो रोने की वजह भी नही थी। दोनो सहेलियों का ब्याह दोनो दोस्त के साथ हुआ था। जब चाहेंगी मिल लेंगी।

इस तरह नईमा का निकाह उसी गांव में हो गया।

समय बिताने के साथ उनके बाल बच्चे भी हुए।

नईमा के बेटी हुई जिसका नाम बड़े ही प्यार से बब्बन ने नाज़ रक्खा।

उर्मिला के भी पहली औलाद बेटी हुई। जिसका नाम पुरवा रक्खा अशोक और उर्मिला ने मिल कर।

दोनो ही लड़कियां अपनी मां और पिता की तरह आपस में सहेलियां थी। बिलकुल उर्मिला और नईमा वाली हालत थी। एक दिन भी एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह पाती।

अब लड़कियों के पढ़ने का थोड़ा बहुत चलन शुरू हो गया था। नाज और पुरवा दोनों साथ साथ स्कूल जाती। साथ साथ वापस आती। यहां तक की साथ में ही पढ़ती भी थी।

इसी नाज़ से आरिफ का निकाह तय हुआ था। और वो पुरवा की सहेली थी। पुरवा अपनी मां और नानी के साथ उसके घर आई थी।

आरिफ जो अब तक अलसाया सा लेटा हुआ था। अपने मतलब की बात सूझते ही तत्परता से उठ बैठा और जाकर उर्मिला और जमुना से सलाम किया। फिर पुरवा से बात करने की कोशिश करने लगा। पहले तो पुरवा झिझकी फिर किताबें पढ़ने की शौकीन पुरवा को जब आरिफ ने बताया कि उसके पास ढेर सारी किताबें हैं। तो वो अपना पढ़ने का लोभ संभाल नही सकी।

आरिफ जब भी शहर जाता एक दो अपनी पसंद की किताब जरूर ले आता। कुछ किताबें उसके कॉलेज के समय की ही थीं। इस तरह उसके पास एक छोटी मोटी लाइब्रेरी ही तैयार हो गई थी।

आरिफ से एक किताब पढ़ने के लिए मांग ली।

आरिफ भी बड़ा दिल दिखाते हुए बोला,

"पुरवा ऐसा करो तुम खुद ही मेरे कमरे में चल कर छांट लो अपने पसंद की किताब। अब इतनी सारी किताबों में मैं कैसे जान पाऊंगा कि कौन सी तुम्हें अच्छी लगेगी…?"

पुरवा को आरिफ की बात सही लगी।

उर्मिला भी पुरवा को झिड़कते हुए बोली,

"जा... पुरवा…! तू खुद ही ले ले। जा कर अपनी पसंद की। क्यों उस बिचारे को हैरान करेगी…? अब वो यहां पर कितनी किताबें ढो कर ले आएगा…?"

आरिफ पुरवा के साथ उसके कमरे में अपनी पसंद की किताब लेने चली गई।

पुरवा आरिफ के कमरे में आ कर दीवाल में बनी आलमारी में करीने से लगी किताबों को देखने लगी। बड़ी सी आलमारी कमरे के पूरे दीवाल में बनी थी।

वो मुग्ध हो कर इतनी सारी किताबों को देख रही थी।

इधर आरिफ के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। वो जिस मकसद से पुरवा को यहां लाया था उसे पूरा करना था।

एकांत पाते ही वो पुरवा से अनुरोध करते हुए अपने हाथ जोड़ कर बोला,

"पुरवा…! देखो…! मना मत करना। तुम्हें जितनी किताबें चाहिए ले लो। पर मेरा एक काम कर दो।"

आरिफ को इस अंदाज में देखकर पुरवा हैरान थी कि आखिर वह कौन सा काम है जिसे करवाने के लिए आरिफ उसकी आगे हाथ जोड़ रहा है। वो आश्चर्य से बोली,

"क्या बात है.. भईया..? आप बोलो। अगर हम कर पायेंगे तो जरूर करेंगे। आप बोलो तो।"

आरिफ बोला,

"बहन ये काम सिर्फ तू ही कर सकती है।"

पुरवा बोली,

"क्या..? भाई…! बोलो।"

आरिफ बोला,

"तुम्हें ये तो पता ही होगा कि मेरा निकाह नाज़ से तय हुआ है।"

पुरवा आराम से बोली,

"हां..! पता है।"

आरिफ बोला,

"नाज़ तुम्हारी सहेली है।"

पुरवा बोली,

"हां..! ये तो सभी जानते है। पर आप अपना काम तो बताओ भाई।"

आरिफ पुरवा की खुशामद करते हुए बोला,

"मुझे बस एक बार किसी तरह नाज़ से मिलवा दो अकेले में।"

पुरवा बोली,

"क्या भाई…? अभी तक तो आप उससे मिलते ही थे। अब निकाह तक तो सब्र कीजिए।"

आरिफ बोला,

"नही पुरवा ऐसी कोई बात नही। मैं सिर्फ उससे मिल कर ये जानना पूछना चाहता हूं कि उसे इस रिश्ते पर कोई एतराज तो नही है। कहीं वो घर वालों के दबाव में तो नही है। मैं नहीं चाहता कि उसके साथ कोई जबरदस्ती हो।"

पुरवा बोली,

"ऐसी तो कोई बात नही है। मैं उसकी सहेली हूं। अच्छे से जानती हूं वो खुश है।*

फिर शरारत से मुस्कुराती हुई बोली,

"पर… भाई जान ..! अगर आप खुद से ही मिल कर पूछना चाहते हैं तो मैं आपकी ये इच्छा जरूर पूरी करूंगी।"

फिर कुछ सोचते हुए बोली,

”कल सुबह मैं सिधौली चली जाऊंगी। आप कल शाम को आम के बाग वाले पोखरा के पास आ जाइएगा। हम नाज़ के साथ वहीं आपको मिलेंगे। ठीक है। अब तो खुश…!"

आरिफ पुरवा की नाज़ से मिलवाने की हामी भरने पर खुश हो गया।

तहे दिल से पुरवा को शुक्रिया अदा किया। फिर तीन चार किताबे निकाल कर उसे पकड़ा दी।

पढ़ने का जबरदस्त शौख रखने वाली पुरवा को यहां गांव में किताबें नही मिल पाती थी। फिर चाहे वो कितनी भी कीमत दे ले। उसके पसंद की किताबें शहर में ही मिलती थी। और वो शहर सिर्फ इसी काम के लिए जा नही पाती थी।

अब किताबो की शौखीन पुरवा को एक ऐसा माध्यम मिल रहा था जो उससे इस शौख को पूरा कर सकता था।

इसके बाद पुरवा अपनी मां और नानी के साथ अपने घर वापस आ गई। फिर दूसरे दिन सुबह अपनी मां के साथ सिधौली चली आई।

आते ही वो नाज़ के घर गई। आरिफ ने जो कहा था उसे नाज को बताया। नाज़ बोली,

"पर अम्मी से कैसे पूछूं ..? वो क्या सोचेंगी..?"

पुरवा बोली,

"मैं चाची से पूछ लेती हूं। वैसे भी तो हम घूमने जाते ही हैं। फिर आज क्या नया है..?"

क्या नईमा ने नाज़ को पुरवा के साथ बाग वाले पोखरा पर घूमने जाने की इजाजत दी..? क्या आरिफ नाज़ से मिल कर अपने मन की शंका को मिटा पाया …?