Kataasraj.. The Silent Witness - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 10

भाग 10

निकाह की अनवरत चलती तैयारियों के बीच अब आरिफ और नाज़ के मिलने जुलने के मौके पर तो जैसे ब्रेक ही लग गया था।

शमशाद को कहीं से आरिफ की इस कारगुजारी की भनक लग गई थी। अब जवान भाई था, उस पर भी उसका निकाह तय हो गया था। वो मिलता भी किसी गैर लड़की से नही उसी लड़की से था। तो फिर मना करने को कोई सबब नही था।

बस ये बात थी कि गांव, इलाका, रिश्तेदारों में बड़ी इज्जत है उनकी। ये बात बात फैलने पर थोड़ी रुसवाई हो जायेगी।

बहुत सोच समझ कर शमशाद ने इसका तोड़ ये निकाला कि सामने से आरिफ को मना करने की बजाय उसे इधर के कामों में इतना व्यस्त कर दिया जाए कि वो नाज़ के गांव की ओर रुख ना कर सके।

अब ढेर सारे नौकर चाकर होने के बावजूद शमशाद आरिफ को कहीं न कहीं भेज देते। कभी किसी रिश्तेदार को निकाह का दवातनामा देने भेज देते। कभी किसी। ये सबसे अच्छा उपाय था उनकी निगाह में। रिश्तेदार भी खुश कि अरे…! देखो दूल्हा खुद दावत नामा देने आया है। लंबे समय से आरिफ पढ़ाई की वजह से उनसे मिल नही पाता था। अब एक पंथ दो नही तीन काज हो रहा था। एक वो नाज़ से मिलने के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहा था, दूसरा दावत नामा बंट जा रहा था, तीसरा सबसे मुलाकात हो जा रही थी। और शमशाद सुकून से सांस ले रहे थे।

पर आरिफ को बड़े भाई का ये हुकुम दावत नामा बाटने वाला एकदम बकवास लगता। उसने जिरह भी की। बोला,

"क्या भाई जान ….? अब अपने निकाह का कार्ड भी मैं खुद ही सबको जा कर बांटू…! ये तो बड़ी ज्यादती है मेरे साथ। पहले भी खानदान में किसी ने किया है ये काम…..? जो आप मुझसे करवा रहे हैं।"

शमशाद मियां आरिफ की झल्लाहट का मजा लेते हुए बिना कुछ बोले मुस्कुरा कर उठ गए।

शमशाद मन ही मन ये सोच कर मुस्कुरा रहे थे कि बेटा खानदान में तुमसे पहले किसी ने तुम्हारी वाली हरकत भी तो नही की थी।

बड़े भाई जान का इस तरह उठ कर जाना उनके हुकुम की तामील का बिना किसी ना-नुकर के पूरा करने का इशारा था।

निकाह से कुछ पहले सलमा खाला और अमन के आ जाने से अब सचमुच में लगने लगा की वाकई निकाह के दिन करीब आ गए हैं।

अब शमशाद को यकीन हो गया था कि अमन आ गया है। आरिफ अब जब उसके साथ रहेगा तो नाज़ से मिलने बिलकुल नहीं जायेगा। वो आरिफ की तरफ से निश्चिंत हो गए।

आरिफ को घुड़सवारी करते देख अमन बोला,

"भाई जान …! मुझे भी बड़ा अच्छा लगता है घुड़सवारी करना।"

अमन बोला,

"सिर्फ अच्छा लगता है या आता भी है…? आता हो तो तुम्हारे लिए भी सवारी के लिए घोड़ा मंगवाऊं।"

अमन बोला,

"नही भाई जान …! मौका ही नही लगा कभी।"

आरिफ बोला,

"अभी तक नहीं लगा मौका, पर अब तो लगा है। चलो आज से ही तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू कर देते हैं।"

अमन भी सीखने को आतुर था।

वो आरिफ के पास आ गया। आरिफ ने पहले उसे अपने पीछे बिठा कर एक राउंड लगवाया ये दिखाने के लिए कि लगाम कैसे पकड़ते हैं। रुकने के लिए कितना कसना पड़ता है….?"

हवेली के में गेट के पास आ कर आहिस्ता से आरिफ ने अमन से पूछा,

"क्यों अमन ….! क्या कहते हो…..? देखना चाहोगे अपनी लगभग हो चुकी भाभी जान को….?"

अमन भी मजाकिया लहजे में बोला,

"हां.. भाई जान…! क्यों नही…? इसी बहाने आपको भी उनका दीदार हो जायेगा। मेरे बहाने से आपका भी भला हो जायेगा।"

अमन की बात पर आरिफ ठठा कर हंस पड़ा।

बोला,

"बरखुरदार.. छोटे…! जिसे लगती है वही जानता है। उड़ा लो अभी मजाक अपने भाई जान का। जब कभी तुम्हें भी इस दौर से गुजरना पड़ेगा तब पूछूंगा मैं।"

हमेशा की तरह एक किताब थी आरिफ के पास।

उर्मिला के घर के सामने पहुंच कर आरिफ ने घोड़ा रोका।

अशोक बाहर ही अपनी गाय को नहला धुला कर मालिश कर रहे थे। उर्मिला ढेर सारी मटर ले कर छील रही थी।

घोड़े पर बैठे बैठे ही आरिफ ने नमस्ते किया अशोक और उर्मिला को।

उर्मिला ने घोड़े से उतर कर बैठने को कहा।

पर आरिफ ने ये कह कर मना कर दिया कि साथ में मेहमान है। जल्दी वापस जाना है।

उर्मिला बोली,

"पुरवा से काम है….? पर वो तो नहा रही थी। रुको देखती हूं शायद नहा ली हो।"

फिर उर्मिला भनभनाती हुई अंदर जाने लगी।

"ना जाने ये लड़की कब सुधरेगी…..? बताओ…! आधा दिन बीत गया। पर अभी तक इनका नहाना नही हो पाया। किसी काम का कोई समय ही नही है। ब्याह लायक हो गईं पर एक पैसे का सहूर नही है। जिस घर जाएगी उसे भी तार देगी।"

अभी उर्मिला अंदर जा भी नही पाई थी। पुरवा जो नहा कर बाहर ही आ रही थी अम्मा के द्वारा बुलंद स्वर में अपनी की जा रही तारीफ सुन रही थी। दरवाजे से बाहर निकलती पुरवा जो अपना गीले बाल को सिर झुका कर गमछे में लपेटते हुए आ रही थी। अपनी अम्मा को नही देखा। जोर से उनसे टकरा गई।

उर्मिला जो पहले ही खिसियाई हुई थी पुरवा के देर से नहाने से टकराने पर तो जैसे बम ही फट गया। उसे बाहर की अपने से दूर धकेलते हुए कराह कर बोली,

"अरे… पुरवा…..! कोई तो काम ढंग का किया कर…! मेरा पैर कचर दिया। गांव की सारी लड़कियां भोर में उठ कर चौका बरतन, खाना पीना निपटा देती हैं। और एक यह है कि अपना भी काम नहीं कर पाती है।"

अम्मा के इस तरह की डांट की अभ्यस्त पुरवा उर्मिला की डांट को हवा में उड़ाती हुई मजे लेते हुए अपने पिता अशोक से बोली,

"बाऊ जी ..! अब एक घंटे के लिए तो आपके मनोरंजन का इंतजाम हम कर दिए हैं। रेडियो चालू है… ध्यान से सुनिए।"

उर्मिला जो अब तक खुद को पैर के दर्द से संभाल चुकी थी बोली,

"अन्हरी…! हम तो नही ही दिखे तुझको अब क्या आरिफ भी नही दिख रहा है…? जा देख उसे तुझसे कोई काम तो नहीं है। किताब ली है..? जा… शायद वही लेने आए हैं।"

पुरवा ने देखा तो सच में सामने आरिफ भाई ही थे घोड़े पर बैठे हुए।

क्या आरिफ पुरवा से किताब लेने ही आए थे….? क्या पुरवा ने उसे वापस किया…..? क्या आरिफ किताब के बहाने जो कुछ कहने आए थे पुरवा से कह पाया….? जानने के लिए पढ़ें अगला भाग।