Kataasraj.. The Silent Witness - 49 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 49

भाग 49

उर्मिला के पास पहुंचते ही सलमा ने खड़े हो कर उसे गले लगा लिया और फिर पास ही बिठा लिया। उर्मिला कलमा से नमस्ते कर सलमा से बातें करने लगी।

अशोक को शमशाद और साजिद ने अपने करीब बिठा लिया।

पुरवा वहीं उर्मिला के पास सिमटी हुई खड़ी थी चुप चाप। दो मिनट बाद कलमा बोली,

"अरे…पुरवा तुम क्यों हम बुढीयों के बीच क्यों अटकी हुई हो..! जाओ अंदर . नाज़ तुम्हारा इंतजार कर रही है सुबह से ही। जाओ बिटिया..!"

पुरवा तो संकोच वश यहां रुकी हुई थी। कैसे दूसरे के घर में दनदनाती हुई घुस जाए..! वो तो बस इसी इंतजार में थी कि कोई कहे और वो अंदर नाज़ के पास चली जाए। अब उसका इंतजार खत्म हुआ और कलमा ने उसे अंदर जाने को कह ही दिया।

पुरवा तेजी से अन्दर नाज़ के कमरे की ओर चली गई।

जब नाज़ के कमरे के करीब पहुंची तो नाज़ो… ! नाजों..! पुकारती हुई कमरे में घुस गई।

नाज़ जो आलमारी खोलते खोले कुछ कपड़े निकालने में लगी हुई थी। उसे वैसे ही छोड़ दिया और पुरवा की आवाज सुन कर उसकी ओर आई और दोनो सहेलियां कंधे से एक दूसरे को पकड़ कर गोल गोल घूमने लगी। पुरवा हांफते हुए बोली,

"रुक जा नाज़ो.….! जरा धीरे.. देख नही रही..मेरा दम उखड़ा जा रहा।"

पुरवा के ये कहने पर नाज़ रुक गई। सचमुच में उसकी सांसे तेज चल रही थी। नाज़ ने उसे बिस्तर पर बिठा दिया और बोली,

"अरे… ! मैंने तो ध्यान ही नही दिया। तेरी सांस इतनी तेज क्यों चल रही है..?"

पुरवा ने बोली …बोलते हुए कहा,

"पैदल चल कर… सामान ढो कर आ रही हूं बहना..! तो मेरी ही तो सांस फूलेगी या तेरी फूलेगी इस मखमली गद्दे पर आराम फरमाते फरमाते। अब मेरे दरवाजे पर बग्घी थोड़े ना खड़ी है।"

नाज़ पुरवा की ठुड्ढी को अपने हाथो से थाम कर हिलाते हुए बोली,

"मेरी प्यारी पुरवा रानी…! घबरा मत। अब तेरे भी दिन बहुत जल्दी बहुरने वाले हैं। गुलाब बुआ बड़ी मालदार हैं। और बैरिस्टर साहब पढ़ लिख कर तेरे आगे नोटों के ढेर लगा देंगे। फिर चाहे बग्घी खड़ी कर घर के दरवाजे पर चाहे मोटर कार। समझी..।"

फिर नक्काशीदार सुराही से पानी निकाल कर गिलास में डाला और उसे पुरवा को पकड़ाते हुए बोली,

"ले.. पानी पी ले.. आराम मिलेगा।"

पुरवा ने गिलास थामा और गट गट करके एक सांस में गिलास खाली कर दिया।

अब उसे राहत मिली पानी पी कर। उसने नाज़ से पूछा,

"और बताओ.. नाज़ो..! कैसी चल रही जिंदगी…? अब तो घुल मिल गई होगी तुम इस घर में सब से।"

नाज़ बोली,

" हां..! अब तो अच्छा लगने लगा है। सभी बहुत ख्याल रखते हैं मेरा। सलमा मौसी तो खासा ख्याल रखें हैं मेरा। पता है… वो तो मुझे और तेरे आरिफ भाई को भी साथ चलने को बोल रही थीं कि चलो घूम घाम आओ। मैं तो खुश हो गई कि तुम जा ही रही हो। हम लोग भी चलते तो खूब मजा आता।"

फिर मुंह बनाते हुए बोली,

"पर अम्मी जान ने मना कर दिया ये कह कर कि अभी नई दुल्हन है, जाना ठीक नही। कुछ समय बाद भेज देंगी हमें भी घूमने के लिए। या फिर जब वो अगली बार आएंगी ना तब हम उनके साथ चले जायेंगे।"

पुरवा बोली,

"तुझे मानना ही नही था। कहती कि नही हम भी चलेंगे। फिर साथ खूब मजे करते हम दोनो। अब तो रास्ता कैसे कटेगा इन बड़े बूढ़ों के बीच.. भगवान ही मालिक हैं।"

नाज़ बोली,

"अच्छा जी…! मैं छोटी बच्ची हूं ना.. मैं मायके में हूं ना जो जिद्द करूंगी। और फिर सब पूरा भी कर देंगे। बच्ची ये ससुराल है ससुराल.. यहां बड़े बड़े समझौते लड़कियों को करने पड़ते हैं। (बुजुर्गाना अंदाज में उपदेश देते हुए नाज़ हाथ को ऊंचा कर के बोली) पर तुम ये सब अभी नहीं समझोगी। जब ब्याह के ससुराल जाओगी ना तब समझोगी ये सब। जिद्द विद्द सब भूल जाओगी। जी.. जी.. ही करनी पड़ेगी सब के आगे।"

फिर बोली,

"क्या बोला तूने…? बड़े बूढ़ों के बीच में…! अरे.. पुरवा रानी..! इन सब बड़े बूढ़ों के बीच एक सजीला नौजवान भी तो है। उसे कैसे भुल जा रही हो तुम…! वो मन लगाएगें ना तेरा। घबरा क्यों रही है..!"

पुरवा जाने क्यों अमन के नाम से शरमा गई।

अपनी बड़ी बड़ी पलकों को झुका कर लजीली मुस्कान के साथ बोली,

"तू भी ना नाज़..! कुछ भी बोल देती हैं। बिना सोचे समझे।"

नाज़ हंसते हुए बोली,

"वाह .. वाह.. क्या मुस्कान है। खुदा कसम अगर अमन देख ले ना तो मर मिटे इस खूबसूरती पर। वो तो वैसे ही मुझे तुझ पर फिदा हुए लगते हैं। सच बता पुरवा.…! तुझे भी अच्छे लगते हैं क्या..?"

पुरवा गुस्सा होते हुए बोली,

"देख नाजो..! थोड़ी देर रहना है मुझे। उसमें ऐसी कोई बात मत बोल कि लड़ाई झगड़ा हो जाए। मुझे तेरे अमन जी में कोई दिलचस्पी नहीं है।"

नाज़ ने बात को वहीं खत्म करते हुए उठ गई और आलमारी के पास आकर कुछ सलवार कमीज निकाली और उसे ला कर पुरवा के आगे रख दिया। और बोली,

"पुरवा….! ये मेरी तरफ से तेरे लिए मेरे निकाह की सौगात है। देख कैसे हैं..?"

फिर एक चटक नीले रंग के सूट को खोल कर पुरवा के बदन पर डालते हुए बोली,

"जरा देख पुरवा…! तुझ पर कितना खिल रहा है ये रंग..! देख शीशे में।"

नाज़ ने पुरवा को श्रृंगार दान के शीशे के सामने खड़ा कर दिया।

पुरवा ने देखा वाकई उस पर बहुत जंच रहा था ये कपड़ा। पर वो उसे अपने से हटाते हुए बोली,

"नही नाज़..! हम इसको नही ले सकते। ये तुम्हारा है तुम्ही रख्खो।"

नाज़ बोली,

"हां मेरा ही है। अब मेरी मर्जी उसे जिसे चाहे उसे दूं। देख तुमझो इसे ही नही इन सब को रखना ही होगा। वरना मैं नाराज हो जाऊंगी।"

नाज़ का रुख देख कर पुरवा को यकीन हो गया कि अगर वो नही लेगी इसे तो सचमुच में नाज़ नाराज हो जायेगी।

तभी कल्लन मियां चाय नाश्ता ले कर आ गए।

उसे टेबल पर रखते हुए बोले,

"छोटी बेगम..! आप दोनो जल्दी से इसे खा पी लें। जाने का वक्त हो रहा है। बड़ी बेगम ने जल्दी करने को बोला है।"

इतना कह कर कल्लन मियां बाहर चले गए।