Kataasraj.. The Silent Witness - 48 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 48

भाग 48

अशोक और उर्मिला को चाची के पास देर लगते देख पुरवा भी आ गई। अशोक से सट कर उसका हाथ पकड़ कर दुलराते हुए बोली,

"चलो ना बाऊ जी…! देर हो रही।"

चाची ने अशोक और उर्मिला को आशीष दिया । पुरवा को पास बुला कर सिर पर हाथ फेरा और मीठी झिड़की देते हुए बोलीं,

"बड़ी जल्दी है तुझे जाने की पुरवा। ज्यादा नही चोन्हा रही है, जा रही है इया को छोड़ कर तो। इतनी बड़ी हो गई ये लड़की पर बचपना नही गया। आ लौट कर तो… जल्दी से तेरे फेरे करवा कर तुझे बिदा करती हूं। गुलाब बड़े बेसब्री से तेरा इंतजार कर रही है तेरे आने का।"

अपने ब्याह की बात इया के मुंह से सुन कर पुरवा के हाव भाव पलक झपकते ही बदल गए। वो आंखे झुका कर शांत खड़ी हो गई।

अशोक बोले,

"हां चाची..! आप ठीक कह रही हैं। इसी लिए तो और इसे लिए जा रहे हैं। जिससे अगर कोई ग्रह दोष वोश हो तो टल जाए। कोई बाधा ना आए शुभ काम में। अब लौट कर वापस आएं तो पूरी बात आपको बताते हैं।"

उर्मिला भी बोली,

"हां चाची..! यही कारण था कि जाना टाल नही सकते थे। आप निगाह रखना धनकू और उसकी पत्नी पर। कुछ इधर उधर ना करने पाए।"

चाची बोली,

"तुम लोग निश्चिंत हो कर जाओ। सब हो जायेगा।"

इसके बाद अशोक उर्मिला और पुरवा को साथ ले कर चल दिया।

दो झोला अशोक ने सिर पर लाद लिया और एक हाथ में। उर्मिला ने और पुरवा भी एक एक झोला हाथों में टांग कर शमशाद हुसैन के हवेली की ओर चल पड़ी।

धूप तेज थी। बदन को तपा दे रही थी। दूसरे सिर और हाथ में बोझा भी था। तीनों थोड़ी ही दूर में पसीने पसीने हो गए। पुरवा को बार बार माथे से पसीना पोछते और थकते देख एक छाया दार पेड़ देख कर उसके नीचे अशोक दो घड़ी सुस्ताने को रुक गया। बोला,

"थक गई बिटिया..! सुस्ता ले थोड़ा सा। फिर चलते हैं। ला ये झोला तू मुझे दे दे। तब आराम से चल सकेगी।"

पुरवा इस चक्कर में थी कि गाड़ी के समय से थोड़ा पहले पहुंच जाएगी तो थोड़ी देर नाज़ के साथ भी रह लेगी। झोला थोड़ा भारी था इसलिए पुरवा सच में थक गई थी। पर अपनी थकान का बहाना उसके पास मौजूद था। इसलिए झोला तो बाऊ जी को पकड़ा दिया। पर बोली,

"बाऊ जी..! हम थके नही हैं। वो अम्मा ने मुझको ही सबसे भारी वाला झोला पकड़ा दिया। इसी लिए आपको ऐसा लग रहा है। आप दूसरा वाला मुझे दे दीजिए और चलिए। रुकने से क्या फायदा..? और भी गरमी बढ़ती ही जायेगी। रुकने से कम थोड़ी ना हो जाएगी।"

अशोक और उर्मिला एक दूसरे को देख कर कर मुस्कुरा पड़े पुरवा की बात सुन कर। वो हर हाल में खुद को किसी से कमजोर साबित नही होने देगी। अब चाहे जितनी भी गरमी और तेज धूप हो ये ना रुकेगी ना रुकने देगी। नाज़ से मिलने की जल्दी जो इसे लगी हुई है।

दो घड़ी बीतते न बीतते पुरवा ने फिर से उर्मिला और अशोक को चलने पर मजबूर कर दिया।

गाड़ी शाम को चार बजे की थी। शमशाद की हवेली पर भी गहमा गहमी मची हुई थी। निकाह में शामिल होने आए सारे मेहमान जा चुके थे। आज आखिरी मेहमान सलमा और साजिद भी जा रहे थे। आज उनकी भी विदाई थी। शमशाद हुसैन ने बग्घी वान को बग्घी तैयार करने को सुबह ही सहेज दिया था। वो घोड़ों को खिला पिला कर तैयार खड़ा था कि हुकुम मिले और वो चल पड़े।

लाख मना करने के बाद भी कलमा ने साजिद, सलमा, अमन और जो नही आए थे उनके लिए भी कई उपहार रखवा दिए थे। कलेजा धड़क रहा था कि सलमा चली जा रही है अब जाने कब आयेगी…! इतने लंबे अंतराल के बाद तो वो आई है।

साजिद कलमा आपा को आश्वासन दे रहे थे कि आप चिंता मत करिए.. दुखी मत होइए… हम अगले साल फिर आएंगे। पक्का वादा कर रहे हैं।

परंतु कलमा को यकीन नहीं हो रहा था। सलमा भी सफर वाले हल्के कपड़े पहन कर जाने के लिए तैयार हो कर बाहर आ गई।

बाहर आकर कलमा के बगल में बैठी और बोली,

"देखो आपा…! आपकी बात मान कर मैं आई और इतने ज्यादा दिनों के लिए आई। सबसे पहले आई थी और सबसे बाद में जा रही हूं। आप रोइएगा मत। मैं नहीं चाहती कि रास्ते भर मैं आपका रोता हुआ चेहरा याद करूं। मेरी जेहन में आपका हंसता मुस्कुराता चेहरा रहे ताकि जब भी आपको याद करूं आपकी वही तस्वीर मेरे जेहन में उभरे। ठीक है ना।"

कलमा उदास थीं और रोनी सूरत पूरी बनी हुई थी। बस रोने ही वाली थी। पर सलमा की बात सुन कर अपने आंसुओं के वेग को पूरी ताकत से अंदर ही जज्ब कर लिया और सलमा के गाल को दुलराते हुए बोली,

"नही रोऊंगी … तुम चिंता मत करो। तुम्हारी यादों में हंसता चेहरा ही उभरेगा। तुम्हारी खुशी के लिए इतना तो मैं कर ही सकती हूं।"

सलमा बाहर की ओर देखते हुए बोली,

"उर्मिला अभी तक नही आई..! अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था।"

कलमा बोली,

"आती ही होगी। निकलते निकलते थोड़ा समय लग ही जाता है। फिर उसको तो घर को दूसरे के भरोसे छोड़ कर जाना है।"

तभी उर्मिला, अशोक और पुरवा लदे फदे आते दिखे। सलमा बोली,

"लो वो आ गए। बड़ी लंबी उमर है। नाम लिया और आ गए।"

सलमा की बात पर शमशाद ने भी उस और देखा। आरिफ और अमन वही कुछ दूर खड़े घोड़े के पुट्ठो को सहला रहे थे। आरिफ अमन को घोड़े को आदतों और विशेषताओं के बारे में बता रहा था। तभी अशोक परिवार सहित उसके पास आए। शमशाद दूर से ही चिल्लाए और बोले,

"अरे..! कम अक्लो..! तुम्हें इतनी भी समझ नही है कि सामान थाम लो। तमीज तहजीब तो बेच खाई है आज कल के नौजवानों ने।"

जिधर से अशोक आ रहे थे, उस और अमन और आरिफ की पीठ थी। शमशाद की आवाज पर उन्होंने मुड़ कर देखा और जल्दी से अशोक, उर्मिला और पुरवा के हाथों से समान थाम लिया।