BOOND PAGAL HO GAYI ! books and stories free download online pdf in Hindi

BOOND PAGAL HO GAYI !

नाम सोनू कसाना

मोबाइल न0 0975950137

बूंद पागल हो गई कहानी संग्रह

1 बूंद पागल हो गई

जौलाई का माह था। आज 2 तारीख है। प्राची दिषा में जैसे गुस्से से लाल सूरज अपने रथ पर सवार होकर आ पहुंचा है। किसानों का बचाकुचा खून चूसने। बारिस के लिए चारों ओर त्राहिमाम मचा था। आस पास के गांव के लोग इंद्रदेव को मनाने और कोसने लगे हुए हैं। कोई यज्ञ कर रहा है , कोई समाधि ले रहा है, काई कन्याओं को भोजन करा रहा है। दिन के लगभग तीन बजे अचानक हल्की हवाओं के साथ कहीं से बादल आए बरसने लगे। चारों ओर खुषी की लहर दौड गई। खूषियां आसमान से पानी बनकर बरस रहीं थीं। बच्चें सडकोें पर बारिस में भीगते हुए इधर उधर दौड लगा रहे थे। उन्हें देखकर मन खुष हो गया। मैं जाकर आंगन में लगे पपीते के पेड को ष्निहारने लगा। पपीते के बडे बडे पत्तों पर कई बूंद आती और टप टप टपक जाती लेकिन एक बूंद पत्ते से चिपकी हूई थी। मेरा ध्यान उस बूंद पर टिक गया। उस बूंद का आकार लगातार बढ रहा था। उसके बाद की कई बूंद टपक चुकी थी। लेकिन वो बूंद टपकने को तैयार ही नही थी जैसे कह रही हो मैं टपकूंगी जरूर लेकिन संर्घष करके। मुझे लगा कि बूंद पागल हो गई ! एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही है। ऊपर से पानी बरस रहा था और नीचे ्‌ कब तक खुद को बचाएगी। बूंद का निचला हिस्सा भारी होने लगा था। बूंद का संर्घष तब तक जारी रहा जब तक कि एक हवा के झोंके ने उस पर पूर्णविराम नही लगा दिया। बूंद टपक गई। लेकिन मुझे जीवन का पाठ पढ़ा गई कि जिंदगी के दिन बूंदों की तरह बरस रहे हैं और मौत गुरूत्वाकर्षण की तरह हमे अपनी और खींच रही है। निर्णय हमारे हाथ में है कि हमे टप से टपक जाना है या पागल बूंद के जैसे संर्घष करके। सोचो !

2 हरद्वार या हरिद्वार

आज मैं आपको भगवान हरि अर्थात विष्णु की नगरी कहे जाने वाले ष्षहर हरिद्वार का नाम हरद्वार होने की कहानी बताता हूं। एक बार की बात है हरिद्वार मे रहने वाले दो अखाडों के साधुओं के बीच हरिद्वार के नाम को लेकर बहस छिड़ गई। एक अखाडा ष्षहर का नाम हरिद्वार जबकि दूसरा हरद्वार बता रहा था।

जबकि हर या हरि दोनों का अर्थ ही दुखों को हरने वाला अर्थात श्गवान होता है।

लेकिन हर श्गवान षिव के लिए, तथा हरि श्गवान विष्णु के लिए प्रयुक्त होते हैं।

बात बढी तो न्यायालय तक जा पहुंची जब न्यायालय मे भी कोई निर्णय न निकला तो बात उच्च न्यायालय पहुंची।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीष महोदय ने मामले की गंभीरता को समझते हुए स्वयं ष्षहर जाने का निर्णय लिया।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीष महोदय ने कुछ अन्य कर्मचारियों को साथ लिया ओैर हरिद्वार के प्रत्येक पहलू को ध्यान से प्रखने लगे।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीष महोदय ने प्रखने के बाद पाया कि हरिद्वार में सबसे ज्यादा महत्व हडड़ियों का हैै। दुनिया श्र से लोग अस्थि विसर्जन के लिए यहां आते हैं। और दूर दूर से अंतिम संस्कार के लिए श्ी आते हैैं।

अतः उच्च न्यायालय के न्यायाधीष महोदय ने अपना निर्णय सुनाया कि इस ष्षहर का नाम हाडद्वार होना चाहिए परन्तु हाडद्वार को श्ी अंग्रेजी मे हरद्वार ही लिखा जायेगा अतः इस ष्षहर का नाम हरद्वार रहेगा। इस प्रकार श्गवान कि कृपा से हमारे इस तीर्थ का नाम हरद्वार हो गया।

हर वर्ष लाखों श्रधालू हरद्वार आते हैं उन से मेरा विनम्र निवेदन है कि गंदगी ना फैला कर हरद्वार का मान और अधिक बढ़ाऐं।

3 आम के पेड़ का रहस्य

गर्मीयों के दिन थे। आम के पेड़ों पर आम पक रहे थे। मानसी, मोहन की छोटी बहन थी, ओर राजम, मोहन का चचेरा भाई था। एक दिन तीनों ने स्वयं आम तोड़कर लाने का प्लान बनाया। अक्सर घर का कोई बड़ा आम तोड़कर उन्हें ला देता था। घर के बड़े अक्सर बच्चों को आम के पेड़ से दूर रहने कि हिदायत दिया करते थे। लेकिन आज मोहन ने ठान लिया था कि आम के फल स्वयं तोड़कर खायेंगे। मोहन उन दोनो का कप्तान बना।तीनो बिना किसी को बताये चुपचाप आम के पेड़ पर पहुंचे। इस समय जंग लमे ना के बराबर ही लोग रहते हैं। मोहन ने नायक की तरह समझाय, देखो मानसी हम दोनो आम गिरायेंगे तुम उन्हे एकत्र करते रहना। मोहन और राजम पेड़ पर चढ़ गये। दोनो अलग अलग डालों पर जाकर डालों को जोर जोर से हिलाने लगे । अभी इक्का दुक्का आम ही गिरे थे, कि अचानक मोहन भी चीखते हुए जमीन पर आ गिरा। मानसी की भी चीख निकल गई। राजम जल्दी जल्दी नीचे उतरा और मोहन को बेहोस देखकर रोने लगा। वह समझ नही पा रहा था कि क्या करे क्या ना करे। अभी वह सोच ही रहा था कि क्या करे कि संयोग से उसके पिता वहां आ पहुंचे। राजम ने सारी बात उन्हे बताई। उन्होंने राजम और मानसी को दिलासा दिया और मोहन को उठाकर घर लेकर आये। मोहन को बेहोस देखकर घर मे सब घबरा गये। डॅाक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर ने सुई लगाई। कुछ समय बाद मोहन को होस आया। मोहन ने आंखें खोली तो सारे परिवार को पास पाकर थोड़ा सा घबरा गया। लेकिन मां ने प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए पुछा मोहन क्या बात हो गई थी ? तो मोहन ने जो जवाब दिया उसे सुनकर सब दंग रह गये। मोहन ने कहा कि, मां मुझे किसी ने धक्का मारा था। राजम तो दूसरी डाल पर मुझसे दूर था। वो कोई और था। मां ने पुछा लेकिन कौन ? मैं नही जानता मम्मी वो कौन था ! लेकिन हां उसने सफेद कपड़े पहन रक्खे थे और ये कहते हुए उसके चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई थी। सब घर वालों के चेहरों के हाव भाव भी देखने लायक थे। सबने मोहन को समझया कि ये उसका वहम है। लेकिन घर वालों में यही बहस चल रही थी कि क्या मोहन सच बोल रहा है या ये उसका वहम ही था। कोई कहता कि इतना बड़ा बच्चा झूंट नही बोल सकता है। किसी ने कहा कि ड़ांट के डर से उसने शायद झूंट बोला होगा।

कुछ दिनो बाद जब मोहन के सामने फिर से उस बात का जिक्र आया तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया तो घर वालों ने उसका डर दूर करने के लिए वो आम का पेड़ कटवा दिया। और फिर कभी घर वालों ने मोहन के सामने उस बात का जिक्र नही किया।