उजाले की ओर - 8

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उजाले की ओर--8 --------------------- आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमन ज़िंदगी की राहों में अनगिनत फूल खिलते हैं ,साथ ही काँटे भी |हम मनुष्य बहुधा इस गफलत में फँस जाते हैं | हम फूल तो चुन लेते हैं किन्तु काँटों की चुभन को सह पाना हमारे लिए कठिन हो जाता है | जिस प्रकार से रात-दिन,अँधियारा-उजियारा है उसी प्रकार से यह प्रसन्नता व पीड़ा भी है |इससे कोई भी नहीं बच सका है |किसी भी मनुष्य का जीवन एक सपाट मार्ग पर नहीं चल सकता ,उसे सपाट मार्ग के साथ ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर भी चलना ही होता है | प्रश्न यह उठता