UJALE KI OR - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

उजाले की ओर - 8

उजाले की ओर--8

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आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों

नमन

ज़िंदगी की राहों में अनगिनत फूल खिलते हैं ,साथ ही काँटे भी |हम मनुष्य बहुधा इस गफलत में फँस जाते हैं | हम फूल तो चुन लेते हैं किन्तु काँटों की चुभन को सह पाना हमारे लिए कठिन हो जाता है | जिस प्रकार से रात-दिन,अँधियारा-उजियारा है उसी प्रकार से यह प्रसन्नता व पीड़ा भी है |इससे कोई भी नहीं बच सका है |किसी भी मनुष्य का जीवन एक सपाट मार्ग पर नहीं चल सकता ,उसे सपाट मार्ग के साथ ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर भी चलना ही होता है |

प्रश्न यह उठता है कि कैसे हम अपने मार्ग को सहज करें ? हम जब प्रसन्न होते हैं तब काँटों भरे मार्ग भी हमें अधिक कठिन नहीं लगते किन्तु जब हमारा मन अस्वस्थ होता है तब हम किंचित सी परेशानी से भी बहुत अधिक दुविधाग्रस्त हो जाते हैं और जानते-समझते हुए भी कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो हमारे अनुकूल नहीं होता और यह प्रकृति का नियम है कि वह हमें हमारे कर्मों के परिणाम किसी न किसी रूप में अवश्य देती है |

बड़ी सीधी सी बात है जिस प्रकार के कार्य होंगे ,परिणाम भी वैसा ही होगा |बबूल बोकर हम आम तो प्राप्त नहीं कर सकते | परेशानी यह है कि जब हम बबूल बोते हैं तब हमारी चेतना जागृत नहीं रहती |जब उसका परिणाम समक्ष आता है तब हम सोचते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ होगा ? हमें अपनी त्रुटियों का ख्याल ही नहीं रहता जिन्हें हम अचेतनावस्था में कर बैठते हैं | हम परेशान होते हैं और कोई समाधान प्राप्त नहीं कर पाते|हमारी परेशानी और भी बढ़ती जाती है | इस सबका एक ही समाधान है कि हम किसी भी कार्य को करने से पूर्व अपनी चेतना को जागृत करें |पूर्व में हो गई चूक को समझें,उससे कुछ सीख लें और आगे अग्रसर होने का प्रयास करें |

यदि हम अपने ऊपर ध्यान दें तो अवश्य इस बात को महसूस कर सकते हैं कि किसी भी क्रिया से पूर्व हमारी चेतना हमें पूर्वाभास करवा देती है कि हम क्या करने जा रहे हैं ?बस उसी समय हमें अपने ऊपर ध्यान देने की,अपने ऊपर संयम की आवश्यकता होती है|जब हमें क्रोध आता है तब हमारी साँस दूसरी प्रकार से चलने लगती है ,जब प्रेम का संचार होता है तब हमारी साँस किसी और प्रकार से चलने लगती है ,लय -ताल सब अलग !

तात्पर्य है कि किसी भी क्रिया से पूर्व हमारी मन:स्थिति यह दर्शा देती है कि हम क्या करने जा रहे हैं ? बस,यही क्षण है कि हम स्वयं को जागृत कर लें,तभी हम स्वयं पर अंकुश रख सकेंगे और जीवन में कम परेशानी के साथ आगे अग्रसर होते रहेंगे |

क्रोध से पूर्व जो चेतना होती है ,जो विचार आता है उसका प्रतिफल ही हमारा परिणाम है |अत; आईये अपनी चेतना को जागृत करके अपने जीवन को अधिक सहज,सरल बनाने का प्रयास करें |जीवन है,चलना इसकी नियति है लेकिन ज़रा सा संभलकर चलने से यदि हमारा जीवन शान्ति से चल सकता है तो इससे सुखद क्या हो सकता है ?हम प्रयास करें अपनी स्थिति को समझने का और स्नेहपूर्वक अपने जीवन को व्यतीत करने का ------!!

उम्र के ये दौर चलते जाएंगे

दिन ही क्या सब ऋतु बदलते जाएंगे

स्नेह की गहराईयों को छोड़कर

और सब रिश्ते पिघलते जाएंगे -------!!

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती