यह कैसी विडम्बना है - भाग ५

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“वह कहते हैं ना संध्या कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या ज़रूरत। कई बार सच भी झूठ लगता है और झूठ भी सच। उस समय उस प्रोफ़ेसर ने जो भी देखा वह उनके लिए सच था लेकिन सच में तो वह झूठ ही था। मैंने बहुत कोशिश की उन्हें समझाने की परंतु मेरी बात का किसी ने भी विश्वास नहीं किया। मैं निर्दोष था संध्या यह सच्चाई मैं जानता था और वह लड़की जानती थी। बात प्रिंसिपल तक पहुँच गई, मेरी कोई भी दलील ना सुनते हुए उन्होंने सीधे मुझसे इस्तीफा मांग लिया, यहाँ तक कि पुलिस को भी बुला