Yah Kaisi Vidambana Hai - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

यह कैसी विडम्बना है - भाग ५

“वह कहते हैं ना संध्या कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या ज़रूरत। कई बार सच भी झूठ लगता है और झूठ भी सच। उस समय उस प्रोफ़ेसर ने जो भी देखा वह उनके लिए सच था लेकिन सच में तो वह झूठ ही था। मैंने बहुत कोशिश की उन्हें समझाने की परंतु मेरी बात का किसी ने भी विश्वास नहीं किया। मैं निर्दोष था संध्या यह सच्चाई मैं जानता था और वह लड़की जानती थी। बात प्रिंसिपल तक पहुँच गई, मेरी कोई भी दलील ना सुनते हुए उन्होंने सीधे मुझसे इस्तीफा मांग लिया, यहाँ तक कि पुलिस को भी बुला लिया।। संध्या यह कैसी विडंबना है हमारे समाज की कि वह हमेशा लड़की को ही सही मानता है इसलिए मेरी बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया और बिना सोचे समझे निर्णय भी ले लिया।”

“मेरे घर पर भी यह बात सबको पता चल गई। अपने ताऊजी की जान-पहचान बहुत ज़्यादा है उन्होंने पुलिस कमिश्नर से बात की ताकि कोर्ट केस ना हो पाए। पापा ने पानी के समान पैसा भी बहाया। तुम तो जानती हो ना अपना काम जो कि बिगड़ चुका है, उसमें यदि किसी की मदद लेनी हो तो कितना ख़र्च करना पड़ता है। किसी तरह से कोर्ट केस से तो मैं बच गया। वह लड़की तो केवल इतना ही करना चाहती थी। उसे अदालत के झंझट में शायद नहीं पड़ना था। वह भी डरती होगी ना कि कहीं उसका झूठ ना पकड़ा जाए। ऐसा लगता है मानो वह केवल मुझे इस तरह जाल में फंसाने ही आई थी। इस घटना के तुरंत बाद वह कॉलेज छोड़ कर चली भी गई।”

इतने बड़े आघात से पापा को हार्ट अटैक आ गया। डॉक्टर ने उन्हें देखकर बताया कि उनके इलाज़ में कम से कम 15 लाख रुपए लगेंगे। दीदी की शादी के बाद पापा के जी पी एफ में जितना भी पैसा बचा था वह सारा निकाल कर उनके इलाज़ में लगा दिया, फिर भी पापा को हम नहीं बचा पाए।

मेरे ताऊजी और तुम्हारे पापा के बीच की दोस्ती के कारण हमारा रिश्ता तो होना ही था। अपनी सगाई भी हो चुकी थी, उसके कुछ दिनों बाद ही यह घटना हो गई। तब हमने ताऊजी से कहा था कि शादी रोक देते हैं और उन्हें सब कुछ बता देते हैं। पर ताऊजी ने कहा बिल्कुल नहीं बेटा, बहुत ही अच्छा परिवार है, पढ़ी लिखी बहुत ही शालीन लड़की है। यह रिश्ता टूटना नहीं चाहिए। पापा का फ़ैसला भी यही था कि ताऊजी जो करेंगे वही होगा।

पापा हमेशा ताऊजी की बात मानते थे और हर काम उनसे पूछ कर ही करते थे। माँ और मैं असमंजस की स्थिति में थे कि क्या करें? इस समय हालात ठीक नहीं हैं। तब ताऊ जी ने हमें समझाया कि बेटा यह दिन हमेशा ऐसे ही थोड़ी रहेंगे। कुछ ही दिनों में सब कुछ ठीक हो जाएगा। हमारी शादी की तारीख भी अब तक निश्चित हो चुकी थी। ताऊ जी ने कहा इतनी अच्छी लड़की मिल रही है, उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। आख़िर हमने उनकी बात मान ली।

संध्या हमारी सगाई और शादी के बीच केवल छः माह का ही अंतर था। उसी बीच यह घटना घट गई। हमारी कई बार फ़ोन पर बात भी हुई थी पर मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया। शायद डरता था कि कहीं तुम यह सब सच समझ कर मना ना कर दो। शायद मैं तुमसे प्यार भी करने लगा था। संध्या तुम चिंता मत करो, यह काले बादल कुछ ही दिनों के हैं। यह ज़रूर छंट जाएँगे। मैं तुम्हें दुनिया की हर ख़ुशी देने की कोशिश करूँगा, जो भी मेरे वश में होगा और जितना भी मैं कर सकूँगा। मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ। क्या तुम मुझे माफ़ कर सकती हो?

संध्या ने वैभव से पूछा, "कौन थी वह लड़की? जिसने तुम्हारे इंकार करने के कारण तुम्हारा जीवन बर्बाद करने का इतना घटिया षड्यंत्र रच डाला।"

वैभव ने कहा, "कॉलेज की एक ग्रुप फोटो है मेरे पास। मैंने उसे सामने से हटा दिया था क्योंकि उसमें उस लड़की पर नज़र पड़ते ही मुझे वही सब याद आ जाता है।"

"वैभव मैं वह तस्वीर देखना चाहती हूँ, क्या तुम मुझे दिखा सकते हो?"

"हाँ संध्या क्यों नहीं" वैभव ने वह तस्वीर निकाल कर संध्या के हाथों में देते हुए कहा, "देखो यह है वह लड़की।"

संध्या ने ध्यान से देखते हुए पूछा, "कौन सी वैभव, ये वाली?"

"हाँ यही है।"

उसे देखते ही संध्या के मुँह से निकला, "ओ माय गॉड यह तो शालिनी है।"

क्रमशः

रत्ना पांडे वडोदरा, (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक