Yah Kaisi Vidambana Hai book and story is written by Ratna Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Yah Kaisi Vidambana Hai is also popular in Motivational Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
यह कैसी विडम्बना है - Novels
by Ratna Pandey
in
Hindi Motivational Stories
जगमगाती हुई बल्बों की सीरीज, आसमान पर चमकते पटाखों की सुंदर रौशनी, घोड़े पर सवार वह शख़्स जो आज रात संध्या का जीवन साथी बन जाएगा। घर में ख़ुशियों का माहौल, इन सबके बीच धड़कता संध्या का दिल, अपने जीवन की नई पारी के इंतज़ार में खोया हुआ था। सात फेरे और मांग में सिंदूर भरते ही संध्या पत्नी बन कर हमेशा के लिए अपने जीवनसाथी वैभव की हो गई। जिस आँगन में उस ने जन्म लिया था, उस आँगन की आज वह मेहमान बन गई। ग़म और ख़ुशी के बीच के यह पल बड़े ही अजीब होते हैं। एक तरफ़ बाबुल का आँगन छूटने का ग़म होता है तो दूसरी तरफ़ नए परिवार से मिलने की ख़ुशी भी होती है। संध्या के पिता ने बहुत खोजबीन करने के बाद अनेक रिश्तो में से यह रिश्ता पसंद किया था। पढ़ा-लिखा परिवार, आर्थिक तौर पर संपन्न, अच्छा लड़का, अच्छी नौकरी, बस यही सब तो देखा जाता है और इस सब के बीच में होता है सबसे बड़ा विश्वास। विश्वास जो एक दूसरे पर किया जाता है उसका कोई सबूत नहीं होता। इसी विश्वास की डोर से बंधा था संध्या और वैभव का रिश्ता।
जगमगाती हुई बल्बों की सीरीज, आसमान पर चमकते पटाखों की सुंदर रौशनी, घोड़े पर सवार वह शख़्स जो आज रात संध्या का जीवन साथी बन जाएगा। घर में ख़ुशियों का माहौल, इन सबके बीच धड़कता संध्या का दिल, अपने ...Read Moreकी नई पारी के इंतज़ार में खोया हुआ था। सात फेरे और मांग में सिंदूर भरते ही संध्या पत्नी बन कर हमेशा के लिए अपने जीवनसाथी वैभव की हो गई। जिस आँगन में उस ने जन्म लिया था, उस आँगन की आज वह मेहमान बन गई। ग़म और ख़ुशी के बीच के यह पल बड़े ही अजीब होते हैं। एक
आर्थिक संपन्नता के नाम पर उसे संपन्नता कहीं भी दिखाई नहीं दे रही थी। हर चीज में काट-कसर की जा रही थी। उसने कई बार वैभव और निराली को धीरे-धीरे कुछ बात करते भी सुना था। आर्थिक तंगी का ...Read Moreकरते अपने परिवार के हालात समझने में संध्या को ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। उसे हर समय कुछ कमी-सी लगती ही रहती थी। एक ही छत के नीचे रहते हुए, आख़िर संध्या से क्या-क्या और कब तक छुप सकता था। वह सोचती रही कि वैभव से बात करुँगी पर कर ना पाई। संध्या के विनम्र स्वभाव और उसके संस्कार उसे रोक
वैभव शांत बैठा हुआ संध्या के गुस्से को देख रहा था। वह समझ रहा था कि संध्या का यह गुस्सा बिल्कुल जायज़ है। वह सोच रहा था कि उसका गुस्सा थोड़ा शांत हो जाए तभी उससे बात करना ठीक ...Read Moreउसने कहा, "संध्या प्लीज़ नाराज़ मत हो। मुझे तुम्हें पहले ही सब बता देना चाहिए था लेकिन अब मैं तुम्हें सब कुछ सच-सच बता दूँगा। बस पहले तुम शांत हो जाओ तुम्हारी नाराज़ी मुझे शर्मिंदा कर रही है। मेरा यक़ीन मानो मैं तुम्हें सब बताऊँगा, बस मुझे विश्वासघाती मत समझना।" संध्या नाराज़ होकर रजाई से मुँह ढक कर दूसरी तरफ़
“वैभव मैं नाराज़ ज़रूर थी, सूटकेस लेकर जाने के लिए निकल भी पड़ी थी लेकिन तुम्हारे प्यार ने मुझे रोक लिया। जीवन साथी हूँ तुम्हारी, हर क़दम पर तुम्हारा साथ दूँगी, सिर्फ़ तुम मुझे सच्चाई से मिलवा दो।” “संध्या ...Read Moreलंबी कहानी है, जिस समय मैं कॉलेज में पढ़ता था तब एक लड़की मुझसे प्यार करने लगी थी, पागल थी वह मेरे लिए। मैं जानता था कि उसके दिल में क्या चल रहा है। दिखने में बहुत ही खूबसूरत और दिमाग़ से भी उतनी ही होशियार। उसे इस बात का बड़ा ही घमंड था। उसे लगता था कि यदि वह
“वह कहते हैं ना संध्या कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या ज़रूरत। कई बार सच भी झूठ लगता है और झूठ भी सच। उस समय उस प्रोफ़ेसर ने जो भी देखा वह उनके लिए सच था लेकिन सच में ...Read Moreवह झूठ ही था। मैंने बहुत कोशिश की उन्हें समझाने की परंतु मेरी बात का किसी ने भी विश्वास नहीं किया। मैं निर्दोष था संध्या यह सच्चाई मैं जानता था और वह लड़की जानती थी। बात प्रिंसिपल तक पहुँच गई, मेरी कोई भी दलील ना सुनते हुए उन्होंने सीधे मुझसे इस्तीफा मांग लिया, यहाँ तक कि पुलिस को भी बुला