निर्वाण.

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निर्वाण इसका अर्थ होता है मोक्ष,इस संसार में सभी मोक्ष पाना चाहते हैं किन्तु उसका जरिया कौन और क्या होगा? ये कह पाना मुश्किल है,मोक्ष परम अभीष्ट एवं परम पुरूषार्थ को कहा गया है,मोक्ष प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व या आत्मसक्षात्कार से मिलता है,न्यायदर्शन के अनुसार दुःख का अत्यंतिक नाश ही मोक्ष कहलाता है,पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध होना ही निर्वाण कहलाता है,तात्पर्य यह है कि सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही निर्वाण कहलाता है, इस कहानी की नायिका भी दुःख से परेशान होकर निर्वाण चाहती है किन्तु अन्ततः वो सोचती है कि वो निर्वाण क्यों लें? उसे तो उस दुःख देने वाले को निर्वाण देना चाहिए.... तो कहानी कुछ इस प्रकार है..... गर्मियों के दिन और एक छोटे से कस्बे की रेलवे कालोनी..... जहाँ माखनलाल अहिरवार अपने परिवार के साथ रहतें हैं,वें रेलवें में खलासी हैं,वें ज्यादा पढ़े लिखें नहीं है लेकिन वें चाहते हैं कि उनके दोनों बच्चे पढ़कर अच्छी नौकरी पाएं,माखनलाल जी रेलवें कालोनी में अपनी पत्नी सम्पदा,बेटी भामा और बेटे प्रबल के साथ रहते हैं,गाँव में उनका और परिवार भी रहता है,जिसमें उनकी माँ और दो छोटे भाई सहित उनका परिवार भी शामिल हैं,दोनों छोटे भाई ठीक से पढ़ लिख नहीं पाएं और अपनी पुस्तैनी थोड़ी सी जमीन पर ही खेती-बाड़ी करके अपना जीवन यापन करते हैं,

Full Novel

1

निर्वाण--भाग(१)

निर्वाण इसका अर्थ होता है मोक्ष,इस संसार में सभी मोक्ष पाना चाहते हैं किन्तु उसका जरिया कौन और क्या ये कह पाना मुश्किल है,मोक्ष परम अभीष्ट एवं परम पुरूषार्थ को कहा गया है,मोक्ष प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व या आत्मसक्षात्कार से मिलता है,न्यायदर्शन के अनुसार दुःख का अत्यंतिक नाश ही मोक्ष कहलाता है,पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध होना ही निर्वाण कहलाता है,तात्पर्य यह है कि सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही निर्वाण कहलाता है, इस कहानी की नायिका भी दुःख से परेशान होकर निर्वाण चाहती है किन्तु ...Read More

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निर्वाण--भाग(२)

माँ! बाबूजी से बात करो ना! वो हम सबको गाँव ले चलेगें,प्रबल बोला।। कह दिया ना कि हम गाँव जाऐगे,सम्पदा बोली।। लेकिन माँ! हम हर साल तो गाँव जाते हैं तो इस बार क्यों नहीं! भामा ने पूछा।। वो इसलिए कि मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी दादी तुम्हें हमेशा कोसती रहें,हमेशा यही जताती रहे कि तू एक लड़की है,तुझे पढ़ाकर मैं और तेरे बाबूजी गुनाह कर रहे हैं,सम्पदा गुस्से से बोली.... तो क्या दादी नहीं चाहती कि मैं आगें पढ़ू? भामा ने पूछा।। नहीं!वो तो कहतीं हैं मैं तुझे घर के काम सिखाऊँ,सम्पदा बोली।। तुम नहीं चाहती तो फिर ...Read More

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निर्वाण--भाग(३)

माखनलाल जी ने अपना खाना फौरन ही खतम किया और उसी कमरें के कोनें में बिछे अपने बिस्तर पर ओढ़कर चुपचाप लेट गए,सम्पदा ने उनकी झूठी थाली उठाकर आँगन में रखें जूठे बर्तनों के साथ रखी,अँगीठी में थोड़ा पानी गरमाया और बर्तन धोने बैठ गई,रात को बर्तन धोकर ना रखो तो और काम बढ़ जाता है सुबह के लिए,कुछ ही देर में वो बरतन धोकर आई और अँगीठी के सामने बैठकर स्वेटर बुनने लगी,क्योंकि भामा अभी भी पढ़ रही थी,जब तक वो जागती है तो सम्पदा भी उसके साथ जागती रहती है,प्रबल भी सो चुका था और सियाजानकी भी ...Read More

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निर्वाण--भाग(४)

देखते ही देखते समय पंख लगाकर उड़ गया,भामा ने बाहरवीं भी पास कर ली थी और वो काँलेज भी गई थी,साथ साथ उसने उत्तर प्रदेश लेडी काँन्सटेबल के लिए आवेदन भी भरा और वो उसने क्वालीफाई भी कर लिया,इसलिए उसने अपनी आगें की पढ़ाई प्राइवेट करने की सोचीं..... भामा की नौकरी की खबर से माखनलाल जी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और सम्पदा के अरमानों को तो जैसे पंख ही मिल गए थे,वो खुशी के मारें फूली ना समा रही थी,आखिरकार उसकी और उसकी बेटी की मेहनत सफल जो गई थी,दोनों पति पत्नी ने सारे मुहल्ले और ...Read More

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निर्वाण--भाग(५)

भामा ने जल्दी से वर्दी बदली और सादे से सलवार कमीज़ में गाँव की छोटी सी हाट से सामान चल पड़ी,उसका मन बहुत ही खिन्न था,उसे अब थानेदार पुरूषोत्तम यादव पर बिल्कुल भरोसा नहीं रह गया था,वो तो बस उससे अब अपनी जान छुड़ाना चाहती थी लेकिन उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था,उसे पुरूषोत्तम की आँखों में उसके लिए कुत्सित वासना नज़र आती थी,वो यही सब सोच ही रही थीं कि उसे हाट में किशना की पत्नी रामजानकी दिख गई,जो थाने में अपनी गुमशुदा बेटी की रिपोर्ट लिखवाने आई थी,वो उसके पास गई और पूछा..... तुम रामजानकी ...Read More

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निर्वाण--भाग(६)

बुढ़िया बोली.... मैं और मेरी पोती इस झोपड़ी में खुशी खुशी रहा करते थे,हमारे पास चार पाँच बकरियाँ और गाय थी जिनसे हम दोनों का गुजारा हो जाता था,वो गाय के गोबर से उपले बनाती थी और सूख जाने पर मैं उन्हें बेच आती थी,फिर यहाँ इट्टो का नया भट्ठा लग गया,हमारे मुहल्ले पास-पड़ोस की बहुत सी औरतें वहाँ काम करने लगी,मुझे कई औरतों ने सलाह दी भट्ठे में काम करने की,वें कहने लगीं कि कल को पोती का ब्याह करोगी तो मुट्ठी में कुछ रूपया तो होना चाहिए,देखों हम सब भट्ठे में काम करतीं हैं तो अपने खर्चे ...Read More

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निर्वाण--(अन्तिम भाग)

दिन बीत रहे थे अब भामा ने धर्मी से भी मिलना जुलना छोड़ दिया था,बस ड्यूटी के बाद खामोश अपने कमरें में पड़ी रहती,वो दिनबदिन ज्यादा सोचने के कारण कमजोर भी होती जा रही थी,उसे ना अब अपने खाने का होश रहता और ना अपना ख्याल रखने का,वो कई महीनों से अपने घर भी ना गई थी,वो किसी की मदद नहीं कर पा रही थी ना तो लोगों की और ना ही खुद की इसलिए और मायूस हो चुकी थी.... फिर एक रोज़ कुछ ऐसा हुआ जिसका शायद भामा को बहुत दिनों से इन्तजार था,हुआ यूँ कि कस्बे के ...Read More