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निर्वाण--भाग(१)

निर्वाण इसका अर्थ होता है मोक्ष,इस संसार में सभी मोक्ष पाना चाहते हैं किन्तु उसका जरिया कौन और क्या होगा? ये कह पाना मुश्किल है,मोक्ष परम अभीष्ट एवं परम पुरूषार्थ को कहा गया है,मोक्ष प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व या आत्मसक्षात्कार से मिलता है,न्यायदर्शन के अनुसार दुःख का अत्यंतिक नाश ही मोक्ष कहलाता है,पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध होना ही निर्वाण कहलाता है,तात्पर्य यह है कि सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही निर्वाण कहलाता है,
इस कहानी की नायिका भी दुःख से परेशान होकर निर्वाण चाहती है किन्तु अन्ततः वो सोचती है कि वो निर्वाण क्यों लें? उसे तो उस दुःख देने वाले को निर्वाण देना चाहिए....
तो कहानी कुछ इस प्रकार है.....

गर्मियों के दिन और एक छोटे से कस्बे की रेलवे कालोनी.....
जहाँ माखनलाल अहिरवार अपने परिवार के साथ रहतें हैं,वें रेलवें में खलासी हैं,वें ज्यादा पढ़े लिखें नहीं है लेकिन वें चाहते हैं कि उनके दोनों बच्चे पढ़कर अच्छी नौकरी पाएं,माखनलाल जी रेलवें कालोनी में अपनी पत्नी सम्पदा,बेटी भामा और बेटे प्रबल के साथ रहते हैं,गाँव में उनका और परिवार भी रहता है,जिसमें उनकी माँ और दो छोटे भाई सहित उनका परिवार भी शामिल हैं,दोनों छोटे भाई ठीक से पढ़ लिख नहीं पाएं और अपनी पुस्तैनी थोड़ी सी जमीन पर ही खेती-बाड़ी करके अपना जीवन यापन करते हैं,
माखनलाल की माँ यदा-कदा उनके पास कुछ दिनों के लिए रहने चली आती है लेकिन उन्हें यहाँ रेलवें के छोटे से घर में अच्छा नहीं लगता और घर के सामने की रेलवेंपटरी से गुजरती हुई रेलगाड़ियों का शोर उन्हें परेशान करता है,ऊपर से बहु सम्पदा की ये बात उन्हें बुरी लगती है कि बेटी भामा को लड़के से भी ज्यादा छूट दे रखी है।।
सम्पदा को अपनी सास की ये बात पसंद नहीं है इसलिए इस बात को लेकर दोनों के बीच बहस हो जाती है और इन दोनों की बातों से सबसे ज्यादा परेशान होते हैं माखनलाल अहिरवार,वें सम्पदा से पूर्णतः सहमत है कि बेटी को भी वो सब मिलना चाहिए जो बेटे को मिलता है लेकिन तब माखनलाल की माँ सियाजानकी कहती है कि ....
तुम तो जोरू के गुलाम हो,जैसा बीवी कहती है बस वही चाल चलने लगते हो....
माँ की ऐसी बातों से माखनलाल को बुरा लगता है और वो फिर सम्पदा से बात करना बंद कर देता है,पति पत्नी के बीच मनमुटाव हो जाने के डर से सम्पदा अपनी सास सियाजानकी को अपने पास बहुत कम ही बुलाती है......
और एक दिन सम्पदा अपने घर के बाहर दरवाजे पर झाड़ू लगा रही थी, अभी ग्यारह बजें हैं लेकिन लू के थपेडों ने बुरा हाल कर रखा है ऊपर से ये लड़की ना जाने कहाँ गायब है ,सम्पदा ये बड़बड़ाते हुए झाड़ू लगा रही है,,घर के सामने नीम का पेड़ लगा है तो बहुत सी पत्तियाँ झड़कर द्वार पर गिर चुकीं थीं फिर वही पैरों के साथ भीतर जातीं है इसलिए सम्पदा आँगन बुहार रही थी तभी ......
देखो ना सम्पदा भाभी!तुम्हारी बेटी भामा ने मेरे बेटे को पकड़कर नाली में घुसा दिया,जब तक मैं वहाँ पहुँची तो ना जाने कहाँ भाग खड़ी हुई,सम्पदा की पड़ोसन आरती ने आकर भामा की शिकायत की.....
मैं तो तंग आ गई हूँ इस लड़की से आएं दिन किसी से लड़ाई तो किसी से मार-पीट,घर आने दो फिर ख़बर लेती हूँ,सम्पदा आरती से बोली....
जरा सम्भालकर रखो अपनी बेटी को कल को पराएं घर जाना है तो क्या ससुराल वालों के साथ भी मारपीट करती फिरा करेगी,आरती गुस्से से बोली।।
कह दिया ना! कि घर आने दो तो खबर लेती हूँ,फिर क्यों इतना बोल रही हो? सम्पदा चिढ़कर बोली।।
लड़की जात है इसलिए बोल रही हूँ,उसका लड़को की तरह रहना ठीक नहीं,आरती फिर से बोली।।
आरती! तुम अपना काम क्यों नहीं करती कह दिया ना कि समझा दूँगी,समझ नहीं आती बात,सम्पदा चीखकर बोली।।
तुम्हारी बेटी का तो आएं दिन यही रहता है,छुट्टा साँड़ हो गई है जरा नकेल डालकर रखा करों,आरती बोली।।
ऐ....बहुत देर से तेरी बकबक सुन रही हूँ तू जाती है यहाँ से या नहीं,नहीं तो ये झाड़ू देखी है ना! मार मारकर मुँह लाल कर दूँगी,बड़ी आई इतनी देर से मुझे भाषण सुनाएं जा रही है,सम्पदा अब गुस्से से लाल पीली थी....
हाँ....हाँ....जाती हूँ...जाती हूँ,इतना रूआब किस पर झाड़ रही हो,माना कि तुम्हारा पति खलासी है रेलवें में तो इसका मतलब है कि मेरा पति कुछ नहीं,मेरा पति भी तो खलासी है और तेरे पति से सीनियर है,आरती झुँझलाकर बोली।।
तो ऐसी नहीं मानेगी,लगता है झाड़ू खाकर ही दम लेगी,इतना कहकर सम्पदा ने अपनी साड़ी का पल्लू लपेटकर कमर में खोसा और झाड़ू लेकर दौड़ पड़ी आरती के पीछे,आरती के पास अब सिवाय भागने के और कोई रास्ता ना बचा था इसलिए वो भागकर अपने घर के भीतर जा घुसी....
सम्पदा भी झाड़ू लगाकर भीतर चली गई लेकिन उसका गुस्सा अभी शान्त नहीं हुआ था,उसे भामा पर बहुत गुस्सा आ रहा था,उसकी वजह से ही तो उसे सबकी बातें सुननी पड़ती है वो लड़की होकर किसी से नहीं डरती और प्रबल है कि जब देखो लड़का होकर भी किसी ना किसी मार खाकर आ जाता है,वो सब ये सोच ही रही थी कि तभी द्वार के दरवाजों की कुण्डी खड़की,सम्पदा ने जाकर दरवाजे खोले तो सामने भामा अस्त ब्यस्त हालत में खड़ी थीं,एक चोटी खुली,फ्रांँक की लेस उधड़ी हुई,एक हवाई चप्पल की एक बेल्ट टूटी हुई जिसके सहारे भामा बड़ी मुश्किल से घसीट घसीट कर घर पहुँची थी और आते ही उसने ना हाथ धुले और ना ही पैर धुले,सीधे आँगन में जाकर वहाँ रखें घड़े़ से पानी निकाला और गटागट पी गई.....
ये सब देखकर सम्पदा की आँखों में खून उतर आया और उसने भामा से पूछा.....
क्यों री! कहाँ गई थी?
खेलने गई थी और कहाँ गई थी? भामा बोली।।
लाज तो आती ना होगी ये कहते हुए,सम्पदा बोली।।
खेलने के लिए लाज का आना जरूरी है ये तो मुझे पता ही नहीं था,भामा बोली।।
ये सुनकर सम्पदा को मन ही मन हँसी आ गई लेकिन उसने बनावटी गुस्से से पूछा...
आरती के लड़के को तूने आज नाली में घुसा दिया,भला ऐसा क्यों किया?
कंचे खेल रहे थे हम दोनों,मैं जीत गई तो मैनें कंचे उठा लिए तो आरती चाची का लड़का माधव बोला....
तेरे बाप के कंचे हैं जो उठा लिए .....
फिर मैनें कहा कि.....
ऐ....बाप तक मत जा!
वो बोला.....
जाऊँगा....हजार बार जाऊँगा,क्या बिगाड़ेगी मेरा?
बस ये सुनकर मुझे गुस्सा आ गया और मैनें उसे पहले उसके बाल पकड़ पकड़कर खूब पीटा फिर नाली में घुसाकर दूसरी जगह खेलने भाग गई,मेरे बापूजी के बारें कोई कुछ कहेगा तो मैं सुन थोड़े ही लूँगी,भामा बोली।।
तू वहाँ रानी लक्ष्मीबाई बनती है और लोंग यहाँ बातें मुझे सुनाकर जाते हैं,सम्पदा बोली।।
माँ! गलत बात के लिए आवाज़ उठाना गलत नहीं होता,भामा बोली।।
लेकिन तू एक लड़की है ये सब अच्छा नहीं लगता,सम्पदा बोली.....
लड़की हूँ तो क्या हुआ? अपनी बात नहीं कह सकती क्या? भामा ने पूछा।।
तूने कहाँ कुछ कहा ? तू तो सीधे उसे नाली में घुसाकर चली आई,सम्पदा बोली।।
माँ! गलत बात बरदाश्त नहीं होती मुझसे,भामा बोली।।
लेकिन बेटा! ये समाज नहीं समझता ये सब,वो तो सीधे लड़की पर ही ऊँगली उठाता है,सम्पदा बोली।।
माँ! बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दो,ये बातें तुम मुझे बाद में समझा देना,भामा बोली।।
तू मेरी बात को अनसुना मत कर,सम्पदा बोली।।
माँ! रहने दो ना ये सब ,पहले ये बोलो कि क्या बनाया है खाने में? भामा ने पूछा।।
मूँगदाल की बड़ियाँ बनाईं हैं ढ़ेर सारी प्याज के साथ जैसी तुझे पसंद है,सम्पदा बोली।।
हाँ! तो खाना परोस दो और प्याज नीबू भी काट देना,बड़ियों के साथ अच्छा लगता है,भामा बोली।।
पहले तू हाथ मुँह धोकर कपड़े बदल ले फिर खाना देती हूँ,सम्पदा बोली।।
और फिर तब तक सोया हुआ प्रबल भी जाग उठा था ,फिर सब साथ बैठकर खाना खाने लगें....
तभी भामा ने सम्पदा से पूछा.....
माँ मेरी गर्मियों की छुट्टियांँ चल रही हैं हम गाँव नहीं जाऐगें....
नहीं! इस बार नहीं,सम्पदा बोली....
लेकिन क्यों?भामा बोली।।
तेरे लिए हर बात जाननी जरूरी नहीं है...,सम्पदा बोली।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....