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निर्वाण--भाग(५)

भामा ने जल्दी से वर्दी बदली और सादे से सलवार कमीज़ में गाँव की छोटी सी हाट से सामान लेने चल पड़ी,उसका मन बहुत ही खिन्न था,उसे अब थानेदार पुरूषोत्तम यादव पर बिल्कुल भरोसा नहीं रह गया था,वो तो बस उससे अब अपनी जान छुड़ाना चाहती थी लेकिन उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था,उसे पुरूषोत्तम की आँखों में उसके लिए कुत्सित वासना नज़र आती थी,वो यही सब सोच ही रही थीं कि उसे हाट में किशना की पत्नी रामजानकी दिख गई,जो थाने में अपनी गुमशुदा बेटी की रिपोर्ट लिखवाने आई थी,वो उसके पास गई और पूछा.....
तुम रामजानकी हो ना!जो थाने आई थी,
जी!हाँ!हमने आपको भी वहाँ देखा था वर्दी में,रामजानकी बोली।।
हाँ!अब ड्यूटी खतम हो गई तो अपने सादे कपड़ो में हाट आ गई सामान खरीदने,भामा बोली।।
हमार बिटिया मिल तो जाई ना! बहनजी!रामजानकी ने पूछा।।
मैं तुम्हें झूठी तसल्ली नहीं देना चाहती क्योंकि मुझे थानेदार साहब पर भरोसा नहीं है,वो शायद तुम्हारी कोई मदद ना करें,भामा बोली।।
लेकिन बहनजी!वो काहें ना करेगे़ हमार मदद?रामजानकी ने पूछा।।
क्योंकि उसमें उनका कोई फायदा नहीं है,उन्हें अपनी ड्यूटी निभाने के लिए मनमानी घूस चाहिए,भामा बोली,
लेकिन बहनजी! हम ठहरें गरीब आदमी,हमारे पास इत्ता रुपया कहाँ है?उन्हें घूस ना देगें तो का वो हमार बिटिया को ना ढूढ़ेगें,रामजानकी ने पूछा।।
मैं कुछ कह नहीं सकती,लेकिन एक बात बताओगी पूछूँ,भामा बोली ।।
हाँ!पूछिए,रामजानकी बोली।।
वो बूढ़ी औरत कहाँ रहती है जिसकी पोती का बलात्कार हुआ था और फिर उसकी लाश मिली,भामा बोली।।
वो धनेसरी काकी!चलिए हम आपको उसके घर पहुँचा देते हैं और इतना कहकर रामजानकी ने भामा को उस बुढ़िया के घर पहुँचा दिया....
भामा बुढ़िया के घर पहुँची तो देखा कि लकड़ियों की पट्टियों से घिरी चारदीवारी के बीच एक छोटी झोपड़ी है,झोपड़ी के बाहर एक ओर उपले सूख रहें हैं,एक छप्पर के नीचें एक बकरी बँधी हुई और पास में बकरी के लिए सूखी घास रखी है,घास के बगल में लकड़ियों का ढ़ेर था,साथ में बकरी के सानी और पानी का मिट्टी का बड़ा सा बर्तन रखा था,झोपडी़ के ऊपर कुछ कद्दू और सेम की बेल चढ़ी हुई थी,बस इतनी सम्पत्ति थी शायद गरीब बुढ़िया के पास,भामा लकड़ियों की पट्टियों से बनी चारदीवारी के छोटे से दरवाजे़ को खोलकर भीतर झोपडी़ के द्वार पर पहुँची और आवाज़ दी....
कोई है....कोई है क्या भीतर?
तभी भीतर से काँपती हुई बुढ़िया की आवाज़ आई....
कौन...कौन ...
जी!मैं यहाँ की नई हवलदारिनी,भामा बोली।।
हवलदारिनी.....तुम यहाँ क्या करने आई हो?बुढ़िया ने पूछा....
जी!कुछ जानना था,भामा बोली।।
तो भीतर आ जाओं,मुझे थोड़ा बुखार है,मैं बिस्तर से उठ नहीं सकती,बुढ़िया बोली।।
और फिर भामा भीतर गई और उसने देखा कि बुढ़िया एक खटिया पर लेटी है वो बहुत कमजोर लग रही है ऐसा लग रहा है कि जैसे उसने कई दिनों से अन्न ना खाया हो,तब भामा ने उससे पूछा....
कब से बीमार हो अम्मा?
यही कोई एक दो रोज़ से,बुढ़िया बोली।।
दवाई ली कि नहीं,भामा ने पूछा।।
यहाँ उठने की हिम्मत नहीं है,दवाई लेने कैसें जाऊँ?बकरी को भी पड़ोसी भूसा पानी देने आ जाते हैं,उनके खुद के पास खाने को अन्न नहीं है,इसलिए वो मुझे खाने के लिए पूछने नहीं आते,बकरी को ही खिला देते हैं बस इतनी ही तसल्ली रहती है, बुढ़िया बोली।।
कोई बात नहीं,मैं तुम्हारे लिए दवाई लेकर आती हूँ,अपनी तकलीफ़ बता दो कि क्या क्या दिक्कत है?भामा बोली।।
बस,कुछ नहीं ,एक दो रोज़ से कुछ काम नहीं मिला था तो आटा चावल के पैसें नहीं थे,खाना नहीं खाया तो कमजोरी से बुखार आ गया,बुढ़िया बोली।।
अच्छा तो ये बात है,तो मैं ऐसा करती हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ सामान लाकर खाना पका देती हूँ,खाना खाकर तुम्हें अच्छा लगेगा,भामा बोली।।
ना बेटी!मेरे लिए इतनी तकलीफ़ उठाने की कोई जरुरत नहीं है,बुढ़िया बोली।।
ना अम्मा!तकलीफ़ किस बात की,इन्सान ही तो इन्सान के काम आता है और इतना कहकर भामा सामान लेने चली गई,वापस आकर उसने बुढ़िया की झोपडी़ में उसके लिए खाना पकाया और थाली में परोसकर खिलाकर फिर अपने कमरें लौटी,उसके लौटने तक अन्धेरा काफी गहरा गया था,उसने भी खाना बुढ़िया के यहाँ ही खा लिया था तो कमरें पर आकर कुछ बनाया नहीं और कपड़े बदलकर चुपचाप लेट गई,ठण्ड का मौसम था चारों ओर सन्नाटा था क्योंकि छोटे से कस्बें में वैसे भी लोंग जल्दी सो जाते हैं,वो बस नींद के आगोश़ में समाने ही वाली थी कि अचानक उसके कमरें का किसी ने दरवाज़ा खटखटाया,भामा ने दरवाज़े के पीछे से पूछा....
कौन?...कौन है?
मैं हूँ थानेदार पुरूषोत्तम यादव,थानेदार दरवाजों के पीछे से बोला।।
जी!कुछ काम था,भामा ने डरते हुए पूछा।।
ऐसा कोई जरूरी काम नहीं था,बस नींद नहीं आ रही थी तो सोचा तुमसे दो चार बातें ही लूँ,पुरूषोत्तम यादव बोला।
लेकिन सर जी!मैं बहुत थक चुकी हूँ और मुझे बहुत नींद आ रही है,आप सुबह ही बातें करिएगा जो बातें करनी है,भामा बोली।।
फिर पुरूषोत्तम यादव कुछ नहीं बोला और उसके जाने की जूतों की आहट सुनकर भामा निश्चिन्त होकर सो गई,सुबह वो तैयार हुई अपने लिए चाय नाश्ता बनाया और वर्दी पहनकर थाने आ गई,थाने पहुँचकर उसने थानेदार से नमस्ते की लेकिन थानेदार ने उसके नमस्ते का कोई जवाब नहीं दिया,फिर उसने उससे एक दो कामों के लिए और पूछा लेकिन तब भी पुरूषोत्तम यादव कुछ ना बोला ऐसे ही पूरा दिन बीत गया,तब भामा ने उससे पूछ ही लिया....
क्या बात है सर?आप कुछ नाराज़ हैं क्या मुझसे?
तुम्हें अपने से बड़े अफसर की अहमियत ही कहाँ है?तुम्हें तो दूसरों की बेइज्जती करने में बहुत मज़ा आता है ना!तुम ना जाने अपने आप को कहाँ की हूर परी समझती हो,पुरूषोत्तम यादव बोला।।
जी!सर!मैं कुछ समझीं नहीं,भामा बोली।।
ये मत भूलो कि तुम मेरे अण्डर काम कर रही हो,कुछ भी चार्ज लगाकर तुम्हारी रिपोर्ट ऊपर भेज सकता हूँ,थानेदार पुरूषोत्तम बोला।।
लेकिन सर!मैनें आपकी इनसल्ट कब की?भामा ने पूछा।।
कल रात मैं तुमसे बात करने आया और तुमने मुझे दरवाज़े से ही भगा दिया,पुरूषोत्तम बोला।।
मैनें भगाया नहीं था सर?मुझे सच में नींद आ रही थी,भामा बोली।।
मुझे ज्यादा मत बहलाओ,मैं तुम जैसी लड़कियों को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ,पुरूषोत्तम बोला।।
सर!हर लडकी गिरी नहीं होती,जब तक यहाँ थाने का काम है तो आप मेरे सर है,बाकी थाने के बाद मेरी जिन्दगी पर केवल मेरा हक़ है,जब मुझे नींद आएगी तब सोऊँगी,जब मन करेगा तब जागूँगी,आपके काम में कोई हर्ज हो तब आप शिकायत करिएगा,मेरे पास इतना फालतू समय नहीं रहता कि मैं किसी से देर रात गए बात करती फिरूँ,आपके अण्डर काम करती हूँ तो इसका मतलब ये नहीं कि आपकी गुलाम हूँ,सरकार आपको भी जनता की सेवा के लिए तनख्वाह देती है और मुझे भी उसी काम के लिए तनख्वाह देती है,तो अगर मैं और आप फालतू के काम ना करके अपनी अपनी ड्यूटियाँ निभाएं तो अच्छा रहेगा और इतना कहने के बाद भामा थाने से बाहर आ गई,
भामा की बात सुनकर पुरूषोत्तम यादव को बहुत गुस्सा आया और मन ही मन बोला.....
तेरा गुरूर मैनें किसी दिन ना तोड़ा तो मेरा नाम भी पुरूषोत्तम यादव नहीं,
वो थाने से बाहर आई तो दो आदमी थाने की ओर आते हुए उसे नज़र आएं और उनमें से एक रो रोकर कहने लगा....
मैडम जी!मेरे बेटे बल्लू को उस बालू माफिया मण्टू पटेल ने कल रात गोली मार दी ,उसकी लाश आज सुबह देवी मंदिर की पुलिया के पास मिली....
तुम्हें कैसें पता कि उसे मण्टू पटेल ने ही गोली मारी है,भामा ने पूछा।।
मेरा बेटा उसी के साथ काम करता था,उसके बहुत से रूपए मण्टू लेकर बैठा था,उसने अपने रूपए माँगें तो शराब के नशे में मण्टू ने उसे गोली मार दी,वहाँ मौजूद लोगों ने बताया है,बल्लू का बाप बोला।।
तो उन सबमें से कोई गवाही देने को तैयार है,भामा ने पूछा।।
मण्टू से सभी डरते हैं तो उसके खिलाफ़ भला कौन गवाही देगा,बल्लू का बाप बोला।।
अच्छा!तुम थाने के भीतर जाकर थानेदार साहब से कहों,शायद वो कुछ कर पाएं,भामा बोली।।
फिर भामा की बात सुनकर वो दोनों व्यक्ति थाने के भीतर चले गए,भामा बाहर ही कुछ देर घूमती रही तभी हवलदार टीकाराम उसके पास आकर बोला.....
मैडम जी आपको थानेदार साहब ने याद फरमाया है?
लेकिन क्यों?भामा ने पूछा।।
वो जो दो जनें अभी आएं हैं ना तो उनकी रिपोर्ट लिखनी है,टीकाराम बोला।।
तो ये काम तो आप भी कर सकते हैं ना!आप तो मुझसे सीनियर हैं,भामा बोली।।
लेकिन थानेदार साहब ये काम आपसे ही करवाना चाहते हैं,टीकाराम बोला।।
और फिर क्या था मन मारकर भामा थाने के भीतर पहुँची और उसे देखकर थानेदार साहब बोलें...
ये मैडम लिखेगी तुम्हारी रिपोर्ट,इन्हें सब बता दो।।
और फिर भामा थानेदार के आदेश पर अपना काम करने लगी,उसने रिपोर्ट लिख दी और वें लोंग रिपोर्ट लिखवाकर थानेदार के सामने गिड़गिड़ाने लगें कि जल्द से जल्द बल्लू के हत्यारें को गिरफ्तार कर लिया जाएं,तब थानेदार बोला....
हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की रिपोर्ट लिखी है,जब तक कि मण्टू पटेल के खिलाफ़ हमें कोई सुबूत नहीं मिल जाता तो हम उसे हत्यारा घोषित नहीं कर सकतें,तुम ही लोंग उन लोगों को लाओं जिसने ये सब अपनी आँखों के सामने होता देखा हो,
लेकिन हुजूर वो बहुत ही ताकतवर है उसके खिलाफ़ कोई भी गवाही देने को तैयार नहीं है वो मेरे बेटे की तरह गवाह को भी मरवा देगा,बल्लू का बाप बोला।।
तो फिर हम भी कुछ नहीं कर सकते,थानेदार बोला।।
और फिर वो लोंग चले गए,उनके जाने के बाद थानेदार भामा से बोला.....
इतना भाव किसलिए खाती है तू,देखना एक दिन तेरी अकल ठिकाने ना लगा दी तो कहना,
भामा कुछ नहीं बोली और घड़ी में समय देखा फिर बोली....
मेरी ड्यूटी का समय खत्म हो चुका है मैं जा रही हूँ और इतना कहकर भामा अपने कमरें आ गई,वर्दी बदलकर सादे कपड़ो में वो फिर उस बुढ़िया का हाल चाल लेने पहुँची और आज फिर उसने उसके लिए खाना बनाया और बातों ही बातों में उसके मुँह से उसकी पोती के बलात्कार वाली बात निकलवा ली.....
बुढ़िया बोली.....
बेटी!मेरी फूल सी बेटी का उन्होंने ऐसा हाल किया कि जब मुझे उसकी लाश मिली तो उसके बदन पर एक कपड़ा नहीं था,उसके माँ बाप मरते समय मुझे सौंपकर ये कह गए थे कि इसका ख्याल रखना लेकिन मैं उसका ख्याल नहीं रख पाई,वो दरिन्दा मुझे मिल जाएं तो मैं उसके टुकड़े टुकड़े कर दूँ.....
लेकिन अम्मा हुआ क्या था?पूरी कहानी सुनाओ तो शायद मैं कुछ कर पाऊँ,भामा बोली....
इसमें थानेदार और उसके दोनों हवलदारों ने भी घूस ली थी उस लड़के से,बुढ़िया बोली....
और कौन कौन शामिल था उसमें,भामा ने पूछा।।
सब बताती हूँ बेटी!....सब बताती हूँ और इतना कहकर बुढ़िया ने कहानी सुनानी शुरु की......

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....