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निर्वाण--(अन्तिम भाग)

दिन बीत रहे थे अब भामा ने धर्मी से भी मिलना जुलना छोड़ दिया था,बस ड्यूटी के बाद खामोश सी अपने कमरें में पड़ी रहती,वो दिनबदिन ज्यादा सोचने के कारण कमजोर भी होती जा रही थी,उसे ना अब अपने खाने का होश रहता और ना अपना ख्याल रखने का,वो कई महीनों से अपने घर भी ना गई थी,वो किसी की मदद नहीं कर पा रही थी ना तो लोगों की और ना ही खुद की इसलिए और मायूस हो चुकी थी....
फिर एक रोज़ कुछ ऐसा हुआ जिसका शायद भामा को बहुत दिनों से इन्तजार था,हुआ यूँ कि कस्बे के सरकारी स्कूल के हेडमास्टर जो कि बाहर से आएं थे,वो कस्बेवालों को समझा बुझाकर अच्छी नसीहतें देते और कस्बे वालें उनकी बात भी मानने लगें थे,वें रात को लालटेन की रोशनी में प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रम चलाते जिससे कि कस्बे के अनपढ़ महिला और पुरूष साक्षर बन सकें और कहीं भी मजदूरी पर जाएं तो अपनी मजदूरी के मिलने वाले रूपयों का ठीक से हिसाब लगा सकें,ईटों के भट्ठे का ठेकेदार मण्टू पटेल मजदूरों के आधे पैसे खा जाता था,लेकिन महिलाएं और पुरूष चीजों को समझने लगें थे और अपना रूपया लेने में सक्षम हो चुके थे,
हेडमास्टर साहब ने ऐसी बहुत सी अन्धविश्वासी बुराइयों को छोटे से कस्बे से दूर किया था जिसे लोंग सदियों से मानते चले जा रहे थे,उन्होंने लड़कियों की पढ़ाई पर भी जोर दे रखा था और सबसे कह रखा था कि कस्बे के झोलाछाप डाँक्टर से अपना इलाज करवाने की जरुरत नहीं है अगर इलाज करवाना है तो शहर के डाक्टर के पास जाओ,वो मेरे मित्र हैं वो आप सबकी मदद अवश्य करेगें,कस्बे के बनिया से भी कह रखा था उन्होंने कि शहर से खुली और सस्ती चींचें खरीदकर कस्बेवालों को ना बेचें,हेडमास्टर साहब की ऐसी बातों से बड़े लोंग चिढ़ने लगें लेकिन छोटे से कस्बे की गरीब जनता उनसे खुश थी,
लेकिन ये बात अब मण्टू पटेल की बरदाश्त से बाहर हो चुकी थी इसलिए एक दिन वो स्कूल जाकर हेडमास्टर साहब से बहस करने लगा,लेकिन हेडमास्टर साहब भी झुकने वालों में से ना थे,उन्होंने भी कह दिया कि मैं इन सब लोगों की मदद जरुर करूँगा,तुमसे जो करते बने सो कर लों,मण्टू पटेल भी गुस्से में था, गुस्से के जोश में होश़ खो बैठा....विनाशकाले विपरीत बुद्धि....आव देखा ना ताव उसने अपनी लाइसेंसी पिस्तौल निकाली और वहीं सभी स्कूल के बच्चों और स्कूल के अन्य कर्मचारियों के सामने उनके पेट में छः की छः गोलियाँ दाग़कर फरार हो गया.....
हेडमास्टर के खून से पूरे कस्बें में हड़कम्प मच गया,बात जिला मजिस्ट्रेट तक पहुँची और उन्होंने फौरन ही मण्टू पटेल की गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया और पुरूषोत्तम यादव को सख्ती से आदेश देते हुए बोले कि......
चौबीस घण्टे के अन्दर मण्टू सलाखों के पीछे होना चाहिए नहीं तो तुम्हारा ट्रान्सफर ऐसी जगह करूँगा जहाँ तुम्हारी अकल ठिकाने आ जाएगी,ऐसा मत समझना कि मुझे तुम्हारी करतूतों के बारें में पता नहीं है,अगर मैं उतारूँ हो गया ना तो तुम्हारे सभी कारनामों को ऊपर तक ले जाऊँगा और खबरदार!जो घूस लेकर मामला रफ़ा-दफ़ा किया तो ,मुझे कुछ भी गड़बड़ नज़र आई ना तो वहीं आकर तुम्हें अच्छी तरह से समझाऊँगा,कस्बे के हेडमास्टर का खून हुआ है और ये कोई मज़ाक की बात नहीं है,जल्द ही कार्रवाही नहीं हुई तो तुम अपनी हालत के खुद जिम्मेदार होगें....
जिला मजिस्ट्रेट का फ़रमान सुनते ही पुरूषोत्तम यादव की हालत खराब हो गई और वो फौरन ही हवलदारों के साथ थाने की गाड़ी में मण्टू पटेल को गिरफ्तार करने निकल पड़ा,इस काम के लिए उसने अपने कई मुखबिर भी लगाएं थे जिससे बहुत ही जल्द मण्टू पटेल पकड़ा गया,मण्टू पटेल ने पुरूषोत्तम यादव को घूस देने की भी बहुत कोशिश की लेकिन पुरूषोत्तम यादव को जिला मजिस्ट्रेट की बात याद दी थी इसलिए उसने घूस लेने से साफ इनकार कर दिया और मण्टू पटेल को जेल में ठूसकर ही दम लिया,ये बात जब जिला मजिस्ट्रेट तक पहुँची तो उन्होंने पुरूषोत्तम यादव को शाबाशी दी और बोलें....
अभी मण्टू पटेल को दो दिन तक अपनी कड़ी हिरासत में रखों,मैं दो दिन के बाद आँर्डर निकालता हूँ कि उसे किस जेल में रखना ठीक होगा....
ठीक है सर!मैं आपके आदेश का इन्तजार करूँगा और इतना कहकर पुरूषोत्तम पटेल ने थाने का टेलीफोन रख दिया....
ये सब बातें भामा ने भी सुनी और मन ही मन कुछ सोचकर मुस्कुराई,उसकी इस मुस्कुराहट ने पुरूषोत्तम यादव के मन में दहशत भर दी और वो वैसे भी जिला मजिस्ट्रेट साहब की बातों से पहले से ही भी डरा हुआ था,इसलिए भामा से बोला....
मैं बहुत थका हुआ हूँ और बाक़ी के हवलदार भी थके हुए हैं,हम दो चार घण्टे अपने अपने कमरों में आराम करके आते हैं ,तुम तो गईं नहीं थी हमारे साथ यहीं पर थी इसलिए अब तुम इस पुरूषोत्तम पटेल पर निगरानी रखों और कोई आता है रिपोर्ट लिखवाने तो वो भी लिख लेना,लेकिन मुझे डिस्टर्ब मत करना,
और फिर पुरूषोत्तम यादव के साथ साथ बाक़ी के हवलदार भी अपने अपने कमरें में आराम करने चले गए ,इधर थाने में केवल भामा ही रह गई,वो मण्टू पटेल के लाँकअप के पास पहुँची उसने देखा कि मण्टू पटेल एक हृष्ट-पुष्ट और सँजीला नौजवान है और उसकी उम्र भी ज्यादा नहीं थी यही कोई तीस पैतीस का होगा ,बस इतना काफी था भामा के लिए और भामा ने ये भी सुन रखा था कि वो लड़कियों का शौक भी रखता था,अब भामा ने आपना पासा फेंका और पुरूषोत्तम से बोलीं.....
और पटेल साहब कैसा लग रहा है जेल में आकर,
बस!मैडम जी!पहले तो बुरा लग रहा था लेकिन आपको देखकर कलेजे में ठंडक पड़ गई,मण्टू पटेल बोला।।
ओह....अहोभाग्य हमारे जो हमें देखकर आपको अच्छा लगा,भामा बोली।।
पहले पता होता कि आपकी जैसी सुन्दर हवलदारिनी इस थाने में है तो मैं पहले ही आपके दर्शन करने आ गया होता,मण्टू पटेल बोला।।
अच्छा जी!बड़े दिलफेंक किस्म के इन्सान मालूम पड़ते हैं आप!भामा बोली।।
कभी आजमाकर तो देखिए,हमारी छत्रछाया में जो भी आता है तो खुश होकर ही जाता है,मण्टू पटेल बोला,
जी!कभी जरूरत पड़ी तो जरुर आजमाकर देखेगेँ ,फिरहाल क्या सोचा है आपने?भामा बोली।।
सोचना क्या है,बहुत ऊपर तक पहचान है मेरी बस दो चार दिन में ही छूट जाऊँगा,मण्टू पटेल बोला।।
वो तो वक्त ही बताएगा,कहीं ऐसा ना हो कि थानेदार आपको कहीं और पहुँचा दें,भामा बोली।।
उसकी इतनी हिम्मत नहीं है मैं उसे भी खरीद लूँगा,मण्टू पटेल बोला।
लेकिन अभी तो जेल में हैं और जेल में आपको कुछ हो भी सकता है,भामा बोली।।
किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं है कि मुझे खरोंच भी लगाए,मण्टूपटेल बोला।।
ठीक है देखेगें लेकिन अभी आप आराम कीजिए,भामा बोली।।
मैडम जी!एक बात बोलूँ,मण्टू पटेल बोला।।
जी,कहिए,भामा बोली।।
मेरे खिलाफ थाने में क्या क्या कार्यवाही हो रही है अगर आप बताने की तकलीफ़ करें तो मैं आपके लिए कुछ भी करूँगा,मण्टू पटेल बोला,
लेकिन मुझे ही क्यों चुना आपने,यहाँ और भी हवलदार हैं?भामा बोली।।
क्योंकि आप यहाँ पर सबसे समझदार लगतीं हैं,मण्टू पटेल बोला।।
ठीक है तो मैं आपको सारी जानकारी दूँगी,भामा बोली।।
और बदले में क्या लेगीं?मण्टू पटेल ने पूछा।।
वो मैं बाद में बताऊँगी,भामा बोली।।
और ऐसे ही दोनों के बीच और भी बातें चलतीं रहीं,ऐसे ही एक दिन बीता और जिला मजिस्ट्रेट ने आँर्डर दिया कि मण्टू पटेल को रातोंरात इस कस्बें के जिले की जेल में शिफ्ट किया जाएं,ये भामा के फायदे की बात थी,वो जब मण्टू को जेल में खाना देने गई तो सबकी नजरें बचाकर उसने एक चिट्ठी मण्टू को धीरे से पहुँचा दी,चिट्ठी पढ़कर मण्टू सन्न रह गया लेकिन फिर सावधान हो गया जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं है,अब दिन बीत चुका था और मण्टू को जिले की जेल में शिफ्ट करने का कार्यक्रम बन चुका था,तभी भामा ने थानेदार से कहा.....
सर!आपको एतराज ना हो तो मैं भी आज आपके साथ ड्यूटी कर लूँ,आपके साथ रहकर मुझे भी कुछ सीखने का मौका मिलेगा,जो आगें भविष्य में मेरे काम आएगा।।
भामा की इस बात पर तो पहले पुरूषोत्तम को थोड़ा अचरज हुआ लेकिन फिर वो मान गया,उसने भगवती प्रसाद को हटाकर भामा को उस कार्यक्रम में शामिल कर लिया ,अब पुरूषोत्तम के साथ टीकाराम और भामा ड्यूटी पर थे,गाड़ी थाने के दरवाज़े पर खड़ी थी और भामा सबके लिए पीने का पानी लेकर आई,सबने पानी पिया और चल पड़े गाड़ी में बैठकर लेकिन काफी दूर आगें जाकर टीकाराम बोला....
साहब!मुझे नींद आ रही है,मेरी आँखें झप रहीं हैं,गाड़ी कैसें चलाऊँ?
पुरूषोत्तम बोला.....
मुझे भी ऐसा कुछ लग रहा है,आज इतनी नींद क्यों आ रही है मुझे?
क्योंकि थाने से चलते वक्त जो आपने पानी पिया था ना तो उसमें नींद की गोलियाँ थीं इसलिए,भामा बोली।।
तूने ऐसा क्यों किया?पुरूषोत्तम ने पूछा।।
क्योंकि मुझे पता है कि आप रास्ते में मण्टू जी का इनकाउंटर करने वाले थे,भामा ने इतना बोलकर पुरूषोत्तम का पिस्तौल छीना और पुरूषोत्तम की कनपटी पर धरकर टीकाराम से गाड़ी रोकने को कहा.....
टीकाराम ने डरते हुए गाड़ी रोकी और तभी पुरूषोत्तम बोल पड़ा....
ऐसी कोई योजना नहीं थी तुम झूठ बोल रही हो,
अब मौत सिर पर है तो मैं झूठी हो गई,भामा बोली।।
अब नींद की गोलियों का असर टीकाराम पर बुरी तरह से छा रहा था,वो कुछ करने के काबिल ना रह गया था और यही हाल पुरूषोत्तम का भी हो रहा था, इसलिए पुरूषोत्तम अब कुछ भी ना बोल सका,भामा वो पिस्तौल फौरन ही मण्टू के हाथ में थमाते हुए बोली.....
इन्हें गाड़ी से नींचे उतारो और कर दो इन दोनों का काम तमाम.....
फिर क्या था,मण्टू ने दोनों को गाड़ी से नीचें उतारा और गाड़ी से टेक लगाकर खड़ा किया,फिर पुरूषोत्तम के सीने में दो गोली मारीं और टीकाराम के सीने में भी दो गोली मारी ,दोनों के शरीर से खून की पिचकारी बह निकली और दोनों ही धरती पर धराशायी हो गए,इसके बाद पिस्तौल भामा को वापस कर दी,भामा मण्टू से बोली.....
धन्यवाद!मण्टू जी!
अब मैडम जी आपको ईनाम क्या चाहिए?मण्टू ने पूछा।।
वो भी मैं ले ही लेती हूँ,,भामा बोली।।
और इतना कहकर फिर वक्त ना गँवाते हुए भामा ने पिस्तौल में बची हुई दो गोलियाँ मण्टू के सिर पर चला दीं,अब मण्टू पटेल भी ढेर हो चुका था.....
इसके बाद भामा अपनी जीत पर मुस्कुराई और केस ये बना कि मण्टू पटेल ने थानेदार साहब का पिस्तौल छीनकर ,थानेदार साहब और मेरे सीनियर हवलदार पर गोली चलाई, अपने बचाव के लिए पहले तो मेरी मण्टू से छीना झपटी हुई इस छीना झपटी में मण्टू के हाथ से पिस्तौल छूटकर नीचें गिर गई वो पिस्तौल मेरे हाथ लग गई और मेरे बचाव में मैनें मण्टू पर गोली चला दी.....
इस बहादुरी के लिए भामा को मैडल मिला और उसका प्रमोशन भी हो गया और उसका तबादला कहीं और हो गया,लेकिन अब भी उसने उस कस्बे के लोगों की मदद के लिए वहाँ आएं दूसरे थानेदार से कह दिया था जो कि वो वही लड़का सुधांशु था जो उसके साथ पढ़ता था जिसने उसे चिट्ठी लिखी थी,उसे भामा ने अपने ऊपर बीती हर बात बताई ,जिसमें सुधांशु को कोई एतराज ना था और उसने भामा से अपना जीवनसाथी बनने की गुजारिश की और फिर भामा इस गुजारिश को ठुकरा ना सकीं.....
इस तरह से भामा ने स्वयं को निर्वाण ना देकर उनको निर्वाण दिया जो इसके हक़दार थे......

समाप्त.....
सरोज वर्मा....