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जनपथ का दर्द

जनपथ का दर्द

अस्सी साल का बूढ़ा उसके जूते चमकाने में लगा था, पौलिश, ब्रुश और क्रीम रगड़ने पर भी उसको तसल्ली नहीं हुई तो उसने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर रुमाल के दोनों तिरछे कोनो को पकड़कर पुलिस वाले के जूतों को बारी बारी से पैरों के बीच दबा कर रगड़ने लगा। जूते एकदम शीशे की तरह चमक गए तो बूढ़े मोची ने जूते बाजू में रख दिये एवं दूसरों का काम करने लगा तभी पुलिस वाला जूते लेने आ गया, मोची ने एक बार और ब्रुश मारा और जूते पुलिस वाले के पैरों के पास रख दिये। पुलिस वाला जूते पहन कर चलने लगा तो मोची ने पैसे मांग लिए, “साहब पौलिश के पैसे?” मोची के इस बर्ताव पर पुलिस वाले को इतना क्रोध आया कि उसने पलट कर मोची को एक जोरदार लात मार दी जिससे मोची एक तरफ लुड़क गया। अपने आप को संयत करते हुए मोची हाथ जोड़ कर बैठ गया और माफी मांगने लगा लेकिन पुलिस वाले का क्रोध शांत नही हुआ, गुस्से में कहने लगा, “अपनी औकात भूल गया? मेरी मेहरबानी से ही तो तू यहाँ जनपथ पर बैठा है और मेरे से ही पैसे मांगता है?” बूढ़ा लाचार मोची पुलिस वाले के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, “साहब, गलती हो गयी, माफ कर दो, आगे से ऐसी भूल नहीं होगी।” पुलिस वाला पैर झटक कर चला गया।

जनपथ क्नौट प्लेस से निकल कर दूर तुगलक रोड तक चला जाता है, राजपथ को पार करते हुए इसके एक तरफ इंडिया गेट एवं दूसरी तरफ राष्ट्रपति भवन दिखता है। बड़े से बड़े होटल, रैस्टौरेंट, बैंक, शोरूम एवं कार्यालय हैं जनपथ के दोनों तरफ। जनपथ का पटरी बाज़ार, जहां पर कपड़े, ज्वेलरी, चश्मे, जूते और सजावट के सभी सामान सस्ते से सस्ते और महंगे से महंगे, हर तरह के मिल जाते हैं इसलिए यहाँ पर प्रतिदिन भीड़ लगी रहती है। जनपथ के दोनों तरफ अर्जुन के बड़े-बड़े पेड़ हैं जो इसकी सुन्दरता और हरियाली में चार चाँद लगा देतें हैं। जनपथ की पटरी बाज़ार के सहारे हजारों लोग अपनी रोजी कमाकर रोटी खा रहे हैं।

वह नब्बे से कम नहीं होगी बूढ़ी अम्मा, पटरी पर ही फल लेकर बैठी है, बंदरों को भगाने के लिए डंडा भी अपने बाजू में रखा है। उस दिन न जाने क्यों भगदड़ मची और देखते ही देखते नगरपालिका वालों ने सबका सामान ट्रक में भर लिया, बूढ़ी अम्मा के फल भी, मोची का थैला भी, चाय वाले का सिलिंडर, पर्स वाले की पूरी गठरी, चाबी वाले की सारी पुरानी चाबियाँ सब कुछ, लेकिन ड्राइ फ्रूट वाला अपनी पोटली कमर पर लाद कर इतनी तेजी से दौड़ा कि नगर पालिका के चार लोग भी उसको पकड़ नहीं पाये और वह ईस्टर्न कोर्ट की किसी संकरी गली में जा छुपा। ये सभी लोग वर्षों से वहीं बैठकर रोजगार कर रहे हैं, यह बात पुलिस वाले भी जानते हैं और नगर पालिका वाले भी। सामान उठा लेने के बाद भी तो वो सब वहीं बैठकर वही काम आगे भी कर रहे हैं। मैंने यही सवाल अपनी संस्था की तरफ से चेयरमैन के सामने रखा तो उनका यही जवाब था, “वर्षों से चला आ रहा है ये सब, कैसे रोक दूँ।” मैंने उन्हे एक कहानी, जो मैंने अखबार में पढ़ी थी, सुनाई, “कुछ लोग मंदिर परिसर मैं बैठकर प्रार्थना करतें हैं, लेकिन प्रार्थना करने से पहले वे कुछ दोने दूध के भर कर रख देते हैं जिनको प्रार्थना के बाद उठाकर अलग रख देते हैं। उन दो सौ लोगों मे से किसी को भी ज्ञात नहीं था कि प्रार्थना से पहले दूध के दोने क्यो भरते हैं। एक पुराने पंडितजी जो वर्षों से मंदिर से जुड़े थे, ने बताया कि पहले जब प्रार्थना करते थे तो कुछ बिल्लियाँ यहाँ आकर लड़ने लगती थीं। उन्हे भगाने के सभी प्रयास असफल हो गए तो दोनों में दूध रखना शुरू कर दिया, बिल्लियाँ आकर दूध पीकर चली जाती थी और लोग शांति से प्रार्थना कर लेते थे। अब बिल्लियाँ तो नहीं आतीं लेकिन दूध रखने की परंपरा चली आ रही है।” मुझे समझ आ गया कि हम बदलना ही नहीं चाहते, ऐसे ही होता आ रहा है तो हम भी कर रहे हैं, जबकि एक स्वस्थ समाज के लिए बदलाव अति आवश्यक है। पेड़ भी सभी पुराने पत्तों को हवा के झोंकों में उतार फेंकता है और उनकी जगह नए कोमल पत्ते पैदा कर देता है। मैंने चेयर मैन से पूछा, “वर्षों से यहाँ इसी तरह से काम करने वाले इन लोगों के हम सहायक नहीं बन सकते, हमें इन्हे इनकी कमियाँ बताकर इनके काम को अच्छे ढंग से करना नहीं सिखा सकते क्या, जिससे वे भी निडर होकर काम कर सकें और नगर पालिका की सुंदरता में भी चार चाँद लग जाएँ।” मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था लेकिन मैंने एक विचार उन तक पहुंचाना था, जो पहुंचा दिया। अस्सी वर्षीय बूढ़े, नब्भे वर्षीय बुढ़िया स्व रोजगार करके अपना पालन कर रहें हैं, सरकार, जिसकी ज़िम्मेदारी है कि वह इन लोगों को मुफ्त चिकित्सा और उनकी पेंशन का प्रबंध करे, वही सरकार उनके सामने समस्या पैदा करने के अलावा कुछ नहीं करती।

इसी जनपथ पर लाल बत्ती चौक पर 15-20 लोगों का एक भिखारी परिवार रहता है जो हमेशा विदेशी पर्यटकों को परेशान करने में लगा रहता है। एक विदेशी लड़की ऑटो में बैठी थी तो भिखारियों की चार पाँच लड़कियां लाल बत्ती पर रुके हुए उस ऑटो में घुस गईं और उस विदेशी लड़की को इतना परेशान किया कि वह रोने लगी। ऑटो वाला भी कुछ नहीं कह रहा था तब मुझे जाकर उस ऑटो चालक और भिखारी लड़कियों को डांटना पड़ा। एक दिन तो मैंने एक भिखारी महिला की गोद में एक बहुत ही सुंदर बच्चा देखा जो कहीं से भी उस परिवार का नहीं लग रहा था। मैंने चुपचाप उस महिला की बच्चे समेत फोटो खींची और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी तब वह महिला पकड़ी जा सकी एवं बच्चा अपने माँ-बाप के पास पहुंचा लेकिन यह सब पुलिस और नगर पालिका की नाक के नीचे होता है फिर भी वे नजरें बचा कर निकल जाते हैं।

उस दिन तो जनपथ धन्य हो गया जब हरियाणा से बस में भरकर जाट रेली के लिए आए। बसें जनपथ के किनारे खड़ी हो गईं, यहाँ से उन्हे जंतर-मंतर जाना था। बस से उतरते ही ज़्यादातर लोग लघु-शंका के लिए सड़क के किनारे बैठ गए और पूरा जनपथ तर कर दिया। जाते हुए दो-चार आदमियों से मैंने पूछा, “चौधरी साहब, घर में गाड़ी तो होगी।” चौधरी साहब बोले, “हाँ भाई क्यू न, दो-दो हैं, ट्रैक्टर है, बीस किले जमीन है, बड़ी हवेली है।” मैंने पूछा, “फिर भी आरक्षण चाहिए?” चौधरी साहब बोले, “बावली पूंछ, हमें आरक्षण चाहिए तो बस चाहिए यू हमने कह दिया।”

अबकी बार तो मुझे जनपथ का नहीं देश का भी दर्द जनपथ से सुनाई दे रहा था और मैं मेरा दर्द बढ्ने से पहले अपने कार्यालय मे घुस गया।