Gulabi eid books and stories free download online pdf in Hindi

गुलाबी ईद

वर्ष - 2018

प्रोफेसर रंगनाथ अपने कमरे में पड़े एक सोफे में में सर को पीछे की तरफ झुकाए आराम कर रहे थे तभी उनके बगल में बजते हुए मोबाईल ने उनका ध्यान अपनी तरफ खींचा प्रोफेसर ने मोबाईल उठाकर देखा तो दिल्ली से उनके बेटे क्षितिज का फोन था
हेल्लो ........... प्रोफेसर ने फोन रिसीव किया
पापा आप इस बार आ तो रहे हैं न वहाँ से क्षितिज की आवाज सुनाई दी
प्रो. - हाँ बच्चे पूरी कोशिश कर रहा हूँ
क्षितिज - कोशिश नहीं पापा इस बार आपको आना ही होगा आज 14 तारीख है आप कल सुबह निकल आइयेगा
प्रो. - ठीक है और घर में सब ठीक है न मेरा आकाश कैसा है
क्षितिज - अच्छा है पापा आपको याद करता है कहता बहुत दिनों से दादा जी को नहीं देखा आप बस जल्दी से आ जाईये मैं ,शिल्पी आकाश हम सब आपका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं
प्रो.- अच्छा बच्चे मैं आ रहा हूँ वैसे भी तुम लोगो के अलावा मेरा है ही कौन
प्रोफेसर रंगनाथ मिश्रा जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाया करते थे रिटायरमेंट को करीब दो साल हो गए हैं आजकल पर यूनिवर्सिटी अब भी जाते हैं कहते हैं नए बच्चों से मिलकर बड़ा अच्छा लगता है
रोज की तरह इस शाम भी प्रो. अपनी लान में लगे झूले में बैठे थे बगल में रेडियो बज रहा था रेडियो सुनने की आदत प्रो. ने इस हाईटेक जमाने में भी नहीं छोड़ी थी
"वो जो हम में तुम में करार था तुम्हे याद हो कि न याद हो"
बेगमअख्तर की आवाज में ये गजल सुनकर प्रो. साहब के चेहरे हल्की अचानक मुस्कुराहट आ गयी थी
और आँखे ठहर गयी थीं सड़क के उस पार बनी उस हवेली पर ................................
एक बार फिर उन्हे सन् 1975 याद आ रहा था जहाँ पर उन्होने कमरा लिया था जब वो प्रतापगढ़ से इलाहाबाद आए थे यूनिवर्सिटी में बी.ए. में एडमिशन लिया था नीचे वाली मंजिल में वो रहा करते थे
उनके मकान मालिक थे कासिम सिद्दकी साहब जो खानदानी रईस होने के साथ बहुत नेक दिल इंसान भी थे और उनकी जान बसती थी उनकी इकलौती बेटी हिना में कासिम साहब को कभी बेटा न होने की कमी नहीं खली थी
वैसे तो उनके पास दौलत की कोई कमी न थी पर रंगनाथ की गुजारिश और उसके बर्ताव से खुश होकर उन्होने रंगनाथ को उन्होने नीचे वाली मंजिल में एक कमरा किराए से दे दिया था रंगनाथ प्रतापगढ़ के एक गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे मगर पढ़ने के शौक और स्वर्णिम भविष्य की आकांक्षा के साथ उन्होने बी.ए. में दाखिला लिया था
वो दिन दिन जैसे आज भी रंगनाथ की आँखो के सामने बिल्कुल ताजा दिखाई देता है जैसे कल की ही बात हो जब पहली बार कालेज में हिना को देखा था वक्त जैसे ठहर गया था वो उसे देर तक देखता ही रहा
उसका ध्यान तो तब टूटा चेहरा सामने लाकर बोली -
ऐसे क्या देख रहे हो पहले कभी लड़की नहीं देखी क्या
उसने भी तुरंत जवाब दिया देखी तो है पर आपके जैसी नहीं देखी
हिना ने उसे घूरकर बस इतना ही कहा - बेहया कहीं का
और इठलाती हुयी आगे बढ़ गयी बाद में रंगनाथ के दोस्तों ने बताया कि कासिम साहब की बेटी है जहाँ तू रहता है
रंगनाथ हिल गया बोला मरवा दिया न सालों पहले नहीं बोल सकते थे अब उसका बाप पहले मुझे धोएगा फिर घर से बाहर निकालेगा
अबे जब वो बताएगी तब न फौरन एक दोस्त ने जेम्स बांड बनने की कोशिश की
अरे मुझे अपने घर में देखेगी तो जरूर बताएगी
अबे जब बताएगी तब मार खा लेना अभी से क्यों परेशान है
साले तुम लोग दोस्त नहीं दुश्मन हो ये बोलकर रंगनाथ चल दिया
रास्ते में चलते हुए वो यही सोच रहा था कि अभी कल तो मैने कमरा लिया है अगर इस लड़की ने मुझे देखकर अपने बाप से मेरे बारे में कुछ गलत सलत बोल दिया तो बड़ी दिक्कत हो जाएगी यार चलो देखते हैं
डरते डरते रंगनाथ कासिम साहब की हवेली के सामने पहुँचे देखा दरवाजा खुला है और कोई है भी नहीं चुपचाप लपक कर अंदर हो लिए और अपने कमरे में जाकर एक गिलास पानी पिया डर अब भी कायम था खैर उन्होने निश्चय किया कि आज वो कमरे से निकलेगा ही नहीं सीधे कल सुबह चुपचाप कालेज के लिए निकल जाएगा
पर तखदीर में जो सोचो वो लिखा ही कहाँ होता है उसे अपने दरवाजे पर एक दस्तक सुनाई दी डरते डरते दरवाजा खोला तो देखा एक नौकर है कासिम साहब का
जी हाँ बताईये रंगनाथ ने डरी हुयी आवाज में कहा
कासिम साहब ने तुम्हे ऊपर बुलाया है नौकर बोला
क्क्क्क्यों हकलाती हुयी आवाज निकली रंगनाथ की
मुझे नहीं पता वो झल्लाकर बोला जाओ उन्ही से पूँछ लो
अब रंगनाथ बेचारे ऊपर से नीचे तक पसीना पसीना हो गए खैर काँपते हुए दूसरी मंजिल पे पहुंचकर दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दी
दरवाजा खुला ये कोई मामुली दरवाजा नहीं था रंगनाथ के लिए शायद तखदीर का दरवाजा था क्योंकि दरवाजा खुलते ही उसे हिना का दीदार जो हुआ था
तुम तुम यहाँ क्या कर रहे हो
मैमै मैं यहीं रहता हूँ अंकल ने मुझे नीचे वाला कमरा किराए पर दिया है ये कहते हुए रंगनाथ ने हिना के पीछे देखने की कोशिश की देखा तो भीकर लम्बी गैलरी है हवेलियों में इतनी लम्बी गैलरी में भी कई दरवाजे होते हैं ऐसा उसने पहले कभी नहीं देखा था और दूसरी मंजिल में क्या है ये उसे पता भी नहीं था
अब्बा ने तुम्हे कमरा दिया है रूको मैं अभी बताती हूँ तुम मुझे कालेज में छेड़ो और मैं यहाँ तुम्हे अपने हाथ के बने रसगुल्ले खिलाऊं
मतलब ... रंगनाथ फिर सोच में पड़ गए
मतलब अब्बा ने उस नौकर से कहा था वो तुम्हे बुला लाए क्योंकि आज मैने रसगुल्ले बनाए थे और वो चाहते थे कि सब लोग साथ में खाएँ मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे जैसे बदतमीज लड़के को कमरा दिया है अब्बा ने रूको तुम्हारी तो मैं अभी...
और हिना गैलरी में तेज कदमों से आगे बढ़ने लगी
अब रंगनाथ लपक कर उसके आगे आ गए और बोले देखिए मोहतरमा आपको खुदा का वास्ता एक बार मुझे माफ कर दीजिए मैं आईंदा ऐसी गुस्ताखी नहीं करूंगा मैं बहुत गरीब घर से हूँ और यहाँ अपने आने वाले कल लिए अच्छी तालीम लेने आया हूँ इस नाचीज के ख्वाबो पर पानी न फेरिये
बड़ी अच्छी उर्दू निकली आज रंगनाथ की जुबान से जिसका असर फौरन हुआ हिना पर
अच्छा ठीक है रसगुल्ले तो खा लीजिए लगभग हंसते हुए बोली थी हिना
जी आपकी मर्जी रसगुल्ले खिलाएं या मार
दोनो हंसने लगे फिर शान्त होकर
डाईनिंग रूम में दाखिल हुए पहुँचे जहाँ कासिम साहब कुर्सी पर टेक लगाए बैठे थे और शाम को रसगुल्ले खाने के लिए तैयार थे
भारी आवाज में बोले कैसे हो रंगनाथ
ठीक हूँ अंकल
अरे भई आज हमारी बेटी ने रसगुल्ले बनाए थे तो हमने सोचा तुम्हे भी इस दस्तरखान पर बुला लिया जाए बहुत होशियार है हमारी बेटी ये भी बी.ए. के पहले साल में है तुम्हारे साथ
ओह ये तो बहुत अच्छी बात है रंगनाथ ने अनजान बनने की कोशिश की
अरे हिना जाओ भाई रसगुल्लों का कटोरा ले आओ बहुत देर से इंतजार कर रहे हैं
जी अब्बा अभी लाई
रंगनाथ के मन में एक सवाल था कि हिना की माँ कहाँ हैं
उसने पूँछ ही लिया - अंकल आंटी कहीं दिखाई नहीं दे रही
कासिम साहब ने जरा सांस छोड़ते हुए कहा गुजर गई बच्चे तीन साल हो गए तब से मैं ही हिना का इकलौता सहारा हूँ सोचता हूँ थोड़ा पढ़ लिख ले कोई अच्छा और ऊंचा घराना देखकर इसकी शादी कर दूं फिर मैं भी हज को चला जाऊं
जी अंकल जवाब में इतना ही बोल पाए रंगनाथ
इतने में हिना रसगुल्लों का से भरा काँच का कटोरा ले आई कासिम साहब ने एक प्याली रंगनाथ की तरफ बढ़ाई और एक प्याली अपनी तरफ खींच ली
हिना ने चासनी के साथ दो रसगुल्ले कासिम साहब की प्याली में डाले
और दो रंगनाथ को दिये
भई वाह हमारी बेटी का जवाब नहीं रसगुल्ला मुँह में डालकर कासिम साहब ने चबाते हुए कहा
रंगनाथ ने भी एक रसगुल्ला मुँह में रक्खा वाकई बहुत लजीज था आजतक रंगनाथ को वो स्वाद भूला नहीं है क्योंकि उसकी चासनी में इश्क जो घुला था
अरे भई रंगनाथ और लो
न न बस अंकल अब न.......रंगनाथ का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि हिना ने दो रसगुल्ले और रंगनाथ की प्याली में डाल दिए
उसकी ये हरकत रंगनाथ के दिल को छू गई थी क्योंकि उसे रसगुल्ले वाकई बहुल पसंद आए थे
वाकई अंकल जादू है इनके हाथों में बहुत अच्छे बनाए हैं रंगनाथ ने कहा
भई और क्या हमारी बेटी है कासिम साहब ने कहा
अच्छा अंकल अब मैं चलता हूँ कहकर रंगनाथ अपने कमरे चले आए
सारी रात रंगनाथ को नींद नहीं आयी कोई और काम कोई और बात दिल सोच ही नहीं पा रहा था सिवाय हिना के बीच बीच में वो खुद से बोल देता अबे तू ये क्या सोच रहा है तुझे हो क्या गया है किसी के हाथ के चार रसगुल्ले खा लेने से किसी से प्यार नहीं हो जाता भूल जा उसे एक तो वो इतने रईस घराने की है और सबसे बड़ी बात मुसलमान है यार खुद को ये समझाते समझाते सुबह के पाँच कब बज गए वो जान ही नहीं पाया देखा तो बाहर हल्का हल्का उजाला होने लगा था
रंगनाथ ने सोचा चलो अल्फ्रेड पार्क घूम आया जाए वहीं चन्द्रशेखर आजाद की शहादत को याद करेगा खुद के अंदर देशभक्ति का जज्बा जगाएगा तो इश्क का भूत खुद ही भाग जाएगा
वो कमरे से निकल आया और घूमते हुए सीधा अल्फ्रेड पार्क पहुँच गया और बैठकर सोचने लगा यही वो जगह थी जब फिरंगियों से लड़ते लड़ते वीर सपूत चन्द्रशेखर आजाद की गोलियाँ खत्म हो गई थी और एक आखिरी गोली उनकी बंदूक में बांकी थी तो उन्होने रिवाल्वर अपनी कनपटी पर रखकर ट्रिगर दबा दिया था वो मौत भी स्वाभिमान की थी उन्हे किसी फिरंगी गोली का शिकार होना गवारा नहीं था देर तक अंग्रेजी सैनिक उनके पास इस डर से नहीं आए कहीं आजाद जिन्दा न हो
यही सब सोच कर उसने आजाद की प्रतिमा को नमन किया और वापस कमरे जाने के लिए चल दिया उसे कालेज भी तो जाना था कालेज अरे हाँ कालेज आज कहीं उसे फिर हिना न मिल जाए हे भगवान ये क्या हो गया है मुझे उसके मुँह से निकला आज कुछ भी हो मैं उसे देखूंगा ही नहीं ये निश्चय करके रंगनाथ कमरे आकर वो तैयार हुआ अपनी किताबें उठाई और कालेज के लिए निकल गया
कालेज पहुँचा तो उसके उन्ही दोस्तों ने उसे घेर लिया जो कल उसके साथ थे
अबे कल क्या हुआ कितने जूते पड़े मेरे यार कुछ बता तो सही उनमे से एक दोस्त बोला
कुछ नहीं हुआ तू अपना काम कर साले रंगनाथ बोला
अचानक उसकी आँखे फिर एक जगह ठहर गईं सामने से हिना जो आ रही थी वो उसे देखते ही उधर से देखते ही दूसरी दिशा में तेज कदमों से चलकर परे खड़ा हो गया पता नहीं उसने ऐसा क्यों किया था पर हिना ने उसकी ये हरकत देख ली थी
अबे ये तो मेरे पास आ रही है रंगनाथ मन ही मन कुछ बुदबुदाया ही था कि हिना उसके बिल्कुल करीब आकर खड़ी हो गई
तुम वहाँ से भागकर यहाँ अकेले क्यों चले आए
बबबबस ऐसे ही फिर हकला गया था रंगनाथ
ऐसे ही या मेरी वजह से हिना ने मुस्कुरा कर पूँछा
नहीं मैं तुम्हारी वजह से क्यों अपने रस्ते बदलने लगा इस बार जवाब सटीक और स्पष्ट था
अच्छाआ...........हिना को हंसी आ गई थी
उसकी ये हंसी में रंगनाथ फिर खो गए हवा जैसे हिना के जिस्म से टकरा कर भीनी भीनी खुशबू रंगनाथ को तोहफे में दे रही थी मानो वो चाहता हो कि ये सिलसिला कभी रूके ही न हिना ऐसे ही हंसती रहे और वो उसे देखते देखते पूरी जिंदगी गुजार दे
अच्छा तुम उस दिन क्या बोल रहे थे तुमने मेरे जैसी लड़की कभी नहीं देखी हिना ने कहा
तभी रंगनाथ के चार दोस्त उसके पास आकर खड़े हुए
क्या बात है भाई दोनो में दोस्ती हो गयी है क्या बहुत देर से बातें कर रहे हो उनमे से एक बोला
रंगनाथ इससे पहले कुछ बोल पाता
हिना ने तेज आवाज में कहा हाँ हो गयी है आपसे मतलब
रंगनाथ की निगाहें हिना के चेहरे पर ठहर गईं
चलो यहाँ से हिना ने रंगनाथ का हाथ पकड़ लिया था ये वो सिरहन हाथ की नसों से होती हुयी सीधे दिल तक उतर गयी थी रंगनाथ के
रंगनाथ चुपचाप उसके साथ चलने लगे
अपना भाई तो गया काम से चारो दोस्त आपस में बोले

ये क्या बेवकूफी है तुमने सब के सामने मेरा हाथ पकड़ लिया रंगनाथ ने शिकायती अंदाज में बोला दोनो अब हरी घास पर बैठे थे
तो क्या मैं ऐसा नहीं कर सकती हिना ने मुस्कुरा कर पूँछा
रंगनाथ - नहीं नहीं वो बात नहीं है और तुमने कहा कि हम दोस्त हैं
हिना - तो क्या नहीं है
रंगनाथ - हिना लोग गलत समझते हैं इन बातों को
हिना - मुझे लोगो से कोई मतलब नहीं है वैसे भी अगर हम दोस्त हैं तो इससे उन्हे क्या फर्क पड़ता है
रंगनाथ - तुम्हे पता है तुमने मेरा एक क्लास और करा दिया और खुद भी अपने क्लास नहीं गयी अब मैं घर जा रहा हूँ और तुम मेरे साथ बिल्कुल नहीं आओगी रास्ते में लोग देखेंगे तो गलत समझेंगे
हिना - जी हुजूर हिना ने हंस कर कहा

दिन इसी तरह कटते जा रहे थे और हिना रंगनाथ के करीब और करीब आती जा रही थी
एक बार वो बीमार हो गया था तो हिना उसे चुपके से खाना खिलाने उसके कमरे तक आयी थी वो ये क्यों कर रही थी रंगनाथ को नहीं पता था मगर उसकी इन हरकतों को वो जिन्दगी भर संभाल के रखने वाला था ये कोई नहीं जानता था हिना कभी कभी तो उसके लिए अपने पास से कुछ पैसे ले आया करती थी और चाहे रंगनाथ उन्हे लेने से लाख इंकार करे मगर वो उसे उसके हाथों में थमाकर ही जाती थी ये सिलसिला यूं ही चल रहा था उन दिनों रंगनाथ की जिंदगी ऐसी हो गयी थी जैसे जन्नत भी उसे हिना के सामने फीकी लगने लगी थी
मगर अच्छा वक्त कब किसी के साथ देर तक रहता है आज तुम्हारा कल किसी और का कासिम साहब नें हिना के लिए लड़के देखने शुरू कर दिए थे
रंगनाथ हिना के इतने करीब थी मगर इसके बावजूद रंगनाथ ने इस इस दोस्ती को किसी वो नाम नहीं दिया था जिसकी जरूरत हर दो धड़कने वाले दिलों को होती है उसने हिना को कभी नहीं बताया था कि वो उसे चाहने लगा है और बताकर करता भी क्या जहाँ समाज दो भिन्न वर्णों को जुड़ने की इजाजत नहीं देता वहाँ दो धर्म कैसे जुड़ सकते थे
जहाँ ओम का स्वर पढ़ा जाता हो वहाँ अल्लाह हु अकबर कैसे याद किया जा सकता था फिर वो एक गरीब किसान का बेटा था और हिना एक रईस घराने की शहजादी इन तमाम विषमताओं को देखते हुए रंगनाथ ने कभी कोई ऐसी गुजारिश हिना से की ही नहीं थी उसे आज जो हिना का साथ मिल रहा था उन्ही यादो के सहारे उसने जिन्दगी जीने का फैसला कर लिया था और इन्ही यादो को वो अब लिखने लगा था उसने हर वो लम्हा लिखा जो उसने हिना के साथ गुजारा था और साथ लिख दी अपने दिल की हर वो बात जो वो हिना से कहना चाहता था
वो 1978 की ईद थी जब कासिम साहब ने हिना का निकाह लखनऊ के एक आला नवाब खानदान में तय कर दिया था उन्होने रंगनाथ को उसी डायनिंग टेबल में ईद की दावत पर ये खुशखबरी सुनाई थी हिना पास में ही खड़ी थी और खुश थी मगर गम में डूबा हुआ था तो एक दिल जो रंगनाथ के सीने में धड़क रहा था ऊपर से खुद को खुश दिखाने के प्रयास में कामयाब रहा वो हिना के सामने जब तक रहा आँसुओं को दबाकर मुस्कुराता रहा
और फिर चुपचाप अपने कमरे में चला आया वो अभी कमरे में बैठा ही था कि दरवाजे पे दस्तक सुनाई दी
उसने उठकर दरवाजा खोला तो देखा हिना खड़ी थी हाथ में कांच का कटोरा और उसमें रसगुल्ले
मैंने खा तो लिया है रंगनाथ बोला
हिना - वो ईद की दावत थी
रंगनाथ - और ये क्या है
हिना - मेरी सालगिरह है आज
रंगनाथ - जन्मदिन मुबारक हो मगर तुमने इतने सालों में मुझे बताया नहीं कि तुम ईद को पैदा हुयी थी
हिना - वो वो मैं सोच रही थी कि तुमने भी तो नहीं पूँछा कभी और अब्बा को मैने मना किया था मगर हर बार ईद में मैंने तुम्हे रसगुल्ले जरूर खिलाए हैं बिना बताए कि मेरी सालगिरह है और इस बार इसलिए बता रही हूँ क्योंकि अब मैं ससुराल जाने वाली हूँ तो तुम्हे कभी पता ही नहीं चल पाता कि मैं ईद के दिन पैदा हुयी थी लो आखिरी बार मेरे हाथ के रसगुल्ले खा लो अब नहीं नसीब होने वाले ये तुम्हे ये कहकर उसने अपने हाथ में एक रसगुल्ला उठाया
रंगनाथ का दिल तो चाहता था कि अभी रो दे लेकिन वो हिना के सामने रो नहीं सकता था
तुम ये कटोरा यहीं छोड़ दो और जाओ मैं खा लूंगा रंगनाथ ने हल्की आवाज में कहा
हिना - अरे भई ऐसे कैसे जाए हमारा जन्मदिन है हमें तोहफा मिलना चाहिए
रंगनाथ ने काफी देर सोचा और फिर उसकी नजद अपने हाथ में पड़ी काले पत्थर की अंगूठी पर गयी उसने उसे उतारा औऱ हिना का बाँया हाथ पकड़ के उसकी तीसरी उंगली में पहना दी
और बोला इसके अलावा कुछ नहीं है मेरे पास ये मेरी माँ ने दी थी मुझे वादा करो तुम जिन्दगी में कभी इसे नहीं उतारोगी हिना
अच्छा एक शर्त पर नहीं उतारूंगी तुम्हे मेरे हाथ से एक रसगुल्ला खाना पड़ेगा ये कहकर उसने रंगनाथ के सामने एक रसगुल्ला उठा लिया और रंगनाथ ने भी उसके सामने एक रसगुल्ला उठा लिया दोनो ने एक दूसरे को खिलाया और फिर हिना चली गई
पूरी रात रोया था रंगनाथ सुबह दरवाजे पे लगातार पड़ रही दस्तकों ने उसे उठा दिया देखा तो नौकर के साथ उसके परिवार के एक चाचा खड़े थे
चाचा क्या हुआ रंगनाथ बोला
बेटा तुम्हारे पिता जी की तबियत बहुत खराब है तुम्हे अभी तुरंत चलना होगा
मुसीबते काश बताकर हमारे पास आती होती तो हम कहीं छुप जाते औऱ वो हमें ढूंढ ही न पाती कितना अच्छा होता अगर ऐसा होता
अरे चाचा क्या हुआ पिता जी को रंगनाथ घबराकर बोला
कुछ नहीं तुम बस अभी चलो चाचा ने कहा
रंगनाथ ने फौरन कपड़े पहने कमरे में ताला जड़ा और चाबी नौकर को देकर बोला कासिम साहब को दे देना मैं जब आऊंगा तो उनसे ले लूंगा और खाली हाथ हवेली से बाहर आ गया और दोनो ने प्रतापगढ़ के लिए बस पकड़ ली
घर पहुँचा तो जैसे जमीन ने तलवों के नीचे से सरक गयी थी मृत पिता का शव जमीन पर पड़ा था माँ बिलख रही थी रंगनाथ को देखते ही उससे आ कर लिपट गयी रंगनाथ के तो जैसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था
उसने माँ को संभाला और अपना ह्दय कठोर किया वो ही अब इकलौता सहारा था अपनी माँ का
बाप की चिता को आग देते वक्त रंगनाथ ने ये संकल्प किया कि आज से वो सिर्फ खुद के लिए जीयेगा सफलताओं की हर सीढ़ीयों को चढेगा अपनी माँ का सहारा बनेगा समाज में नाम कमाएगा
जिन्दगी के गमों की मार झेलकर अब रंगनाथ मजबूत हो गया था इस बीच उसने कासिम साहब को पत्र लिखकर पिता की मृत्यु की सूचना दी और बताया कि वो दो महीने बाद वापस आएगा वो पूरे दो महीने अपने घर पर रूका और फिर इलाहाबाद आया
हवेली के सामने आकर उसने देखा दरवाजा खुला था और कासिम साहब नीचे ही बैठे थे
उसे देखकर वो उठ खड़े हुए और गले से लगा लिया उसे और बोले बड़ा दुख हुआ तुम्हारा खत पढ़कर रंगनाथ मगर होनी को टाल भी कौन सका है
मैं तुम्हे हिना की शादी में भी न बुला सका मुझे पता चल चुका था तुम्हारे वालिद रुख्सत हो गए हैं
हिना की शादी हो गयी - रंगनाथ ने हैरत से पूँछा
हा भाई एक महीना हो गया और इस बीच वो एक बार यहाँ आई भी थी मैने उसे बताया कि तुम्हारे वालिद गुजर गए हैं उसे भी बहुत दुख पहुँचा था
खैर आओ ऊपर चलकर खाना खा लो फिर यहाँ आ अब हिना नहीं है तो मैने एक बहुत अच्छा बावर्ची रख लिया है अच्छा खाना बनाता है
रंगनाथ खाना खाकर वापस आए अपने कमरे का ताला खोला और सो गए
इन दिनों रंगनाथ ने अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर लगा दिया जी तोड़कर मेहनत की जैसे गमो का बदला ले रहे हों इन किताबों से कुछ ही महीनो में इम्तिहान के नतीजे आ गए और रंगनाथ ने प्रथम श्रेणी में बी.ए. पास कर लिया अब वो इलाहाबाद छोड़ना चाहते थे
तो जल्द ही बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की एम.ए की प्रवेश परीक्षा दी और पास की उन्हे छात्रावास सुविधा भी मिल गई उन्होने एडमिशन ले लिया और इलाहाबाद से अपने छोटे से लोहे के बक्से में सारा सामान भरकर बनारस चले आए जिसमें एक डायरी भी थी जिसके आखिरी पन्ने पर लिखा था .....यादें जिन्हे मुझसे कोई नहीं छीन सकता ये वही डायरी थी जिसमें हिना की यादे दर्ज कर रखी थी रंगनाथ ने और इस डायरी को वो हमेशा अपने साथ रखते थे मगर अब वो अपने भविष्य के साथ समझौता नहीं करना चाहते थे
दिनभर पढ़ना होता था इसलिए वो सुबह चार बजे अखबार बांट कर पैसे कमाते थे जिससे उनके सब खर्चे चल जाते थे इसी तरह उन्होने पी.एच.डी. की और फिर 1985 में उनका ज्वाईनिंग लेटर आया
रंगनाथ मिश्रा असिस्टेंट प्रोफेसर
इलाहाबाद विश्व विद्यालय
किस्मत इंशान के साथ कब क्या कर दे कुछ भरोसा नहीं
अब एक बार फिर उन्हे वहाँ जाना था जहाँ की हवा में दर्द घुला था जहाँ वो घूमे थे हिना के साथ उसी घास पर बच्चो को देखना था जहाँ वो हिना के साथ बैठा करते थे
वही जीरो रोड ,वही अल्फ्रेड पार्क , वही गंगा का किनारा जहाँ दोस्त उस पर हिना के नाम को लेकर मजाक किया करते थे
मगर किस्मत का क्या था फिर वहीं ले चली वो इलाहाबाद आए थे लगभग 7 साल बाद बदला कुछ भी नहीं था कासिम साहब की हवेली पहुँचे तो पता चला कि उनका इंतकाल हुए 3 बरस बीत गए एक रोड एक्सीडेंट में बेवक्त मौत ने उन्हे निगल लिया था हिना उनके जायदाद की इकलौती वारिस थी और हिना ने वो हवेली अब बेंच दी थी कहा था वो जब भी इलाहाबाद आएगी उसे अपने घरवालों की याद आएगी इसलिए उसने हवेली बेंचकर कभी इलाहाबाद न आने का फैसला किया ये सब उसे हवेली के उसी नौकर से पता चला जो अभी तक वहाँ रहता है
उससे मिलकर रंगनाथ सीधे अपने एक दोस्त से मिले उसने उनके रहने का इंतजाम किया रंगनाथ प्रतापगढ़ गए तो पता चला माँ ने उनका रिश्ता पक्का कर दिया है बुढ़ापे में माँ को सहारा चाहिए थी इसलिए रंगनाथ ने उनकी बात मान ली और इलाहाबाद के ही एक मध्यमवर्गीय परिवार की सुशील कन्या से विधि पूर्वक विवाह किया जब तक माँ जिन्दा रहीं रंगनाथ ने बहू को उनकी सेवा के लिए प्रतापगढ़ में ही रखा फिर माँ भी चल बसी तो वो पत्नी को लेकर इलाहाबाद चले आए अच्छी खासी सरकारी तन्खवाह से उनकी जीविका चल रही थी
इसी के चलते उन्होने कासिम साहब की हवेली के ठीक सामने वाला एक प्लाट खरीदकर उस पर आलीशान घर बनवाया अपनी पत्नी से उन्हे कुछ महीनो बाद एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुयी जिसका नाम उन्होने रखा क्षितिज
कुछ सालों बाद क्षय रोग के कारण उनकी पत्नी भी चल बसी जिसका भयंकर दुख हुआ उन्हे मगर मुसीबतों की मार खाते खाते उनका दिल पत्थर हो चुका था
उनका बेटा क्षितिज बड़ा हुआ उसने आई.आई.टी. कानपुर से इंजीनियरिंग की फिर यू.पी.एस.सी. की आई.ई.एस की परीक्षा पास की औऱ बाप का सर गर्व से ऊंचा कर दिया अब क्षितिज दिल्ली में शिफ्ट हो गया है हर साल रंगनाथ वहाँ घूमने जाते हैं अपने बच्चे और बहू से मिलकर जिन्दगी की खुशियाँ बाँटते हैं उनका एक पोता है आकाश जो रंगनाथ को बहुत प्यार करता है
इसके साथ ही रंगनाथ की एक रोज की आदत है अपनी लान में लगे झूले में बैठकर अपने पास उस डायरी को रखकर उस हवेली को देखना जिसमें हिना की यादे अब भी जिन्दा हैं
जैसे वक्त के लिबास में आकर आरंगजेब ने इस शाहजहाँ को आगरा के किले में कैद कर दिया हो जहाँ से वो रोज अपनी मुमताज के ताज को देखता रहता है
आज महफिल-ए-गजल में बस इतना ही मिलते हैं कल इसी वक्त तब तक के लिए धन्यवाद
रेडियो से आती इस आवाज ने प्रोफेसर का ध्यान तोड़ा उन्हे याद आया उन्हे कल दिल्ली निकलना है
वो झूले से उठे और अपने ड्राईवर को फोन लगाकर बताया सुबह दिल्ली चलना है
ड्राईवर ने सुबह 7 बजे प्रोफेसर रंगनाथ को लेकर चल दिया और लगभग शाम पाँच बजे वो अपने बेटे के घर पहुँच गए आकाश उनका पोता दौड़कर दादाजी के छाती से जा लगा अभी 4 साल का है लेकिन शैतानी में सबका बाप रंगनाथ ने बहु बेटे को आशिर्वाद दिया और सोने चले
सुबह उठे तो आकर क्षितिज के पास बैठ गए सामने आकाश अपने दोस्त अकरम के साथ खेल रहा था
आज ईद थी अकरम ने आकाश को घर चलकर दावत खाने के लिए कहा वहाँ दौड़कर आकाश क्षितिज के पास आया और बोला पापा मैं अकरम के यहाँ पार्टी में चला जाऊँ आज ईद है
क्षितिज - नहीं कोई पार्टी वार्टी नहीं पढ़ाई करो चुपचाप
अरे बच्चा जाना चाहता है तो जाने दो न रंगनाथ ने आकाश की तरफदारी की
क्षितिज - अच्छा जाओ मगर दादा जी के साथ जाओगे अकेले नहीं
अरे मैं कहाँ जाऊंगा रंगनाथ ने कहा
चले जाईये पापा अकरम अच्छे घर का लड़का है इसके पापा और मम्मी साऊदिया में रहते हैं थोड़ी ही दूर घर है इसका ड्राईवर को साथ ले लीजिये और आप भी घूम आएंगे इसी बहाने
ये...मजा आ गया दादा जी भी जाएगें हमारे साथ कहते हुए आकाश अकरम की तरफ दौड़ा
हहह कितना खुश है बदमाश क्षितिज बोला
ड्राईवर ने कार निकाली और दोनो बच्चों को लेकर रंगनाथ चल दिए
कार ने एक आलीशान बंगले में प्रवेश किया और अंदर जा कर पार्क हुयी सब लोग नीचे उतरे तुरंत एक नौकर उनके करीब आया और रंगनाथ , दोनो बच्चों के आगे आगे अंदर की तरफ चलने लगा उसने अंदर जाकर सबको एक बड़े से डायनिंग रूम में बैठाया जहाँ चाँदी की कीमती चम्मचें , बड़े कटोरे फल फूल सब रखा था पूरा कमरा किसी नवाब का दस्तरखान लग रहा था सेंवई की केवड़े में मिलीजुली महक आ रही थी
रंगनाथ ने अकरम से पूँछा घर में कोई नहीं रहता क्या
रहती हैं न मेरी दादी जान अंदर हैं रसगुल्ले बना रहीं हैं आती होंगी आप उनके हाथ के रसगुल्ले खाएगें तो खाते ही रह जाएंगे
तभी रंगनाथ की उम्र की एक महिला कमरे में कटोरा लिए दाखिल हुयी बाल चाँदी की तरह बिल्कुल सफेद थे
लो बच्चों रसगुल्ले खा लो फिर उनकी नजर रंगनाथ पर पड़ी
जी मैं आकाश का दादा हूँ ईद मुबारक हो
आपको भी उन्होने मुस्कुरा कर कहा
रंगनाथ को न जाने क्यों ये लग रहा था कि उसने ये मुस्कान पहले कहीं देखी थी कहाँ ये याद नहीं आ रहा था
लो बच्चों रसगुल्ले खा लो दो दो रसगुल्ले उन्होने अकरम और आकाश की प्याली में डाल दिए
फिर उन्होने रंगनाथ की प्याली में रसगुल्ले डालने के लिए ज्यों ही हाथ उठाया था रंगनाथ की नजर उनके हाथ की तीसरी उंगली में पड़ी अंगूठी पर पड़ी वो निशानी जिसे वो कभी नहीं भूल सकता था वही काले पत्थर की अंगूठी जो उसने हिना को दी थी जिसे कभी न उतारने का वादा किया था
आकाश और रसगुल्ले खा ले तुझे पता है आज मेरी दादीजान की सालगिरह भी है अकरम आकाश से बोला
रंगनाथ की निगाह अब उसे घूरने लगी थी जो बिल्कुल उसके नजदीक खड़ी थी
नननाम क्या है आपका रंगनाथ ने कांपती आवाज में उनसे पूँछा
हिना...........................................................
रंगनाथ की आँखे आज भर आयी थी
चल अकरम अब खेलते हैं दोनो बच्चे उठकर बाहर खेलने लगे
आप इलाहाबाद की हैं
हाँ वो बोली इस बार हिना सोच में पड़ गयी थी
मुझे पहचाना रंगनाथ ने कहा
नहीं क्यों आप मुझे जानते हैं क्या
भूल गयी रंगनाथ को...........................
इस बार जैसे हिना पर बिजली गिर गयी हो उसने उस अंगूठी को जोर से पकड़ लिया या.....अल्लाह उसके मुँह से निकला
तुम तुम रंगनाथ हो वो बोली
हाँ मै वही रंगनाथ हूं जिसने तुम्हे ये अंगूठी पहनाई थी
हिना अन्दर तक काँप गई थी
मगर तुम्हारी शादी तो लखनऊ में हुयी थी रंगनाथ ने कहा
हाँ पर मेरा काफी सालों पहले यहाँ डाक्टर के ओहदे पर ज्वाईन हुआ था और अपने बाप के गुजर जाने के बाद वो मुझे यहाँ दिल्ली ले आया इस समय साऊदिया में है हर तीन महीने में वो मुझसे मिलने आता है दिल बहलाने के लिए मैने अकरम को अपने पास रोक लिया है
तुमने मुझे कभी बताया नहीं कि तुम मुझसे प्यार करते थे
ऐसा कुछ नहीं है हम सिर्फ दोस्त थे
कब तक झूठ बोलोगे मैं जब अपनी शादी के बाद घर आयी थी तो चाबी लेकर तुम्हारे कमरे में गयी थी वहाँ मैने वो डायरी पढ़ी उसके आखिरी पन्ने पर मेरे बेसुमार आँसू गिरे थे मेरी शादी हो गयी थी तुम तो चले गए मगर आज तक तुम्हारी यादे लिए जी रही हूँ मैं वो डायरी ले लेना चाहती थी मगर उसके आखिरी पन्ने पर तुमने लिखा था यादें जिन्हे मुझसे कोई नहीं छीन सकता....
रंगनाथ की आँखो से झरझर आँसू बहकर उनकी ढाढ़ी के बालो को भिगाने लगे थे इश्क की इतनी उम्रदराज बरसात भी हो सकती है कौन जानता था
हिना ने अपने हाथ बढ़ाकर रंगनात के आँसू पोंछे रंगनाथ ने बगल में रखे अपने बैग से वो डायरी निकाली और आखिरी पन्ना खोला देखा तो धुली हुई स्याही में लिखा था यादे जिन्हे मुझसे कोई नहीं छीन सकता ये स्याही हिना के आंसुओ से धुली थी
लो रसगुल्ला खा लो हिना ने हाथ मे रसगुल्ला लेकर उसकी तरफ बढ़ाया
जवाब में रंगनाथ ने भी एक रसगुल्ला हिना की तरफ बढ़ा दिया दोनो ने एक दूसरे को खिलाया
जन्मदिन मुबारक हो हिना आज चालीस साल बाद इस ईद ने हमें फिर से मिला दिया रंगनाथ के भरे हुए गले से आवाज निकली
ईद इन्हे मिलाती क्यों नहीं भला हिना(मेंहदी) से उसके रंग को कोई कैसे जुदा कर सकता था...........................


- अविनाश शर्मा
16/06/2018