Burka - A Sad Love Story books and stories free download online pdf in Hindi

बुर्क़ा – एक करुण प्रेम कथा

विशाल कभी भी पढने में अच्छा नहीं था| बचपनसे ही गरीबी और पिता की कंजूसी नें उसे ग़ुरबत में रखा था| छोटी छोटी ज़रूरतों के लिए विशाल दोस्तों के छोटे-मोटे काम भी कर दिया करता था| बचपन बीत चला, जवानी जोश मारने लगी, हाथ पैर निकल आये तो विशाल काम-काज पर भी लग गया| जीवन धीरे धीरे पटरी पर आ ही रहा था तभी, विशाल के जीवन में एक सुंदर लड़की का आगमन हुआ|

पहली ही नज़र में प्यार तो आप नें सूना ही होगा, लेकिन अपना हीरो तो उस लकड़ी की आवाज़ सुन कर ही प्यार में पड़ गया| लड़की का नाम जैस्मिन था और वह बुर्क़ा पहनती थी| विशाल उसके एक दीदार के लिए घंटो तक उसके आगे पीछे घुमने लगा| लेकिन कभी सहेलियां तो कभी जैस्मिन के घर वाले रोड़ा बनते रहे|

एक दिन हिम्मत दिखा कर विशाल नें मौका ढूंढ ही लिया| उसने जैस्मिन का रास्ता रोक कर उस को सीधे लफ़्ज़ों में बता दिया की, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, और तुम्हारा चेहरा देखने की खवाइश है| किसी अंजान लड़के की ऐसी हरकत देख जैस्मिन गुस्से से लाल हो गयी, उसने बिछ रस्ते विशाल को सनसनाता चांटा लगा दिया और आगे बढ़ गयी|

कुछ देर तो विशाल मन ही मन गुस्सा हुआ, फिर उसे अपनी गलती का भी एहसास हुआ की, बिछ रस्ते इस तरह किसी लड़की का रास्ता रोक कर ऐसी बात करना गलत है, ऐसा बरताव किसी को भी असहज कर सकता है|

करीब दो दिन तक विशाल उस लड़की के सामने नहीं आया| फिर विशाल नें फैसला किया की उसे लड़की से माफ़ी मांगनी चाहिए, इरादा भले ही गलत नहीं था लेकिन मन की बात बताने का रास्ता तो गलत ही चुना था| मौका देख कर उसने लाइब्रेरी में उस लड़की के सामने एक किताब रख दी, जिसके कवर पर सॉरी लिखा था|

इतना कर के विशाल पीछे मुड़े बिना आगे बढ़ गया| जैस्मिन की नज़र उस किताब पर ही थी, उसे भी अब यह एहसास हुआ की, किसी के प्यार के इज़हार के बदले उसे तमाचा मारना सही नहीं था| वह उसी वक्त उस किताब को ले कर वहां से उठी और विशाल के पीछे चली गयी| अब विशाल पार्क में बैठा था| अचानक जैस्मिन को सामने देख कर वह सन्न रह गया| और अब उन दोनों के बिछ जो बात हुई वह कुछ इस तरह थी...

विशाल : अब क्या हुआ? सोर्री बोलना भी पाप है क्या? बुक तो फैंक कर नहीं मारोगी ना?

जैस्मिन : (हँसते हुए) नहीं... जो भी हुआ उसे भूल जाओ,,, गलती दोनों की थी, मुझे भी हाथ नहीं उठाना चाहिए था| आप की किताब लीजिये, मैंने आपको माफ़ किया| और थप्पड़ मारने के लिए सॉरी|

विशाल : थैंक गॉड, वैसे आप ये बुर्क़ा क्यूँ पहनती हैं? अभी तो मोर्डन ज़माना है|

जैस्मिन : मेरे बुर्क़े का जुड़ाव हमारी संस्कृति और धार्मिक रीती से जुड़ा हुआ है| इस से वेस्टर्न ट्रेडिशन और मोर्डेन स्टाइल का कोई लेनादेना नहीं| ठीक है? बाय|

विशाल : रुकिए... आप का नाम? और क्या आप का चेहरा देख सकता हूँ?

जैस्मिन : तमाचेवाली नाम से मुझे याद रख लेना| में किसी अंजान के सामने परदा नहीं हटा सकती| सॉरी|

विशाल ; तो फिर ठीक है... आप को मै पसंद नहीं.. तो मुझे दोस्त ही बना लीजिये| फिर तो दिक्कत नहीं होगी?

जैस्मिन : तुम ना बड़े चिपकू हो... ऐसे बात नहीं बनेगी... कुछ हिम्मती कारनामा कर के बताओ तो सोचेंगे...

विशाल : जैसे की...? बताओ... मै तैयार हूँ... कुछ भी कर जाऊँगा|

जैस्मिन : पता था, ऐसा ही कुछ जवाब मिलेगा| तुम्हारा पहला टास्क (चुनौती) कल शुरू करेंगे| तुम को मेरे कॉलेज कैंपसमें साडी पहन कर मेकप लगा कर आना होगा| 5 मिनट यहाँ वहां घूमना होगा| और लौट जाना है| इतना कर दिया तो मुझे हेल्लो हाई कर सकते हो, लाइब्रेरी में मेरे साथ वाले टेबल पर बैठ सकते हो|

विशाल : चलो किसी भी तरह राह तो खुली,,, मंज़ूर है, पर चेहरे का दीदार करने के लिए कौन सा टास्क होगा?

जैस्मिन : फल की चिंता छोड़ो और कल से टास्क पर ध्यान लगाओ| और दूसरी बात, कोई भी गलत-फैमि मत पालना, दोस्त का मतलब दोस्त ही होगा| बाय|

अगले दिन विशाल विग लगा कर साडी डाल कर मेकप के साथ जैस्मिन के कोलेज कैंपस में आ गया| वहां मौजूद अन्य स्टूडेंट्स यह सब देख कर खूब हँसे...विशाल कौन था, क्यूँ यह सब कर रहा था, यह बात जैस्मिन और विशाल ही जानते थे|

अगले दिन लाइब्रेरी में

विशाल : खुश? अब तो हम दोस्त हैं ना? आगे का टास्क बताओ, चेहरे को देखना है.

जैस्मिन: तुम सब एक जैसे ही हो ना? फिगर देखना है? चेहरा देखना है? उस के बात डिसाइड करोगे की? प्यार आगे बढ़ाना है? दोस्ती रखनी है या कन्ये काट के आगे बढ़ना है|

विशाल: प्यार तो उसी दिन हो गया था जब, तुम्हारी आवाज़ सुनी थी, और कान की बाली देखी थी| अब सिर्फ यही तमन्ना है की, जिस के लिए दिल इतना ज़ोरों से धड़कता है वह दिखती कैसी है, कौन है|

जैस्मिन: हाहाहा... फैंकते जाओ, मै लपेट रही हूँ, कल मुझ से अच्छी कोई दिखी तो उस से दोस्ती आगे बढानेंमें व्यस्त हो जाओगे,,, और मै बता दूँ, इसमें तुम्हारी गलती नहीं है, इन्सान की फितरत ही यही है, सब से अच्छा सब से सुंदर सब से प्यारा मेरे पास और जो बिगड़ा दूर रहे, जो बीमार जल्द मरे, जो ना पसंद वह ना दिखे| ऐसे ही होते हैं 100 में से 99 लोग|

विशाल: पता है की, नहीं जीतूँगा तुम से बहस कर के, अब बताओ अगला टास्क?

जैस्मिन : सब्ज़ी बेच के दिखाओ... और वह भी ठेले पर,, तुम को यह काम अपने इलाके में ही करना है...और वह भी चिल्ला चिल्ला कर,, मुझे सारी सेल्फी चाहिए|

विशाल : तुम तो टास्क के नाम पर मेरी बैज़ती करने पर तुली हो| मेरा अच्छा खासा स्टोर चल रहा है| मै यह नहीं कर सकता हूँ| कुछ और बताओ...मेरे घर वाले, पडौसी, पहचान वाले क्या बोलेंगे? कुछ तो सोचो?

जैस्मिन : अगर इस शर्त का कोई तुक्क नहीं होता तो मै यह टास्क रखती ही नहीं| पर कोई नहीं, देख ली तुम्हारी दोस्ती और तुम्हारा प्यार... अब मिलने की कोशिस मत करना| बाय|

एक दिन बात विशाल लेहेंगा, गमछा डाल कर सब्ज़ी तरकारी का ठेला लिए जैस्मिन के कोलेज के सामने खड़ा हो जाता है| जैस्मिन की नज़र थोड़ी ही देर में विशाल पर पड़ जाती है| वह तुरंत बुरखे में अपना हाथ डाल कर हंस पड़ती है| और विशाल की तारीफ़ करती है|

विशाल : जा रहा हूँ... ठेला ले कर अपने ही इलाके में,

जैस्मिन : तुम पर अभी भरोसा नहीं, अपने इलाके की एक एक गली पर तुम्हे खुद की सेल्फी लेनी है| ठेले के साथ| और याद रहे की आस-पास लोग मौजूद होने चाहिए|

विशाल – बड़ी बेरहम दिल-रुबा मिली है... चलो... यह भी हो जायेगा| लेकिन इस टास्क के बाद चेहरा दिखाना होगा|

जैस्मिन : बेटा तुम शर्त रखने की कंडीशन में नहीं हो,,, बस अर्ज़ करते जाओ, कब क्या सुविधा देनी है यह मै तय करुँगी|

विशाल यह टास्क भी अच्छे से कर लेता है| और इस हरकत से विशाल अपने ही लोगों में मज़ाक बन कर रह जाता है| अब फिर से जैस्मिन के कोलेज की लाइब्रेरी में विशाल उस से मिलता है| और पूछता है की, इस टास्क के लिए उसे क्या सुविधा मिलेगी?

जैस्मिन उसे जवाब में एक और काम बता देती है|

जैस्मिन : दस प्लास्टिक के गिलास ले कर आओ, और मेरे सामने रख दो| फिर उन पर एक से ले कर दस नंबर लिख दो|

विशाल : यह गलत है, पीछले टास्क का भुगतान तो तुमने किया नहीं और अब यह नया टास्क?

जैस्मिन : जल्दी गिलास ले आओ,, तुम्हारे पास 10 मिनट है|

विशाल : ठीक है,,, यह लो प्लास्टिक के 10 गिलास, मार्कर से मैंने इसमें 1 से 10 नम्बर भी डाल दिए हैं|

जैस्मिन : मैंने इन सभी गिलास में कुछ मुमफलीयां डाल दी है, इनमें खाध डालो,, मिट्टी डालो, और उगाओ मुम्फल्ली| और एक बात याद रहे की, एक भी मुम्फल्ली का गिलास खोया तो मुझे खो दिया यह समझ ना| उसी वक्त हमारी दोस्ती का द-एंड हो जायेगा|

विशाल : इतना भी ना सताओ, एक झलक तुमको देखना ही तो चाहता हूँ, कहाँ प्यार के बदले तुम से प्यार मांग रहा हूँ|

जैस्मिन : जो बताया वह याद रहे| बाय|

विशाल सारे गिलास ले कर घर चला जाता है| दो दिन तक वह जैस्मिन के आस-पास नज़र नहीं आता है| और फिर अचानक पार्क में जैस्मिन खुद उसे खोज लेती है| वह बोलती है की, मुम्फल्ली का क्या हुआ? उगाई?

विशाल : हाँ... खाध डाला,,, पानी भी डाला,, पर कुछ उग नहीं रहा...

जैस्मिन: हाहाहा... अरे बुद्धू,,, ऐसे कोई मुम्फल्ली बोता है क्या? वह भी प्लास्टिक के गिलास में? हाहाहा तुम तो किसी दिन मेरे कहने पर पैसों का पेड भी उगाने निकल पड़ोगे| विशाल मेरी बात मानो,, किसी इन्सान से इतना लगाव अच्छा नहीं| अपनी गति कम करो| संभल जाओ|

विशाल : तो फिर,,, तुमने मुझे वह गिलास क्यूँ पकडाए थे? तुम मेरा इतना इम्तिहान क्यूँ ले रही हो?

जैस्मिन : अरे भोले इन्सान... वह तुम्हारे टास्क का इनाम था,,, हर एक गिलास में कुछ मात्रा में मुम्फल्ली डाली हैं| जिस के आकडे मेरे मोबाइल नंबर से मिलाये हैं| यानी अगर पहले गिलास में 7 मुम्फल्ली तो मेरे नंबर का पहला अंक 7, वैसे ही पुरे दस गिलास की मुम्फल्लीयों के अंक किसी कागज़ पर लिखोगे तो मेरा मोबाइल नंबर बन जायेगा|

विशाल उसी वक्त दौड़ कर घर जाता है| और बड़े एहतियात से, एक एक गिलास में डाली खाध और मिट्टी दूर कर के उन में डली मुम्फल्ली गिन गिन कर जैस्मिन का नंबर बना लेता है|

जैस्मिन और विशाल फोन पर....

विशाल : अब नंबर तो दे दिया, नाम भी बता दो?

जैस्मिन : कल मुम्फल्ली फिर से लाऊंगी... गिलास ले कर पहुँच जाना... हाहाहा... अगर तुम फोन नंबर की मदद से लड़की का नाम तक ना पता कर सको तो मै किस तरह तुम से इम्प्रेस होऊं बताओ?

विशाल : चेहरा दखाने के लिए टास्क, नंबर देने के लिए टास्क, बात करने की परमिशन के लिए भी टास्क, लगता है शादी की बात पक्की होने तक तो में बुड्ढा ही हो जाऊंगा|

जैस्मिन : हाहाहा... अब सो जाओ,, जैस्मिन को भी सोना है, ठीक है|

विशाल: तो पक्का... नाम नहीं बताओगी?

जैस्मिन : अरे... ओ गवार प्रेमी...! अभी अभी दो सेकंड पहले मैंने बातों बातो में अपना नाम बता दिया| गुड नाईट बुद्धू|

दोनों की प्रेम कहानी धीरे धीरे पटरी पर चढ़ रही थी| जैस्मिन को विशाल से प्रेम तो नहीं था लेकिन, उसके भोलेपन और प्यार पाने की लगन देख कर जैस्मिन भी धीरे धीरे विशाल की और आकर्षित होने लगी थी| वजह जो भी हों, जैस्मिन किसी हड़बड़ी में, बिना सोचे किसी भी तरह का कदम आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी| क्यूँ की वह जानती थी की, एक बार अगर दिल टूट जाता है तो जिंदगी भर जुड़ नहीं पाता है? और वह ये मानती थी की, दूसरी बार का प्यार या रिश्ता तो सिर्फ समजोता ही होता है| जैस्मिन को जीवन में कभी भी समजोता नहीं चाहिए था|

अब जैस्मिन भी इरादा कर लेती है की वह विशाल का प्यार स्वीकार कर लेगी| आखरी बार वह विशाल की अंतिम परीक्षा लेने का निश्चय करती है, वह सिर्फ यह देखना चाहती है की, अगर वह (जैस्मिन) इस दुनियाँ से चली गयी तो विशाल, उसे भुला देगा? या उसके प्यार में उसकी याद में जियेगा|

औरतों के कपडे पहन कर लोगों के सामने आने की हिम्मत दिखाना हर किसी के बस की बात नहीं होती, इस टास्क से जैस्मिन नें यह जाना की, विशाल औरतों के पहनावे और उसकी गरिमा को हिन् नहीं समझता, उसके बाद उसने विशाल से सब्ज़ी तरकारी ठेले पर बिकवाई, इस से जैस्मिन नें इस बात का ताग लिया की बुरा वक्त कभी भी आ सकता है...

अगर ऐसे में कोई इन्सान शर्म के मारे छोटा-मोटा काम ना कर सके तो ऐसा व्यक्ति किसी काम का नहीं| उसके बाद जैस्मिन नें बुद्धि चातुर्य परीक्षा के लिए, मुम्फल्ली वाला टास्क रचा जिसमें विशाल फ़ैल तो हुआ लेकिन फिर भी उसके सच्चे प्यार और भोलेपन नें प्यार की बाज़ी जित ली|

अपने इस अंतिम टास्क को अंजाम देने के लिए वह अपनी एक सहेली के द्वारा ऐसी सुचना विशाल तक पहुंचवा देती है की, उसका एक्सीडेंट हुआ है और वह अपनी आखरी साँसे गिन रही है| मौत से पहले विशाल को वह अपना चेहरा दिखाना चाहती है|

इस बात को सुनते ही विशाल के पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है| वह दौड़ा दौड़ा, हॉस्पिटल आता है| जहाँ पर जैस्मिन नें अपने कुछ मेडिकल यूनिट के दोस्तों के साथ मिल कर इस नाटक का स्वांग रचा था|

जिस लड़की को देखे बिना प्यार किया उसकी ऐसी हालत हुई है यह मान कर विशाल बुरी तरह से आहत हुआ, दिल इतनी तेज़ी से धड़कने लगा की, उसके माथे से बे..तहाशा पसीना बहने लगा... जैस्मिन बेड पर लेटी थी| उसके माथे पर अब सफ़ेद चादर लगा दी गयी थी|

वहां मौजूद जैस्मिन के दोस्त विशाल की हालत देख कर सन्न हो गए फिर भी उन्होंने प्लान के अनुसार, नाटक जारी रक्खा,,, शायद वह मामले की गंभीरता समझ नहीं पाए,

उनमें से एक व्यक्ति विशाल के पास आया और बोला की, हमने कोशिश बहुत की पर, जैस्मिन नहीं बच सकी, वह तुम्हे एक बार अपना चेहरा दिखाना चाहती थी| उसके जीते जी यह हो ना सका, अब तुम उसका कफ़न हटा कर उसे एक नज़र देख लो, ताकि उसका परीवार उसे घर ले जा कर अंतिम बिदाई की तयारी कर सके|

कांपते हुए हाथ से विशाल कफ़न की और हाथ बढाता है,,, वह पसीने में तरबतर खून के आंसू रोये जा रहा था,, अब वहां मौजूद सभी लोगों को लगने लगा था की, इस नाटक का अंत तुरंत होना चाहिए| बिस्तर पर लेटी हुई जैस्मिन भी अब उठ कर सारा नाटक समाप्त कर के विशाल का प्यार कबूल करने ही वाली थी तभी....

धडाम से एक आवाज़ आई,, विशाल ज़मीन पर गिरा तड़प रहा था| शायद उसे दिल का दौरा पड़ गया था| यह सब देख कर वहां चीख-पुकार मच गयी| जैस्मिन नें तुरंत उठ कर विशाल का सर अपनी गोद में लिया और जटके से अपना बुर्क़ा हटा दिया| लेकिन बुर्क़ाउठने से पहले विशाल की आँखें बंद हो चुकी थी| वह इस जूठे समाचार का सदमा सेह नहीं सका|

अपने प्यार से दूर जाना उसे किसी हालत में कबूल नहीं था, फिर यहाँ तो अकस्मात् और मौत की खबर थी| जैस्मिन के प्यार में तड़पता विशाल दुनियाँ छोड़ गया| विशाल की मौत के बाद जैस्मिन नें कभी किसी से ना तो दोस्ती की, और ना ही अपने जीवन में कभी शादी की| वह रोज़ घर से निकलती और उन सभी जगहों पर एक बार ज़रूर जाती जहाँ पर उसने विशाल के साथ अच्छा समय बिताया था|

विशाल मुस्लिम नहीं था लेकिन फिर भी, उसे दफनाया गया, सिर्फ इस लिए क्यूँ की एक बार जैस्मिन नें और विशाल नें एक दुसरे से यह वादा किया था की, जब वह इस दुनियाँ को अलविदा कहेगी तब उसे जलाया जायेगा, और विशाल की जिंदगी ख़त्म होगी तब उसे दफनाया जायेगा| ऐसा वह दोनों सिर्फ इस लिए करना चाहते थे ताकि, जात-पात धर्म और समाज के आंतरिक द्वेष और अंतर को कम किया जा सके|

एक दिन.... कब्रिस्तान में...

जैस्मिन विशाल की कब्र पर जा कर फूल चढ़ाती है, एकांत देख कर सिर्फ विशाल के लिए अपना बुर्क़ा हटाती है, और कुछ देर वहां रुक कर भीगी आँखों के साथ घर लौट जाती है|

तभी कब्र में आराम कर रही विशाल की रूह बोल पड़ती है...की

ऐ मेरे मालिक, मेरे भगवान तूने भी मेरी क्या किस्मत लिक्खी है,,, जब मै बे-परदा था तो उन्होंने कभी परदा हटाया नहीं| और आज जब मै परदे में आ चूका हूँ तो, वह रोज़ बे-परदा सिर्फ मुझसे मिलने, मेरे दीदार के लिए, मेरी कब्र पर आते हैं|- समाप्त (यह प्रेम कहानी उन सभी मित्रों के लिए जिन्हें, अपना पहला प्यार हासिल ना हो सका)| जय हिन्द