Kaali Vadh books and stories free download online pdf in Hindi

काली वध

काली वध

तमिल कहानी एन शकुन्तला

अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा

‘‘क्या है री!.......... बोल.............क्यों भाग कर आ रही है?''

‘‘अत्ते......अत्तेय....कुंवारी की तरफ'' ‘‘क्या बात है री? बोल तो।''

‘‘एक अबोध बच्ची...................चार साल की होगी। उसका शव पडा है अत्येय...............चेहरे व गले पर नाखून से नखोटा हुआ है खून दिख रहा है।''

‘‘अम्मा! काली माता......... वनदेवी ........ ये खून क्यों वहा रही हो? आपको प्रसाद चढायेगे.........मारी मां जनता की रक्षा करो..........आपके लिये बलि चढ़ाने में देर जरूर हो गई..........थोड़ा सहन करो काली देवी!'' बड़बडाते हुए नेता को समाचार देने दौडी पर रूक कर...

‘‘अमावस्या और पूर्णिमा के दिन बच्चों की बलि लेती है। ये, जो जंगली सूअर है वहीं तो ऐसा करता है। उसको मारने के लिए जहर भी रखा। पर ये मरता ही नहीं है। पता नहीं किसकी बच्ची थी।'' दीर्धस्वास लेकर भभूति के डिब्बे को लाई।

‘‘अम्मा काली वनदेवता, उसं........उसं....... हवा, भूत, पे्रत कोई भी डर से बचा दे मां!'' बोलती हुई चेल्वी के माथे पर भभूति लगाती है।

भूम्पाडी गांव चारों तरफ पहाडी के ऊपर ही बसा हुआ है। वहाँ कॉफी का बगीचा कई हेक्टर जमीन में फैला हुआ है। वहां पानी के छोटे—छोटे पाइप लगे है ताकि वहाँ सिंचाई हो सके। उसके चारों ओर बीच बीच में झोपडियां बनी हुई है। जिसमें आदिवासी लोग रहते हे। उनमें कुछ बगीचों में काम करते है, कुछ बकरियां पालते हुए, छोटे पैमाने में साग सब्जी उगाकर जीवन—यापन करते है। कुछ कॉफी तोडने व शहद इकट्‌ठा करने का काम करते है। युवा लोग जो दसवीं पास कर लेते वे कॉफी स्टेट में रिसोर्ट होटल आदि में काम करते है।

चेल्वी का पति वीरन भी एक कि.मी. ऊपर चढ़ तारयूर पहाडी पर एक सरकारी प्राथमिक पाठशाला में पीउन (चपरासी) था। वेतन तो कोई खास न होने पर भी सरकारी नौकरी है सोच चेल्वी के पिता ने इससे शादी कर दी।

परन्तु ये रिश्ता चेल्वी के मां को पसंद नहीं था क्यों कि जगंल का कठिन जीवन जगंली जानवरो सुअर, हाथी, जगंली भैसे, विषेले सॉपों का डर..... तो था ही। वर्षा के दिनो में कहीं आ जा नहीं सकते है। आवश्यक काम हो तो भी या हारी—बीमारी हो तो भी कोई साधन गाडी आदि उपलब्ध नहीं होता। अपनी प्यारी लाडली बेटी को पालपोष कर बड़ा कर वे शहर में ही किसी लड़के को देना चाहती थी।

पर वीरव के मां —बाप आकर अपना हक जताते हुए लड़की मांगने लगे। चेल्वी को भी छोटी उम्र 8 द्य च्ंहमच्ंहम 8 वि 37

था (वहां बुआ के लडके से शादी हो जाती है) उसकी वर्दी खाकी पेन्ट व शर्ट पीउन के ड्रस में हुआ। वीरन को देख उसे पिक्चर में आये हीरो जैसा लगता था।

चेल्वी को केवल वीरन ही नही पर उसका गावँ भूंपाडी भी पसंद था। वहां की साफ सुथरी हवा, दूर दूर बनी झोपडियाँ खुली—खुली जगह पक्षियों का चहचहाना और सबसे बडी बात ठण्डा मौसम उसमें कम्बल व वीरन का साथ और उसे क्या चाहिये।

चेल्वी के शादी हुए भले ही छः महीने हो गये पर वह अब भी शर्माती इतराती रहती थी। सुबह नये दम्पति के उठने के पहले ही सास गंगम्मा उठ कर बासी चावल खाकर, गोभी के बगीचे में चली जाती थी।

वीरन भी नई पत्नी से लाड लडा कर थोडा छोडछाड कर आठ बजे स्कूल चला जाता।

उसके बाद घर में चेल्वी का ही राज्य था। चावल पकाना कणीमार झील में जाकर कपडे धोना, मच्छली पकड़ना और कपड़े सूखने तक इमली, जामुन, बादाम आदि तोडता और बकरी चराना। शरीर में हल्दी लगाकर नहाती व तैरती। इस तरह अपना समय काट कर वीरन के आने के समय घर आ जाती।

एक बार वीरन ने उसे समझाया ‘‘तुम यहां वहां जंगल व पहाडों में क्यों घूमती रहती हो। इसके बिना क्या तुम्हारा खाना हजम नहीं होता? मद्द—मस्त जंगली सुअर यहां—वहां फिरते रहते है। उनसे तुम्हारा पाला पडे़ तो पता चलेगा............. तुम्हारी इन सुन्दर आँखो को उखाड देगा।''

सासू गंगम्मा भी उसके समर्थन में बोली ‘‘हां चेल्वी! पिछले महीने भी मेटडू के कुंए के किनारे छः साल की बच्ची को मार दिया ...... ऐसी सूचना मिली बेटी! ध्यान रखो।''

चेल्वी, जब से भूम्पाडी में शादी होकर आई हे तब से जगंली सुअर के आतंक के बारे में कई लोगों ने उसे बताया व डराया। ऐसा कहते है जब जगंली सुअर मस्ती में आता है, तब उसके पीला सा पानी स्त्राव होता है। उस समय वह छोटी कन्याओं को देख घायल कर उनका खून पीता है।

अभी तक तो चेल्वी ने इसके बारे में सुना ही था। अब इस डरावने हश्य को स्वंय अपने आँखो से देख उसे बुखार आ गया।

सुना कि वह कोई मेल्टूर ग्राम की बच्ची थी। टॉफी लेने दुकान पर गई, तो जगंल कैसे पहुॅंच गई? सुअर आकर खींच कर ले गया? पुलिस भी असमजंस में थी।

सुबह जौ फटा ही था हल्का सा ही प्रकाश था। गंगम्मा, और सभी ग्राम वासी चेंग काली देवी को बडी प्रसादी में बलि देने की सोच पहाडी के नीचे झुण्ड बनाकर गए। ये चार गांव के लोग पोगंल का प्रसाद चढा देवी से, हर तरह की दुष्ट आत्मा से जनता को बचाने की प्रार्थना कर बली चढाई। यहां भूम्पाडी में केवल चेल्वी व वीरन ही झोपडी में रह गए।

वीरन नशे में था। सूखे मच्छली के सांभर को चावल में मिलाकर अपने हाथों से चेल्वी को खिला रहा था।

‘‘अरे.............. बहुत ही बदबू। आ रही है। अरे हिसंक, दारू पीना तुम कब छोडोगे?'' मुँह से भले ही ऐसा चेल्वी बोल रही थी, पर उसका शरीर वीरन सी छाती से गोदं की तरह चिपका हुआ था।

‘‘ये क्या.............. ये क्या है प्यारे.............. तुम्हारे पीठ पर खून की लाइन जैसे किसी ने नखौट दिया हो।''

‘‘यार तुमने ही किया है। देखो तो तुम्हारी भूतनी जैसे नाखून बडे़ है ना?''

‘‘जाओं जी। मेरे नाखून तो कटे हुए है। देखो तो................'' कुछ कहने जा रही थी कि वीरन ने पास आकर उसे अपने आगोश मे ले लिया। ‘‘मेरे प्यारे निष्ठुर'' कह कर चेल्वी प्रेम के मद में बुदबुदाने लगी।

कीरैकाडु में ..... आठ...दस.... औरते मिलकर खेत में अनुपयोगी फालतु उगे हुए पौधाें व घास को उखाड रही थी। चेल्वी खाना लेकर आई। लहसून का रसम व अण्डे की सब्जी को गंगम्मा ने बडी रूची लेकर खाई। नई बहू के लाए खाने को अन्य औरतो ने चखा फिर बोली ‘‘हुम.... तुम तो बहुत भाग्यशाली हो गंगम्मा! कहकर साथ के लोगो ने दीर्घ स्वास छोड़ा। सास के खाने के बाद उन पीतल के बर्तनों को वहां के बहते हुए पानी में ही धोकर चेल्वी वहां से रवाना हुई।

प्लास्टिक की टोकरी को लेकर पहाडी से उतरने लगी तो उसके मन मे एक विचार आया। क्यों न वीरन से मिला जाय।

यहां से दो मोड़ चढकर फूलों के बगीचे को पर करते ही वीरन का स्कूल आ जाता हैं उस दिन शनिवार था। स्कूल की भले ही चार दिन की छुटी हो सफाई करने, जाले निकालने, पौधों मे ंपानी लगाना हो ऐसा कोई भी कार्य करने के लिये स्कूल जाने की उसकी आदत थी। वह भी कभी उसके साथ चली जाती थी। परन्तु आज तक स्कूल में बच्चे नही ंहो अकेले .... वह नहीं गई। चेल्वी को लगा आज अचानक मैं उसके सामने जाकर खडी हो जाती हूॅ, ताकि वह भौच्कां रह जाता।

पास के पेड से एक चिड़ियां चू...चू... की आवाज कर रहीं थी। चेल्वी को वह आवाज कल रात मूजं की खाट से जो आवाज आई वैसे ही लगी।

यह सोच उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। वह वीरन को देखने के उत्साह में दौड—दौड कर चलने लगी।

उस पीले रंग की इमारत में खामोशी छाई हुई थी। बाहर के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था।

‘पति वीरन घर तो नहीं चला गया? सोचती हुई स्कूल के पिछवाडे की तरफ जहां मिड डे मील देते थे, वहां जाकर देखा। वहां भी कोई नहीं था। परन्तु दरवाजा अन्दर की तरफ से बन्द था....... तो थोड़ा उचक कर खिड़की से अन्दर की तरफ झांकी।

वहां.... वहां! उसने जो देखा!

अरे... थे क्या? चेल्वी आँखे फाड कर देखने लगी। वहां एक लकडी के बैन्च पर, एक बच्ची .... चेल्वी के कलेजे में सांप लोटने लगा। पेट में कुछ कुछ होने लगा। उसे चक्कर आने लगे गिरने के डर से खिड़की के सरियो कोे मजबूती से पकडा।

‘‘अरे! मुहं मत खोल... तुम्हारे गले को दबा कर मार दूॅगा।''

‘‘इसे कौन डरा रहा है........ क्या ये वीरन है? मेरा पति? अरे पापी।'' इससे ज्यादा सहन न कर सकी, खट—खट ... कर दरवाजे को खट खटाने लगी। उसका हाथ कांप रहा था। पर हिम्मत उसमें आ गई। खट से दरवाजा खुला, ‘‘दी दी.. दी...दी ... ऊंम... ऊंम.... ये मामा..'' रोते हुए बच्ची दौड कर आई वह पांच साल की होगी।

‘‘ठीक है बेटा .... तुम जाओ ... खडी मत रहो। दौडो ... दौड कर घर जाओं।'' कह कर उस बच्ची को भगा दिया।

ये चल्वी.. क्यों यहां आई रे? बेवकूफ...। नशे में था वीरन उसने हाथ में आई थाली को उठाकर उसे मारने के लिये झपटा।

तुम हो ... थू.. थू... थू धत तेरे की कह कर गुस्से में थूूक दिया।

‘‘हां री। मैं ही हूँ आज तक चार छोटी बच्चियों का बलात्कार कर खत्म करने वाला भी मैं ही हूँ।'' वह कलई खुलने के बाद भी डींक हां रहा था।

चेल्वी को पूरा संसार ही घूमता हुआ लगा।

‘‘फिर..... वो जगंली सुअर, मद मस्त सुअर, कन्याओं को मारता है। जो गांव में सब बात करते है....?''

‘‘सब झूठ, वह तो मेरे द्वारा फैलाई गई झूठी कहानी है। मुझे कौन क्या पूछ सकता है? किसे पता वह मैं ही हूँ। इसका क्या पू्रफ हैं?।

‘‘मैं हूॅ ना भूल गया? अभी जाती हू पुलिस के पास।''

‘‘तुम्हारी इतनी हिम्मत .... औरत की जात..... औरत जैसे रहो ....... तुम्हें जिदां छोडूँगा तब ना?''

चेल्वी के बालों को पकड कर खीच कर उसे नीचे गिराया। हाथ में वहां पड़े भारी पत्थर को उठाकर चेल्वी को मारने आया... पर दूसरे ही क्षण ... नीचे गिरी एक पट्‌टी से टकरा कर स्वयं नीचे गिर गया। चेल्वी को पता नहीं कहाँ से इतनी हिम्मत आई तुरन्त पास में रखे मिटटी के तेल के केन को उठाकर, उसके ऊपर उडेल दिया।

‘‘ये.. ये.... क्या कर रही ंहै...... मुझे मारेगी? मैं तुम्हारा पति हूॅ।''

‘‘थू.... थू..... छिः.....छिः तू मेरा पति। थू... कच्ची कलियों को मारने वाला पापी, लफंगा मर जा रे...... मर जा।''

माचिस को जला कर उसके ऊपर डालदी तुरन्त तेल जल उठा। आग की लपटे चारों ओर फैल गईं।

उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था व दाँतो को पीसते हुए, ऑखो को तरेर कर देखती हुई चेल्वी उग्र रूप में भद्र काली बनी हुई खडी थी।

उसकी लाल रंग की साडी, आग की ज्वाला का प्रकाश लाल, बिल्कुल भद्र काली लग रही थी।

पीने के कारण नशे की वजह से वीरन आग में मर गया यह कह कर पुलिस ने केस बंद कर दिया। मृतक के एवज में उसी पाठशाला में चेल्वी को आया की नौकरी दे दी गईं बुजुर्ग गंगम्मा उसी के साथ रह रही थी। छोटी बच्चियों को चेल्वी बडे सुुरक्षित ढ़ग से लेकर जाती व लाती। अब बच्चियों मरती नहीं थी।

परन्तु गांव वाले चारों तरफ क्या बात करते है पता है?

‘‘काली देवी को पूर्णिमा के दिन हम सब ने मिलकर प्रसादी चढ़ाई, बलि दी उसी का असर है कि वह भयंकर जंगली सुअर अपने साथियों के साथ जा आक्रमण करता था वह अब नहीं हो रहा है।'' जब पहाडी आदिवासी ऐसी बातें करते है तो चेल्वी की वेदना बढ़ जाती है वह अपनी आँसूओं को रोक न पाती। वे अपने आप बहने लगते है।

***

एस. भाग्यम शर्मा बी—41, सेठी कॉलोनी, जयपुर—4

S. BHAGYAM SHARMA B-41, SETHI COLONY, JAIPUR-4

Mo. No. 9351646385

नोट लेखिका से अनुवाद करने की स्वीकृती पहले ही ले ली गई है।