Lootlooti books and stories free download online pdf in Hindi

लुटलुटी


राजबीर थानेदार जाति से जाट था।वह इंसानों और घटनाओं को जातीय खाँचे में फिट करके सोचने का आदी था।वह कोई सीधा थानेदार भर्ती नहीं हुआ था बल्कि कांस्टेबल से तरक्की पाकर पहले हवलदार,फिर ए एस आई,फिर सब इंस्पेक्टर और फिर तरक़्क़ी पाकर इंस्पेक्टर बना था।उसे अच्छी तरह से मालूम था कि तरक्की की सीढ़ियां चढ़ने में जातीय समीकरण किस तरह से काम आते हैं।यदि मुख्यमंत्री जाट हो तो जाट जाति के लोगों,विशेषकर किसानों और कर्मचारियों के दैनिक व्यवहार में कितना अंतर आ जाता है।मुश्किल चीजें आसान हो जाती हैं।धीमे और अटक अटक कर चलने वाली सरकारी मशीनरी में जाति ग्रीस का काम करती है और काम फटाफट होने लगते हैं।उनके हरियाणा में ज्यादातर मुख्यमंत्री जाट हुए थे इसलिए उसकी सोच बन गई थी कि राज चाहे किसी भी पार्टी का रहे लेकिन मुख्यमंत्री जाट ही होना चाहिए।
उसे मालूम था कि पूरे हरियाणा में जाति को लेकर जितने भी चुटकुले चलते हैं,सुने और सुनाए जाते हैं उनमें से अधिकांश में जाटों का मखौल उड़ाया जाता है।लेकिन गाँव देहात के पालन पोषण ने उसे सहृदय बनाया था कि वह ऐसे चुटकुलों पर हँस लेता था।कोई न कोई जवाब भी दे देता था।उसका खून न जलता था, न ही वह लड़ने झगड़ने या मार पिटाई पर उतारू होता था।
राव धनपत खाली नाम का ही धनपत न था।सत्तर साल की उसकी आयु अठन्नी-चवन्नी गिनने से लेकर करोड़ों गिनने में ही बीती थी।उसके हिसाब से कोई ऐसा काम जिसमें दो पैसे का फायदा न हो करना व्यर्थ है।और कोई ऐसा काम जिसमें दो पैसे का खर्चा हो उसका जिक्र भी करना गुनाह है।इसलिए वह कभी मंदिर न जाता था। शादी कर देने के बाद कभी बेटियों के घर नहीं झांका था।
भिखारियों,साधुओं को दान पुण्य उसने आखिरी बार अपनी पत्नी के मरने पर किया था वह भी इस आशा से कि उसकी पत्नी इससे स्वर्ग पहुंचेगी और उसकी राह देखेगी।अपने स्वर्ग पहुँचने के बारे में वह इतना निश्चिंत था मानो मौत के बाद वह गुड़गांव जाकर स्वर्ग की सीधी बस पकड़ेगा और पहुँच जाएगा।
गहलड सिंह ठाकुर फौज में सूबेदार पद से रिटायर हुआ था।अच्छी खासी पैंशन पाता था।बड़ी बड़ी मूंछे उसने रखी हुई थी जिन पर ताव देते रहना उसका प्रिय शुगल था।उसका प्रिय शब्द'हरामजादे'था जिसे वह जहाँ तहाँ इस्तेमाल करता रहता था।अगर वह गुस्से में होता तो तेज फटकारती आवाज में 'हरामजादे'बोलता था।अगर वह किसी अपने से लाड़ में बात कर रहा होता तो बड़े प्यार से हरामजादे बोलता था। उसकी जवानी के दिनों की बड़ी अफवाहें प्रचलित थी कि कैसे वह राव धनपत के भाई राव लखपत की पत्नी को अपने साथ ड्यूटी की जगह पर ले गया था ।तीन साल तक अपनी पत्नी बना कर रखा था।बदले में अपनी तीन एकड़ उपजाऊ जमीन उसके नाम कर दी थी।राव लखपत के तीन लड़कों में कम से कम एक लड़का उसका था।राव लखपत आजकल शहर की नामी गिरामी हस्ती था।उसके लड़को में एक डॉक्टर,एक इंजीनियर और एक प्रोफेसर था।उन दिनों भी वह अच्छा खाता पीता व्यक्ति होगा इसलिए इस अफवाह पर लोग ज्यादा ध्यान न देते थे लेकिन बड़े बूढ़े दबी जबान में इसे सच बताते थे।अब हालात यह थे कि गहलड़ सिंह अपनी दस एकड़ जमीन ठिकाने लगा चुका था।उसके दोनों लड़के निकम्मे निकले थे।पेंशन से भी गुजारा न चलता था।इसलिए आय बढ़ाने के उद्देश्य से गहलड़ सिंह बैंक में गनमैन की नौकरी करके सोलह हजार मासिक पाता था।आते जाते ग्राहक उसे ठाकुर साहब या गार्ड साहब कहते तो उसका सीना गर्व से फूल जाता।किसी किसी बद्तमीज ग्राहक से बहस करने के दौरान वह भरसक प्रयत्न करता था कि उसके मुँह से 'हरामजादे'न निकले।क्योंकि एक बार उसकी हेड क्वार्टर में शिकायत हो चुकी थी।लेकिन कंट्रोल करते करते भी एक आध बार यह शब्द जुबान पर आ ही जाता था।
गांव का पुराना नाम खरखौदा था लेकिन नया नाम नवाबपुर ही सरकारी कागजों में दर्ज था।पुराने लोग अभी भी खरखौदा कहते।नवाबपुर शहर से पाँच किलोमीटर दूर एक लिंक रोड पर था।शहर से आने जाने के लिए टेम्पो चलते थे जिसे ज्यादातर मुदगल ब्राह्मण चलाते।मुदगल ब्राह्मणों के गाँव में कोई सौ एक घर थे लेकिन जमीन एक आध को छोड़कर बाकी किसी के पास नहीं थी।दो चार लड़के लायक निकले थे जो शहर में नौकरी करते थे।एक वकील था, एक सी ए और एक दांत का डॉक्टर बाकी सब कम पढ़े लिखे ऊँची जाति का होने के अभिमान से ग्रसित संकुचित सोच वाले व्यक्ति थे।घर में पैसा हो न हो।
नौकरी,रोजगार हो न हो थे तो वो राजऋषि मुदगल की संतान ही जिन्होंने 108 उपनिषदों में से एक मुदगल उपनिषद लिखा था।और जिसके शाप से ऋषि मुदगल की पत्नी अगले जन्म में पाँच पतियों वाली द्रौपदी बनी थी।इसलिए जरूरी था कि वे चाहे टेंपो चलायें।दस दस रुपये भाड़े के लिए सवारियों की बाट जोहें या शराब पीकर नाली में पड़े रहें।सबको उनका सम्मान करना ही चाहिए।यह नहीं कि सभी ब्राह्मण ऐसे ही थे।उनमें से ही एक गणेश मुदगल जिसकी जवानी फौज में नौकरी करते बीती थी और वह बुजुर्गों द्वारा संचित की हुई जमा पूंजी और अड़तालीस एकड़ जमीन भरसक बचाये हुए था,निहायत ही सज्जन और जुबान का पक्का व्यक्ति था।आजकल नवाबपुर खरखौदा का सरपंच था।सभी जातियों के लोग उसकी इज्जत करते।वह सबसे प्यार,खुलूस और अपनेपन से पेश आता।पूरी उम्मीद थी कि वह अगला इलेक्शन भी जीत जाए।लेकिन ऐसे आदमी के भी शत्रु होते ही हैं।चार पांच आर टी आई एक्टिविस्ट,पत्रकार नुमा व्यक्ति उसके भी दुश्मन थे।लेकिन वह उनसे भी कोई खुंदक न रखता था।
गहलड़ सिंह जिस बैंक में गार्ड था उस बैंक के सामने एक फोटो कॉपी,स्टेशनरी और लेमिनेशन की डबल मंजिल बड़ी दुकान थी जिस पर शर्मा टाइप एंड फोटोस्टेट का बोर्ड लगा था जिसका मालिक सूबेदार मुकेश सिंह था,जिसकी जाति बाल्मीकि थी यही उसका इकलौता कसूर था जो शर्मा टाइप एंड फोटोस्टेट का बोर्ड लगाने से गंभीर हो गया था।हुआ यूं था कि जब मुकेश सिंह फौज से रिटायर होकर आया तो उसने यह दुकान खरीद ली थी।दुकान का भूतपूर्व मालिक कोई ब्राह्मण था इसलिए दुकान का नाम शर्मा टाइप एंड फोटोस्टेट था।अंजान आदमी उसे शर्मा जी और जानकार आदमी सूबेदार कहते थे।लेकिन गहलड़ सिंह जो हकीकत जानता था उसे इस बात से बड़ी तकलीफ थी कि एक बाल्मीकि उसके बराबर के पद से रिटायर हुआ था और शर्मा का बोर्ड लगाकर जाति छुपाये बैठा है।
वह अक्सर कहता कि जो जिस जाति में पैदा हुआ है उसे उस जाति को छुपाना नहीं चाहिए।ऐसा कहते वक्त उसका चेहरा नफरत से टेढ़ा मेढा हो जाता और उसकी बड़ी बड़ी मूंछे ऊपर नीचे पेंडुलम की तरह हरकत करने लगती।
बैंक का मैनेजर एक पंजाबी खत्री था जो अभी अभी ट्रांसफर होकर आया था।सरनेम चौधरी लिखता था क्यों लिखता था यह उसे भी मालूम नहीं था।उसके पिता दादा लिखते आए थे इसलिए उसने भी लिखा था।वह वैसा ही था जैसे बैंक मैनेजर अक्सर होते हैं।थोड़ा बढ़ा हुआ पेट,थोड़ी निकली हुई गंजी चाँद!थोड़ा एटीट्यूड वाला व्यवहार।!थोड़ा मिलनसार होने का अभिनय, थोड़ा सनकीपन!जो गरीब और मजबूर के सामने मुखर हो जाता और प्रभावशाली,सम्पन्न ग्राहक के सामने सनकीपन खोल में दुबक जाता,विनयशील और मिलनसार व्यक्तित्व सामने आ जाता।
ये सारे चरित्र मतलब राजबीर थानेदार,राव धनपत,गणेश मुदगल सरपंच,गहलड़ सिंह ठाकुर,शर्मा टाइप एंड फोटोस्टेट का मालिक सूबेदार मुकेश सिंह और बैंक मैनेजर चौधरी साहब सब कहीं न कहीं किसी अदृश्य डोर से एक दूसरे से बंधे हुए थे।इस डोर का आखिरी सिरा विधाता ने पकड़ रखा था जो अपनी मर्जी से इंसानों को कठपुतलियों सा नचाता था और इंसान पाँच विकारों
काम,क्रोध,लोभ,मोह और अहंकार से बंधे स्वयं को ही अपनी जिंदगी का निर्धारक और नियंता समझकर निर्रथक दौड़ में लगे थे।आगे बढ़ने की दौड़,ज्यादा से ज्यादा धन सर्जन की होड़।और जिन्हें समाज को रास्ता दिखाने का काम करना था वे साधु संत धर्म ग्रंथों का स्वाध्याय करने और समाज को मार्ग दिखाने के स्थान पर अपने शिष्यों की संख्या बढ़ाने और मठाधीश बनने की अलग ही होड़ में लगे हुए थे।मतलब यह कि संसार त्याग के भी वे सांसारिक से ज्यादा सांसारिक थे।
अब संसार है तो संवाद की कटु स्थितियों में आदमी का न चाहते हुए भी पड़ जाना स्वाभाविक है।उस दिन भी ऐसा ही हुआ था।महीने का आखिरी दिन मैनेजर चौधरी रोज के मुकाबले ज्यादा खुश था।उसकी बूढ़ी होती पत्नी जिसकी वैवाहिक संबंध और उसके आधार संभोग में रुचि उतार पर थी,ने कल रात उसकी इच्छा के आगे समर्पण कर दिया था।खाली समर्पण ही नहीं बल्कि सहयोग और
सानिध्य भी प्रदान किया था।चौधरी सुबह से गुनगुना रहा था।गुनगुनाते हूए खुण्डे ब्लेड से शेव किये जा रहा था।सामान सब खत्म हुआ रखा था।पत्नी कई बार कह चुकी थी कि राशन का सामान लाना है लेकिन उसे याद ही नहीं रहता था।खुण्डे ब्लेड की वजह से कई खूंट छूट गए थे।जो उसे नजर कमजोर के कारण दिखाई नहीं दिए। उसकी निगाह घड़ी पर पड़ी वह अभी नहाया भी न था और नौ बज गए थे।नहाकर
वह जल्दी जल्दी बाहर निकला।पत्नी ने टोका भी कि दाढ़ी ढंग से नहीं बनी है लेकिन उसने ध्यान न दिया।दो ग्रास इधर,दो ग्रास उधर पेट में डाल वह बैंक की तरफ भागा।
बैंक में घुसा तो सीट पर दुनिया भर का काम फैला पड़ा था।दो बाबू छुट्टी पर थे और एक लेडी क्लर्क ने लेट आने को बोला था।बैंक में भीड़ देखकर उसका जी बैठ गया।
अपनी कुर्सी पर बैठा।एक गिलास पानी पिया और मेल चेक करने लगा।एक स्टेटमेंट अर्जेंट भेजनी थी।उसे डाउनलोड करना शुरू किया।नेट बहुत स्लो था।उसने बी एस एन एल,बैंक,इंडिया को गाली दी।सामने चाय वाला जाता दिखा, बैठे बैठे उसे आवाज दी,"एक चाय तेज पत्ती, कम चीनी, दूध बिल्कुल थोड़ा सा!जरा जल्दी!!"
तभी उसके केबिन में गणेश मुदगल सरपंच ने प्रवेश किया,"नमस्ते चौधरी साहब!के हाल सैं आपके!"
"ओह!आइए सरपंच साहब!बड़े दिन में दर्शन दिए।कभी कभी संभाल लिया करो हम गरीबों को भी!"चौधरी हँसते हुए बोला।
"अजी गरीब तो हम किसान हैं।कभी अतिवृष्टि!कभी अनावृष्टि!!कभी तेज धूप कभी पाला।आप मुलाजिम लोगों को तो बंधी तनख्वाह मिलती है।बाढ़ आये चाहे सूखा पड़े आप को तो तनख्वाह मिलनी ही मिलनी है।"सरपंच साहब हँसते हुए बोले।
"चलो आपकी बात सही।आप भी गरीब,हम भी गरीब!"चौधरी साहब हथियार डालते हुए बोले।ऐसा नहीं था उनके पास तर्क नहीं थे।लेकिन स्टेटमेंट डाउनलोड हो चुकी थी और उनका ध्यान इसे पढ़ने में था।
"एक उठे मंडी में आत्मा राम थो, सरपंच रहयोड़ो थो।गाम में ते जद बी कोई मंडी थाना में पोंच जातो,थाना का मुंशी और होलदार आत्माराम की कपड़ा की दुकान पे पोच जातो और आत्मा ने बता के आतो के थारे गाम के अक फलाने फलाने ने दरख्वास्त देइ से फलाने के ख़िलाफ़"सरपंच साहब चाय की चुस्की लेने के लिए रुके और मैनजर को साहब की झाड़ का डर लगा।स्टेटमेंट आज ही भेजनी थी और सरपंच साहब जाने कब तक किस्से को जारी रखें।
"आत्मा का छोरो थो हरी!बाप ते कति उलट!वो समाज के कामा में पैसा खान लाग गयो!आत्मा ने दुकान पे बैठनों छोड़ दियो थो।आपने घरां पड्यो रहतो।कोई बुलावण ने आतो तो एक्के जबाब देतो,"भाई!क्यों बुढापा में मेरी मट्टी खराब करवावो!छोरा ने मेरी पगड़ी उछाले राखी सै।मैं पंचायत में बैठण लायक कोन्या छोड़ राख्या मेरा बालकां ने।बड़ी मेहनत ते कमाई इज्जत तै मिट्टी मिल गई।इब कसाले
कर कर के बनाई प्रॉपर्टी भी जावेगी।करयोडे कर्म आगे आवेंगे।फौजदारी के मुकदमा लड़न आले वकील अर बिचोलिये फौजदारी का शिकार होके मर्या करें सै!"
बीच में से एक फौन आ गया तो मैं फोन सुनने के बहाने बाहर आ गया।दस मिनट बाद लौटा तो सरपंच साहब जा चुके थे।
सरपंच साहब दिल के बड़े अच्छे आदमी थे।कर्मचारियों के हितैषी थे।बस एक ही कमी थी उनमें, बातूनी थे।हालांकि उनके किस्से रोचक होते थे।मानव मन की परतें खोलते थे लेकिन नौकरी इतना समय नहीं देती थी कि उनकी किस्सागोई का लुत्फ़ तल्लीन होकर लिया जा सके।
अक्सर उनका किसी न किसी व्यक्ति के काम के सिलसिले में आना होता ही रहता था।कभी वे बाजरा की घी घालि रोटी गरमा गरम सिंकवा कर लाते।कभी वे खीर चूरमा बनवा लाते।फिर इतने इसरार से खिलवाते कि मना करते नहीं होता था।कभी कभी बड़ी खीझ होती या परेशानी होती लेकिन संकोच के मारे मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता था यह सोचकर कि कहीं उनको बुरा न लगे।कई बार संकेतों में मैने उनको समझाने की कोशिश भी की थी लेकिन सब निष्फल!शायद सरपंच साहब इशारों की जबान समझते ही नहीं थे या जान बूझ कर इग्नोर करते थे।
उधर गहलड़ सिंह गॉर्ड बैंक के बाहर गेट पर खड़ा खड़ा किसी से बातें कर रहा था।सामने से शर्मा टाइप एंड फोटोस्टेट वाले मुकेश सिंह ने आवाज लगाई,"गहलड़ सिंह यह आपके बैंक का फोटो कॉपी का बिल ले जाओ।"गहलड़ सिंह पहले से ही मुकेश सिंह से खार खाता था।फिर किसी जान पहचान वाले के सामने इस तरह से पुकारा जाना उसे नागवार गुजरा,"यह तेरा बोलने का तरीका है क्या।मैं तेरा रनर न लग रहा।हरामजादा,दो पैसे का आदमी।मेरे को नाम से बुलाता है।"
"मैंने क्या कह दिया तेरे को।तेरे बैंक का बिल है,तू लेके चला जाएगा तो क्या हो जाएगा।इतना ही बड़ा आदमी है तो गार्ड की नौकरी क्यों कर रहा है।"मुकेश भी तल्ख लहजे में बोला।
"मैं तेरा रनर नहीं हूँ।गार्ड की नौकरी कर रहा हूँ अपनी मर्जी से।तेरी तरह झूठ बोलकर अपने नाम के आगे शर्मा नहीं लगाता।जात का ठाकुर हूँ इसलिए राजपूत लगाता हूँ।"
"तूने मुझे जातिसूचक गाली दी है।अभी तेरे मैनेजर से शिकायत लगाता हूँ।"यह कहकर वह तेजी से बैंक का गेट पार करने लगा।
यह देख गुस्से से गहलड़ सिंह ने उसे रोकने की कोशिश की।मुकेश ने उसे धक्का दिया,गहलड़ गिरते गिरते बचा।गहलड़ का राजपूती खून उबाल मारने लगा।"ठहर जा भ*****।तेरे को मैं सुधारता हूँ।"कहकर उस पर झपटा।पहले तो दो तीन थप्पड़ मारे।फिर बंदूक का बट उसके सिर में दे मारा।"
दोनों गुथम गुथा हो गए। बड़ी मुश्किल से लोगों ने दोनों को छुड़ाया।जब तक मैनेजर केबिन से बाहर निकलता और पता करता माजरा क्या है।दोनों की छुटा छूटाई हो चुकी थी।अब वे अपने स्थान पर खड़े खड़े गालियां दे रहे थे।
दोनों मैनेजर को देखकर और ज्यादा जोश में आ गए।
"मैनेजर साहब आपके इस गार्ड गहलड़ ने मुझे धक्का दिया,दो थप्पड़ मारे!बट से हमला किया और जातिसूचक गालियाँ दी।
"पहले अपनी बता तूने क्या किया।चौधरी साहब!ये फ़ोटो कॉपी करता है बैंक की।मैं तो इससे फोटोकॉपी करवाता नहीं।मैं यहाँ गार्ड की नौकरी करता हूँ।मेरी ड्यूटी गेट पर गन लेकर खड़ा होने की है।मैं यहाँ चपड़ासी नहीं।इसका रनर नहीं।ये फौज में सूबेदार जरूर था लेकिन मेरा जूनियर था।इसका मेरा नाम लेकर बोलने का क्या मतलब बनता है कि"बैंक का फोटोकॉपी का बिल ले जा!"
"बात तो आपकी सही है ठाकुर साहब!लेकिन सामने वाला तमीज़ से बात न करे तो हम सब्र कर लें।"मैनेजर ने उसे समझाया तो गहलड़ कुछ ठंडा पड़ा।
अब बारी मुकेश की थी
"मैनेजर साहब आप न्याय करो।आप अपने कर्मचारी का पक्ष मत लो।मैं तो इसकी शिकायत लेकर आपके पास ही रहा था इसने मेरे थप्पड़ मारे।बट से हमला किया।जातिसूचक गाली दी।"
"यह तो गलत बात है ठाकुर साहब।मुकेश जी हमारे पड़ोसी और ग्राहक दोनों हैं।लेकिन मुकेश जी आपका ठाकुर साहब को इस तरह पुकारना गलत तो है ही।ये आपसे उम्र,पद और जाति में भी बड़े हैं।फिर ये यहाँ गार्ड हैं चपड़ासी नहीं।"मैनेजर ने मामला संभालने की कोशिश की।
"गार्ड चपड़ासी ही होता है।नहीं भी होता तब भी गार्ड बैंकों में पानी पिलाने,किताब उठाकर देने,बाहर का छोटा मोटा काम करते रहते हैं।लेकिन यह ठाकुर है न।इसकी अकड़ नहीं गई।रस्सी जल गई मगर ऐंठ नहीं गई।"
मुकेश के इस तरह बोलने से गहलड़ काफी गुस्से में आ गया।
आगे बढ़ते हुए बोला,"तू ऐसे नहीं मानेगा।"
मैनेजर ने बड़ी मुश्किल से उसे रोका।
"लोग तो गू खाते होंगे।मैं नहीं खाता।मैं सूबेदार गहलड़ सिंह राजपूत का छोरा नहीं जो तुझे न सुधार दिया।
यह कहता हुआ वह गुस्से से वहाँ से चल दिया।
मैनेजर की जान में जान आई।उसने मुकेश सिंह से कहा,
"बिल दे भाई।मेरा बहुत काम पेंडिंग पड़ा है।तू दुकानदार आदमी है।काहे को ऐसे झगड़े में पड़ता है।इससे तेरी दुकानदारी खराब होगी।"
"आप गलत बात को बढ़ावा दे रहे हो मैनेजर साहब।इस आदमी ने मुझे मारा है,मुझे जातिसूचक गालियाँ दी हैं।बैंक में जाने से रोका है।आपने इससे कुछ नहीं कहा।"मुकेश दुःखी होते हुए बोला।
मैनेजर ने उसकी बात पर कोई कान नहीं दिया।उसके हाथ से बिल लेकर अंदर चला गया।
मैनेजर चौधरी ने समझा कि इतनी ही घटना थी और यह बात यहीं खत्म हो जाएगी।
लेकिन बात यहीं खत्म न हुई।सूबेदार मुकेश सिंह चुप रहकर बैठने वालों में से नहीं था।
उसे पता था क्या करना है उसने एग्जेक्टली वही किया।उसने एक दो गवाह तैयार किये और थाने जाकर एस सी एस टी एट्रोसिटी एक्ट और आई पी सी की विभिन्न धाराओं में गहलड़ सिंह गार्ड के खिलाफ और उसे सरंक्षण और शह देने के लिए मैनेजर चौधरी के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करवा दी।दुकान पर वापिस लौटकर उसने ऑनलाइन सी एम विंडो पर मैनेजर और गार्ड के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी।महीने की आखिरी तारीख निकल गई।चौधरी को फिर भी बैंक में फुरसत न लगी।कभी पेंशनर की भीड़,कभी स्कूल के बच्चों की फीस व अन्य काम।उपर से रिकवरी और नए लोन का दवाब।इतने कम करते करते चौधरी इस घटना के बारे में बिल्कुल भूल गया।
उस दिन दस तारीख थी।जब पुलिस थाने से फोन आया।
"मैनेजर साहब!मैं इंस्पेक्टर राजबीर बोल रहा हूँ।आपके बैंक के गार्ड के खिलाफ मारपीट और गाली गलौच का मुकद्दमा दर्ज हुआ है।इस केस का मैं इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर नियुक्त हुआ हूँ।
आप अपने गार्ड को थाने भेजो।कुछ पूछताछ करनी है।"
"जी जरूर!"मैनेजर का जवाब था।
"और हाँ मेरा एक सवाल आपसे भी है।पिछले महीने तीस तारीख को आपके गार्ड का किसी से बहस झगड़ा वगैरह हुआ था।"इंस्पेक्टर ने पूछा था।
"जी हाँ! हुआ तो था।"चौधरी ने संभल कर बोलते हुए कहा।
"तो आपने सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालने की रिपोर्ट थाने में क्यों नहीं की।"
इंस्पेक्टर ने दूसरा सवाल किया।
"छोटा मोटा झगड़ा था साहब!बैंक वालों का रोज ऐसे लोगों से वास्ता पड़ता है।काम इतना है,किस किस की शिकायत करते फिरें।"मैनेजर ने मजबूरी व्यक्त की।
"क्या अब आप ऐसी कोई रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहते हैं।"इंस्पेक्टर ने फिर पूछा था।
"रीजनल मैनेजर से पूछना पड़ेगा।"मैनेजर का जवाब था।
"पूछ लीजिए।आप मुलाजिम आदमी हैं।इसलिए आपको पूरा पूरा मौका दे रहा हूँ।फिर मत कहना कि मौका नहीं दिया था।"इंस्पेक्टर ने हँसते हुए कहा।
"ठीक है इंस्पेक्टर साहब!आपका मोबाइल नम्बर दीजिए।पूछकर बताता हूँ।"
इंस्पेक्टर ने उसे अपना नम्बर दिया।मैनेजर चौधरी ने नम्बर लिखकर रीजनल मैनेजर को फोन किया।
रीजनल मैनेजर का जवाब था।"आप को लगता है कि रिपोर्ट दर्ज करवाने से कुछ फायदा होगा तो करवा देना।और हाँ लोन रिकवरी पर ध्यान दो।आपकी ब्रांच का एन पी ए घटने के बजाय बढ़ रहा है।"
"जी सर!"
फिर उसने इंस्पेक्टर को फोन मिलाया और बोला,"फिलहाल इजाजत नहीं मिली है।बाद में देखते हैं।गार्ड को भेज दूंगा।"
"ठीक है,"कहकर इंस्पेक्टर ने फोन रख दिया।
गार्ड को बुलाकर बोल दिया गया।गार्ड नवाबपुर गाँव का ही रहने वाला था।लोकल आदमी था उसके संपर्क थे।इसलिए थाने जाकर अपना बयान लिखवा आया।बयान में उसने साफ इंकार किया कि उसने मुकेश सिंह को कोई जस्टिसूचक गाली दी है।या पीटा है।उल्टा वही उसे धक्का देकर अंदर घुस रहा था।बैंक में जाने से पहले वह उसे तलाशी देने को कह रहा था जिस पर नाराज होकर मुकेश ने उसे गाली दी थी।और धक्का दिया था। आप मैनेजर साहब से इस बारे में पूछ सकते हैं।मैंने उन्हें शिकायत भी की थी।"
गहलड़ सिंह का जवाब लेकर राजबीर ने शिकायत दफ़्तर दाखिल कर दी।
नवाबपुर गाँव ,जिसका सरपंच गणेश मुदगल था,में अहीर,जाट,ठाकुर,ब्राह्मण और दलित सब जातियों के लोग रहते थे।सबसे अधिक घर ठाकुरों के थे।लेकिन उनके पास जमीन सबसे कम थी।उनकी जमीन धीरे धीरे अहीरों ने खरीद ली थी।दो पीढ़ी पहले जो ठाकुर गाँव के बड़े जमीदार कहलाते थे उनकी संताने बी पी एल के कार्ड बनवाती घूम रही थी।पशुओं का एक टोकरा हरा चारा जुटाने के लिए उनके घर की औरतें अहीरों के खेत से घास खोद कर लाती थी।बुजुर्गों की निशानियाँ बड़ी बड़ी हवेलियाँ अभी भी बची थी लेकिन भाई भाई के झगडों ने उनमें दीवारें खींच दी थी।इसलिए हर एक के हिस्से में हवेली का छोटा हिस्सा आया था।इसलिए जिनको सरकारी सिविल या फौज की नौकरी मिल गई थी वे लोग ही गाँव में नए मकान बना पाए थे।इन्हीं लोगों में गहलड़ सिंह भी था।दूसरे नंबर पर अहीरों के घर थे।ये लोग मेहनत से खेती करते।इनके बच्चे पढ़ाई में आगे निकल रहे थे।अच्छे नंबरों और उस पर ओ बी सी के रिज़र्वेशन की वजह से अच्छे कॉलेजों में उनके एडमिशन हो रहे थे।अच्छी अच्छी नौकरियों में लग रहे थे।उनके खेत साफ सुथरे लहलहाती फ़सलों से भरपूर थे।उनके घर सुंदर सुंदर और नए बने थे।
उनकी खुशहाली देख के बाकी जातियों के सीने पर साँप लौटता था।लेकिन कर कुछ नहीं सकते थे क्योंकि अहीरों में एकता बहुत थी।उनकी जाति के नेता भी उनकी एक आवाज पर इकठ्ठे होते थे।वे भी अपने नेता को एकमुठ होकर सपोर्ट और वोट करते थे।लेकिन इतना करने के बावजूद वे इतने वर्षों से किसी अहीर को सरपंच नहीं बना पाए थे क्योंकि चुनाव के समय दलित,ठाकुर और ब्राह्मण मिलकर वोट करते थे।फिर गणेश मुदगल की छवि भी अच्छी थी।उसके चरित्र में दोष निकालना भी मुश्किल था।
गहलड़ सिंह ने थाने में बयान तो दर्ज करा दिया था लेकिन उसे अंदेशा था कि बात आगे बढ़ेगी।इसलिए वह सरपंच गणेश मुदगल से मिलने आया था।गणेश मुदगल इस घमंडी और बददिमाग आदमी को पसंद तो नशीन करता था लेकिन उसका वोट बैंक था इसलिए अपनी नापसंदगी जाहिर भी न करता था।
गणेश ने उसे सूबेदार साहब कहकर सम्मान दिया तो उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
"दादा!काम ही ऐसा आन पड़ा है कि तुम्हें तकलीफ दे रहा हूँ।वो छोटी जात का आदमी मेरा अपमान करता है।मुझसे अपशब्द बोलता है।मैं तो अपनी ड्यूटी करता हूँ।न उसकी दुकान पर जाता,न ही उससे वास्ता रखता हूँ।उस दिन उसने ही पहले छेड़ करी थी।नहीं तो मेरा कोई मतलब नहीं था कुछ कहने का।फिर मैंने उससे कुछ कहा नहीं।वह बेमतलब ही झूठी शिकायत कर आया।"
गणेश मुदगल ने उसे दिलासा दिया और आश्वासन दिया कि वह इस मामले में राजबीर इंस्पेक्टर से बात करेगा।फिर देखते हैं क्या होता हैं। उसने गहलड़ को गुस्से पर नियंत्रण करने की सलाह दी।
: एक दो दिन बाद मैनेजर चौधरी को सी एम विंडो की शिकायत मिली।उसने उसका भरसक संयत जवाब बनाकर भेज दिया। लेकिन रीजनल ऑफिस और एल डी एम ने उसका जवाब वापिस भिजवा इस नोट के साथ कि या तो कस्टमर का सैटिस्फैक्शन लेटर भेजो। या दो एमिनेंट पर्सन के साइन करवा करके भेजो।मुकेश सिंह ने साइन करने से साफ इंकार कर दिया था।एमिनेंट पर्सन ने भी बैंक के खिलाफ रिपोर्ट लिख दी क्योंकि एक तो वह मुकेश सिंह को व्यक्तिगत रूप से जानता था।दूसरा वह दलित जाति से ही संबंध रखता था।
अब मैनेजर चौधरी के लिए मुसीबत खड़ी हो गई।
चौधरी को सरपंच गणेश मुदगल की याद आई।उसने उनका नम्बर ढूंढ कर फोन किया,उन्होंने तुरंत फोन उठाया।
चौधरी ने सारा किस्सा बयान किया।वे बोले,"कोई बात नहीं, मैनेजर साहब!देखते हैं,कल परसों मैं आपके पास आऊँगा।फिर बात करते हैं।"
लेकिन सरपंच न आया।
दो दिन इंतजार करने के बाद चौधरी खुद ही नवाबपुर पहुंचा।सरपंच साहब कुछ लोगों के साथ बैठे हुए थे।राजबीर इंस्पेक्टर भी वहीं था।सरपंच साहब बड़े प्यार से मिले।चाय पानी हो चुकने तक इधर उधर की बातें चलती रही।फिर चौधरी ने उन्हें सी एम विंडो की शिकायत की बात याद दिलाई।
सरपंच साहब बोले,"मैनेजर साहब!बुरा मत मानना, आप शरीफ आदमी हो।यह गहलड़ बैंक गार्ड के लिए ठीक आदमी नहीं है।निहायत ही बदतमीज और घमंडी आदमी है।इस मुसीबत से तो जैसे तैसे हम आपको निकालेंगे।लेकिन यह आदमी रोज नई मुसीबत खड़ी करता रहेगा।हालाँकि हमारा वोटर है, दिलोजान से सपोर्ट करता है।लेकिन सच बात तो कहनी पड़ेगी।यह आदमी आपकी और आपके बैंक की छवि खराब कर रहा है।"
सरपंच साहब की बात सुनकर चौधरी खामोश बैठा रहा।उसे भी आभास था कि गार्ड की भी ग़लती थी।
वहाँ राव धनपत भी बैठा था।वह भी गहलड़ से खार खाता था।
"ठीक कहो सो!सरपंच साहब।गहलड़ बड़ी मैं में रहता है।रस्सी जल गई पर ऐंठ नहीं गई।इन ठाकुरों का व्यवहार तो पहले से ही खराब था।अहीर जमीन जायदाद, पैसे धेले और सरकारी नौकरी में इनसे बहुत आगे हैं।फिर भी ये ठाकुर हमें अपनी प्रजा समझते हैं।होते होंगे हमारे बुजुर्ग इनके हाली-माली।इनकी औरतें एक टोकरा न्यार के लिए हमारे खेतों में घास खोदती फिर रही हैं।फिर भी ये लोग खुद को राजा समझते हैं।"
अब राजबीर थानेदार की बारी थी।
"गलती मैनेजर साहब की भी है।मैंने इनको सरकारी काम मे बाधा डालने का मुकदमा दर्ज करवाने की सलाह दी थी।जो इन्होंने नहीं मानी।बगैर शिकायत के हम उस मुकेश सिंह को अंदर नहीं कर सकते।उसकी दी शिकायत तो मैंने गहलड़ से जवाब लिखवा कर फ़ाइल फिलहाल बंद कर दी है।लेकिन मामला दबेगा नहीं।वो मुकेश सिंह आकर मुझे ही क़ानून पढ़ा गया है।"
चौधरी ने सफाई दी,"मुझे हर काम ऊपर बैठे अफसरों से पूछ कर करना होता है।मैं अपने आप कुछ नहीं कर सकता।"
"मैनेजर साहब की बात सही है।इनकी घर की दुकान थोड़े है।"सरपंच ने चौधरी का समर्थन किया।
"जाट मुख्यमंत्री होता तो मैं जबानी शिकायत पर ही इस मुकेश सिंह को उठा लेता।लेकिन पंजाबी सी एम है,हर चीज सोचकर करनी पड़ती है।"राजबीर का अंदर का दर्द उभर आया था।
"अब थानेदार साहब!बात को जातिवाद में मत उलझाओ।दिल पर हाथ रखकर बताओ।ऊपर से कोई मंत्री या अफसर आपको गलत काम के लिए कहता है।हमारी सरकार ने अफसर को जितनी इंडिपेंडेंस दी है।किसी ने पहले नहीं दी।"सरपंच हँसते हुए कहने लगा।
"वो बात सही है,लेकिन इस राज में छोटी जात वालों का मन बहुत बढ़ गया है।अफसर से तू तड़ाक में बात करने लगे हैं।"राजबीर इंस्पेक्टर का तर्क था।
"वो तो डेमोक्रेसी है भई।सबको अपनी बात कहने का हक़ है।अब मुझे देखो,हर महीने तीन चार शिकायत और आर टी आई तो मेरे खिलाफ ही लगी रहती हैं।जब कि पल्ले से पैसा लगाकर विकास कर रहा हूँ।"
सरपंच ने अपनी दिक्कत बताई
"आप तो लोकल आदमी हो।आपके संपर्क हैं।आप मिलजुल कर मामला निपटा सकते हो।हम शांति से ,ईमानदारी से नौकरी करने वाले क्या करें।"चौधरी का दर्द उभर आया था।
"ठीक है,मैनेजर साहब!हम आपके साथ हैं।जहाँ तक बन पड़ेगा आपकी पूरी मदद करेंगे।मैं एमिनेंट पर्सन के पास आपको ले चलूंगा।आप शांति से बैंक जाओ।शाम को बैंक बंद होने के बाद मुझे फोन करना।मैं उनसे टाइम ले लूंगा।बल्कि मैं आपको फोन करूंगा।
चौधरी यह सुनकर शांति से लौट आया।शाम होने तक सरपंच साहब का फोन न आया।
बैंक बंद होने के बाद उसने खुद फोन किया।सरपंच साहब बोले,"पुल के पास वाले मोहल्ले में एमिनेंट पर्सन का घर है।मुझे मकान नम्बर तो नहीं मालूम।आप पुल के पास पहुंचे।मैं आ रहा हूँ।"
चौधरी रिक्शा पकड़कर वहाँ तक पहुंचा।दस मिनट इंतजार करने के बाद सरपंच साहब स्कार्पियो में आते दिखाई दिए।
सरपंच की स्कार्पियो में सवार होकर वे दोनों एमिनेंट पर्सन के घर पहुंचे।
"ज्यादा बात मैं करूंगा।जब आपसे कुछ पूछा जाए,तभी आप बोलना।"सरपंच ने उसे समझाया।
"जी,ठीक है!" चौधरी ने जवाब दिया।
एमिनेंट पर्सन सरपंच की उम्र का ही व्यक्ति था
उसका नाम धर्मवीर भारती था।नाम से अंदाजा नहीं लगता था कि वह किस जाति का था।वह सरपंच से बगलगीर होकर मिला।दोनों काफी देर पुरानी बातों पर हँसते रहे।सरपंच की एमिनेंट पर्सन से घनिष्ठता देखकर चौधरी की जान में जान आई।
इधर उधर की बातें आधा घंटा और चली।चाय पी गई और हुक्का गुड़गुड़ाया गया।
इसके बाद सरपंच साहब मुद्दे की बात पर आए।
"ये अपने मैनेजर साहब!निहायत ही शरीफ़ और सज्जन।मिलनसार आदमी हैं।अभी थोड़े दिन ही हुए हैं इन्हें आये लेकिन सब ग्राहक लोग,मिलने जुलने वाले इनकी तारीफ करते हैं।ये एक मुसीबत में फंस गए हैं।जिसमे इनकी कोई गलती नहीं हैं।"यह कहकर सरपंच ने किस्सा बयान किया।
"हाँ!मुकेश आया था मेरे पास।मेरा रिश्तेदारी का कनेक्शन भी है उसके साथ।अच्छा खा कमा रहा है।इलेक्शन में भी मदद करता है।मैंने उससे कहा था, बल्कि समझाया था,देख मुकेश मैं राजनैतिक आदमी हूँ।हमारा काम नौकरी देने का है,नौकरी छीनने का नहीं है।हम पाँच साल के लिए आते हैं।मुलाजिम परमानेंट रहता है।गद्दी की हनक में और अपनी पार्टी के राज के गरूर में हम कोई ऐसा काम न करें कि जब हमारा राज न रहे तो कोई अफसर हमें पहचाने ही न,बैठने को ही न पूछे।कर्मचारी को हमसे कभी कभार काम पड़ना है।हमारा दफ़्तर में रोज का आना जाना है।लेकिन मैनेजर साहब इस मामले में आपकी भी थोड़ी गलती है।आपको अपने गनमैन को डांटना चाहिए था।मुकेश ठीक आदमी है,इतने से ही संतुष्ट हो जाता।मामला आगे नहीं बढ़ता।"
भारती जी की बात सुनकर चौधरी को अहसास हुआ कि उसे मामले को संभालने के लिए कुछ नहीं किया।
"काम का दवाब इतना है सर!कि जरूरी काम रह जाते हैं।मेरा मन था कि शाम को मुकेश से बात करूंगा।लेकिन ध्यान ही न रहा।अब बात इतनी बढ़ गई है कि मुझे लगा कि बातचीत से कोई हल नहीं निकलेगा।"चौधरी ने अपना पक्ष रखा।
"मुकेश अपना आदमी है।मैं उसे आपसे बात करने को कहूँगा।लेकिन मेरी एक रिक्वेस्ट है।गहलड़ गलत आदमी है।आप उसको संरक्षण मत दो।यह आदमी आपको एक न एक दिन अपने साथ ले डूबेगा।"
भारती जी ने कहा तो सरपंच ने भी समर्थन किया,"मैंने भी मैनेजर साहब से यही कहा था।'
"मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं।एक ऊंट और गीदड़ की यारी हो गई।इतने घनिष्ठ मित्र हो गए कि गीदड़ ऊंट की सवारी करता।बाकी गीदड़ उसे ईर्ष्या से देखते।एक दिन दोनों मित्र नदी किनारे जा रहे थे।
गीदड़ बोला,"मित्र!कितना अच्छा होता कि एक नाव होती।हम उसमें बैठके नदी में विहार करते।"
"इसमें क्या बड़ी बात है।मेरे होते हुए तुम्हें नाव की क्या जरूरत है।चलो मैं तुम्हें नदी की सैर करवा देता हूँ।"इतना कहकर ऊँट नदी में घुस गया।गीदड़ ऊँट की गर्दन पकड़ नदी की सैर का आनंद ले रहा था।मझधार में पहुंचकर ऊँट बोला,"मित्र,नदी के शीतल जल में मेरा नहाने का मन कर रहा।जी कर रहा लोट लोट कर नहाऊं।मुझे लुटलूटी
आ रही है।"
गीदड़ ने उसे लाख समझाया।लेकिन ऊँट भी आदत से मजबूर था।उसे लुटलूटी आ गई तो आ गई।ऊँट ने पानी में लोट लगाई तो गीदड़ डूबके मर गया।"
"तुम्हारी किस्से सुनाने की आदत नहीं गई"सरपंच हँसते हुए बोला।
: "ये जो दृष्टांत, जो किस्से कहानियां, पंचतंत्र या किस्सा हजार रातें में दिए रहते हैं।या जबानी हम बुजुर्गों के मुँह से सुनते आए हैं,ये खाली टाइम पास या हँसने हँसाने के लिए ही नहीं है।बल्कि इनमें जीवन का निचोड़ है।नीति-व्यहवार के उपदेश हैं इनमें।"भारती जी गंभीर होते हुए बोले।
दो चार बातें और हुई।इसके पश्चात उन्होंने विदा ली।अगले दिन दोपहर बाद मुकेश सिंह चौधरी साहब के पास आया।चौधरी साहब ने ए टी आर लिखकर तैयार कर रखी थी।उसके सामने रखकर बोले,"देख लो।कुछ बढ़ाना घटाना हो तो बोल दो।मैं लिख दूंगा।"
मुकेश सिंह पढ़ने लगा,"चूंकि घटना बैंक के बाहर घटित हुई थी इसलिए बैंक मैनेजर को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।अब शिकायत कर्ता से बात करने के बाद और गार्ड गहलड़ सिंह से पूछताछ करने के बाद अधोहस्ताक्षरी इस नतीजे पर पहुंचा है कि गार्ड गहलड़ सिंह ने बगैर उकसावे के गाली गलौज किया और मारपीट की।इसमें मुकेश सिंह का जरा भी कुसूर नहीं है।शाखा प्रबंधक अपने उच्चाधिकारियों को इस मामले में कारवाई के लिए लिख चुके हैं।इसलिए शिकायतकर्ता मुकेश सिंह अपनी शिकायत को वापिस लेने के लिए राजी है।"
मुकेश सिंह ने पढ़कर संतुष्टि व्यक्त कीऔर पूछा,"कहाँ हस्ताक्षर करने हैं?"
मुकेश सिंह हस्ताक्षर करके चुपचाप निकल गया।
मैनेजर ने ए टी आर लपेट कर जेब में रख ली।जाती बार भारती जी के हस्ताक्षर करवाता जाएगा।
भारती जी घर ही पर मिले।उन्होंनेे अपनी रिपोर्ट लिखकर हस्ताक्षर कर दिए।
चौधरी जब बहुत बहुत धन्यवाद करके कृतज्ञता व्यक्त करने लगा तो वे बोले,"कोई बात नहीं मैनेजर साहब!हाथ ही हाथ को धोता है।आज हम आपके काम आए हैं।कल आप हमारे काम आ जाना।"
उधर मुकेश सिंह एस पी के सामने पेश हुआ।उसने अपनी शिकायत के विषय में बताया।थानेदार ने कोई कारवाई नहीं कि इस बात की शिकायत की।साथ में एम एल ए की सिफारशी चिठी भी एस पी साहब को दी।एस पी साहब ने वहीं बैठे बैठे डी एस पी को फोन किया और मुल्जिम को अरेस्ट कर कोर्ट में चालान पेश करने की सलाह दी।
उस दिन शुक्रवार था।शनिवार को बैंक बंद थे।गहलड़ को राजबीर थानेदार जीप में बिठाकर ले गया।दोपहर बाद गहलड़ का फोन उसकी पत्नी के पास आया।उसने बताया,"पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है।मैनेजर चौधरी तो फोन नहीं उठा रहा।सोमवार को कोर्ट में पेश करेंगे।तुम सरपंच से बात करो।"
यह सुनकर गहलड़ की बीवी चिंतित हो गई।उसके दोनों लड़के किसी लायक नहीं थे।अपने जेठ के लड़के को साथ लेकर वह सरपंच के घर पहुंची।सरपंच उसे देखते हुए खड़ा हो गया।उसे साइड में ले जाकर उसने सारी बात बताई।सरपंच बोला," तुम निश्चित होकर घर जाओ।मैं देखता हूँ क्या हो सकता है।"
रात हो गई।सरपंच का कोई संदेश न आया।
साढ़े नौ बजे किसी ने उसके घर की कुंडी खड़कायी।लड़के भी घर पर न थे।उसने पूछा,"कौन है भाई!"
"मैं बिल्लू हूँ भाभी! भाई गहलड़ की खबर लेकर आया हूँ।"
यह सुनते ही उसने झट से दरवाजा खोला।
बिल्लू पुलिस का दलाल और मुखबिर था।यह बात पूरे गाँव को मालूम थी।
"भाभी तूने मेरे को न बताई।भाई गहलड़ अरेस्ट हो गया।"
बिल्लू खाट पर बैठते हुए बोला।
"मैंने सरपंच को बताया था।मुझे क्या मालूम कि तुम्हें नहीं पता।"
"सरपंच तो अपना ही आदमी है लेकिन शरीफ आदमी है।पुलिस के चक्कर से परे रहता है।पूरे गाँव को पता है कि मेरी पुलिस से जान पहचान है।"बिल्लू कहने लगा,"हैरान हूं कि तुम्हें नहीं पता।"
"भाई सच में मुझे न पता।तुम्हारे भाई ने भी कभी न बताया।अब बताओ तुम कुछ हेल्प कर सको तो।"गहलड़ की बीवी बोली।
"मैं तो किसी काम से थाने गया था।वहाँ भाई गहलड़ उदास और परेशान बैठा था।मैंने पूछा तो बोला उसको तो झूठी मारपीट की शिकायत की बिनाह पर गिरफ्तार कर लिया है।मैंने भी राजबीर थानेदार से बात करी।थानेदार बोला,मारपीट नहीं एस सी एक्ट का केस है।जमानत भी नहीं होगी।"बिल्लू बोला तो उसकी चिंता बढ़ गई।
"फिर क्या होगा,भाई!"वह घबराकर बोली।
"फिक्र न कर भाभी!अभी बिल्लू जिंदा है।मैं अपने भाई को एक हफ्ते से ज्यादा हवालात में रहने नहीं दूंगा।"बिल्लू बोला,"तू फटाफट पचास हजार रुपये निकाल।पुलिस के मुँह में डालूँगा।फिर पुलिस वही लिखेगी जो मैं बोलूंगा।वही बोलेगी जो मैं कहूँगा।"
: "पचास हजार ऐसे कह रहा है जैसे पचास रुपये।तेरा भाई जितना कमाता है सब इतने लोगों का पेट भरने में खत्म हो जाता है।महीना मुश्किल से कटता है।तुम्हारे भतीजे सारा दिन आवारा घूमते हैं।जमीन कब की निपट गई।हमारे पास कहाँ पैसा रखा है।"गहलड़ की बीवी ने हाथ खड़े कर दिए तो बिल्लू बोला,"तब तो बड़ी मुश्किल है।बगैर पैसे के तो इस राज में कुछ नहीं होता।"
"तुम्हारे भाई से बात करके देखो।शायद वह किसी को जानते हों जो पैसा दे दे।"
गहलड़ की पत्नी की यह बात बिल्लू को उचित जान पड़ी।उसने कोई नम्बर मिलाया,"हवलदार साहब।मैं बिल्लू बोल रहा हूँ।जरा गहलड भाईसे बात करवा दो।"
थोड़ी देर उधर शांति रही।
फिर बिल्लू बोला,"गहलड़ भाई।राम राम।तुम्हें इन लोगों ने तंग तो न किया।.....अच्छा! अच्छा!मैं बोल आया था थानेदार से,गहलड़ अपना भाई है।उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।खाना खा लिया!ठीक है,मैंने भाभी को तुम्हारा बेरा दे दिया था।न!न!भाभी बड़ी हिम्मतवाली औरत है।राजपूतनी है न्यू तो।लेकिन पैसा नहीं है घर में।पचास हजार से कम बात न बनेगी।"बिल्लू बोला,"ले भाभी से बात कर!"
उसने फोन दे दिया था।
गहलड़ ने पत्नी को अनुनय की कि वह किसी से पैसे का इंतजाम करे।लेकिन किससे।कौन देगा उसे पैसे।
उसने पति से तो कह दिया कि वह देखती है।लेकिन गाँव मे ऐसा कौन था जो उसे पैसे दे दे।ठाकुरों में तो पैसा किसी के पास था नहीं।अहीर उसे पैसा देंगे नहीं।हां लेकिन एक आदमी पैसा दे सकता है,राव गणपत।वह ब्याजु आदमी है।
कल सुबह उससे पूछेगी।
बिल्लू तो चला गया था।लेकिन वह रात भर बेचेनी से करवटें बदलती रही।एक पल के लिए भी उसकी आँख न लगी।
सुबह न्यार फूस करके वह राव गणपत के घर चल दी।राव गणपत बरामदे में प्राणायाम कर रहा था। यह जब से बाबा रामदेव चला है,हर कोई प्राणायाम करने लगा है।
जब तक गणपत प्राणायाम करता रहा।तब तक वह राव गणपत के बेटे की घरवाली से बातें करती रही।गाँव के नाते से वह उसे बुआ कहती थी।उसने दो तीन बार चाय के लिए पूछा।लेकिन उसने मना कर दिया।राव गणपत प्राणायाम करने के बाद मालिश करने लगा।बहू उसके पास जाकर बोली,"पिता जी! बुआ आई हैं।फूफा गहलड़ के घर से।आपसे कुछ काम है।"
"मुझसे!मुझसे क्या काम है।"
राव गणपत ने मुड़ कर देगा।वह घूँघट किये बैठी थी।वह लंगोट बाँधे बाँधे नंगे बदन उसके पास गया।कमर में उसने फेंटा सा बांध रखा था।शरीर पर सरसों का तेल चुपड़े हुआ था।
"बोलो ठकुरानी जी!मेरे लायक सेवा।हम तो आपकी प्रजा हैं।आपने क्यों तकलीफ की।मुझे बुला लिया होता।"राव गणपत की आवाज में तंज और मखौल उड़ाने की भावना थी।
"वो दिन कहाँ रहें,राव साहब! अब कौन राजा कौन प्रजा।भाईचारा भी निभ जाए तब जानियो।"गहलड़ की पत्नी ने तंज भांप लिया था।लेकिन आई थी तो अपनी बात तो कहनी ही थी,"ये थाने में बंद है।किसी ने मारपीट की झूठी शिकायत कर दी।पुलिस ने ठा के बंद कर दिया।अब छोड़ने के पचास हजार मांगती है।मेरे पास तो पचास हजार न है।अगर आप दे सको तो मेहरबानी होगी।जो आपका ब्याज बनेगा हम देनदार हैं।"ठकुरानी ने आवाज को भरसक नरम बनाने का यत्न किया।
"खैर,शिकायत तो झूठी न है।मेरी थानेदार से पिछले हफ्ते ही बात हुई थी।गलती तो ज्यादा गहलड़ की है।लेकिन चलो,अपने को क्या लेना।मेरे पास पचास हजार हैं नहीं।नहीं तो दे देता और वापिस भी न लेता।मैंने ब्याज का काम तो पिछले साल ही बंद कर दिया था।अब जमाना पहले जैसा न रहा।लोगों की आँख में शर्म न रही।ब्याज तो ब्याज लोग मूल भी न देते।बुरा मत मानना, मैं आपकी न कह रहा।मैं। तो जमाने की हवा की कह रहा।लेकिन लखपत से पूछ देखो।वो ब्याज का काम करता है।पर वह रहता शहर में है।"गणपत ने कहा तो उसने सोचा,'है तो इसी का भाई।लेकिन यह तो नट गया।अब लखपत के पास जाकर देखती हूँ।"
लखपत के घर शहर पहुंची।लखपत ने अच्छी दुमंजिला हवेली छाप रखी थी।लखपत घर पर न था।उसकी पत्नी थी।उसका नाम सुनकर उसे सजे सजाए ड्राइंग रूम में बैठाया।लखपत की पत्नी कीमती साड़ी और गहनों से लदी हुई आयी।उसके व्यक्तित्व का प्रभाव ऐसा था कि ठकुरानी अपने स्थान पर खड़ी हो गई।
खूब गोरा रंग,चमकता हुआ हँसमुख चेहरा, लंबा कद और भरा बदन।
क्या सचमुच यह औरत उसके पति की प्रेमिका रही होगी या कोरी अफवाह है।केकिन यह सब तो उससे शादी के पहले की बातें है।इसके बारे में उसके पास भी सुनी सुनाई ही है।
"अरे बैठो,बैठो कुंवरानी जी!आप क्यों खड़ी हो गई।हम तो आपकी प्रजा हैं।धन्य भाग हमारे जो आपके दर्शन तो हुए।कुंवर जी तो इधर आते ही नहीं।हमने तो कई बार कहा आपसे मिलवाने को लेकिन उन्होंने मिलवाया ही नहीं। वैसे,कुंवर जी सकुशल तो हैं न!" उसका बातें करने का ढंग भी मोह लेने वाला था।फिर उसका पति इसके रूपजाल में फंस गया था तो क्या आश्चर्य!
"वे हवालात में बंद है,मारपीट के मुकद्दमे में। पुलिसवाले छोड़ने के एवज़ में पचास हजार रुपये मांग रहे हैं।मेरे पास तो है नहीं सोचा राव लखपत से ब्याज पर ले लूँ।"वह अटक अटक कर ही कह पाई,न जाने क्यों वह इस औरत के सामने शर्मिंदा हो रही थी।बहुत छोटा महसूस कर रही थी।लेकिन कहना तो था,मजबूरी थी।
"पचास हजार तो मैं ही आपको दे दूंगी।राव साहब से कहने की जरूरत नहीं है।लेकिन अगर ज्यादा की जरूरत हो तो राव साहब से ही कहना पड़ेगा।ब्याज मैं आपसे लूंगी नहीं।बहनों के बीच ब्याज का व्यवहार नहीं होता।कुंवर साहब छूट जाएं,मेरी दिली इच्छा है।उनको कहना कभी इधर का चक्कर लगा लिया करें।"वह मुस्कराती हुई बोली।
पचास हजार लेकर वह बिल्लू के पास पहुंची।
बिल्लू ने रकम जेब के हवाले करते हुए कहा।बस भाभी बन गया काम।
पचास हजार में से दस हजार बिल्लू ने अपनी जेब में डाल लिए।बाकी चालीस हजार इंस्पेक्टर ने अपनी अंटी में डालकर गहलड़ का जमानती धाराओं में अपराध दर्ज कर दिया।
सोमवार को जब गहलड़ को कोर्ट में पेश किया गया तो बिल्लू ने वकील खड़ा कर जमानत माँग ली।सरकारी वकील ने भी कोई एतराज न किया।गहलड़ जमानत पाकर घर आ गया।
मंगलवार सुबह तैयार होकर गहलड़ ड्यूटी जाने लगा तो उसकी पत्नी ने मना किया तो बोला,"पागल मत बन!बैंक मेरी जगह दूसरा गार्ड बुला लेगा।मेरी सिक्योरिटी एजेंसी के थ्रू नौकरी है।"
यह सुनकर पत्नी ने उसे जाने दिया।वह अपनी गोवर्धन लाल एंड संस की शिकारी मेक की 1996 मॉडल की 12 बोर की दुनाली बंदूक लेकर चला। इस बंदूक से उसे बहुत प्यार था
अक्सर गुनगुनाते हुए इसे साफ करता।बोल्ट के चार कारतूस अपने साथ रखता।
बैंक पहुंचा तो कोई नया सिक्योरटी गार्ड गेट पर खड़ा था।उससे रामा श्यामि हुई तो पता चला कि वह तो कल ही आ गया था।मैनेजर ने एक दिन भी इंतजार न देखी।उसने सोचा मैनेजर से बात करके देखूँ।आखिर इतने साल से काम कर रहा हूँ।एकदम कैसे हटा दिया।
पता चला कि मैनेजर तो आया नहीं है।कहकर गया है कि गहलड़ आये तो कह देना अपनी एजेंसी से बात कर ले।
गहलड़ ने एजेंसी में फोन मिलाया तो पता चला कि एजेंसी ने भी उसे हटा दिया है।मुकदमा फ़ारिग होने के बाद फिर देखा जाएगा।
वह निराश होकर यह सोचते हूए बाहर निकला कि मैनेजर ने उससे कहने की भी जरूरत न समझी।मेन रोड पर आकर उसने शर्मा टाइप और फोटोस्टेट के बोर्ड की तरफ देखा।उसके मुँह से एक भद्दी गाली निकली।ऐसा मन करा कि दुकान के भीतर जाकर मुकेश के सीने में चार की चार गोलियाँ उतार दे।लेकिन गुस्से और निराशा पर काबू पाता वह वहाँ से चला गया।