कर्म पथ पर - 12 (5) 633 1.3k 1 Listen कर्म पथ पर Chapter 12उस दिन वृंदा नाटक का पहला शो रुकवाने के लिए अपने साथियों के साथ विलास रंगशाला की तरफ बढ़ रही थी। पर रास्ते में ही पुलिस ने उसे और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। शाम तक भुवनदा ने वृंदा की जमानत करवा दी थी। जब वह घर पहुँची तो वहाँ माहौल ही अलग था। पड़ोसी बनवारी लाल, उनके पिता, शंकर और कुछ अन्य लोग घर के दरवाज़े पर खड़े थे। उसके पहुँचते ही शंकर बोला,"लो आ गईं संपादिका जी। उस दिन मुझे मर्यादा सिखा रही थीं। आज खुद जेल होकर आई हैं। बताइए मोहल्ले की औरतों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।"वृंदा कुछ कहने जा रही थी कि बनवारी लाल बोल उठे।"सही कह रहा है शंकर। अब आप इस मोहल्ले में नहीं रह सकती हैं।""क्यों....? मैं कोई चोरी के इल्ज़ाम में सजा काट कर नहीं आई हूँ। गलत के विरुद्ध आवाज़ उठाने गई थी। मैंने स्वयं कुछ गलत नहीं किया।" बनवारी लाल ने फैसला सुनाते हुए कहा,"जो भी हो, अब आप यहाँ नहीं रह सकती हैं।" कई और आवाज़ें भी बनवारी लाल के समर्थन में उठीं। तभी कम्मो भीतर से दौड़ी हुई आई।"काहे नाही रहिंए हिआं। ई इनका घर है।"कह कर उसने वृंदा का हाथ पकड़ा और उसे अंदर ले गई। कुछ देर तक हल्ला मचाने के बाद सब चले गए। वृंदा के मन में मोहल्ले वालों के लिए बहुत गुस्सा था। वह सोंच रही थी कि 'कैसे लोग हैं ये ? गलत करने वालों को कुछ नहीं कहते। किंतु जो सच्चाई के लिए लड़े वह इनके समाज में नहीं रह सकता। कैसी विडंबना है।वह बहुत थकी हुई थी। वह अपने कमरे में जाकर सो गई। उस दिन की घटना से वृंदा भीतर ही भीतर सुलग रही थी। कितनी बेहयाई से उन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उस नाटक का मंचन किया जिसमें देश हित के लिए कष्ट सहने वालों की खिल्ली उड़ाई गई थी। वह जल्द से जल्द उन लोगों को सबक सिखाना चाहती थी। उसने हैमिल्टन द्वारा राजस्व विभाग में की गई गड़बड़ियों के बारे में सुना था। उसने रंजन को इसकी छानबीन करने का जिम्मा सौंपा था। तीन दिन बाद शाम को रंजन उससे मिलने आया। रंजन ने बताया कि उसके हाथ कुछ ऐसी खबरें लगी हैं कि श्यामलाल और हैमिल्टन का पर्दाफाश हो सकता है। वृंदा ने रंजन द्वारा एकत्र की गई सूचनाओं का सही तरह से अध्यन किया। यह देख कर वह खुश हो गई कि इनके माध्यम से एक प्रभावशाली रिपोर्ट बनाई जा सकती है। वह फौरन उस पर काम करने लगी। रिपोर्ट तैयार करते हुए रात के नौ बज गए।वृंदा ने एक बार पुनः पूरी रिपोर्ट को पढ़ा। उसे सब कुछ सही लगा। उसके मन में आया कि इसे अभी जाकर भुवनदा को देना होगा। नहीं तो कल सुबह के अखबार में छप नहीं पाएगा। यह सोंच कर वह बाहर जाने के लिए तैयार होने लगी।"ई का इत्ती रात गए कहाँ जाएं की तैयारी है ?" कम्मो ने टोंका। "यह खबर कल अखबार में छपनी ज़रूरी है। इसलिए अखबार के दफ्तर जा रही हूँ।""अबहीं मोहल्ले वाले इत्ता हंगामा करि के गै हैं। तुम आओ कि फिर चल दीं।""बहुत ज़रूरी है। वैसे भी मोहल्ले वालों की मुझे परवाह नहीं है।""मनिहौ तो है नहीं। लेकिन हमहू चलिब साथ।""अब तुम क्या करोगी चलकर।"कम्मो नहीं मानी। चप्पल पहन कर साथ चलने को तैयार हो गई। वृंदा ने भी अधिक विरोध नहीं किया। इतनी रात को वृंदा को आया देख भुवनदा ने पूँछा।"क्या हुआ ? सब ठीक है ना ?""सब ठीक है। यह रिपोर्ट देखिए। मुझे लगता है कि इसका कल के अखबार में छपना ज़रूरी है।" वृंदा ने रिपोर्ट आगे बढ़ाते हुए कहा।भुवनदा ने पूरे इत्मिनान से रिपोर्ट को पढ़ा। कुछ क्षणों तक उस पर विचार करने के बाद बोले,"रिपोर्ट तो अच्छी है। साक्ष्य भी हैं। लेकिन इसे छाप कर हम सीधे सीधे सरकार से लोहा लेंगे। हो सकता है कि कल ही हमें गिरफ्तार कर लिया जाए। अखबार बंद कर दिया जाए।""आपकी बात ठीक है दादा लेकिन हम डर कर चुप तो नहीं बैठ सकते हैं।""मैं चुप बैठने की बात नहीं कर रहा हूँ वृंदा। लेकिन जोश के साथ साथ होश से भी काम लेना आवश्यक है। हमें इस बात की तैयारी रखनी चाहिए कि गिरफ्तारी की नौबत आने पर हम सुरक्षित ठिकाने पर हों ताकि पुलिस के हाथ ना आएं।""तो दादा कल के अखबार में इस रिपोर्ट को छापा नहीं जा सकता है ?"वृंदा ने मासूम होकर कहा।"मुझे लगता है कि हमें पहले अपने आप को सुरक्षित करने के उपाय कर लेने चाहिए।"वृंदा भुवनदा की बात पर विचार करने लगी। उनकी बात सही थी। "ठीक है दादा जो आपको सही लगे वैसा ही करते हैं।""तुम अभी जाओ मैं जल्दी ही कुछ करता हूँ।" भुवनदा ने इस बात की तैयारी आरंभ कर दी कि रिपोर्ट के छपने के बाद पुलिस उन लोगों तक ना पहुँच सके। उन्होंने एक ऐसी जगह तलाश ली जहाँ से अखबार भी नियमित रूप से निकल सके और वह लोग भी सुरक्षित रहें।भुवनदा के एक मित्र सुजीत कुमार मित्रा का मकान बड़ा भी था और शहर के बाहरी हिस्से में था। सुजीत फिलहाल बंगाल अपने गांव में रहने चले गए थे। वह अपना मकान भुवनदा की देखरेख में छोड़ गए थे। वहाँ से हिंद प्रभात का संचालन भी हो सकता था। यह जगह बहुत सुरक्षित भी थी। दो दिनों के बाद ही उन्होंने वृंदा को उस जगह के बारे में सूचना दे दी। वृंदा के लिए रोज़ वहाँ जाना मुमकिन नहीं था। यह खतरनाक भी था। इसलिए वृंदा कम्मो को आवश्यक निर्देश देकर भुवनदा के साथ वहाँ चली गई।रिपोर्ट के छपते ही हैमिल्टन बौखला गया। पुलिस ने हिंद प्रभात के दफ्तर को सील कर सभी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन कोई भी उनके हाथ नहीं लगा। नई जगह से हिंद प्रभात नियमित रूप से छपता रहा। चोरी छिपे सावधानी पूर्वक उसकी प्रतियां पाठकों तक पहुँचती रहीं। जय से मिलने के बाद मदन अपने घर पहुँचा तो मन में कई तरह के विचार उमड़ रहे थे। क्या जय की बात का यकीन करना चाहिए ? कहीं जय कोई खेल तो नहीं खेल रहा है ? ऐसे सवाल उसे परेशान कर रहे थे। लेकिन दूसरी तरफ उसे जय की आँखों में झलकती सच्चाई याद आ जाती थी। वह उधेड़बुन में था कि क्या करे। अंत में उसने फैसला किया कि वह वृंदा से इस बारे में बात करेगा।शाम को वह वृंदा से मिलने पहुँचा। उसने उसे जय के साथ हुई सारी बात बता दी।"वह बिगड़ा नवाब मुझसे क्यों मिलना चाहता है ? मुझे तो उस पर यकीन नहीं है। तुम क्या सोंचते हो ?""कुछ कह नहीं सकता। लेकिन एक बात है मैंने उसकी आँखों में सच्चाई देखी थी। बाकी तुम जैसा कहो।""ठीक है मैं सोंचती हूँ। कल शाम को तुम्हें बता दूँगी कि क्या करना है।"मदन के जाने के बाद वृंदा इसी विषय में सोंचती रही। पहली बार जब जय ने उसे 'ऐ लड़की...' कह कर पुकारा था तभी से वृंदा के मन में उसकी छवि खराब हो गई थी। उसके बाद उसका वह नाटक करना उसे और भी बुरा लगा था। एक तरह से जय के लिए उसके मन में नफरत थी। लेकिन आज मदन कह रहा था कि वह उससे मिलना चाहता है। मदन को उसमें सच्चाई भी नज़र आई थी।बहुत देर तक वह किसी फैसले पर नहीं पहुँच सकी तो उसने भुवनदा को सारी बात बता दी। वह भी कुछ देर इस पर विचार करने के बाद बोले।"देखो वृंदा मैं तो कभी इस जय से मिला नहीं हूँ। इसलिए कुछ कह नहीं सकता। लेकिन एक बात अवश्य कह सकता हूँ कि यदि मदन को वह सच्चा लगा तो ऐसा हो सकता है। मदन बिना किसी आधार के कुछ नहीं कहता है।"कुछ सोंचते हुए वृंदा ने प्रश्न किया,"दादा क्या इंसान की फितरत कभी बदल सकती है।""ऐसा होना असंभव भी नहीं।" अगले दिन जब मदन आया तो वृंदा ने जय से मिलने की सहमति दे दी। तय हुआ कि मुलाकात उस रेस्त्रां से कुछ दूर बने पार्क में की जाए ताकि कोई खतरा भी हो तो उन लोगों के गुप्त स्थान तक पुलिस ना पहुँच पाए। ‹ Previous Chapter कर्म पथ पर - 11 › Next Chapter कर्म पथ पर - 13 Download Our App Rate & Review Send Review Balkrishna patel 12 months ago nihi honey 12 months ago कुछ भी 12 months ago parash dhulia 12 months ago Pinki 12 months ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Ashish Kumar Trivedi Follow Novel by Ashish Kumar Trivedi in Hindi Novel Episodes Total Episodes : 82 Share You May Also Like कर्म पथ पर - 1 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 2 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 3 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 4 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 5 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 6 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 7 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 8 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 9 by Ashish Kumar Trivedi कर्म पथ पर - 10 by Ashish Kumar Trivedi