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कुबेर - 21

कुबेर

डॉ. हंसा दीप

21

यहाँ काम शुरू करने का समय आ चुका था। हिन्दी भाषा और अंग्रेज़ी भाषा दोनों पर उसका अच्छा अधिकार होना, उसके लिए लाभकारी सिद्ध हुआ। अपने ग्राहक से उसकी मातृभाषा में बात कर पाना एक सेल्समैन को अच्छा कारोबारी बनाता है। कागज़ी कार्यवाही की औपचारिकताओं के बाद अब क़ानूनी रूप से रियल इस्टेट एजेंट का काम वह शुरू कर सकता है।

“अभी नहीं डीपी, एक मुख्य काम और बचा है अभी।”

“क्या भाईजी” आश्चर्यचकित डीपी बोला। “मिठाई खाना है या पार्टी करना है, आप जो बोलें।”

“वह सब तो करेंगे, जश्न मनाएँगे लेकिन बाद में। पहले तुम्हारे नए वीज़ा को प्रभावी बनाने के लिए तुम्हें अमेरिका से बाहर किसी भी दूसरे देश में जाना होगा। वहाँ संबंधित अधिकारी पासपोर्ट पर इस वीज़ा को अंकित करेंगे और तुम अमेरिका में नए स्टेटस के साथ प्रवेश करोगे।”

“अरे इसमें क्या है, मैं भारत चला जाता हूँ। सबसे मिल आऊँगा भाईजी।”

जॉन नहीं चाहता था कि डीपी इतनी जल्दी भारत जाए। यद्यपि उसके वहाँ रह जाने की आशा नहीं थी पर ऐसी संभावनाओं से इंकार भी नहीं किया जा सकता था। अभी डीपी यहाँ के कामकाज में घुला-मिला ही कितना था। फिर डीपी जितना भावुक किस्म का था, एक डर तो था ही। उसने सुझाव दिया - “यह काम तो मैक्सिको या कैनेडा जाकर भी हो सकता है। चलो, क्यों न कैनेडा चलें।”

“लेकिन आप क्यों अपना समय नष्ट करें, मैं अकेला चला जाऊँगा।”

“तुम जाओगे तो दो से तीन दिन का समय लगेगा। हम दोनों जाएँगे तो सुबह जाएँगे शाम को आ जाएँगे। कार से जाना बेहतर है। सात-आठ घंटे की ड्राइव है सुबह चार-पाँच बजे निकलेंगे और बॉर्डर क्रास करके वापस आ जाएँगे।”

“अच्छा!” अपनी सहमति जताते हुए वह अपने अगले बढ़ते क़दम के बारे में सोचने लगा।

यह एक और रोमांचक सफ़र था डीपी के लिए। जब वे लंबी ड्राइव में दो बार चाय-पानी का विराम लेकर कैनेडा की सीमा में घुसे तो यह सब अजूबा था उसके लिए। एक देश से दूसरे देश की सीमा सिर्फ एक चेक पोस्ट से हो सकती है, इसका अनुमान नहीं था उसे। कोई मिलिट्री नहीं थी, कोई सीमा सुरक्षा बल नहीं था। सीमा पर सीमा सुरक्षा बलों का न होना बहुत कुछ कहता है। आए दिन की गोलाबारी, आए दिन के ख़ून-ख़राबे से परे यहाँ कोई नहीं था यह कहने वाला कि – “यह धरती ‘तुम्हारी’ है और आगे अब ‘धरती’ हमारी है।”

कैनेडा के अधिकारियों की, उनके मानवीय दृष्टिकोण पर भाईजी से चर्चा और भी बहुत कुछ सिखा गयी।

उसे तो दो देशों की सीमाओं के बारे में एक ही बात पता थी, एक ही बात दिमाग़ में थी जो अब तक सुनता आया था, पढ़ता आया था, वह थी भारत पाकिस्तान की सीमा जहाँ सिर्फ बंदूकें और सेना के अलर्ट जवान दिखाई देते हैं। वाघा बार्डर के बारे में पहुत पढ़ा था उसने कि किस तरह झंडा फहराने के समारोह के बाद देश भक्ति के गीत गाए जाते हैं। नारे लगाए जाते हैं। बंदूकों के साए में रहने वाले सीमावर्ती गाँवों के लिए गोलियों की आवाज़ें सुनना एक नियमित दिनचर्या का हिस्सा था।

अख़बारों में पढ़ता रहता था कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनावों के रहते कई बार भारत के सुरक्षा अधिकारियों द्वारा सीमा से सटे इलाकों में बसे लोगों को गाँव खाली करने को कह दिया जाता है। जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच सात सौ छियत्तर किलोमीटर का इलाक़ा ऐसा है जिस पर विवाद है। यानि कि इस पर सीमांकन नहीं हुआ है और इसे नियंत्रण रेखा कहा जाता है। यह शायद एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ भारत और पाकिस्तान के दो लाख से अधिक सैनिक ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के बीच रायफ़लें ताने, मशीनगनों, मोर्टारों और तोपखानों के साथ एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। इस वजह से यह दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य जमावड़े वाली जगह है।

प्रकृति पर मनुष्य के अधिकार को सहन करती है यह धरती, मानों अंदर से चीत्कार करती है – “ये आदमी हमारे हैं, ये तुम्हारे हैं ऐसा मत करो, जन-जन हमारा है और जन-जन के हम हैं।”

“गीता हमारी है, कुरान तुम्हारा है, चिल्लाना बंद करो।”

“भगवान हमारा है, ख़ुदा तुम्हारा है की नफ़रत में मत भूलो कि यहाँ रहने वाले हर जीव में भगवान भी है और ख़ुदा भी।”

वैसा कुछ नहीं था यहाँ कैनेडा और अमेरिका की सीमा पर। कुछ क़दमों की दूरी पर अपने-अपने पासपोर्ट दिखाकर लोग एक देश से दूसरे देश की सीमा में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। किसी भी सीमा पर कोई सैनिक या वर्दी नहीं थी। हर सीमा पर सिर्फ एक चैक पोस्ट था जहाँ अपने कागज़ात दिखाकर आगे बढ़ने की तैयारी होती थी।

बगैर सैनिकों के दो देशों की सीमा रेखाएँ बहुत कुछ कहती हैं, बहुत कुछ सिखाती हैं। मानवता के पाठ, शांति के पाठ, नागरिकों की आपसी समझ और विश्वास के पाठ और सबसे अधिक महत्वपूर्ण दोनों देशों की सरकारों के कामकाज की शैली के पाठ जिससे करोड़ों के अनावश्यक ख़र्च की बचत होती जो सीमा पर, सुरक्षा बलों पर, शस्त्रों पर ख़र्च होता। काश! दुनिया का हर देश अपनी सीमा को ऐसी सीमा बना दे, निर्बाध और नि:शक्य, आपसी प्यार और भरोसे के बीजों को बोते हुए।

ये नयी जानकारियाँ उसे बेहद रोमांचित कर रही थीं। उसका उत्साही मन हर छोटी से छोटी जानकारी को सकारात्मक रूप में लेता जिससे सोच के दायरे तो बढ़ते, साथ ही मानवीय परम्पराओं के विभिन्न पहलुओं का भी ज्ञान मिलता।

भाईजी कैनेडा के बारे में बताते रहे – “कैनेडा एक बेहद संवेदनशील और मानव मूल्यों की रक्षा में आगे रहने वाला देश है। यहाँ के लोगों में विनम्रता कूट-कूट कर भरी है। इसका सबसे पहला प्रमाण लोगों को एक बॉर्डर से दूसरी पर आते ही हो जाता है जब अधिकारियों की विनम्रता और सौजन्यता उनके शब्दों में झलकती है। यहाँ के बाशिंदों में अक्खड़ता नाम की चीज़ नहीं है। ये अपेक्षाकृत विनम्र और उदारमना हैं।”

ऐसे देश में जाने का सौभाग्य भी कभी मिले, ऐसी चाहत थी मन में। इस समय तो कागज़ी औपचारिकताओं के ख़त्म होते ही नए जीवन की शुरुआत के लिए तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी।

एक और नये सफ़र के लिए क़दम लालायित थे।

ग्राहकों के साथ काम करना था अब। अच्छे व्यक्तित्व के लिए पेशेवर कपड़ों की, अच्छी गाड़ी, आदि चीज़ों की ख़ास ज़रूरतें थीं। भाईजी जॉन ने इन सब बातों का ध्यान रखते हुए उसे ख़रीददारी के लिए भेजा, गाड़ी की लीज़ के लिए आवेदन करवाया। अपना नाम क्रेडिट कार्ड पर उभरा देखा तो उसे बड़ा आनंद आया। हालांकि इस पर सिर्फ़ एक हज़ार डॉलर की क्रेडिट लिमिट थी पर क्रेडिट लिमिट कौन देखता था। क्रेडिट कार्ड अमेरिकी जीवन की पहली आवश्यकता थी, छोटी-मोटी कई बातें थीं जो शहर की नियमित जीवन शैली के लिए आवश्यक थीं।

कुछ ही दिनों में अपना पहनावा, अपनी चाल-ढाल सब कुछ बदलता नज़र आया। ख़ुद का खर्चा तो ज़्यादा था नहीं। कपड़ों की एक ख़ास पसंद थी। जब कुछ नहीं था तब भी अच्छा से अच्छा कपड़ा ही पसंद आता था। अब कोट और टाई पहने अपने आपको दर्पण के सामने देखता तो उसके भीतर छुपा धन्नू मुस्कुराता - “साला मैं तो साहब बन गया।” माँ-बाबू की क्षणिक याद उसे रुआँसा बनाने लगती और वह जूतों के फीते कसने लग जाता।

साहबी अंदाज़ तो बचपन से थे, चाहे ख़्यालों में थे, मगर थे तो सही। अब जीवन भी वैसा हो गया था। धूप का चश्मा लगाकर जब वह अपनी गाड़ी से इधर-उधर जाता तो स्वत: चाल-ढाल में वह ठसक दिखाई देती। भाईजी जॉन कहते – “क्या बात है डीपी, बहुत जम रहे हो!”

“आपका असर है भाईजी”

अच्छे कपड़े पहनकर अच्छा दिखना अपना विश्वास दोगुना कर देता है। आत्मविश्वास को बढ़ाने में ये सारी बातें जाने-अनजाने सहयोग कर रही थीं। अमेरिका में नौकरी भले छोटी-सी हो, उधार बड़ी आसानी से मिल जाता है। यहाँ उधार का मतलब है क्रेडिट और जिसकी जितनी ज़्यादा क्रेडिट है उसका उतना ज़्यादा मान है। अधिकांश लोगों के अपने बड़े-बड़े घर हैं, महँगी आधुनिकतम कारें हैं, महँगी घड़ियाँ हैं और उनके पार्श्व में लोन हैं, मासिक किश्तें हैं, क़र्ज़ है।

“आज भरपूर जियो, कल किसने देखा” वाला शाश्वत दर्शन है।

माँ भी तो यही कहती थीं उनके अपने शब्दों में – “आज खाया वह मीठा, कल किसने देखा।” गाँव बदले, शहर बदले, देश बदले, महाद्वीप बदले लेकिन मनुष्य की सोच नहीं बदली। सोच की गहराई हर ओर एक जैसी है।

जब शुरू में वह मैनहटन की सड़कों पर चलता था तो ऊँची इमारतों के नीचे ख़ुद को छोटा महसूस करता था। लेकिन जब धीरे-धीरे क़दम-ताल मिलने लगे, महत्वाकांक्षाएँ जन्म लेने लगीं तो अब अपना क़द उन ऊँचाइयों के समीप पहुँचता नज़र आने लगा। लंबा, ऊँचा-पूरा आकर्षक व्यक्तित्व व कई आकार लेतीं महत्वाकांक्षाएँ अब हर पल कुछ कर गुज़रते हुए जीने की प्रबल इच्छा को और अधिक ताक़तवर बना रही थीं।

एक दिन ऐसे ही तैयार होकर एक ग्राहक को जब वह मकान दिखाने ले गया तो अपनी तरफ़ से पूरी तैयारी करके गया था। आभास था कि इस तैयारी के साथ आज सौदा हो ही जाएगा। उस दिन उस ग्राहक को दस से ज़्यादा मकान दिखाए, एक से बढ़कर एक। उम्मीद थी कि कोई न कोई तो पसंद आ ही जाएगा क्योंकि सारी आवश्यकताओं को मद्दे नज़र कर इन मकानों को ग्राहक को दिखाने के लिए चुना था उसने।

संभावना के विपरीत ग्राहक के द्वारा अनावश्यक कमियाँ बतायी जा रही थीं और ज़ाहिर-सा था कि वे सारी बातें गंभीर नही थीं क्योंकि उसने काफी मेहनत करके एक से एक अच्छी प्रॉपर्टी का चयन किया था। कुछ बातें ऐसी कही गयीं जिनसे लग रहा था कि ख़रीददार सिर्फ़ घूमने-फिरने के दृष्टिकोण से आए हैं। उनकी प्रतिक्रिया ऐसी थी जो डीपी को उसके नियंत्रित गुस्से को बाहर लाने के लिए पर्याप्त रूप से उकसाने की ताक़त रखती थीं – “डीपी, इस मकान में बाथरुम फ्रंट में है।”

“अच्छा! यह किचन और फैमिली रुम के पास अतिरिक्त जगह कैसे छोड़ दी गयी, ले-आउट की सबसे बड़ी कमज़ोरी है यह।”

“इतना बड़ा किचन, मगर सिंक एक ही दिया है, दो सिंक तो होने ही चाहिए।”

“मास्टर बेडरुम में क्लोज़ेट की साइज़ बहुत छोटी है।”

“इस मकान की छत समतल है जो आधुनिक घरों जैसी नहीं है। समतल छत की शैली तो अब पुरानी हो चुकी है। इस तरह के मकानों के लिए ऐसी छत की शैली से मकान के आकार-प्रकार का उठाव नहीं दिखता।”

“इस मकान को देखते हुए लगता है कि इसका बिल्डर यूरोपीयन है।”

डीपी कहना चाहता था कि – “ये सारी बातें तो उन्हें भेजे गए वर्चुअल टूर में शामिल थीं, साफ़ दिखाई दे रही थीं तो फिर क्यों हमने इन मकानों को देखने में पूरा दिन बरबाद किया।” मगर अपने नये-नये व्यवसाय की नाज़ुकताओं से परिचित था वह सो बेहद संतुलित रहा। बहन मैरी थी ज़ेहन में जो भाई को उसके गुस्से से सतर्क करती थी। सचमुच ख़ुद भी हैरान था कि वह अब तक शांत कैसे रहा है।

भाईजी जॉन की सीख यहाँ काम आती थी – “कस्टमर इज़ आल्वेज राइट।” उसकी हर प्रतिक्रिया का सम्मान करो, न चाहते हुए भी कस्टमर को यह महसूस करवाओ कि उसकी हर बात मायने रखती है और – “अगली बार इन सब बातों का ध्यान रखा जाएगा।”

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