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भूख में भी स्वाद की तलाश

भूख में भी स्वाद की तलाश

मीता दास

मुंबई - हावड़ा मेल जब एक बजे दोपहर को रेलवे प्लेटफार्म पर रुकी, एकाएक भगदड़ मच गई | जून माह का अंतिम सप्ताह, तेज लू की मार अब कम थी पर चिलचिलाती धूप और कल रात की हुई बारिश की वजह से एक बेचैनी का माहौल तारी था | सारा शहर बरसात के पानी के वाष्पित होने और उसकी उमस से जूझ रहा था | प्लेट फार्म में लोगों की भीड़ और उनके बदन से पसीने की बास खट्टे दही या कह लो मरे चूहे की सड़ांध सी ही प्रतीत हो रही थी | और तो और पटरियों पर संडास की उग्र गंध भी सभी के नुथनो को यह एहसास दिला रही थी की हाँ जी हाँ हम भारत में ही हैं | पर हाँ अगर हम एयर कंडीशंड कोच के पास खड़े हों तब हरेक प्रकार के डीयो और परफ्यूम और संडास की मिली जुली सुगंध से दो -चार हो सकते हैं |

ट्रेन की रफ़्तार मध्यम होते - होते थम गई और हम भी अपने सामानों के साथ - साथ खिसकते - खिसकते, धक्का - मुक्की के रास्ते अपने कोच तक पहुँच ही गए | तौबा - तौबा क्या भीड़ है ....... एक तो गर्मी की छुट्टी और उस पर शादी - ब्याह का मौसम । " गरमा - गरम खाना, थाली है पंजाबी, बंगाली, सादा भी है, वेज या नॉन वेज क्या चलेगा | चिल्हर बाहर रखना भाई, ओ माता जी आपको क्या दूं, थोड़ा जल्दी बस यह ट्रेन यहाँ पांच मिनट ही रुकेगी | सीट नंबर बताएँगे ......? अगले स्टेशन पर ले लिजियेगा .....पैसे की कोई जल्दी नहीं बस्स ......ऑर्डर... क्या..... अच्छा छब्बीस पर बैठे हैं | "

" पेप्सी वाले को जरा भेजना भाई ..........हलक सूख रहा है " ...

" अरे उनका माल तो पेंट्री से दो डिब्बे आगे और पीछे में ही ख़त्म हो जाता है ........... जरा उतर कर प्लेट फार्म से ही ले लीजिये " ......कोई सामने की सीट से बोला ......सर नीचे कर सामान सीट के नीचे डालने की धुन में नहीं देख पाया की वह हित चिन्तक आखिर था कौन ?

इस मौसम में ठंडी चीजों की बड़ी डिमांड रहती है, एक तो गर्मी उस पर लोहे का एस - १,२,३ .........के डिब्बे | अगर जहन्नुम किसीने न देखी हो तो गर्मी के मौसम में दोपहर की यात्रा इन्ही डिब्बों में सफ़र कर के देखी जा सकती है | जब मैं अपने छोटे बेटे को उसकी गर्मी की छुट्टियाँ ख़त्म होने पर आज उसे इसी ट्रेन पर विदा करने आई तो देखा की इससे पहले प्लेट फार्म नंबर ३ और नंबर ४ पर एक दक्षिण की और और दूसरी उत्तर की तरफ मुंह किये दो ट्रेने खड़ी थी | और एक आइसक्रीम वाला ३ नंबर पर खड़ी ट्रेन से उतर कर ४ नंबर वाली ट्रेन में चढने की कोशिश में फिसल जाता है और उसके हाथों से आइसक्रीम का डब्बा गिर जाता है | और कुछ आइसक्रीम के डब्बे खुल कर बिखर जाते हैं पर वह की कोई उसे देख रहा है इस बात से बेखबर उन बिखरी आइसक्रीमों को फिर से उन डब्बों में भर कर इसी ट्रेन मुंबई - हावड़ा मेल के डब्बा नंबर एस ४ पर चढ़ जाता है और आवाजें लगता है ...." आइसक्रीम क्वालिटी ...आइसक्रीम ठंडा " मैं देख कर भी उसकी आवाज़ों को सहती हूँ | बेचारा करे तो क्या करे ......किसे पता होगा की ये आइसक्रीम गन्दी हैं | गर्मी में हर खरीददार को राहत ही पहुंचाएगी और उस आइसक्रीम वाले की रोजी भी निकल आएगी | मैं चुप थी की मुझे तो खानी नहीं है आइसक्रीम ....बाकि लोग खाते हैं तो खाए ..मैंने कोई ठेका तो नहीं ले रक्खा है ....बस मुझे उस गरीब की मक्कारी को भी नजर अंदाज़ करते मुझे कोई आत्मग्लानी नहीं महसूस हुई वरण मुझे एक तसल्ली सी हुई की उसकी रोजी उसे मिल जाएगी ...आज वह घर खाली हाथ नहीं जायेगा |

अभी - अभी तो वह पीलिया से उबरा था, सब खाना पीना उसका डॉक्टर की सलाह से ही होता रहा था अब तक | अब होस्टल में क्या और कैसा खाना मिलेगा यह तो राम ही जाने | मैंने देखा की मेरे बेटे के बगल वाली सीट पर एक माँ - बेटी बैठी थीं वे शायद लम्बी दूरी तय कर के आ रही थी | सीट पर उनके फैलकर बैठने के अंदाज़ से ही इस बात का आभास मुझे हो चूका था |

माँ कुछ टटोल रही थी साथ लाये पोलिथिनो में, बेटी ने ट्रेन की सीखचों से सर को सटाकर प्लेट फार्म में कुछ ढूँढने के अंदाज़ में बाहर झाँका और बोली ---" लगता है स्टेशन पर कोई भिखारी नहीं है " ......फिर दोबारा अपने आप से ही बोल पड़ी ......." नहीं ..नहीं शायद वह बुढ़िया जो सर पर पोटली धरे इधर ही आ रही है ...जरूर भिखारन है | "

" देख कितना खाना रक्खूं शाम के लिए .....इतनी गर्मी है सब ख़राब हो जायेगा ...उसी भिखारन को दे देते हैं ...खा लेगी बिचारी " |

" नहीं माँ .....सब देदो देखो कितनी उमस हो रही है .....न तो वह ख़राब खाना हम खा पाएंगे और न ही फैक ही पाएंगे ...कम से कम वह खा लेगी "| अरे माँ तू कितना ढेर सारा दही ले आई है ......सब की सब खट्टी हो जाएँगी " |

लड़की ने सारा खाना उस भिखारन को खिड़की के सीखचों के बीच से हाथ निकल कर दे दिया ..... बुढ़िया सलाम के अंदाज़ से एक हाथ झुका कर पोटली थामे आगे बढ़ गई |

सामने ही मेरे बेटे की सीट थी उसे नागपूर जाना था | मैंने पुछा बेटा " " मैंने डाइनिंग टेबल पर तेरे लिए लस्सी का गिलास रखा था तूने पीया था " ?

" नहीं माँ .........भूल गया और हाँ जल्द बाजी में लस्सी की बोतल भी भूल आया ....ओह्ह .......माँ ..." | मुझे गुस्सा भी आया अपने आप पर ...वह तो बच्चा है ...मुझे ही ध्यान रखना था ......ओह्ह्ह .......अब ...उसे रास्ते और बाहर का कुछ खाना नहीं है ....अभी - अभी तो उसका शरीर पीलिया भुगत कर उठा है ...डॉक्टर ने कठोर हिदायत दी थी बच कर रहना ...........लीवर बहुत ही कमजोर हो चुका है .....पर अब ! मन बेहद दुखी हो गया सारा समय सादा खाना ही वह खा रहा था मुंह बना - बना कर ........पर लस्सी वह बड़े चाव से पीता था | वह यह सब सोच ही रही थी की बेटी के बुलाने पर वह बुढ़िया खिड़की के सामने आकर हाथ पसार दिए और मेरी बात मन में ही धरी रह गई की मैं उन माँ बेटी से दही ही मांग लेती पर मेरी जुबान तालू में ही चिपक कर रह गए और वह भिखारन पोटली थामे सलाम की मुद्रा में मेरे सामने थी | ट्रेन चल पड़ी और मैंने सजल नैनो से बेटे को हाथ हिला कर विदा किया |

वापसी में मैंने देखा की एक आठ - नौ बरस की मझौले कद - काठी की एक लड़की दौड़ती हुई भिखारन के समीप आई और उसने अपने हाथों में पकडे एक चमकीले डिब्बे को बुढ़िया के आँखों के आगे कर कहा .........." दादी देख उस ठन्डे कमरे वाले बाबूजी ने दिया है .....और दिखा तुझे क्या मिला है ? उसकी चमकीली ऑंखें बुढ़िया के हाथों में झूलते पोलीथिन की पोटली के आरपार हो गई | बोली ......" अरे होगा वही आलू - टमाटर की सूखी सब्जी या भरवाँ करेले, आचार आम का और प्याज की कतरन या नमक अजवाईन वाले पराठों संग मिर्च का आचार | ...फैक दे दादी सब फैक दे ....देख इसमें क्या - क्या है .........बस पराठे रख ले ......इसमें भुना हुआ मुर्गा, उबले अंडे हैं दो बड़े - बड़े और दाल है,एक मिठाई भी है ...ऊपर कुछ चमकीला - चमकीला सा कुछ लगा है और देख गुलाबी रंग की आइसक्रीम भी है | थोड़ा सा पुलाव भी है .....उसने शायद दही से बस पराठे ही खाएं हैं | " कहकर उस भिखारन बच्ची ने माँ बेटी के दिए पोलीथिन से बस पराठे निकल कर बाकि का खाना रेलवे के ट्रेक पर फैक दिया और ख़ुशी से उचालती हुई बुढ़िया का हाथ थाम कर आगे बढ़ गई | मैंने देखा की ट्रेक पर गिरते ही पोलीथिन फट गया और दही के संग आलू भी बिखर गए | कहीं से दौड़कर दो कुत्ते आ गए और उस पोलीथिन में मुंह मारने लगे मैंने ध्यान से देखा एक काली कुतिया थी और दूसरा भूरे रंग का कुत्ता था | दो मिनट में सब साफ़ ....... | मैं सोच रही थी की इन्सान ही है जो भूख में भी स्वाद तलाशता है |

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