Aouraten roti nahi - 25 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

औरतें रोती नहीं - 25 - अंतिम भाग

औरतें रोती नहीं

जयंती रंगनाथन

Chapter 25

इस मोड़ से आगे

रात जमकर नींद आई। बारह बजे उसे स्टूडियो पहुंचना था। तैयार होने से पहले आंटी का नौकर सतीश बता गया कि कोई फैजल आया है उससे मिलने। आंटी ने अपने कमरे के बाहर एक रिसेप्शन जैसा बना रखा था, जहां उनकी पेइंग गेस्ट्स अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिल सकती थीं।

फैजल अपना किट बैग उठाए सीधे स्टेशन से चला आया था। अपने किसी वी.आई.पी. दोस्त से कह-सुनकर उसने रिजर्वेशन करवा लिया था। फैजल उसे देखते ही लपककर पास आ गया, ‘‘गुड मॉर्निंग सिस। तैयार हो गई? आज मैं भी चल रहा हूं तुम्हारे साथ शूटिंग पर...’’

आमना मुस्कराई। उसके भाई को कब से शूटिंग में दिलचस्पी हो आई? अच्छा लगा, फैजल का यह कहना ही उसके लिए काफी है।

‘‘तुम बैठो, मैं तैयार होकर आती हूं। घर के सामने फूड कोर्ट है, वहीं नाश्ता कर लेंगे।’’

आमना ने हर दिन की तरह जीन्स और कुर्ती पहनी। काली कॉर्डरॉय की जीन्स और सफेद रंग की कुर्ती। जिसकी बेल कट बांहों में नन्हीं-नन्हीं सरोस्कियां जड़ी थीं। बाल ऊपर बंधे थे। कानों में काले बीट्स के बड़े से झुमके। दो दिन पहले सोनिया के साथ जनपथ से खरीद लाई थी। पर्स उठाकर नीचे आई, तो आंटी के कमरे में झांक लिया।

आंटी रात के ही कपड़ों में थीं। आंटी की मित्र उनके बिस्तर पर पसरी थीं। इस समय घुटने तक के गाउन में एक कम उम्र की युवती लग रही थीं। रात की सारी परेशानियां छंट चुकी थीं। दोनों सहेलियां रिलैक्स्ड लग रही थीं।

आमना ने कुछ जोर से और लय में ‘‘गुड मॉर्निंग...’’ कहा। आंटी उठकर बैठ गईं, ‘‘वेरी गुड मार्निंग। सुगह-सुबह कहां चली? नाश्ता कर लिया?’’

‘‘मेरा भाई आया है, इलाहाबाद से। जस्ट टु बी विद मी... हम दोनों बाहर कर लेंगे ब्रेकफास्ट। मैं अभी उसे आपसे मिलवाती हूं। पहले मुझे बताइए अपनी उन तीसरी फ्रेंड का नाम और पता... मैं आज के शो में अनाउंस करूंगी। आप जरूर देखिएगा...’’

आंटी की आंखें कोमल हो उठीं। वे पीठ पर तकिया रखकर अधलेटी सी बैठ गईं, ‘‘तुम सच में उससे मिलवा दोगी? ...रुको, मैं अभी उसका नाम और पुरान एड्रेस लिखकर देती हूं। हालांकि अब वो वहां नहीं रहती।’’ आंटी साथ में अपना नाम और एड्रेस भी दे दीजिए। अगर वे हमसे संपर्क करेंगी, तो आपका मोबाइल नंबर दे देंगे।

आमना खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। अचानक उसकी निगाह बिस्तर पर गई। टुटू बड़े मजे से आंटी की सहेली के पांव तले सो रहा था।

आमना ने पूछ ही लिया, ‘‘आपका डॉगी इनसे इतना क्लोज कैसे है? इससे पहले तो मैंने कभी टुटू को आपके बिस्तर पर नहीं देखा...’’

आंटी हंसी, ‘‘टुटू मेरा नहीं, इसी का डॉगी है... ये पूरे तीन साल बाद मिल रही है इससे। तभी इतना प्रेम उमड़ रहा है...’’

आंटी ने उसके हाथ में एकपुर्जा थमा दिया। आमना खोलकर पढ़ने लगी- उज्ज्वला, उम्र: चालीस, पता: नंद एनक्लेव, ऑफ कुतुब मीनार रोड, न्यू डेल्ही...

‘‘आपने अपना नाम तो लिखा ही नहीं...’’

‘‘मन्नू... मन्नू है मेरा नाम...’’

आमना कुछ कहती, इससे पहले फैजल कमरे में झांकने लगा, ‘‘आमना, चलें, मुझे बहुत भूख लगी है...!’’

आमना पीछे मुड़ी, ‘‘आंटी, ये मेरा भाई है फैजल... दुबई से इंजीनियरिंग किया है इसने...’’

दुबई के नाम से मन्नू चौंकी, फिर बेखुदी में बोली, ‘‘अरे, ये भी तो दुबई में ही रहती हैं। पद्मजा।’’

पद्मजा ने धीरे से आंखें खोलीं। फैजल को देख हाथ हिलाया और फिर आंखें बंद कर लीं।

फैजल ने आमना का हाथ पकड़कर खींचा और आमना ‘‘आय आंटी...’’ कहती हुई बाहर निकल गई।

घर से बाहर निकलते ही फैजल ने आमना का हाथ मरोड़ दिया, ‘‘तुम यहां रहती हो, इन लोगों के साथ?’’

आमना खीज गई, ‘‘सिर्फ मैं ही नहीं, और भी लड़कियां रहती हैं। फैजल, मैं बड़ी मुश्किल से दिल्ली में सेट हुई हूं। प्लीज मेरे लिए प्रॉब्लम क्रिएट न करो।’’

फैजल का चेहरा उत्तेजित हो उठा, पर उसने आवाज दबाकर कहा, ‘‘आमना, मैं उस औरत को जानता हूं। मैं ही नहीं, सारा दुबई जानता है। पता है क्यों? तीन साल पहले वह फ्लैश ट्रेड में पकड़ी गई थी। रोज उसका फोटा छपता था खलीज टाइम्स में। शी इज ए ब्लडी पिंप। आई नो... नाम भी यही था, पद्मजा रेड्डी। उसे सजा हुई थी दुबई जेल में तीन साल की। मुझे लगता है महीने-दो महीने पहले छूटी होगी। देख आमना, तू यहां नहीं रहेगी... बस। मैं तुझे यहां नहीं रहने दूंगा...।’’

चलते-चलते दोनों फूड कोर्ट तक आ गए। आमना परेशान हो गई, ‘‘फैजल, तुम क्या कह रहे हो? आंटी की दोस्त ऐसी? मैं विश्वास नहीं करती। जाने दो, प्लीज। मैं वैसे ही काम को लेकर टेंशन में रहती हूं। तुम और प्रॉब्लम क्रिएट न करो। वे दोनों दिखने में कितनी नॉर्मल लगती हैं। ऐसा कुछ होता, तो क्या हमें अहसास नहीं होता?’’

फैजल ने अब कुछ धीरे से कहा, बहन का हाथ पकड़ते हुए, ‘‘मैं गलत नहीं कह रहा आमना। तू ही बता, जिस औरत का चेहरा अखबार में देखा हो, वो भी कई दिनों तक, उसे कैसे भूल सकते हैं? फिर नाम भी वही... हम एक काम करते हैं, नेट पर जाकर देखते हैं। खलीज टाइम्स का नेट एडीशन तो है ही। देन यू विल बिलीव मी... जो भी हो आमना, मैं तुम्हें यहां नहीं रहने दूंगा। मैं शाम तक तेरे रहने का कहीं इंतजाम कर दूंगा। यहां नहीं... प्लीज, मेरी बात मान...’’

दोनों ने फूड कोर्ट में जल्दी-जल्दी मसाला डोसा खाया और पहुंच गए मेट्रो स्टेशन। ऑफिस थोड़ा जल्दी पहुंच गई थी आमना। मेकअप करवा के उसने शिराज से कहा, ‘‘सर, अभी तो शो शुरू होने में टाइम है। मैं जरा नेट चैक कर लूं?’’

फैजल नीचे रिसेपशन में बैठा था। आमना ने जल्दी से खलीज टाइम्स की साइट खोलकर पद्मजा टाइप किया।

सामने तीन साल पहले की खबरें थीं- इंडियन वूमन कॉट रेड हैंडेड।

पद्मजा की ही तस्वीर थी। सही कह रहा था फैजल।

आमना ने नेट बंद कर दिया। न जाने क्यों दिल भर आया। आंटी गलत नहीं हो सकतीं। आंटी... मन्नू...

आज शूटिंग की जगह थी नोएडा का अट्टा मार्केट और सेक्टर अठारह मेट्रो स्टेशन के ठीक सामने आमना अपना कैमरा लेकर खड़ी थी। मैसेज का अंबार लग गया। बीच में ब्रेक।

ओबी वैन के आसपास भीड़ लग गई। फैजल भी वहीं खड़ा था। ब्रेक के बाद आमना कैमरे के सामने आई और अपने दिलकश अंदाज में बोली, ‘‘अब एक संदेश उज्ज्वला के नाम। कुछ समय पहले तक उज्ज्वला दिल्ली में कुतुम मीनार के पास रहती थीं। इन दिनों उनकी मित्र मन्नू उन्हें ढूंढ रही हैं। उज्ज्वला, अगर आप यह शो देख रही हैं, तो अपनी पुरानी मित्र मन्नू से जरूर संपर्क करें। इस नंबर पर...’’

शो खत्म हुआ, वह वैन में जा कर बैठ गई। फैजल वहीं था, उसने टोका, ‘‘मैंने तुम्हें अपनी फ्रेंड की फैमिली के बारे में बताया था न। उनसे बात की है मैंने। तुम वहां एक महीने रह सकती हो। घर में सिर्फ अंकल और आंटी रहते हैं।’’ ‘‘देखेंगे...’’ आमना का ध्यान पता नहीं कहा था। बस, यह पता था कि उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा। न जाने क्यों आज का दिन और दिनों जैसा नहीं है। आज कुछ होगा... क्या... पता नहीं...

आमना ने अपने को संभाला और शिराज के पास आ गई, ‘‘सर, शो ठीक जा रहा है? मैं और क्या कर सकती हूं? एनी सजेशन...’’

शिराज ने कुछ सोचकर कहा, ‘‘तुम आज कुछ डल लग रही हो। हमेशा की तरह चुटकुले नहीं सुनाए। पेप अप यंग गर्ल। कुछ मजेदार करो। और हां... मिक्स्ड लैंग्वेज में बोलो। इंग्लिश ज्यादा, हिंदी कम। हमारी टीआरपी यूथ से बढ़ती है।’’

शिराज उसका कंधा थपथपाकर चले गए।

शाम तक आमना को स्टूडियो में ही रहना था। फैजल कहकर चला गया कि वह आठ बजे तक लौटकर उसके पास आ जाएगा और दोनों घर जाकर उसका सामन पैक कर आज रात ही शिफ्ट हो जाएंगे। नेट पर सब कुछ पढ़ने के बाद शक की गुंजाइश ही कहां थी? पर वह क्या कहेगी आंटी से? क्यों शिफ्ट कर रही है? क्या आंटी भी शामिल हैं पद्मजा के साथ? क्यों छोड़ना पड़ा था आंटी को अपना पुराना घर?

आमना कॉफी लेकर फिर से नेट के सामने बैठ गई। इस बार उसने गूगल खोलकर सुशील कुमार मर्डर केस टाइप किया। सैकड़ों खबरें सामने आ गईं।

अस्मिता, सुशील कुमार, उनकी फैमिली और मन्नू... आमना रुक गई।

सुशील कुमार की प्रेमिका मन्नू...

एक छोटी सी खबर यह भी कि मन्नू की किसी को खबर नहीं। पता नहीं कहां चली गई?

तो यह वजह थी आनन-फानन बदनामी से बचने के लिए अपना घर बेचकर गाजियाबाद मेें घर लेने की। और अपना नाम किसी को न बताने की...

आमना को यह नहीं पता था कि मन्नू पद्मजा के काम में कभी शामिल नहीं हो पाई। उज्ज्वला उनका साथ उसी दिन छोड़कर चली गई। मन्नू की हिम्मत जवाब दे गई। दो दिन बाद ही उसने कह दिया कि वह यह सब नहीं कर पाएगी। उसके लिए अच्छा है अब बिना नाम के एक चैन की जिंदगी जीना।

पद्मजा चली गई। कुछ महीने बाद उसका फोन आया कि वह मुसीबत में है।

मन्नू परेशान रही। दूसरे देश में वह क्या मदद करती उसकी? उसे यह भी पता चला कि पद्मजा जेल में है।

अब लौटी है पद्मजा, तो लगता है जैसे जिंदगी ने तौबा कर ली है उससे। टूटी, थकी-हारी। हर रिफ से खारिज। एक मन्नू ही है, जो उसे वो जैसी है, स्वीकार सकती है। मन्नू ने कहा है कि वह यहीं रहे उसके पास। दोनों सहेलियां साथ रहेंगी, कम से कम अब तो...

रातभर पद्मजा रोई, ‘‘मैं उज्ज्वला को बहुत मिस कर रही हूं मन्नू। हम दोनों में सबसे कमजोर थी वो। देखो, वो कितनी स्ट्रॉंग निकली। अगर वो हमारी जिंदगी में होती, तो ये बिखराव न होता...!’’

मन्नू रातभर उसका प्रलाप सुनती रही। तीन साल का गबार है। बहने दो।

‘‘आमना, तुम्हारे लिए फोन है। कोई टोल फ्री नंबर पर है। तुमसे बात करना चाहता है।’’

आमना उठकर स्टूडियो में आ गई। आवाज धीमी थी, कुछ अस्पष्ट।

‘‘आप ही हैं, जिसने आज शो किया था... उज्ज्वला के बारे में पूछा था?’’

आमना उत्तेजना से भर गई, ‘‘जी... बताइए... वे कहां हैं? क्या उनका पता मिल सकता है? क्या मैं आपको उनकी फ्रेंड का मोबाइल नंबर दूं?’’

दूसरी तरफ सन्नाटा। आमना ने कुछ जोर से कहा, ‘‘आप सुन रहे हैं?’’

रुककर कुछ टूटी सी आवाज आई, ‘‘नो यूज... शी इज नो मोर नाउ। पिछले साल उनका निधन हो गया।’’

आमना स्तब्ध रह गई।

‘‘आप उनकी मित्र को बता दीजिए... वो अंत समय में उनसे मिलना चाहती थी... पुराने घर भी गई थी... पर कोई सुराग नहीं मिला। तब आप नहीं थीं न यह प्रोग्राम लेकर। नहीं तो ढूंढ लेते...’’ हल्की सी हंसी।

आमना का दिल भर आया। उसने हिम्मत करके पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मन्नू को पता है... बस उसे इतना कह दीजिएगा कि जब कैंसर ने दोबारा सिर उठाया, तो उज्ज्वला की तीमारदारी करने मन्नू जो नहीं थी...’’

आमना का मन हुआ, बिलखकर रो पड़े। कोई नहीं लगती उज्ज्वला उसकी, फिर भी लगता है, जैसे कुछ लगती थी।

ठीक आठ बजे फैजल आया उसे लेने। आमना तन-मन से बुरी तरह थक चुकी थी। इस समय फैजल से बहस करने की भी इच्छा न थी। चुपचाप दोनों ऑटो पकड़कर घर पहुंचे। और दिनों की अपेक्षा सड़क पर कुछ ज्यादा भीड़ थी। घर के नीचे ही सोनिया मिल गई। उसे दो खबरें सुनानी थीं- सोनी के रिएलिटी शो के लिए उसका चुनाव हो गया था।

...और आज दोपहर को टुटू ने अचानक दम तोड़ दिया। आंटी और उनकी फ्रेंड बहुत दुखी हैं। अभी ले गए हैं दफनाने हिंडन नदी के किनारे, ‘‘मैं वहीं जा रही हूं, तुम आओगी?’’

आमना ने सिर उठाया, आंखें इतना जल क्यों रही हैं? लग रहा है जैसे किसी ने मुट्टी भर रेत डाल दी हो। अपनी आंखों को छिपाते हुए उसने इतना भर कहा, ‘‘नहीं... मुझे कहीं और जाना है...’’

जयंती रंगनाथन का उपन्यास: औरतें रोती नहीं

प्रकाशक-पेंगुइन

वर्ष- 2007