barsad ki ek raat books and stories free download online pdf in Hindi

बरसात की एक रात...

मम्मी मम्मी, कहाँ हो आप ?

अरे बेटा तुम तो पूरी भीग गयी।

हाँ वो मैं सुबह छतरी ले जाना भूल गयी थी और फिर सुबह मौसम भी तो नहीं था न बारिश वाला।

अरे! ये बारिश वाला क्या होता है? जुलाई का महीना चल रहा है, अभी बारिश नहीं होगी तो फिर कब होगी?

अच्छा मेरी माँ मान गयी कि मेरी ही गल्ती है अब ये सामान मेरे हाथ से लोगी या आज ज्ञान दिवस है माता श्री।

अरे इतना सारा क्या भर लायी? गरिमा की माँ ने गरिमा के हाथ से थैला लेते हुए पूछा ।

कुछ नहीं मम्मी बस वो राहुल का पीनट बटर खत्म हो गया था वो है और तुम्हारा शहद, इलायची पाउडर, मुलैठी, अरहर की दाल और हाँ तुम्हारी वो खाँसी की दवा भी है बस और कुछ नहीं।

इतना कम है क्या, बेटा मुझे अच्छा नहीं लगता बिटिया की कमाई खाना मगर मैं क्या करूँ तुम्हारे पापा जो पैसे भेजते हैं वो घर खर्च को भी पूरे नहीं पड़ते।

मम्मी क्या यार आप फिर से उदास हो गयी। क्यों करती हो आप हमेशा यही बात ? आप ही तो कहती हो कि मैं आपकी बेटी नहीं बेटा हूँ और फिर आप ही ये बिटिया की कमाई वाला डायलॉग बोलती हो। जाने दो मम्मी अब जल्दी से अपनी इस नन्ही सी जान को कॉफी पिला दो वरना न बेटा बचूंगी न बेटी, अरे यार ठण्ड भी लगने लगी मम्मी।

हाँ तो तब से खड़ी खड़ी बातें कर रही है जल्दी जा कपड़ें बदल, मैं तेरे लिए कॉफी बनाकर लाती हूँ।

अब ठीक है तू !

हाँ मम्मी अब ठीक लग रहा है। सच में भीगकर तो बहुत ठंड लग रही थी और आपकी कॉफी से भी बहुत आराम मिला।

अच्छा बेटा अब मेरा एक काम कर, ऊपर जाकर जरा ये खाने की थाली वो लड़के को देकर आजा।

कौन से लड़के को?

अरे वो, सॉरी बेटा मैं बताना भूल गयी। आज मैंने ऊपर के कमरे में एक किराएदार रख लिया।

किराएदार!ओफ्फो मम्मी मैंने आपसे मना किया था न कि अब हम ऊपर के कमरे में किराएदार नहीं रखेंगे, मैं वहाँ ट्यूशन क्लासेज चलाऊंगी।

अरे बेटा जरूरत थी। राहुल को कोई नया कोर्स करना है और तेरे भी तो हाथ पीले करने हैं न बेटा। कुछ पैसों की बचत होना भी तो बहुत जरूरी है न।

खट् खट् खट् खट् , हैलो! हैलो जी कोई है !
अजीब आदमी है, दरवाजा खुला है और खुद नदारद। मुझे क्या? मैं भी खाना यहीं टेबल पर रख देती हूँ ।

खाना दे दिया बेटा!

देना क्या मम्मी टेबल पर रख दिया, मुझे कमरे में तो कोई दिखा ही नहीं ।

अच्छा ! होगा कहीं ।

अगले दिन सुबह गरिमा जब अपने विघालय के लिए बस पकड़ रही थी तो उसे पीछे से किसी का स्पर्श और जोर का धक्का महसूस हुआ और जब उसनें पीछे मुड़कर देखा तो एक नवयुवक को अपने पीछे पाया,बड़ी बड़ी गहरी आंखें,कांतर पलकें,सांवला रंग और सौम्य मुस्कान।

ओ हैलो क्या बात है ? ज्यादा स्मार्ट समझते हो खुद को, तुमनें मुझे हाथ लगाया न,बोलो बोलो, अभी एक थप्पड़ मारुँगी न तो हाथ लगाना क्या हाथ को हिलाना डुलाना भी भूल जायेगा, समझा बेशर्म इंसान! गरिमा गुस्से से लाल पीली होकर क्या क्या बोलती रही उसे खुद भी नहीं पता चल रहा था और वो नवयुवक
बस गरिमा को एकटक देखता जा रहा था। यूं लग रहा था कि वो कहना तो बहुत कुछ चाहता था मगर कह वो कुछ भी नहीं पा रहा था, तभी बस का ब्रेक लगा और गरिमा का स्टॉप आ गया था।

आज का दिन तो बिल्कुल बेकार था मम्मी, पता नहीं आज मैं सुबह किसकी शक्ल देखकर घर से निकली थी और हाँ मम्मी कल से मैं थोड़ा देर से घर आया करूंगी, वो स्कूल का एनुअल डे नजदीक आ रहा है न तो बस बच्चों को उसी की तैयारी करवानी है।

अगले दिन गरिमा बस स्टॉप पर खड़ी थी बस के इंतज़ार में और बस के आते ही वही रोज की धक्कामुक्की शुरू हो गयी। तीस या पैंतीस सैकंड की जद्दोजहद के बाद भी गरिमा बस की बेतहाशा भीड़ को चीरकर उस बस में नहीं चढ़ पायी ।
ओफ्फो! मेरी बस छूट गयी,शिट्।

जी देवी जी ।

जी! आप कौन ? अरे तुम तो वो ही कल वाले लफंगे हो न!

देवी जी कल मैंने अगर कुछ नहीं कहा तो इसका ये मतलब तो नहीं कि आपकी मनमानी अब रोज चलेगी।

मनमानी, मतलब! क्या मतलब क्या है आपका?

मैं बस आपको इतनी सी बात समझाना और बताना चाहता हूँ कि आज जो हुआ बिल्कुल वही कल भी हुआ था मगर कल आपकी बस नहीं छूटी थी।

मुझे न तुम्हारी बकवास बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रही।

अरे आप समझना चाहेंगी तब तो समझेंगी न! कल मैंने आपको जानबूझकर या किसी भी गलत इरादे से नहीं छुआ था और न हीं धक्का दिया था। मैं तो बस अपने ऑफिस जाने की जल्दी में था और आपको लगा कि मैंने जानकर आपके साथ बदतमीजी की।

अच्छा जी,तो अब,मुंह बनाकर गरिमा ने कहा।

जी अब कुछ नहीं।

नहीं नहीं बताइये बताइये, क्या अब मैं आपसे माफी माँगूं?थैंक्स टू गॉड!बस आ गयी, ओके जी,शराफत की मूरत,बाय और गुस्से व चिढाने वाली मुस्कुराहट के साथ गरिमा बस में चढ़कर चली गयी और वो नवयुवक एक बार फिर गरिमा को एकटक जाते हुए देखता रहा।

अगले दिन गरिमा फिर उस नवयुवक से बस स्टॉप पर मिली मगर इस बार वो दोनों बड़े ही आराम से एक ही बस में चढ़ गये।पता नहीं क्यों आज भीड़ भी कुछ कम थी। बस में गरिमा को तो बैठने के लिए सीट मिल गयी मगर वो अभी भी खड़ा था। अगले दो स्टॉप के बाद जब गरिमा के बगल में बैठी हुई आँटी उतर गयीं तो गरिमा ने उस नवयुवक को अपने बगल की खाली जगह में बैठने का इशारा किया और वो कुछ संकोच के साथ वहाँ बैठ भी गया।

वो कल के लिए सॉरी, शायद मैंने ही ध्यान नहीं दिया और आप ने तो सिचुएशन के हिसाब से ही काम किया था। मैंने पता नहीं आपको कल क्या क्या कह दिया।

अरे नहीं नहीं, आप क्यों सॉरी बोल रही हैं? इसमें आपकी कोई गल्ती नहीं है। कोई भी अच्छी लड़की इसपर ऐंसे ही रिएक्ट करेगी ।

अच्छा! आपको कैसे पता कि मैं अच्छी लड़की हूँ।

जी वो,वो और झेंप कर वो मुस्कुरा दिया।

अब तो ये रोज का सिलसिला बन चुका था। वो दोनों बस स्टॉप पर सुबह मिलते और साथ में ही अक्सर एक ही सीट पर अपना सफर तय करते ।

गरिमा के आजकल विघालय जाने के लिए तैयार होने का तरीका भी बदल चुका था। हमेशा बालों को बांधने वाली गरिमा अब हफ्ते में चार दिन तो बाल खोल कर ही जाने लगी थी। होठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक और माथे पर छोटीसी काले रंग की बिंदिया ने भी अपनी जगह बना ली थी। राहुल ने तो एक दिन टोंक भी दिया था, क्या बात है दीदी?आजकल तो बड़ा ही सजधजकर जाने लगी हो।

जरा पढ़ाई पर भी ध्यान दे ले, हर वक्त बस जिम में ही घुसा रहता है । ये कहकर गरिमा ने बात बना दी थी।

लगभग सात महीने होने को आये और इस गुजरते वक्त के साथ गरिमा और वो नवयुवक एक दूसरे में काफी घुलमिल गये थे।

आज गरिमा ने सोच लिया था कि वो अपने दिल की बात उसे बता देगी मगर आज वो नहीं आया। यहां तक कि गरिमा ने उसके इंतज़ार में अपनी तीन बसें भी छोड़ दीं और आखिरकार उसे ऑटो लेकर विघालय जाना पड़ा,इस तरह वो आज लेट भी हो गयी ।

आज पूरे पाँच दिन हो गए मगर वो नहीं आया। बीतते दिनों के साथ ही साथ गरिमा की उदासी और बेचैनी भी बहुत बढ़ गयी थी ।
बेटा आज विघालय नही जाना क्या ?

अरे मम्मी आज तो इतवार है।अब क्या इतवार को भी मुझे पैसे कमाने भेजोगी?

अरे ये कैसी बात कर रही है तू ?

सॉरी मम्मी मेरी तबियत ठीक नहीं है, प्लीज़ मुझसे बात मत करो।

क्या हुआ बेटा? अरे गरिमा, गरिमा बेटा इधर तो सुन और गरिमा तेज कदमों से चलकर अपने कमरे में चली जाती है।

शाम हो गयी और इस लड़के का कुछ पता नहीं, कहाँ गया?

क्या हुआ मम्मी,क्या राहुल अभी तक नहीं आया?

नहीं बेटा और देख न बाहर ठंड भी कितनी बढ़ गयी है। ये जाड़े की बरसात है बेटा, बहुत नुकसान करती है मगर इस लड़के को कौन समझाये। अच्छा बेटा जरा तू ऊपर वाले लड़के को ये खाने की थाली तो पकड़ाकर आजा। राहुल तो पता नहीं कब आयेगा और उस लड़के का खाने का समय हो गया है। कुछ दिनों से उसकी तबियत भी ठीक नहीं है तो उसे दवा भी लेनी होगी टाइम से , जा बेटा जरा देकर तो आना।

ओके मम्मी, दो मुझे। खाने की थाली हाथ में लेकर गरिमा चल दी, सीढ़ियाँ चढ़ते हुए भी उसे बस एक ही ख्याल आ रहा था कि काश उसनें उस नवयुवक का फोन नंबर या उसके घर का पता ले लिया होता मगर आजकल के जमाने में भला ऐंसा कौन पागल होगा जो कि फोन नंबर भी न ले,हाँ मैं हूँ न पढ़ीलिखी बेवकूफ और इसी सोच में डूबी गरिमा ऊपर के कमरे के सामने पहुंच गयी और दरवाजा खटखटाया खट् खट् खट् खट्।
दरवाजा खुला और सामने वो ही बस स्टॉप वाला नवयुवक खड़ा था।

आप,

आप , यहाँ , यहाँ कैसे ? मेरा मतलब आप यहाँ रहते हैं।

हाँ जी मैं तो यहीं रहता हूँ मगर आप !

आपको पता है मैं एक बार और आपके कमरे में आयी थी मगर उस दिन आप मुझे मिले नहीं थे और हाँ उस दिन भी बारिश हो रही थी। आपके कमरे में कोई बारिश वाला गाना भी बज रहा था। शायद अब के सजन सावन में, आग लगेगी बदन में...
बहुत सुंदर गाती हैं आप,जितनी सुंदर आप हैं उतनी ही सुंदर आपकी आवाज भी है।

चुप रहिये आपको पता है पूरे पाँच दिनों से मैं आपका इंतज़ार कर रही हूँ बस स्टॉप पर !

अच्छा जी, मुझे तो नहीं पता।

उफ्फ! बेहद शरमा गयी गरिमा।

साफ साफ कह दीजिए न , जो भी कहना है, इतना कहते कहते कब वो गरिमा के इतना करीब आ गया कि दूर जाना मुश्किल हो गया, गरिमा को खुद भी पता नहीं चला।

गरिमा बेटा सुबह सुबह कहाँ चल दी,आज से तो तुम्हारी सर्दियों की छुट्टियाँ शुरू हो गयी हैं न ?

हाँ मम्मी मैं बस वो ।

क्या वो और तू इतना शरमा क्यों रही है? अरे हुआ क्या है बावली!कुछ तो बता।

अरे कुछ भी नहीं मम्मी, तुम तो बस कुछ भी कहती हो। अच्छा अब जल्दी से वो तुम्हारे ऊपर वाले किराएदार का नाश्ता दे दो, तो मैं पकड़ाती जाऊंगी, मैं वो प्रतीक्षा के घर जा रही हूँ न।

नहीं तू जा कुछ नहीं देना।

अरे दे दो न, फिर कहोगी कि मैं कुछ काम नहीं करती घर का और अब ,जब मैं खुद बोल रही हूँ काम करने के लिए तो बता नहीं रहीं ।

अरे तो क्या बताऊँ? ऊपर कोई होगा तब तो खाना दूंगी न ।

क्यों ? मतलब, ऊपर वो है न आपका किराएदार।

अरे वो तो आज सुबह सुबह तड़के ही अपने घर चला गया।

घर चला गया, बिना बताये, इतना कहते हुए गरिमा दौड़ती हुई सी घर के बाहर निकल गयी।

अरे अब भाग क्यों रही है बेटा ?

ऊपर जाकर देखा तो सचमुच वहाँ कोई नहीं था, बस गरिमा के चेहरे पर उन बारिश की बूंदों के मानिंद उन आंसुओं के अलावा।

आज चार महीने बीत गये और उस इंसान की न तो कोई खबर न कोई पता। गरिमा इस बार भी फोन नंबर नहीं ले पायी। पता नहीं ये उसकी बेवकूफी थी या नियति।

कितनी जोरों की बारिश हो रही है वो भी लगातार तीन दिनों से, मुझे तो नहीं याद कि कभी दिल्ली में मैंने ऐंसी जोरदार बारिश देखी हो। हाँ जब मैं तेरे पापा के साथ एक बार बम्बई में रहने गयी थी तब जरूर देखी थी ऐंसी भयानक बारिश, आंधी, तूफान।

मम्मी मैं सोने जा रही हूँ, मेरे सिर में दर्द है।

बेटा खाना तो खा ले।

नहीं मम्मी मेरा मन नहीं है,आप खा लो ।

रात के ग्यारह बजे दरवाजे पर दस्तक होती है।

बेटा गरिमा इतनी रात को कौन आया होगा? क्या तेरे पापा का कोई फोन आया था आने के बारे में !

नहीं मम्मी ।

कौन होगा इस वक्त, वो भी इतनी भारी बारिश में!
खट् खट् खट् खट्!
कौन ? कौन है ?

आँटी मैं हूँ, आपका ऊपर वाला किराएदार।

गरिमा बहुत ही फुर्ती से उठी और उसनें दरवाजा खोल दिया। वो कुछ कहती उससे पहले ही वो बोला कि जरा आँटी जी को बुला दीजिए।

हाँ बेटा बोलो गरिमा की माँ ने गरिमा को पीछे करते हुए बोला।

आँटी जी वो , उस लड़के की बात को बीच में ही रोकते हुए गरिमा की माँ ने गरिमा को चाय बनाने के लिए कहा और उस किराएदार को अंदर आने का इशारा करते हुए वो भी अंदर आ गयीं।

गरिमा की खुशी का ठिकाना नहीं था आज और वो चाय बनाते हुए कभी अपने बाल संवार रही थी तो कभी अपने कपड़ों को ठीक कर रही थी ।

मम्मी चाय ! मम्मी वो कहाँ गये ?

वो, अच्छा कुलदीप, वो तो चला गया।

चले गये, कहाँ चले गये।

अरे वो कमरा खाली करने की बात बताने आया था दरअसल उसे उसके ऑफिस की तरफ से नया घर मिल गया है और अब एक कमरे में गुजारा भी नहीं हो पायेगा न,खाना बनाने के लिए अब तो किचन भी चाहिए होगी न।

अब, अब का क्या मतलब है ?

अरे अब वो अकेला नहीं है न।

मतलब ? मम्मी बताओ न ठीक से, क्या हुआ अबबब!!!!

अरे तू चिल्ला क्यों रही है इतना ? उसनें शादी कर ली न अब और अपनी बीवी को भी लाया है साथ में, बस आज की रात वो दोनों ऊपर के कमरे में रहेंगे और सुबह होते ही चले जायेंगे। भला ऐंसी बरसात की रात में कहाँ जायेंगे ?

पूरी रात जो बारिश बादलों से हुई वो ही बारिश गरिमा की आंखों से भी हुई फर्क बस इतना था कि बादलों की बारिश तो सुबह होते ही थम गयी मगर गरिमा की आंखों से होने वाली बारिश न जाने कितनी बार बरसी और वो अपने जीवन की कई रातों को उस बरसात की एक रात की याद में कई बार भिगोती रही।

निशा शर्मा...