Kuchh Gaon Gaon Kuchh Shahar Shahar - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 9

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

9

आज डीमॉटफर्ट युनिवर्सिटी में छात्र ही नहीं प्रोफेसर और पूरा स्टाफ भी बहुत खुश है। आखिर सिद्ध करने का समय आ ही गया जिसके लिए लेस्टर शहर इतना प्रसिद्ध है। लेस्टर को हैरिटेज सिटी के नाम से भी जाना जाता है। कुछ समय पहले डीमॉटफर्ट युनिवर्सिटी और लेस्टर सिटी कॉंउंसल ने मिल कर एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। पैसे ना होने के कारण यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया था। दोनों के काफी प्रयत्नों के पश्चात ब्रिटेन के लॉटरी फंड ने इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर पैसे देने की मंजूरी दे दी है।

यह प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए रिसर्चर्स बहुत समय से काम कर रहे हैं। जिसमें विशेषकर लेस्टर के शहरी और ग्रामीण इलाकों की पुरानी इमारतों को नष्ट होने से बचाना है। ब्रिटेन के कई ऐसे मशहूर फूल हैं जैसे बल्यु बैल्स, कॉरनेशन, जंगली पॉपी आदि जो अब समाप्ति की कगार पर हैं उन्हें बचाना व कैनाल्स के किनारे उन्हें लगाना जो लेस्टर निवासी कश्तियों में घूमने के साथ साथ इन फूलों व वाइल्ड लाइफ का भी भरपूर आनंद उठा सकें। जहाँ फूल होंगे वहाँ तितलियाँ भँवरे भी होंगे, चिड़ियाँ भी आएँगी। यह दिखाने के लिए कि पैसों का उपयुक्त प्रयोग किया जा रहा है साथ में इसके विडियो भी तैयार किए जा रहे हैं जो आने वाली पीढ़ी भी इस कार्य में थोड़ा भाग ले और इस प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाए।

लेस्टर की लायब्रेरीस में बहुत पुरानी लेस्टर हैरीटेज की पुस्तकें मिलती हैं। इतिहास के छात्र ही नहीं आम लोग भी इतिहास में रुचि रखने वाले इन पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इन पुस्तकों की सहायता से अपना फेमिली ट्री बना रहे होते हैं। लेस्टर की उपजाऊ जमीन भी यहाँ के हैरीटेज का एक भाग है। जगह-जगह अलॉटमैंट्स मिलती हैं जहाँ लोग प्रसन्नता से खेती बाड़ी करते मिलते हैं। अलॉटमैंट जमीन का एक टुकड़ा होता है। जिसे लोग या तो खरीद लेते हैं या खेती करने के लिए किराये पर ले लेते हैं। जहाँ फल और सब्जियाँ उगाई जाती हैं। यही फल और ताजा सब्जियाँ यहाँ की खुली मार्किट में बिकती हैं।

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तीन चार दिन की बारिश और हवाओं के पश्चात आज मौसम थोड़ा खुल गया है। जब सूरज देवता अपनी प्रसन्नता दिखाने लगें तो घरों में बैठना किसे अच्छा लगता है। शनिवार के दिन को निशा और उसके साथी कैसे चूक सकते हैं। सब घूमने के लिए निकल पड़े। बेलग्रेव रोड पर अचानक इतनी सारी बत्तियाँ देख कर सब दोस्त हैरान हो गए। "निशा यह तीन चार दिन में ही बेलग्रेव रोड पर इतनी बत्तियाँ कैसी। क्रिसमस में तो अभी करीब दो महीने बाकी हैं।"

"यह क्रिसमस से पहले हमारी दीवाली की तैयारियाँ हो रही हैं।"

"दीवाली?"

"हाँ, जैसे आप क्रिश्चियन लोगों के लिए क्रिसमस बहुत बड़ा त्योहार है वैसे ही हम भारतीयों के लिए दीवाली है। क्यों कि लेस्टर में बहुत भारतीय रहते हैं। वह भी इस देश के नागरिक हैं। यहाँ की इकोनोमी को बढ़ाने में उनका का भी पूरा सहयोग है तो अपना त्योहार भी तो वह यहीं मनाएँगे।"

"दीवाली भी क्या क्रिसमस की तरह मनाई जाती है निशा…?"

त्यौहार कोई भी हो खुशियाँ ले कर आता है। यहाँ लेस्टर में दीवाली से करीब दस दिन पहले से ही बेलग्रेव रोड को रंग-बिरंगी बत्तियों से सजाना प्रारंभ कर देते हैं।

दीवाली के ठीक आठ दिन पहले एशियन कम्युनिटी के सबसे बड़े बुजुर्ग को आमंत्रित करके उनके हाथों इन बत्तियों का बटन दबवाया जाता है। जिसके दबाते ही पूरा बेलग्रेव रोड जगमगा उठता है। उस दिन एक मेले का माहौल होता है। दुकानें देर रात तक खुली रहती हैं। आवागमन पर रोक लग जाती है। पूरे बेलग्रेव रोड पर किसी भी वाहन को आने की इजाजत नहीं होती।

सुबह से ही सड़क को बंद कर दिया जाता है। लेस्टर के लॉर्ड मेयर व अन्य कई जानी मानी बड़ी हस्तियाँ दिखाई देती हैं उस दिन। गाना-बजाना, आतिशबाजी और रौनक मेला देखने के लिए लोग पूरे ब्रिटेन से ही नहीं बल्कि योरोप से भी लोग आते हैं यहाँ की दीवाली देखने के लिए। आतिशबाजी का कार्यक्रम बेलग्रेव रोड के पीछे ही एक बड़े से पार्क कोसिंग्टन पार्क में रखा जाता है। यहाँ उस दिन पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती। ऐसा ही माहौल सप्ताह बाद दीवाली वाले दिन भी देखने को मिलता है। उस दिन युवा लोग हाथ में लाल गुलाब ले कर अपनी महबूबा से प्यार का इजहार करते हैं। यह बेलग्रेव रोड की बत्तियाँ नव वर्ष तक यूँही रोशन रहती हैं।"

"क्यों किशन तैयार हो फिर दीवाली के दिन यहाँ आने के लिए..." सायमन ने किशन को कंधा मारते हुए पूछा... "यार हम भी लाल गुलाब लेकर आएँगे उस दिन।"

"हाँ तुम्हें तो कोई बहाना और मौका चाहिए अपने दिल की बात कहने के लिए... हम किस से कहेंगे?" किशन अलका की ओर देखते हुए बोला।

"वो भी ढूँढ़ लेंगे तुम इतने मायूस क्यों होते हो... क्यों अलका..."

"मुझे तुम लोगों की बातें समझ में नहीं आतीं..." कह कर अलका आगे निकल गई।

त्यौहार तो आते जाते रहेंगे परंतु यह समय यदि हाथ से निकल गया तो पलट कर वापिस नहीं आने वाला। निशा अपनी नानी की सीख को हमेशा पल्ले से बाँध कर रखती है। हमारे बड़े सोच समझ कर ही कुछ कहते हैं।

***

दो दिन के बाद क्रिसमस की छुट्टियों के लिए युनिवर्सिटी बंद हो रही है।

युनिवर्सिटी का तो अपने समय पर बंद होना समझ में आता है क्योंकि कड़ी मेहनत करने वाले छात्रों के मस्तिष्क को भी थोड़ा विश्राम चाहिए। छुट्टियों के पश्चात छात्र ताजा दिमाग ले कर वापिस आते हैं जो आते ही उन्हें परीक्षा का सामना करना होता है।

परीक्षा की घड़ी बच्चों के सामने ही नहीं ब्रिटिश सरकार के सामने भी आकर खड़ी हो गई।

पिछले कई वर्षों से सरकार उतरी समुंदर से गैस निकालने के प्रयोगों में जुटी हुई है। वहाँ से कुछ अच्छे संकेत मिलते ही कर्मचारी अपनी सफलता पर खुश होकर एक दूसरे से हाथ मिला कर बात करने लगे...

"आज कई वर्षों के कठिन परिश्रम के पश्चात सफलता की किरण दिखाई दी है। वादे के अनुसार अब सरकार से हमें बड़ा बोनस भी मिलना चाहिए।"

"बोनस मिलने की खुशी में यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कितनी ही कोयले से भरी खदाने भी बंद हो जाएँगी। माइनर्स बेरोजगार होकर घर बैठ जाएँगे। हमारे बाप दादा जो इतने गर्व के साथ सुबह सबेरे झोला लटका कर काम पर जाते हैं उनका क्या होगा।"

"अरे भई कारखाने थोड़े ही बंद हो जाएँगे। वैसे भी यहाँ काम की कमी नहीं बस मेहनत करने का जज़्बा होना चाहिए।"

वही हुआ जिसका डर था। सरकार ने चलती हुई खदानों को बंद करना आरंभ कर दिया। वहाँ काम करने वाले मजदूर सकपका गए। जब उनकी नौकरी पर आन पड़ी तो वे दुहाई लेकर यूनियन के पास पहुँचे। यूनियन के आग्रह पर भी सरकार की ओर से ना तो खदानों के ताले खोले गए और ना ही वहाँ काम करने वाले मजदूरों की सुनवाई पर ध्यान दिया गया।

यूनियन कहाँ चुप बैठने वाली थी। उनके कहने पर अपने मजदूर भाइयों का साथ देने के लिए एक साथ पूरे ब्रिटेन के माइनर्स अपने औजार रख कर खदानों से बाहर आ गए। एक आध शहर के नहीं पूरे देश के माइनर्स हड़ताल पर चले गए। सरकार को अकस्मात बहुत बड़ा धक्का लगा। यह 80 के दशक की बात है।

ऐसी ही एक हड़ताल पहले भी 70 के दशक में भी हुई थी जो कि सात सप्ताह तक चली थी। उसने सरकार का तख्ता हिला दिया था। जब सारे कारखाने, बिजली घर, स्टील इंडस्ट्री आदि पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा था। ऊर्जा के लिए सारी इंडस्ट्रीस कोयले पर ही निर्भर करती थीं। कोयले की खानों में काम करना कोई आसान काम नहीं था। काली, अँधेरी धूल से भरी सुरंगों के द्वारा धरती के कई फुट नीचे जा कर कोयला कूट कर लाना जिस काम को लोग प्रसन्नता पूर्वक करते थे। जिस कार्य को मन लगा कर किया जाए वह कभी मुश्किल नहीं लगता। वैसे भी यहाँ काम करने वालों के पास कभी काम की कमी न थी। मेहनताना भी बहुत अच्छा मिलता था। सबसे बड़ी बात उनको घरों में जलाने के लिए कोयला मुफ्त में मिलता तो लोगों का प्रसन्न होकर कोयले की खदानों में काम करना स्वभाविक ही था।

यह हड़ताल महँगाई भत्ता बढ़ाने के लिए थी। काम मंदा पड़ गया। सारा प्रोडक्शन रुकने लगा। जब कोई और विकल्प समझ में नहीं आया तो सरकार ने माइनर्स यूनियन के सामने घुटने तो टेक दिए मगर कुछ सोचने पर भी मजबूर हो गई।

मजबूरी कहो या जरूरत... उत्तरी समुद्र से जो कच्ची गैस निकालने के प्रयोग हो रहे थे उसमें आशा की किरणें दिखाई देते ही काम ने तेजी पकड़ ली। अंदर ही अंदर राजनीति की बातें चलने लगीं। राजनीति में तो अंग्रेजों का वैसे ही कोई मुकाबला नहीं कर सकता। जगह जगह गैस के लिए पाइप लाइन बिछाने के लिए जमीन में खुदाई का काम आरंभ हो गया।

आखिर इतनी मेहनत और पैसा खर्चा करके ब्रिटिश सरकार ने समुद्र से गैस निकाल ही ली...। गैस निकलते ही धीरे-धीरे कोयले की खदानों को बंद करने की योजनाएँ बनाई जाने लगीं...।

"अरे यह हमारी खदान के बाहर इतनी भीड़ कैसी...। क्या हुआ भाई तुम लोग अंदर काम करने क्यों नहीं जा रहे।"

"ये दरवाजे के सामने बड़ा ताला देखते हो... और साथ में ही यह नोटिस... सरकार ने यह कह कर खदान को बंद कर दिया है कि इसमें अब कोयला नहीं है और नुकसान पर जाती खदान का खर्चा वह नहीं उठा सकते।"

"अच्छा... अभी कल तक तो खदान कोयले से भरी हुई थी... ये रातों रात कैसे खाली हो गई। यह सब सरकार की चाल है। समुद्र से गैस जो निकल आई है। हम सरकार को मनमानी नहीं करने देंगे। चलो यूनियन के पास। सरकार उन्हीं की भाषा समझती है।"

मजदूर बातें करते रह गए और सरकार ने कुछ और खदानों को नुकसान पर दिखा कर तुरंत बंद करने की आज्ञा दे दी जिसमें लेस्टर के पास के छोटे गाँवों की खदानें भी थीं। परिणाम स्वरूप वहाँ पर काम करने वालों को घर बैठना पड़ा। सरकार अब नई निकली गैस को पूरे प्रयोग में लाना चाहती थी।

एक के बाद एक खदान बंद होने से माइनर्स में अफरा-तफरी मचने लगी। इस बार देश के नेता यूनियन को दिखाना चाहते थे कि देश किसके दम से चल रहा है। जब सरकार ने यूनियन की किसी माँग पर भी ध्यान नहीं दिया तो मजदूरों को वापिस काम देने की माँग पर देश के 187-000 माइनर्स एक साथ हड़ताल पर चले गए।

हड़ताल भी ऐसी जो ब्रिटेन के इतिहास की सबसे बड़ी हड़ताल मानी जाती है।

कारखाने अभी भी उर्जा के लिए कोयले पर निर्भर कर रहे थे। गैस का कारखानों व घरों तक पहुँचने में अभी कुछ समय था। खदानों से कोयला आना बंद हो गया... कोयला कारखानों तक न पहुँचने से वहाँ काम करने वालों पर भी इसका अच्छा खासा दुष्प्रभाव दिखाई देने लगा। सरकार के लिए भी यह एक बहुत बड़ी परीक्षा की घड़ी थी। य़ूनियन की बात ना मान कर सरकार ने कारखानों में पाँच के स्थान पर तीन दिन का सप्ताह घोषित कर दिया। ऑर्डर समय पर भेजना असंभव हो गया। कई छोटे कारखाने दिवालिए हो गए। लोग सहायता के लिए सरकार का दरवाजा खटखटाने लगे। दिनों दिन बेरोजगारी बढ़ने से सारा बोझ वैलफेयर स्टेट को उठाना पड़ा।

कारखानों तक ही यह बात समाप्त नहीं हुई। घरों में भी बिजली व पानी पर राशन कर दिया गया। सरोज घबराई हुई काम से घर आई...

"सुनिए जी मैं काम पर से यह क्या सुन कर आ रही हूँ... घरों में भी बिजली पानी पर रोक लगाई जा रही है। पानी के बिना घर का काम कैसे होगा।"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा ना सरोज। यह केवल हमारे लिए ही नहीं पूरे देशवासियों के लिए है। तीन चार घंटे को जब पानी आए तो भर कर रख लेंगे। बाथरूम में प्रयोग के लिए टब भर लेंगे और पीने व घर के अन्य कामों के लिए बालटियाँ भर कर रख लेना।"

"हाँ याद रहे बिजली पर भी राशन होने वाला है तो पहले से ही बहुत सी मोमबत्तियाँ खरीद लें तो अच्छा है जो बाद में कोई परेशानी ना हो। मैं भी दुकान पर अच्छा खासा स्टॉक इकट्ठा कर लूँगा क्या पता कब किसको आवश्यकता पड़ जाए। और देखो कोयले की भी अगली सप्लाई का कोई भरोसा नहीं है। जब बहुत आवश्यक हो तभी कमरे में अँगीठी जलाना।"

"देखिए ना बैठे बिठाए एक और मुसीबत आ गई। अब दोष यूनियन को दो या सरकार को पिसता तो बेचारा गरीब ही है।"

"इसमें पूरा देश शामिल है सरोज केवल हम ही नहीं। भलाई इसी में है कि चुपचाप जो मिल रहा है उसी में गुजारा करते जाओ।"

"हाँ... इसके अलावा और कोई चारा भी तो नहीं..."

माइनर्स यूनियन की शायद यह सबसे बड़ी भूल थी। यूनियन के कार्यकर्ताओं ने तो सोचा था कि कुछ ही समय में सरकार उनकी माँगें पूरी करके उनके सामने पहले के समान झुक जाएगी। इसी होड़ में हड़ताल बारह सप्ताह तक खिंची जिसका भरपूर नुकसान कोयला इंडस्ट्री को उठाना पड़ा। जब काम नहीं करेंगे तो वेतन भी नहीं मिलेगा। बेरोजगार लोग परिवार की मामूली आवश्यकताएँ भी पूरी करने में असमर्थ हो गए थे। मकान की किश्तें न भर पाने के कारण मकान भी बिकने लगे। हार कर माइनर्स को हड़ताल तोड़नी ही पड़ी।

हड़ताल समाप्त हो जाने से भी माइनर्स के पास काम नहीं था। कारखानों और घर-घर में गैस के आते ही सरकार ने कई कोयले की खदानों को बंद करने का ऐलान कर दिया। चाहे वो खदाने कोयले से भरी हुईं ही क्यों न थी। इस बार बाजी सरकार के हाथ में थी। यूनियन पर से लोगों का विश्वास उठ गया। जिस यूनियन पर कभी उन्हें नाज हुआ करता था उसी यूनियन को अब वह अपने बेरोजगार होने का दोषी ठहराने लगे।

जब बुरे दिन आते हैं तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। काम करने वालों की छँटाई आरंभ हो गई। जहाँ पहले हाथ जोड़ कर लोगों को काम पर बुलाया जाता था वहीं अब मजदूरों को भी वह चुन चुन कर रखने लगे। कोई कुछ न कर पाया। ऐसे में नुकसान उद्योगपतियों का नहीं मजदूरों का होता है। सरकार खुश थी कि अब कारखानों में ही नहीं घर-घर में गैस पहुँचने लगी थी। कोयले के मुकाबले में गैस से काम करना साफ और सस्ता लगने लगा...

कुछ युवा आपस में बात कर रहे थे... "चलो एक काम तो हमारी सरकार ने अच्छा किया जो समुद्र से गैस निकाल ली। अब घर भी साफ सुथरे मिलेंगे और सुबह उठते ही कोयले से अँगीठी जलाने के लिए हाथ भी गंदे नहीं होंगे।"

"पर यार... यह भी तो सोचो हमारे बाप-दादाओं के पास काम नहीं है। जो सुबह सबेरे कितनी शान से काम पर जाते थे अब वही मायूस से सिर झुका कर घर बैठे रहते हैं। काम ना होने से बीमारियाँ भी जल्दी पकड़ती हैं।"

"हाँ यह बात तो तुमने सही कही... यह नहीं कि केवल माइनर्स ही घर में बैठे हों इन खदानों के साथ जुड़े कितने ही और काम भी बंद हो गए हैं। छोटे रेल स्टेशन जहाँ कोयला इधर से उधर ले जाने का काम मालगाड़ियों द्वारा किया जाता था खामोश खड़ी हैं। जब कोयला ही निकलना बंद हो गया तो स्टीम इंजन व मालगाड़ियों की आवश्यकता भी नहीं रही। लेस्टर की कैनालस जो आवागमन के लिए मशहूर हुआ करती थीं उनका प्रयोग भी अब नहीं के बराबर रह गया है। इस हड़ताल का प्रभाव पूरे देश में दिखाई दे रहा है।"

क्या करें सरकार के फैसले के आगे कोई कुछ बोल भी तो नहीं सकता। अब तो यूनियन भी असहाय दिखने लगी है। हम खुश हैं कि हमारे पास काम है। कोई जाकर उनसे पूछो जिनके छोटे बच्चे हैं। कैसे सरकार द्वारा दिए गए थोड़े से पैसों में वह गुजारा कर रहे हैं...।"

हड़ताल लंबी खिंच जाने की वजह से सारा काम ठप्प हो गया। आर्डर खत्म कर दिए गए। घाटे पर चलते कारखाने एक एक करके बंद होने लगे। चोरी-चकारी अपराध बढ़ने लगे। गोरे लोगों को एशियंस पर गुस्सा निकालने का कारण मिल गया। अपनी बेरोजगारी का सारा दोष वह इन पर डालने लगे। आए दिन कोई न कोई घटना होती रहती। एशियंस के पास अधिकतर अपना व्यापार था, दुकानें थीं, रेस्तराँ थे... वे कुछ भी काम करने को तैयार थे, उनके पास अपने घर थे। अंग्रेजों का सारा गुस्सा उन पर व उनके बच्चों पर उतरने लगा।

वैलफेयर स्टेट बेरोजगारों के बोझ तले दबती नजर आई। चाह कर भी सरकार एशियंस को उनके देश वापिस न भेज सकी। जब लोगों के पास काम नहीं, रहने को घर नहीं तो सरकार को सहायता देनी ही पड़ी। थोड़े पैसों में परिवार को पालना लोगों की मजबूरी हो गई। परिवार की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए लोगों ने खुली मार्केट का रुख किया और सस्ते से सस्ता सामान ढूँढ़ने लगे जो विदेशों से आ रहा था।

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