kuchh yadey fursat me books and stories free download online pdf in Hindi

कुछ यादें फुरसत में

क्या लिखू यार कुछ समझ नही आता,
कल जो ख्वाब देखा था औ आज बिखरशा गया है...


महफूज़ थी वो रात की सुबह जो तेरे इंतज़ार में कट रही थी..
अब तो शुभह हो या शाम सब एक जैसा लगता है,,,



सिर्फ तुम.....

मेरे लिए मेरी दुनिया हो तुम...
छू के जो गुज़ारे वो हवा हो तुम....

मैंने जो मांगी है वो दुआ हो तुम..
किया मेने मह्सुश वो एहसास हो तुम...

मेरी नज़र की तलाश हो तुम..
मेरी ज़िन्दगी का इकरार हो तुम..
मेरे इंतज़ार की रहत हो तुम..
मेरे दिल की चाहत हो तुम...

तुम हो तो दुनिया है मेरी...
कैसे? कहूँ तुम सिर्फ तुम नहीं मेरी दुनिया हो तुम...
सिर्फ तुम हो.....

क्या? अकेले ही आंखे साफ करते रहोगे???

या हमे भी कुछ आसु दोगी??

ये मायुश छे चहरे पर एक हसी रहनी चाहिए,,,
तू साथ हो ना हो बस तेरा ख्याल रहना चाहिए,,,

चीड़ छिड़ी इन रातो मे फूलो की बाते करते हो,,
आँखों मे नमी, होठों पे हसी है,,
ना जाने कौनसे गम छुपा रहे हो हमसे,,,,


हमेशा के लिए रखलो ना मुझे पास अपने कोई पुछे तो बता देना के
मालीक है दिल के.. written by jp

जीसको बसना है जन्नत में वो बेसक जा कर बसे

अपना तो आशियाना ही आपके दिल में है.......
written by jp


औ चाँद की तरह हो तुम..
जितना तुमसे दूर जउन उतनी करीब आती हो औ चाँद की तरह.....
क्यों पिछे पिछे याद बनकर आती हो तुम औ चाँद की तरह ...
तुमको जब मैं भूलना चाहूं तब तुम निकलती हो औ चाँद की तरह...
जब मैं करीब आता हूँ तेरे तब तुम उतनी दूर भागती हो औ चाँद की तरह...
फिर भी मै पाना चाहु तुमको औ चाँद की तरह..
औ चाँद की तरह हो तुम..


तू उस निगाह से मत देख मुझे उलझ जाता हु मै... तुमसा देखा नही कोई ऐसे ही मर जाता हु मै...

सफर मै तू साथ हो तो क्या बात हो.....
हर मोड़ पर गुजर जाने की बात हो...

इन महक्ति फ़िज़ा मै कुछ गरूर सा साया है....
इन बारिस की बूंदों ने मधुर सा गीत गया...

पंछी के कलरव मई भी नाम तेरा सुनाय दिए....
बहती हवाओं मे एहसास तेरा छुपा है.....

कुछ इंतज़ार की नुमाइस है फिर मिल ने को दिल बेताब है....
एह हवाये तेरी बातो करती है...
फूल जैसे तुजे सवार रहे है...

सफर मै तू साथ हो तो क्या बात हो...
हर मोड़ पर गुजर जाने की बात हो...
संभाले नहीं संभलता है दिल,
इश्क तलबगार है तेरा चला आ,
मुझ में लगता है कि मुझ से ज्यादा है वो,
खुद से बढ़ कर मुझे रहती है जरुरत उसकी।
माँगा तो सिसकियों की भी हद से गुजर गये।
संभाले नहीं संभलता है दिल,
इश्क तलबगार है तेरा चला आ,
रूबरू मिलने का मौका मिलता नहीं है रोज,
इसलिए लफ्ज़ों से तुमको छू लिया मैंने।

जन्नत-ए-इश्क में हर बात अजीब होती है,
रोज साहिल से समंदर का नजारा न करो,
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा न करो,
आओ देखो मेरी नजरों में उतर कर खुद को,
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा न करो।
इजहार-ए-मोहब्बत पे अजब हाल है उनका,
आँखें तो रज़ामंद हैं लब सोच रहे हैं।

एक अजीब सी बेताबी है तेरे बिना,
मेरी आँखों में यही हद से ज्यादा बेशुमार है,
तेरा ही इश्क़, तेरा ही दर्द, तेरा ही इंतज़ार है।
रह भी लेते है और रहा भी नहीं जाता।

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है,
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से,
कुछ ऐसा भी हो जाये,
मेरा महताब उसकी रात के,
आगोश में पिघले,
मैं उसकी नींद में जागूं,
वो मुझमें घुल के सो जाये।
कुछ वो भी था नादान बहुत,
कुछ हम भी पागल थे लेकिन,