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सपनों की कीमत

हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है,सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचने पर हम अक्सर अकेले रह जाते हैं, इसे सफलता का अभिशाप भी कह सकते हैं या मूल्य,यह हमारी सोच पर भी निर्भर करता है और कुछ परिस्थितियों पर।
आज मञ्जरी देश की एक प्रसिद्ध रिपोर्टर है,कितनी भी विषम व खतरनाक स्थिति हो,कैसा भी मौसम हो,दुर्गम जगह हो,न दिन देखती है न रात,वह रिपोर्टिंग के लिए साइट पर मौजूद रहती है, उसका बैग पैक तैयार रहता है,जैसे ही सूचना प्राप्त होती है वह मिनटों में निकल पड़ती है अपने कैमरामैन के साथ।तमाम साथी उससे ईर्ष्या रखते हैं,वहीं कुछ लोग उसके जुनून औऱ कार्य के समर्पण की तारीफ तथा इज्जत भी करते हैं औऱ कुछ लोग तंज करने वाले भी हैं कि अरे,कोई जिम्मेदारी तो है नहीं, अकेली है, इसलिए कोई बंधन नहीं है।खैर, यह तो दुनिया की रीत है, कुछ आपके हर कृत्य पर उंगली उठाते हैं, हतोत्साहित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।अगर आपको आगे बढ़ना है तो ऐसे लोगों को इग्नोर करना ही समझदारी है।
आज मञ्जरी का चालीसवां जन्मदिन है, वह अपना जन्मदिन लोगों की भीड़ से अलग अकेले किसी पहाड़ी स्थान पर प्रकृति की गोद में मनाना पसंद करती है,जहां वह आत्मलीन,शांतचित्त होकर सुकून के पल बिताती है।जब कोई उसके अकेलेपन के बारे में पूछता है तो मुस्कराकर बात को हवा में उड़ा देती है।आज किसी ऐसे ही प्रश्न के कारण वह अपने विगत में विचरण कर रही थी।
हर युवा की तरह उसकी आँखों में भी ढेरों सपने थे,वह एक फेमस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रिपोर्टर बनना चाहती थी, एक सपोर्टिव जीवनसाथी, एक घर औऱ एक प्यारी सी संतान।इंटर के पश्चात एक अच्छे कॉलेज में BJMC में एडमिशन ले लिया था।अपने माता-पिता की लाडली बेटी, इकलौते भाई की प्रिय बहन,संपन्न परिवार,किसी बात की कोई कमी नहीं थी।हर कदम पर उसका परिवार उसके साथ था।कॉलेज के प्रथम वर्ष में ही आरव से मित्रता हो गई।दोनों में एक बात बिल्कुल समान थी अपने सपनों को साकार करने का जुनून।व्यक्तित्व तो आरव का भी आकर्षक था,किन्तु मञ्जरी को ईश्वर ने फुर्सत से बनाया था, सौंदर्य के साथ तीक्ष्ण बुद्धि से भी नवाजा था।कई लोगों ने उसे प्रपोज किया था लेकिन वह आरव में अपने जीवनसाथी को देखती थी।तीसरे वर्ष तक आते-आते मित्रता मुहब्बत में बदल चुकी थी।उन्होंने निश्चय किया था कि ग्रेजुएशन के पश्चात दो-तीन साल कॅरियर में स्थापित होने के उपरांत परिणय सूत्र में बंधेंगे।
वैसे आरव में सबकुछ ठीक था,लेकिन उसके पुरुषगत अहम का दर्शन यदा-कदा हो ही जाता था।जब वह कभी किसी अन्य मित्र के साथ हंसकर बात कर लेती थी या उसका मोबाइल बिजी जाता था तो आरव को नागवार गुजरता था,तुरंत कमेंट करता था कि आजकल तुम कुछ अधिक ही बिजी रहती हो।मञ्जरी इस एकाधिकार को आरव का प्रेम समझकर इग्नोर कर देती थी।
आखिरी वर्ष में कई प्रसिद्ध चैनल आए थे कैम्पस सेलेक्शन के लिए।दो-तीन सबसे अच्छे चैनल में दोनों ने अप्लाई किया था, तब आरव ने कहा था कि तुम न्यूज रीडिंग के लिए अप्लाई करो।मञ्जरी ने यही सोचा था कि आरव फील्ड की परेशानियों के कारण उसे मना कर रहा है।जब उसका सेलेक्शन हुआ था तो सभी मित्रों ने उसे बधाईयां दीं लेकिन आरव के चेहरे उसे किंचित भी खुशी नजर नहीं आई थी।अपितु उसके कमेंट से कि सुंदरता का फ़ायदा तुम लड़कियों को खूब मिलता है, मञ्जरी का मन आहत हो गया था।ये वही आरव था जो महिलाओं की स्वतंत्रता एवं बराबरी की बात बड़े पुरजोर शब्दों में किया करता था।
उसी चैनल में आरव का दूसरे सेक्शन में सेलेक्शन हुआ था लेकिन उसने दूसरे चैनल को ज्वाइन किया, पूछने पर कहा कि एक जगह काम करने से हम फ़्री होकर काम नहीं कर पाएंगे।इसके बाद से ही मञ्जरी ने आरव में बदलाव महसूस किया था।लेकिन नए काम की व्यस्तता मानकर मन को समझा लिया था।समय अपनी गति से व्यतीत हो रहा था।दो वर्ष में मञ्जरी ने अच्छा नाम कमा लिया था।अब वह एक जानी-मानी पत्रकार बन चुकी थी।अब आरव से बातें काफी कम हो गई थीं।जब वह मिलने की बात करती तो अक्सर आरव व्यस्तता का बहाना बना देता।एक शहर में ही रहने के बावजूद महीनों हो जाते मिले हुए।जब कभी मुलाकात होती तो आरव का व्यवहार बिल्कुल अजनबियों जैसा प्रतीत होता।
अब मञ्जरी विवाह के बारे में सोचने लगी थी।जब भी वह आरव से इस सिलसिले में बात करने का प्रयास करती,वह टालमटोल कर जाता।अंततः एक अवकाश के दिन वह सीधे आरव के घर पहुंच गई।आरव समझ गया कि आज मञ्जरी स्पष्ट बात करने के विचार से आई है।थोड़ी औपचारिक बात के पश्चात मञ्जरी सीधे मुद्दे पर आ गई, वैसे भी स्पष्ट अभिव्यक्ति उसकी खासियत थी।
मञ्जरी ने कहा,"आरव,मैं महसूस करने लगी हूँ कि हमारे बीच दूरियां आ गई हैं।अब तुम काफी बदल गए हो।आखिर क्या कारण है?जो भी है साफ-साफ कहो।"
थोड़ी देर की ख़ामोशी के उपरांत आरव ने गम्भीर होकर जबाब दिया,"देखो मञ्जरी, मुझे गलत मत समझना।हर किसी की अपनी सोच होती है,सपने होते हैं।मैं तुमसे प्यार तो करता था।मैं चाहता था कि तुम फिक्स टाइमिंग की जॉब करो।कल को बच्चे होंगे,तो उन्हें सम्हालने में आसानी रहती।मैं अक्सर घर से बाहर रहता हूँ।लेकिन तुमने मेरे मना करने के बावजूद फ़ील्डवर्क चुना।जिंदगी में हर बात अपनी मर्जी की तो नहीं हो सकती।हमारी सोच में बहुत फर्क है, इसलिए बेहतर यही है कि हम अपने रास्ते अलग कर लें।"
अत्यधिक साहसी थी मञ्जरी, पर जब दिल टूटता है तो हौसला छूटने लगता है, नेत्र अश्रु बहाने ही लगते हैं।जिस इंसान के इर्दगिर्द हम जीवन के सारे सपने बुन लेते हैं, जब वही सपनों के महल को मटियामेट कर दे तो सम्हलना आसान नहीं होता।परन्तु मञ्जरी को अपना आत्मसम्मान, स्वाभिमान दांव पर लगा देना कदापि गवारा नहीं था।फिर जिसे उसकी,उसके सपनों की परवाह ही नहीं थी,जिसे सिर्फ़ अपनी ख्वाहिशें, अपनी इच्छाएं नजर आ रही हों,उसके लिए वह स्वयं को मिटाने के लिए कतई तैयार नहीं थी।
उसने अपनी पीड़ा को दबाते हुए सिर्फ़ इतना कहा कि अगर तुम्हारी यही भावना थी तो अबतक हमारे रिश्ते को ढो क्यों रहे थे?पहले ही स्पष्ट कर देना चाहिए था।सच तो यह है कि तुम्हें मेरा तुमसे आगे बढ़ जाना बर्दाश्त ही नहीं हुआ औऱ तुम्हारा छद्म आवरण इसे स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा सका।इतना कहकर आरव को हिकारत से देखती हुई मञ्जरी चली गई।मञ्जरी ने खुद को अपने कार्य में पूर्णतया डूबा दिया।दिल के दर्द को भुलाने का यही सर्वोत्तम साधन होता है।
दो माह भी नहीं बीते थे कि आरव ने अपने साथ कार्यरत युवती से विवाह कर लिया।मञ्जरी ने पहले भी उड़ती -उड़ती खबर सुनी थी कि आरव किसी के साथ डेट कर रहा है लेकिन उसके प्यार में विश्वास ने उसे मात्र अफवाह मान लिया था।
उसके पश्चात कई लोगों ने मञ्जरी से विवाह की ख्वाहिश व्यक्त की थी,लेकिन अब मञ्जरी ने अपना जीवन अपने कैरियर को समर्पित कर दिया था।उसे अब कभी भी अपने इस निर्णय पर तनिक भी अफ़सोस नहीं होता था।उसके माता-पिता,भाई हमेशा उसके हर निर्णय का सम्मान करते थे।माँ ने जरूर एक-दो बार समझाना चाहा था कि हर पुरुष एक समान नहीं होता है।तो मञ्जरी ने कहा कि क्या हर बार आजमा कर अपना दिल तोड़ती रहूँ।मैं खुश हूँ, हर किसी का अपना तरीका होता है, बस जो सामने हो उसे भरपूर जीना चाहिए।प्रसन्नता स्वयं के ही अंदर समाहित है।
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